भूमि की लूट और राज्य दमन के खिलाफ उत्तर प्रदेश के जनसंघर्ष भूमि अधिकार आंदोलन के तहत गोलबंद
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 12 अगस्त 2016 को गांधी भवन में भूमि अधिकार आंदोलन के बैनर तले एक राज्य स्तरीय बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में लगभग 27 जनसंघर्षों के प्रतिनिधियों ने भागीदारी की। इन जनसंघर्षों ने सर्वसम्मति से तय किया कि उत्तर प्रदेश में भूमि अधिकार आंदोलन की प्रक्रिया को तेज किया जाएगा। इसके साथ ही 2 सितम्बर 2016 की मजदूर हड़ताल के समर्थन में लखनऊ में एक जनप्रदर्शन का आयोजन किया जाएगा।
गुजरात में 17-18-19 जुलाई 2016 को भूमि अधिकार आंदोलन के राष्ट्रीय सम्मेलन में यह चर्चा हुई थी कि देश व्यापी विरोध-प्रदर्शनों की वजह से मोदी सरकार ने भले ही केंद्र में भूमि अधिकार अध्यादेश वापस ले लिया किंतु उसने राज्य सरकारों को भूमि अधिग्रहण को खुली छूट दे दी। किंतु आदोंलन के स्तर पर राज्यों में स्थिति अभी भी बिखरी हुई है इसलिए यह जरूरी है कि भूमि अधिकार आंदोलन को राज्य स्तर पर भी मजबूत किया जाए तथा हर राज्य में अलग-अलग जगहों पर भूमि अधिग्रहण को लेकर चल रहे संघर्षों को एक व्यापक मंच के तहत लाया जाए। इसी चर्चा के मद्दे नजर प्रत्येक राज्य में भूमि अधिकार आंदोलन की बैठकें करने का निर्णय लिया गया।
राष्ट्रीय सम्मेलन में लिए गए इस निर्णय के तहत भूमि अधिकार आंदोलन के बैनर तले उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 12 अगस्त 2016 को गांधी भवन में एक राज्य स्तरीय बैठक आयोजित की गई। बैठक में जनसंघर्ष समन्वय समिति, अखिल भारतीय वनजन श्रमजीवी यूनियन, लोक हकदारी मोर्चा, श्रमिक मंच, इलाहाबाद, इंसाफ, उत्तर प्रदेश, जाग्रति सेवा समिति, अवध पीपुल्स फोरम, भारतीय किसान यूनियन (भानू), गांव बचाओ आंदोलन, गाजीपुर, अखिल भारतीय जय भीम सेना बौद्ध सेना, कन्हर बचाओ आंदोलन, मजदूर शक्ति संगठन, किसान विकास मंच, किसान मजदूर संघर्ष मोर्चा, विडियो वॉलंटियर्स, नेशनल फेडरेशन ऑफ दलित लैंड राइट्स मूवमेंट्स, जन साधारण विकास समिति, कृषि भूमि बचाओ मोर्चा, गंगा एक्सप्रेस वे विरोधी आंदोलन, सेज विरोधी आंदोलन, रिहाई मंच, जन पैरवी मंच, एकाउंटेबल सिटिजन फोरम, कैमूर क्षेत्र महिला मजदूर किसान संघर्ष समिति, श्रमिक आंदोलन, बारा पावर प्लांट विरोधी आंदोलन के प्रतिनिधियों ने भागीदारी की।
बैठक में मुख्यतः निम्न बिंदुओं पर चर्चा की गईः
- जमीनी स्तर पर चल रहे भूमि अधिग्रहण विरोधी, विस्थापन विरोधी, वनाधिकार कानून के उचित क्रियान्वयन तथा आंदोलनकारियों पर लगे फर्जी केसों के विरुद्ध आंदोलनों की रिपोर्ट
- देश भर के ट्रेड यूनियनों द्वारा आहूत 2 सितंबर 2016 की राष्ट्र व्यापी हड़ताल को समर्थन
- भूमि अधिकार आंदोलन के उत्तर प्रदेश में राज्य स्तरीय सम्मेलन
अखिल भारतीय वनजन श्रमजीवी यूनियन की रोमा मलिक ने कहा कि अहमदाबाद में भूमि अधिकार आंदोलन के राषट्रीय सम्मेलन का सफलतापूर्वक संपन्न हो जाना आंदोलनों की ताकत को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि गुजरात में जो आज विकास का मॉडल दिखाया जा रहा है वह दरअसल मोदानी मॉडल है जिसका पूर्ण फायदा कॉर्पोरेट्स को मिल रह है। गुजरात सम्मेलन के तुरंत बाद ही देश भर में दलित आंदोलन तथा दलित मुस्लिम एकता में उभार आया है। आज जरूरत है कि भूमि अधिकार आंदोलन, जिसने केंद्र के स्तर पर एक बड़ी जीत हासिल की है, को राज्य स्तर पर भी मजबूत किया जाए तथा इसे तमाम जनांदोलनों का एक व्यापक मंच बनाया जाए।
अखिल भारतीय वनजन श्रमजीवी यूनियन से अशोक चौधरी ने कहा कि हालांकि केंद्र सरकार भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर अभी दो कदम पीछे हट गई है, लेकिन हमें चौकस रहना होगा क्योंकि सरकार कभी भी अध्यादेश को एक नए रूप में लेके आ सकती है। इसी के साथ केंद्र सरकार ने भले ही केंद्र में अध्यादेश पारित न किया हो लेकिन राज्यों को जमीन की लूट की खुली छूट दे दी है। इसीलिए जरूरत है कि भूमि अधिकार आंदोलन को राज्य स्तर पर मजबूत किया जाए तथा उसे एक व्यापक प्रक्रिया बनाई जाए।
जनसंघर्ष समन्वय समिति के राघवेंद्र कुमार ने कहा कि जो गंगा एक्सप्रेस वे की परियोजना हमारे आंदोलन के दम पर रद्द हो गई आज उसे राज्य सरकार एक नए नाम से फिर से लेकर आ गई है। उन्होंने कहा कि इस आठ लेन की सड़क के लिए बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण किया जाएगा। इसके अलावा अमृतसर- हावड़ा इंडिस्ट्रियल कॉरिडोर भी उत्तर प्रदेश से होकर निकलेगा जिसमें भी बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण किया जाएगा। हमें जरूरत है कि हम सरकार कि इन विभिन्न भूमि अधिग्रहण परियोजनाओं के खिलाफ एक सशक्त आंदोलन खड़ा किया जाए।
रिहाई मंच से गुरफान सिद्दीकी ने कहा कि आज हर लड़ाई के मूल में भूमि अधिग्रहण और विस्थापन का प्रश्न है। उन्होंने कहा कि भूमि अधिग्रहण के कानून भूमि पर कब्जे को सुगम बनाने के लिए बनाए जाते हैं। आज जरूरत है कि भूमि अधिग्रहण आदोंलन को आर्थिक सीमाओं तक नहीं बांधा जा सकता है । इसे एक राजनीतिक आंदोलन बनाने की आवश्यकता है।
किसान विकास मंच से श्याम बिहारी ने कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां जमीनें किसी भी हद तक जाकर छीन रही हैं और इसमें पूरा सरकारी तंत्र उनका साथ दे रहा है। लेकिन जब इसके खिलाफ कोई आंदोलन खड़ा होता है तो राजनीतिक पार्टियां उन्हें तरह-तरह के हथकंडे इस्तेमाल करके तोड़ देती हैं। उन्होंने कहा कि जमीन का सवाल अब देश और जनता की मुक्ति से जुड़ गया है। इस बात को आम जनता को समझाने की आवश्यकता है तभी एक सही प्रतिरोध खड़ा हो सकेगा।
अखिल भारतीय वनजन श्रमजीवी यूनियन से रजनीश ने कहा कि जमीन का मुद्दा वनाधिकार के मुद्दे से गहराई से जुड़ा हुआ है। जंगल पर अधिकार का मुद्दा सामुदायिक मुद्दा है। 2006 में लंबे संघर्षों के बाद वनाधिकार कानून, 2006 का निर्माण हुआ किंतु इसके क्रियान्यवन की लड़ाई अभी भी चल रही है। सोनभद्र, मणिकपुर, लखीमपुर खीरी में लोगों ने संघर्ष करके वनाधिकार हासिल किया है और इसमें महिलाओं की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
कैमूर क्षेत्र महिला मजदूर किसान संघर्ष समिति से सुकालो देवी ने कहा कि हमारी लड़ाई का सबसे प्रमुख हिस्सा हमसे छीनी गई जमीनों पर फिर से अपना कब्जा स्थापित करना है। सोनभद्र में छीनी गई 40-45000 एकड़ जमीन पर सामूहिक खेती की जा रही है। हमें भूमि पर कब्जे की प्रक्रिया को मजबूत करनी होगी। कन्हर का आंदोलन अभी खत्म नहीं हुआ है। हम भूमि अधिग्रहण किसी कीमत पर नहीं होने देंगे और मुआवजा उठाने का तो कोई प्रश्न ही नहीं है।
नेशनल फेडरेशन फॉर दलित लैंड राइट्स मूवमेंट्स से राम कुमार ने कहा कि अखिलेश सरकार ने दलितों के भूमि अधिकार की सुरक्षा के लिए जो कुछ प्रावधान थे उनको भी खत्म कर दिया है। जिसमें दलितों की जमीन जिसे पहले केवल दलित ही खरीद सकते थे वह भी बदल दिया गया है। अब कोई भी किसी दलित की जमीन खरीद सकता है।
बैठक में इंसाफ, उत्तर प्रदेश से रवींद्र, गंगा एक्सप्रेस वे विरोधी आंदोलन से रामाश्रय यादव, भारतीय किसान यूनियन (भानु) से धर्मदेव उपाध्याय, गांव बचाओ आंदोलन से प्रेम नाथ गुप्ता, कन्हर बचाओ आंदोलन से गंभीरा प्रसाद, एकाउंटेबल सिटिजन फोरम से वी.के. राय, जन पैरवी मंच से अजय शर्मा, पारा पावर प्लांट, शंकरगढ़ से राम भुवन, कम्युनिस्ट वर्कर्स प्लेटफॉर्म से मोतीलाल, जनसंघर्ष समन्वय समिति से राजेंद्र मिश्रा इत्यादि वक्ताओं ने भी अपनी बात रखी।
बैठक में सर्वसम्मति से निम्न निर्णय लिए गएः
- उपोरक्त बात-चीत के मद्दे नजर बैठक में यह तय किया गया कि उत्तर प्रदेश में भूमि अधिकार आंदोलन की प्रक्रिया की शुरुआत की जाएगी। इसमें राज्य में अलग-अलग मुद्दों पर लड़ रहे जनसंगठनों को एक साझा मंच के तहत लाने का प्रयास किया जाएगा। प्रक्रिया की शुरुआत एक राज्य स्तरीय सम्मेलन से करने का निर्णय लिया गया। सम्मेलन 7 नवंबर 2016 को लखनऊ के कृषि सहकारी समिति में करने का प्रस्ताव रखा गया है। सम्मेलन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए एक आयोजन समिति का गठन किया गया है।
- बैठक में तय किया गया कि जनसंघर्षों के राष्ट्रीय समन्वय तथा अखिल भारतीय किसान सभा के साथियों को आयोजन समिति में शामिल करने के लिए संपर्क किया जाएगा।
- भूमि अधिकार आंदोलन, उत्तर प्रदेश के सचिवालय के तौर पर नेशनल फेडरेशन ऑफ दलित लैंड राइट्स मूवमेंट्स के कार्यालय निश्चित किया गया है।
- 2 सितंबर 2016 को देश भर की ट्रेड यूनियनों द्वारा आहूत देश व्यापी हड़ताल को भूमि अधिकार आंदोलन, उत्तर प्रदेश द्वारा समर्थन दिया गया। हड़ताल के समर्थन में भूमि अधिकार आंदोलन, उत्तर प्रदेश द्वारा एक पर्चा जारी कर 2 सितंबर को गांधी प्रतिमा, लखनऊ पर एक संयुक्त प्रदर्शन आयोजित किया जाएगा।
बैठक की अध्यक्षता किसान मजदूर एकता समिति से मोहम्मद शरीफ ने की तथा बैठक का संचालन अखिल भारतीय वनजन श्रमजीवी यूनियन से रोमा मलिक ने किया।