प्रधानमंत्री जी ! यह बांध का जश्न नहीं, मौत का जश्न है
आख़िरकार नर्मदा बांध का उद्घाटन तय हो ही गया और इसके लिए दिन चुना गया है मोदी जी का जन्मदिन ! अपने जन्मदिन के दिन बांध का उद्घाटन कर इस बात पर मुहर लगा देंगे की वह इस देश की करोड़ों मेहनतकश जनता का नहीं बल्कि अबानी-अडानी जैसे कॉर्पोरेट मालिकों के लिए प्रधानमंत्री है. 40 हजार विस्थापितों का पुनर्वास पूरा किए बिना यह बांध खोल कर शिवराज और उनके आका नरेंद्र मोदी मौत का जश्न मानाने जा रहे है । पढ़े नर्मदा बचाओ आंदोलन की रिपोर्ट;
11 सितम्बर 2017: सरदार सरोवर से हो रहे विनाश, थोपा जा रहा विस्थापन को चुनौती, देते हुये नर्मदा घाटी के लोगों का संघर्ष चोटी पर पहुंचते ही मध्यप्रदेश सरकार ने न सिर्फ दमनकारी रूख अपनाया, बल्कि अब सरदार सरोवर परियोजना में मध्यप्रदेश के किसान, मजदूर, अन्य सभी व्यवसायिकों की आहूति देने की तैयारी भी शिवराज सिंह चैहान कर रहे हैं । यह मात्र राजनैतिक स्वार्थ के अलावा कोई और संकेत नहीं है । मध्यप्रदेश शासन और स्वयं मुख्यमंत्री अच्छी तरह से जानते हैं कि सरदार सरोवर प्रभावित लाखों लोग, करीब 40 हजार परिवार, आज भी बांध के 214 कि0मी0 फैले जलाशय यानि डूब क्षेत्र में ही बसे हैं । कानून और सर्वोच्च अदालत के आज तक के चार फैसलों को ताक पर रखकर, प्रदेश शासन ने करोड़ों रूपयों के ठेके और 900 करोड़ से ठेकेदार-भ्रष्टाचारी अधिकारी-दलालों को फिर से शासन की तिजोरी और विस्थापितों के अधिकार लूटने का मौका दिया । अवैध मार्ग अपनाकर मात्र तात्कालिक (टेम्परेरी) चार महींनों तक के आवास, पशुओं को चारा-पानी व भोजन की व्यवस्था करने में लगे अधिकारी-कर्मचारी क्या नहीं जानते कि स्थाई व कानूनी पुर्नवास की परिभाषा क्या है ? आजीविका और आवास के बिना पुनर्वास संभव है ?
सब कुछ जानते हुये भी, विस्थापितों की संगठित शक्ति की उपेक्षा कर मोदी जी के 17 सितम्बर 2017 के जश्न में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शामिल होंगे तो इससे स्पष्ट हो जायेगा कि उन्हें नर्मदा की भक्ति या नर्मदा की सेवा का मोल नहीं, उन्हें भी मोदी जी की रीति / राजनीति के लिये नर्मदा को बंधक बनाना मंजूर है । निमाड़ की उपजाऊ धरती, नर्मदा से जुड़ी प्रकृति और किसानी संस्कृति के विध्वंस पर ही चलेगी चुनावी हवस । यही कारण है कि अपने लाखों लोगों की पीढ़ियों से बसे गांवों की मौत का जश्न मनाया जायेगा । क्या जश्न-ए-मौत से मनाया जायेगा 17 तारीख को मोदी जी का जन्मदिन ? बांध का देश को लोकार्पण और नर्मदा घाटी की मौत से इसके सपूत-पुत्रिया, का प्रदेश के शासनकर्ताओं द्वारा समर्पण ? गुजरात की अडाणी-अंबानी-कोकाकोला जैसी कंपनियों के साथ राज्य और केन्द्र सरकार के जुड़ाव के हित में राज्य और यहां के किसान, आदिवासी, दलित, मजदूर, मछुआरो के हितों पर बिना हिचकिचाहट चोट करेगी शिवराज सिंह सरकार तो देश की संवेदनशील जनता भी उन्हें नहीं बखशेगी ।
आज न गुजरात को पानी की जरूरत है, न मध्यप्रदेश को बिजली की । फिर भी गुजरात की नर्मदा यात्रा मात्र चुनाव प्रचार यात्रा साबित होगी । मोदी जी के सपने तो गुजरात की जनता और कार्पोरेट्स को नर्मदा से लाभों के सपने दिखाकर उनके वोट बटोरने की है, क्या मध्यप्रदेश शासन नर्मदा यात्रा में 1600 करोड़ खर्च के बावजूद विस्थापितों को, घाटी को कुचलकर नहीं के बराबर लाभ देने वाली इस योजना का सहारा ले पायेगी या अपनी नौका डूबाकर विस्थापितों के साथ अपने भी हितों का त्याग कर देगी ?
विस्थापितों का संघर्ष, बर्गी से एक के बाद एक बांधों से उजड़े लोगों के हालात जानता है और देश आज गांव, नगर, शहर के गरीब आदिवासियों, किसानों के उपर प्राकृतिक संसाधन सभी के साथ युद्व खेलने, उनकी हत्या के विरोध में हैं ।
नर्मदा घाटी के लोग ही नहीं, देश के सभी अध्ययनशील, विचारशील नागरिक, कानून के जानकार आदि सब जानते हैं कि किसी भी परियोजना का अभिन्न हिस्सा होता है विस्थापन, पुर्नवास एवं पर्यावरण संबंधी कार्य । सिंचाई का लाभ पहुंचाने के लिये किसानों के खेत-खेत में नहर जाल पहुंचाना भी जरूरी शर्त होती है । गुजरात के सूखाग्रस्तों के स्थाई समाधान के लिये पानी पहुंचाये तो कोई आपत्ति नहीं, लेकिन कोकाकोला जैसी कंपनियों को पानी के साथ चांदी भी काटने देने वालों को हम सहन नहीं करेगें ।
नर्मदा को और जीवन बचाने को घर से बाहर निकली जनशक्ति, उसमें भी महिला शक्ति पर से कोई विश्वास या रिश्ता बनाकर संवाद के बदले अपने ही नागरिकों से संघर्ष पर उतर आई प्रदेश शासन । कुछ हजार अहिंसक आंदोलनकारियों पर बल प्रयोग द्वारा और झूठे आपराधिक प्रकरणों से शासन ने चाहा था, नर्मदा किनारे के गांवों को खाली करवाना । वह नहीं हो पाया । 30 जुलाई 2017 की डेड लाईन भी गावों ने चाहा लाईफ लाईन में बदल जाये ।
अब क्या ‘‘गुजरात का शेर’’ माने गये मोदी जी के दहाड़ने पर मध्यप्रदेश के शासक बकरी जेसे बनकर अपने लोगों की ही आवाज, अभिमान और अधिकारों को डुबाने की मंजूरी देगें?
- नर्मदा आंदोलनकारी चाहते हैं कि केन्द्र शासन जो तमाम पुनर्वास कार्यो में भ्रष्टाचार और खामियों पर चुप बैठी है वह अपनी भूमिका, पूरे आंकड़े विस्तृत जानकारी के साथ स्पष्ट करे?
- जल संसाधन मंत्री बनने के बाद श्री नितिन गडकरी जी, पहले आंदोलन से बात करें, सच्चाई सुनें, जानें, फिर बांधस्थल पर जायें । इतना भी न करने पर वह भी अंधश्रद्वा के साथ फर्जी लोकार्पण कार्यक्रम में शामिल होगें क्या? जवाब दें ।
- केन्द्रीय नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण में आज तक कैसे, किसकी और कितनी जांच की है, वह ताजा रिपोर्ट द्वारा स्प्ष्ट करें?
- न्यायालय अगर जीने के अधिकार के पक्ष में है तो भूतपूर्व हाईकोर्ट के न्यायाधीश की अध्यक्षता मे तत्काल पुनर्वास कर निष्पक्ष जांच करवा लें ।
- 17 सितंबर के प्रधानमंत्री जी के जलसे में विरोधी दलों के मुख्यमंत्री शामिल न हों ।
- 17 सितंबर के पूर्व या बाद में पुर्नवास पूरा होने पर बांध में 121 मीटर के ऊपर पानी न भरा जाये, अन्यथा जल हत्या होगी ।
मेधा पाटकर, भागीरथ धनगर, देवराम कनहेरा, कमला यादव, श्यामा मछुआरा, सनोबर बी, राहुल यादव, रणवीर तोमर, बच्चू भाई भगवती बहन, सुरेश प्रधान, सुखदेव भाई, पवन यादव
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