देवभूमि में दहक रही है बग़ावत की ज़मीन
ढलते नवंबर की एक ढलती हुई शाम उस गांव में शादी थी, लेकिनउसका पंडाल हाइवे से थोड़ी ऊंचाई पर वीरान पड़ा था। सड़क किनारे अचानक झुटपुटे में सुलग आई मशालों ने उसकी चमक फीकी कर दी थी। क्या बाराती और क्याच दूल्हाट, सब के सब गांव वालों के साथ सड़क किनारे एक दूसरे पंडाल में इकट्ठा थे। अचानक एक बस आकर सड़क किनारे आकर रुकती है। बस पर उत्तकराखण्डर परिवर्तन पार्टी का बैनर बंधा है। उसके भीतर से जैसे ही कुछ लोग अभिवादन करते हुए बाहर निकलते हैं, रानीखेत की शांत वादियां आक्रामक नारों से दहक उठती हैं। पेश है कैच हिंदी से साभार अभिषेक श्रीवास्तव की रिपोर्ट;
”जिंदल तेरी कब्र खुदेगी, नैनीसार की धरती पर”, ”गली-गली में शोर है, हरीश रावत चोर है”- जुलूस की शक्ल में तब्दींल होते इन नारों की अगुवाई औरतों और बच्चोंं के हाथों में है। देखते-देखते हाइवे पर बचा-खुचा ट्रैफिक थम जाता है। जो अपने घरों से जुलूस को निहार रहे थे, वे भी मशालों की रोशनी में आ जाते हैं। करीब सौ मीटर चलने के बाद एक सफेद मकान के आगे जुलूस थम जाता है और कुमाउंनी में एक नारा निकलता है, ”कोउछु चोर कोउछु चोर, गोकुल चोर गोकुल चोर।” यह ग्राम प्रधान गोकुल सिंह राणा का मकान है। लोग बताते हैं कि कुछ दिनों से वे गांव से बाहर ही रहते हैं। शायद रानीखेत के किसी होटल में ”जिंदल के लोगों” के साथ बैठकर अभी शराब पी रहे होंगे।
किसने लगाई आग?
उत्तेराखण्डा के रानीखेत-अल्मोतड़ा मार्ग पर तकरीबन बीच में स्थित डीडा द्वारसो नाम का यह गांव हमेशा से ऐसा नहीं था। हाइवे के किनारे हार्डवेयर की दुकान चलाने वाले एक ग्रामवासी बताते हैं, ”यह पटवारियों का गांव है। यहां कभी जुर्म नहीं हुआ। लोग इतना मिलजुल कर रहते हैं कि किसी को इतना भी नहीं पता कि कौन सी जमीन किसकी है। कोई कहीं भी खेती कर लेता है, आपसदारी में मकान बना लेता है। पीढि़यों से ऐसे ही चलता आ रहा है।”
सोमवार 23 नवंबर की रात द्वारसो के आकाश में उठी मशालों की कहानी महज दो माह पुरानी है। बीते 25 सितंबर को गांव वालों को अपने गांव से सात किलोमीटर ऊपर ग्राम सभा की ज़मीन नैनीसार पर अचानक कुछ जेसीबी मशीनें दिखाई देती हैं। उन्हें कुछ समझ में नहीं आता। फिर वहां कुछ बाहरी लोगों का आना-जाना शुरू हो जाता है। नैनीसार की जमीन को बाड़ों से घेर दिया जाता है और एक गेट के बाहर चेतावनी लगा दी जाती है, ”बिना आज्ञा प्रवेश वर्जित है।” पीढि़यों से चला आ रहा आपसी सद्भाव अचानक चकनाचूर हो जाता है जब उन्हेंआ पता लगता है कि गांव के प्रधान ने अपनी तरफ से शासन को एक अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर दिया है जिस पर गांव वालों के दस्तीखत हैं। इसमें सात हेक्टेरयर से ज्याजदा ज़मीन कारोबारी जिंदल समूह द्वारा संचालित हिमांशु एजुकेशन सोसायटी को दिए जाने की बात है।
कौन है ये जिंदल? दो महीने से जिंदल के खिलाफ नारे लगा रहे गांव वालों समेत इनके आंदोलन को समर्थन दे रहे उत्तदराखण्डद परिवर्तन पार्टी के अध्यंक्ष पी.सी. तिवारी भी इस नाम को लेकर संशय में हैं। वे कहते हैं, ”बहुत साफ़ नहीं है कि ये जिंदल कौन है। इतना पता है कि वही जिंदल परिवार होगा जो उद्योगपति है।” गांववालों की सोच कहीं ज्याहदा साफ़ है, ”हमें क्याह मतलब कि जिंदल कौन है। होगा कोई! हम तो बस इतना जानते हैं कि हमारी जमीन किसी बिजनेसमैन को हम नहीं देंगे। यहां सरकारी अस्प ताल बनता, कोई योजना लगती जिससे लोगों का भला होता, तो हमें क्याक दिक्कपत थी। इसमें तो हमारे बच्चेज भी नहीं पढ़ पाएंगे? ऐसे स्कूंल का क्याी मतलब?”
स्कूल या रहस्यय
दरअसल, सात हेक्टे यर की ज़मीन पर सोसायटी एक अंतरराष्ट्री य बैक्लॉरेट स्कू ल बनाने जा रही है। शासन को सोसायटी ने जो प्रस्ताेव दिया है, उसमें साफ़ दर्ज है कि इस स्कूेल में कौन पढ़ सकता है। गांव वालों के गुस्सेस का एक बड़ा कारण यह प्रस्तासव है, जो छात्रों की सात श्रेणियां गिनाता है- कॉरपोरेट जगत के बच्चेस, एनआरआइ बच्चेा, उत्तार-पूर्व के बच्चेट, माओवाद प्रभावित राज्यों के बच्चेै, गैर-अंग्रेज़ी भाषी देशों के बच्चे्, भारत में रहने वाले विदेशी समुदायों के बच्चे और वैश्विक एनजीओ द्वारा प्रायोजित बच्चेर। स्कूरल की सालाना फीस 22 लाख रुपये बताई जा रही है। स्कूरल वास्त्व में कारोबारी खानदान जिंदल का ही है। फर्क इतना है कि यह कांग्रेसी नेता नवीन जिंदल का नहीं, देवी सहाय जिंदल समूह का है जो नवीन जिंदल के चाचा थे। सोसायटी के उपाध्यिक्ष प्रतीक जिंदल नवीन जिंदल के भतीजे हैं।
द्वारसो गांव की औरतों की बांहें फड़कने लगती हैं जब वे बताती हैं कि किस तरह 22 अक्टू बर को स्कूाल के शिलान्या स समारोह में उनके साथ बदतमीज़ी की गई। सावित्री कहती हैं, ”लड़कियों ने काली चुन्नीह पहन रखी थी। पुलिसवालों ने उसे छीन लिया। वे काले रंग का कपड़ा पहन कर नहीं आने दे रहे थे।” गांव वाले याद करते हैं कि प्रतीक जिंदल और मुख्यकमंत्री हरीश रावत के पुत्र एक ही हेलिकॉप्टेर में सवार होकर उस दिन नैनीसार आए थे। उस दिन अखबारों में इस स्कू्ल के शिलान्याहस का जो विज्ञापन छपा था, उसमें भारतीय जनता पार्टी के स्था्नीय सांसद अजय टम्टाक और कांग्रेसी विधायक दोनों की तस्वी र थी। गांव वालों ने जब शिलान्यारस का विरोध किया, तो उन्हें दौड़ा-दौड़ा कर मारा गया और कई को ले जाकर थाने में बंद कर दिया गया था। पांचवीं में पढ़ने वाला कृष्णां कहता है, ”मेरी काली पैंट को पुलिसवालों ने उतरवा लिया। मैंने भी तार उखाड़ कर फेंक दी।”
उस दिन नैनीसार की घेरी गई ज़मीन पर मुख्येमंत्री हरीश रावत के स्वाेगत के लिए एक हैलीपैड भी बनाया गया था, हालांकि हरियाणा से लाए गए बाउंसरों से चाक-चौबंद सुरक्षा व्यीवस्थाय के चलते इसे देखने की किसी को इजाज़त नहीं है। पत्रकारों के परिसर में घुसने पर पाबंदी लगी हुई है। हलद्वानी के पत्रकार बताते हैं कि इस स्कू ल के बारे में जिसने भी दिलचस्पीग ली है, उसके फोन टैप करवाए गए हैं। स्था नीय अखबारों को जिंदल समूह की तरफ से उदारता से दिए जा रहे विज्ञापनों ने खबर की राह रोक रखी है। उधर, प्रशासनिक अधिकारियों के फोन दर्जनों बार बजकर बीच में बंद हो जा रहे हैं।
इस बारे में फोन करने पर दिल्ली में बैठे सोसायटी के उपाध्य।क्ष प्रतीक जिंदल कहते हैं, ”मैं सिर्फ सुरक्षाकर्मियों के भरोसे आपको भीतर नहीं जाने दे सकता। वैसे भी हैलीपैड तो अस्थाकयी था, जो अब नहीं है। भीतर कुछ खास हुआ नहीं है अब तक, आप क्याअ देखेंगे?” दूसरी ओर ग्राम प्रधान गोकुल सिंह राणा को इस बात का डर है कि गांव वालों का भरोसा तो उन्हों्ने खो ही दिया है। अब कम से कम प्रशासन और कंपनी के भरोसे को बनाए रखा जाए। जब उनसे स्कूिल की साइट पर चलने को कहा जाता है, तो वे साफ मना कर देते हैं। यही रवैया अल्मोहड़ा के जिलाधिकारी साविन बंसल का भी है, जो दर्जनों बार सूचना भिजवाए जाने के बावजूद प्रतिक्रिया नहीं देते हैं। उनके आवास के बाहर तैनात सिपाही संदेश लेकर आता है, ”डीएम साहब बहुत नाराज़ हैं। उन्हों ने पत्रकारों के मिलने पर रोक लगा दी है।” दिल्लीा से एक कांग्रेसी सांसद के ज़रिए खबर लगती है कि डीएम को मुख्यमंत्री की ओर से आदेश है कि पत्रकारों से इस बारे में बात नहीं करनी है।
कांग्रेस का जिंदल प्रेम
नवीन जिंदल खुद कांग्रेस के सांसद रहे हैं। कांग्रेस के राज में ही उनके चाचा देवी सहाय जिंदल को 1971 में पद्मश्री से नवाज़ा गया था। जिंदल परिवार के बुजुर्गों की मौत के बाद खानदानी कारोबार तो अलग-अलग कंपनियों में बंट गया, लेकिन आज भी परिवार एक ही मेज़ पर खाता है। प्रतीक जिंदल बताते हैं, ”हम सभी एक ही परिवार के हैं। एक साथ रहते हैं। साथ खाते हैं। इसका मतलब यह तो नहीं कि हमारा बिजनेस भी एक है? ये जो अंतरराष्ट्री य स्कूाल बन रहा है, इसका नवीन जिंदल से कोई लेना-देना नहीं है, बेशक वे मेरे अंकल हैं।”
इस बात में अगर सच्चा ई हो भी, तब भी हरीश रावत के जिंदल प्रेम को झुठलाया नहीं जा सकता। नैनीसार की जो सात हेक्टेईयर जमीन हिमांशु एजुकेशन सोसायटी को दी गई है, उस संबंध में जिलाधिकारी कार्यालय (अल्मो ड़ा) द्वारा उपजिलाधिकारी (रानीखेत) को 29 जुलाई 2015 को भेजे गए एक ”आवश्य क” पत्र में तीन बिंदुओं पर संस्तुनति मांगी गई थी: 1) प्रस्ताेवित भूमि के संबंध में संयुक्त् निरीक्षण करवाकर स्पमष्टद आख्याी; 2) ग्राम सभा की खुली बैठक में जनता/ग्राम प्रधान द्वारा प्राप्तं अनापत्ति प्रमाण पत्र की सत्यांपित प्रति; 3) वन भूमि न होने के संबंध में स्पाष्टा आख्याश। इसके जवाब में 14 अगस्त 2015 को शासन को जो पत्र भेजा गया, उसमें संयुक्तष निरीक्षण का परिणाम यह बताया गया कि कुल 7.061 हेक्टेियर प्रस्ताावित जमीन वन विभाग के स्वाामित्वय की नहीं है। उस पर 156 चीड़ के पेड़ लगे हैं लेकिन वे ”वन स्व रूप में नहीं हैं”। आकलन के मुताबिक इस भूमि का नज़राना 4,16,59,900.00 रूपये बनता है और वार्षिक किराया 1196.80 रुपये बनता है। जवाब में ग्राम सभा की खुली बैठक का कोई जि़क्र नहीं है।
ग्राम सभा की बैठक किए बगैर ज़मीन किस प्रक्रिया के तहत सोसायटी को दी गई, इसके लिए आवेदित आरटीआइ के जवाब में गांव वालों को प्रधान द्वारा जारी एनओसी थमा दिया जाता है, जिस पर न तो तारीख है और न ही वह सत्या पित प्रति है। तब जाकर गांव वालों को पता लगता है कि उनके फर्जी दस्त खत के सहारे उनके साथ धोखा हुआ है। इसके बाद एक और आरटीआइ लगाई जाती है जिसका जवाब 22 नवंबर को आता है। इसमें बताया गया है कि सोसायटी ने सरकार के खज़ाने में दो लाख रुपये का नज़राना 20 नवंबर को ही जमा कराया है। उत्तनराखण्डा परिवर्तन पार्टी के पी.सी. तिवारी पूछते हैं, ”मान लिया कि दो लाख रुपये 20 नवंबर को खज़ाने में पहली बार जमा हुए, तो पट्टा उसके बाद हस्तां तरित होना चाहिए था। आखिर दो महीने पहले 25 सितंबर को कब्ज़ा कैसे ले लिया गया और मुख्योमंत्री ने महीने भर पहले ही शिलान्यालस कैसे कर डाला?” ज़ाहिर है, खूबसूरत वादियों में ऊंचाई पर बसी सात हेक्टेीयर ज़मीन की सालाना कीमत अगर 1196.80 रुपये हो, तो किसी भी कारोबारी के लिए इससे बढि़या डील क्याी होगी।
नैनीसार एक प्रतीक है
उत्तसराखण्डै सरकार की प्रतीक जिंदल पर की गई मेहरबानियों का सिलसिला नैनीसार तक सीमित नहीं है। राज्य भर में ज़मीनों को गैर-कानूनी तरीके से उद्योगपतियों को सौंपने का एक संगठित धंधा चल रहा है। सूबे में हरीश रावत की सरकार आने के बाद बाहर के कारोबारियों पर जैसी मेहरबानी की गई है, इससे स्था नीय लोगों में खासी नाराज़गी है। मसलन, प्रतीक जिंदल के समूह को रामगढ़ में भी काफी जमीनें दी गई हैं। वे इस पर हिमालयन हाइट्स नाम की एक आवासीय परियोजना बना रहे हैं। भवाली के एक ठेकेदार मोहन चंद्र जोशी ने पिछले साल अनुबंध पर यहां निर्माण शुरू किया था, लेकिन आज उनकी अपनी जान के लाले पड़े हुए हैं। बीच में उनका काम रुकवा दिया गया और बिना भुगतान के करीब 35 लाख का माल ज़ब्तए कर लिया गया।
हलद्वानी के एक रेस्त्रां में मिलने आए जोशी का चेहरा उड़ा हुआ था। वे कहते हैं, ”अब वे मुझे जान से मारने की धमकी दे रहे हैं। मैंने मुकदमा किया तो प्रतीक कहने लगा कि मेरे पिता पर 52 मुकदमे पहले से दर्ज हैं, एक और सही। मेरे बेटे की हालत खराब है। उसके लिवर के ऑपरेशन पर लाखों खर्च हो चुका है। मैं बरबाद हो चुका हूं जिंदल के चक्क र में।” जोशी की पत्नीन रोते हुए कहती हैं, ”मेरे पति को जिंदल से बचा लीजिए। न पुलिस सुनती है, न अदालत। वे इन्हेंए मार डालेंगे।”
मोहन जोशी जैसी कई कहानियां उत्त राखण्डे में बिखरी पड़ी हैं। जहां-जहां जिंदल समूह को ज़मीनें दी गई हैं, वहां-वहां नाइंसाफी की दास्तािनें दफ्न हैं। नैनीसार तो सतह के नीचे सुलग रहे उत्तनराखण्डह का एक प्रतीक भर है, जहां अपनी ज़मीन छीने जाने का विरोध करने पर 32 लोगों को नामजद करते हुए 382 ग्रामीणों के खिलाफ 22 अक्टूीबर को मुकदमा दर्ज कर लिया गया था। पूरा गांव यहां दोषी बना दिया गया है, जबकि गांव वालों की बार-बार दी गई तहरीर के बावजूद एक भी एफआइआर ग्राम प्रधान से लेकर भ्रष्टे अधिकारियों पर दर्ज नहीं हो सकी है।
आखिरकार, उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी की अगुवाई में ये आवाज़ें 28 नवंबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर भी पहुंच ही गईं. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह को ज्ञापन देने के बाद सैकड़ों लोग वापस अपने गांवों को लौट चुके हैं, लेकिन महज दो महीने में नैनीसार एक ऊंघते हुए गांव से राष्ट्रीय प्रश्न में तब्दील हो चुका है. हरीश रावत की कुर्सी डोल रही है. क्या वे कुछ सुन पा रहे हैं?
(अभिषेक श्रीवास्तुव स्वडतंत्र पत्रकार हैं और पिछले लंबे समय से देश भर में चल रही ज़मीन की लड़ाइयों पर करीबी निगाह रखे हुए हैं। दस साल तक कई मीडिया प्रतिष्ठामनों में नौकरी करने के बाद बीते चार साल से वे संकटग्रस्तै इलाकों से स्वातंत्र फील्डं रिपोर्टिंग कर रहे हैं।)