पुलिसिया दमन के बल पर बनाया जा रहा कनहर बांध बारिश के पानी में बहा
उत्तर प्रदेश के सोनेभद्र जिले में कनहर बाँध परियोजना का निर्माण कार्य चल रहा है जिससे उत्तर प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ का एक बड़ा हिस्सा प्रभावित होगा । परियोजना का निर्माण अवैध तरीके से हो रहा है जिनके खिलाफ स्थानीय आदिवासी तथा दलित किसानों ने एक शांतिपूर्ण आन्दोलन छेड़ रखा है । स्थानीय लोगों की आवाजों को दबाने तथा आन्दोलन को कुचलने के लिए उत्तर प्रदेश प्रशासन लगातार बर्बरतापूर्ण दमन कार्यवाही करते हुए नेताओं को जेल में डाल दिया है । 6 जुलाई को किसान नेता डॉ. सुनीलम ने मर्जापुर जेल में बंध आंदोलनकारियों से मुलाकात कर प्रभावित गांवों का दौरा कर एक रिपोर्ट तैयार की है जो प्रशासन की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाती है । पेश है डॉ. सुनीलम रिपोर्ट;
9 जुलाई 2015 को कनहर बांध बारिश के पानी में बह गया है । बहुत जद्दोजहद के बाद इसे बनाया जा रहा था। कनहर सिंचाई परियोजना सोन कछार क्षेत्र में उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ और झारखंड को प्रभावित करने वाली योजना है। सिंचाई का कमांड एरिया 37,320 हेक्टेयर बताया गया है। प्रति हेक्टेयर सिंचाई की कीमत 636475.62 रू. प्रति हेक्टेयर आएगी। इस परियोजना से दुद्धी तथा बगारू कस्बों के 2 लाख लोगों को पानी उपलब्ध कराया जाएगा।
अधिकतम पानी का स्तर 267.920 इएलएन होगा। आष्चर्यजनक तौर पर कन्हर बांध का निर्माण करने वाली कंपनी के मुताबिक कुल 19 गांव प्रभावित होंगे। 4088.13 हेक्टेयर जमीन डूब में जाएगी, जिससे 1810 परिवार प्रभावित होंगे। कुल नहरों की लंबाई 57.10 किमी. तथा खेतों तक ले जाने के लिए 190 किमी. लंबाई की लहरें बनाई जाएंगी। परियोजना की कुल कीमत 225713.35 लाख होगी।
उक्त आंकडों का विस्तृत ब्यौरा किसी भी ग्रामवासी अर्थात डूब प्रभावित किसान की जानकारी में नहीं है। सभी को यह बताया गया है कि 11 ग्राम प्रभावित होने वाले हैं। सभी प्रदेशों के प्रभावित गांवों का ब्यौरा ग्रामवासियों को उपलब्ध नहीं है। यह बात डूब प्रभावित गांवों का दौरा करने के बाद खुलकर सामने आई। परियोजना के क्षेत्रीय कार्यालय में कोई भी अधिकारी या कर्मचारी मौजूद नहीं मिले। पुनर्वास केन्द्र पर पूछताछ करने पर कोई जानकारी तो नहीं मिली परन्तु फोन करके थानेदार महावीर यादव को बुला लिया गया। उनसे पुलिस के 14 तथा 18 अप्रैल को दो बार गोलीचालन के संबंध में बात करनी चाही पर वह तैयार नहीं हुए।
ग्रामवासियों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार पुलिस द्वारा 14 अप्रैल तथा 18 अप्रैल को अनावष्यक बर्बरतापूर्ण लाठी चार्ज तथा गोलीचालन किया गया। मुआवजा तथा पुनर्वास के संबंध में कोई भी कागजात एक भी ग्रामवासी के पास उपलब्ध नहीं थे। भय का वातावरण था। लेकिन 14 और 18 की जानकारी सभी ग्रामवासियों ने विस्तृत तौर पर दी जिससे यह नतीजा निकलता है कि पुलिस ने आंदोलन को कुचलने के लिए पूरा कुचक्र रचा। गोलीचालन के बाद आंदोलन के नेता गंभीरा सिंह को कुख्यात अपराधी के तौर पर वरिश्ठ एडवोकेट रवि किरण जैन की यहां से गिरफ्तार किया गया। रोमा जी को जो कि 14 और 18 तारीख के आंदोलन में शामिल नहीं थी उनको उनके घर से उसी थानेदार कपिल यादव द्वारा अभद्रता पूर्वक गिरफ्तार किया गया जिसने ग्रामवासियों पर गोली चलाई थी। मैंने रोमा जी, गंभीरा प्रसाद, राजकुमारी भुइयां, सुपालु पनिका, अशर्फी यादव, पंकज गौतम, लक्ष्मण प्रसाद आदि साथियों से मिर्जापुर जेल में 6 जुलाई को पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष सपा के अरूण दुबे, पूर्व बार काउन्सिल अध्यक्ष अशोक सिंह, नागरिक संगठन के अध्यक्ष अरुण मिश्रा, एआईयूएफडब्ल्यूपी के रजनीश भाई, रामगरीब और शोभना देवी, सीपीआइ्र एमएल के शरद मल्होत्रा, स्वराज संवाद के ब्रजेश राय, विनोद यादव, एलएसआर दिल्ली के इतिहास विभाग के अध्यक्ष छात्रा मालविका तथा गार्गी महाविद्यालय के सांस्कृतिक समूह की अध्यक्ष कृतिका के साथ मुलाकात की।
जिलाधिकारी से बातचीत होने पर उन्होंने कहा कि जो कुछ हुआ वह दुखद था। उन्होंने कपिल यादव पर कार्यवाही करने का भी आष्वासन दिया। उन्होंने कहा कि पुलिस द्वारा अब किसी की गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। तथा मुख्यमंत्री के जोरजबरदस्ती से परियोजना का काम आगे न बढ़ाने के निर्देशों का पालन किया जाएगा। उन्होंने बताया कि प्रशासन और ग्रामवासियों के बीच संवाद कायम करने के लिए ग्रामवासियों की सलाह से कोर कमेटी का गठन किया गया है, जबकि ग्रामवासियों ने बताया कि कोर कमेटी प्रशासन के द्वारा बनाई गई है। जो सात आंदोलनकारी गिरफ्तार हुए हैं उनके परिवार जनों के मुताबिक कोर कमेटी के किसी भी सदस्य ने उनसे मुलाकात नहीं की है।
अभी तक सभी आंदोलनकारी जेल में हैं। किसी को जमानत नहीं मिली है। निचली अदालत में जमानत अर्जियां खारिज कर दी हैं।
सिंचाई मंत्री शिवपाल यादव क्षेत्र में आकर घोषणा करके गए हैं कि तीन पीढ़ियों को 7 लाख 11 हजार रू. की राषि पुनर्वास पैकेज के तौर पर उपलब्ध कराई जाएगी। गांव में दौरा करने पर यह तो मालूम हुआ कि तमाम ग्रामीणों को 2 लाख 11 हजार रू. की राशि मिली है लेकिन 5 लाख 11 हजार रू. की राषि उपलब्ध कराने के बारे में यह कहा जा रहा है कि पहले प्रभावित परिवार अपना मकान तोडें तब यह राशि उन्हें दी जाएगी। हांलाकि जिलाधिकारी तथा स्थानीय पत्रकारों के अनुसार रोजगार मेला के दौरान कुछ परिवारों को 5 लाख 11 हजार की राषि उपलब्ध कराई गई है। बाकी दो पीढ़ियों को 7 लाख 11 हजार की राशि दी जाएगी जिसकी विस्तृृत जानकारी किसी के पास भी उपलब्ध नहीं है। जबकि सर्व विदित है कि पुनर्वास पैकेज लिखित तौर पर दिया जाता है तथा सभी भुगतान सरकारी खजाने से नियमानुसार किए जाते हैं। जिलाधिकारी द्वारा कहा गया कि वे सभी जानकारियां जनता के साथ साझा करने को तैयार हैं लेकिन अभी तक कोई भी जानकारी मुझे तथा प्रभावित किसानों को लिखित तौर पर उपलब्ध नहीं कराई गई है। पहली पीढी के चयन का काम 1978 में भूमि अधिग्रहण के समय जिन्होंने मुआवजा लिया था उनकी पहचान कर शुरू किया गया है लेकिन उसमें भी सैकडों परिवार छूटे हुए हैं। गांव के भूमि हीनों तथा अन्य पेशों में लगे अन्य ग्रामीणों को लेकर कोई भी नीति लिखित तौर पर उपलब्ध नहीं है।
पुलिस दमन तथा परियोजना को लेकर मेधा पाटकर जी और साथी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिले थे। तब उन्होंने आष्वस्त किया था कि पुलिस द्वारा दंडात्मक कार्यवाही नहीं की जाएगी लेकिन बर्बरता पूर्वक लाठी चार्ज तथा गोली चालन करने वाले पुलिस कर्मियों पर अब तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है। सरकार को चाहिए था कि वह बिना शर्त आंदोलकारियों के मुकदमें वापस लेती तथा आंदोलनकारियों को ससम्मान रिहा कर उनसे मुआवजे तथा पुनर्वास के सवाल पर बातचीत करती। इस कार्य के लिए कोर कमेटी बनाए जाने की कोई आवष्यकता नहीं थी। सिंचाई मंत्री का यह दावा कि देश में कहीं पर भी पुनर्वास पैकेज के तौर पर केवल मकान के लिए (जमीन के मुआवजे की कोई बात ही नहीं है) तीन पीढ़ियों को 7 लाख 11 हजार रू. दिया जाना किसी को भी आकर्शक दिखलाई देगा लेकिन पुर्नवास कालोनी के अब तक बने एक आवास को देखकर स्वयं गांव में लंबा समय बिताने वाले मंत्री महोदय को लगेगा कि षहरी गरीब के लिए इन्दिरा आवास के तौर पर बने आवास ग्रामीणों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले आवासों तथा परिसर की तुलना में बहुत छोटे हैं जिनमें जानवरों के साथ ग्रामीणों का गुजारा करना बहुत कठिन है।
यूपीए सरकार द्वारा पारित भू-अधिग्रहण कानून की धारा 242 के तहत 1 जनवरी 2014 को जो किसान अपनी जमीन पर काबिज थे जिन्होंने मुआवजा नहीं लिया वे सभी पुनः अपनी भूमि के मालिक हो चुके हैं। यह कानूनी स्थिति है। इस कारण कनहर परियोजना के लिए भू-अधिग्रहण की कार्यवाही एक सिरे से किए जाने की जरूरत है लेकिन इस मुद्दे पर प्रषासन पूरी तरह मौन है।
परियोजना के डूब क्षेत्र में जन संगठनों को एकजुट होकर प्रभावितों के बीच जाने की जरूरत है ताकि भय के वातावरण को समाप्त किया जा सके। जिलाधिकारी से हुई बातचीत से लगता है कि मुख्यमंत्री और सिंचाई मंत्री प्रभावितों को विष्वास में लेकर काम आगे बढ़ाने के पक्षधर हैं तथा पुलिस दमन के खिलाफ हैं लेकिन जमीनी हकीकत ठीक इसके विपरीत नजर आती है। सरकार की ओर से मुख्यमंत्री और सिंचाई मंत्री ने इन्दिरा आवास की जगह लोहिया आवास देने का फैसला किया है जो स्वागत योग्य है परंतु मामला केवल आवास का नहीं बल्कि पूरे पुनर्वास पैकेज का है। किसानों को जमीन के बदले जमीन देकर फिर पुनर्वास पैकेज किसानों को विष्वास में लेकर दिया जाता तब प्रभावितों की शिकायत दूर की जा सकती थी। लोकतंत्र में जोर जबरदस्ती की इजाजत किसी को भी नहीं दी जा सकती चाहे वह कितना भी बलशाली व्यक्ति हो या राज्य। संवाद-बातचीत ही एकमात्र रास्ता है। आंदोलनकारियों को विकास विरोधी आरोपित करने से ना तो कभी बात बनी है ना ही बनेगी। युवा मुख्यमंत्री बार-बार यह दावा भी करते हैं कि वे जोर जबरदस्ती से जमीनों के अधिग्रहण की इजाजत नहीं देंगे। रिलायंस पॉवर प्रोजेक्ट एवं अन्य परियोजनाओं के लिए जहां-जहां प्रशासन ने जोर-जबरदस्ती से जमीनें अधिग्रहित की हैं उनमें से कई स्थानों पर उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने जमीनें तक वापस करने का फैसला किया है।
गत 68 वर्षों का अनुभव यह बताता है कि अपनी जमीन से विस्थापित होने के बाद किसान सम्मान पूर्वक जीवन जीने के अधिकार से भी वंचित हो जाता है।