कोयले घोटाले का लेखा जोखा
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कोयला घोटाले को लेकर दिया गया निर्णय इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि इसने एक बार पुनः प्राकृतिक संसाधनों को राष्ट्रीय संपत्ति के रूप में स्थापित करने का सफल प्रयास किया है। पिछले दो दशकों से जारी कोयले की दलाली में सभी ने हंसी खुशी से अपने हाथ ही नहीं मुंह भी काले किए हैं। भारतीय तंत्र की बेशर्मी को उजागर करता जयन्त वर्मा का महत्वपूर्ण आलेख जिसे हम सप्रेस से साभार आपसे साझा कर रहे है;
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर.एम. लोढ़ा, न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की त्रिसदस्यीय पीठ ने अपने एक अहम फैसले में भारत के विभिन्न राज्यों में पिछली केेंद्र सरकारों द्वारा वर्ष 1993 से 2010 के दौरान निजी कम्पनियों को केप्टिव उपयोग हेतु आबंटित 218 में से 214 कोल ब्लाक्स के आबंटन को आधारहीन पाते हुए रद्द कर दिया है। स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड को आबंटित तासरा कोल ब्लाक, एन.टी.पी.सी. को आबंटित पाकरी बरवाडीह तथा सिंगरौली के अल्ट्रा मेगा पॉवर प्रोजेक्ट सासन पॉवर लिमिटेड को आबंटित दो कोयला खदानों का आबंटन कायम रखा गया है। आदेश में कहा गया है कि न्यायालय की देख-रेख में चल रही कोयला खान आबंटन घोटाले की सी.बी.आई. जांच चलती रहेगी। कई कम्पनियों द्वारा खदान से कोयला उत्पादन शुरू नहीं किए जाने की वजह से सरकार को हुई 295 रु. प्रति टन की दर से राजस्व हानि की भरपाई भी करने का न्यायालय ने आदेश दिया है। जिन 46 खदानों ने उत्पादन शुरू कर दिया है, उनमें से 42 को अपना कारोबार समेटने के लिए 6 माह का समय दिया गया है।
प्रभावित कोयला ब्लाक में 29 मध्यप्रदेश के हैं, जो रिलायंस, हिन्डाल्को, बिरला कार्पाेरेशन, एस्सार, जेपी एसोसिएट्स, बीएलए स्टील एवं जिन्दल स्टील आदि को आबंटित किए गए थे। रिलांयस ने सिंगरौली जिले में (प्रत्येक) 3960 मेगावाट क्षमता के दो ताप विद्युत संयंत्र स्थापित किए थे, जिनको कोयला आबंटन जारी रहेगा। इनमें से सासन अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट, सिंगरौली में उत्पादन प्रारंभ हो चुका है, जिसे मुहेर, मुहेर अमरौली एक्सटेंशन ब्लाक से कोयला उपलब्ध किया जा रहा है। फैसले से सिंगरौली के महान कोल ब्लाक का आबंटन निरस्त हो गया है, जो एस्सार एम.पी. पावर लिमिटेड और हिंडाल्को को संयुक्त रूप से आबंटित था।
कोयला खदानों की बंदरबांट का खेल 1992 से प्रारंभ हुआ था। प्रायः सभी राजनीतिक दलों की धन्नासेठों और बड़े कार्पोरेट घरानों से सांठगांठ के चलते यह घोटाला निर्बाध गति से चलता रहा। नरसिंहराव से लेकर मनमोहन सिंह के कार्यकाल तक अलग-अलग सरकारों ने ये आबंटन किए थे।
अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली एन.डी.ए. सरकार ने भी अपने कार्यकाल में 33 कोयला खदानों का आबंटन किया था। मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में यह घोटाला तब उजागर हुआ, जब मार्च 2012 में नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) की ड्राफ्ट रिपोर्ट सामने आई। मई 2012 में प्रमुख सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) ने सीबीआई से आबंटन की जांच करने को कहा। 17 अगस्त, 2012 को कैग की रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत हुई, जिसके अनुसार कोयला ब्लाक की बंदरबांट से सरकार को 1 लाख 86 हजार करोड़ रूपए का घाटा हुआ। सितम्बर 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने कोयला ब्लाक आबंटन की सीबीआई जांच की निगरानी का फैसला लिया। अप्रैल 2013 में संसदीय समिति ने वर्ष 1993 से 2008 तक के आबंटनों को अवैध ठहराया। सीबीआई की सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत रिपोर्ट में मनमोहन सरकार के विधिमंत्री अश्विनी कुमार ने 20 प्रतिशत बदलाव किए तो न्यायालय ने सीबीआई को सरकारी ‘‘‘पिंजरे का तोता’’ कहा। अंततः अश्विनी कुमार को त्यागपत्र देना पड़ा। प्रधानमंत्री कार्यालय से कोयला ब्लाक आबंटन संबंधी फाइलों के गायब होने से दाल में काला होने का संदेह पुख्ता हुआ था।
कैग की रिपोर्ट के अनुसार कोयला खदानों की बंदरबांट से कम्पनियों को 170 खरब रूपयों का फायदा हुआ। वर्ष 2006 में कोयला ब्लाक आबंटन के वक्त केप्टिव प्लांटों के लिए खदान की नीलामी का विकल्प मौजूद था, जिसकी अनदेखी कर चुनिंदा निजी कम्पनियों को मुनाफा पहुंचाया गया। सन् 1993 से 2005 के बीच लगभग 70; 2006 में 53; 2007 में 52; 2008 में 24; 2009 में 16 तथा 2010 में एक कोयला ब्लाक आबंटित हुए थे। राज्य सरकारों की सिफारिश पर केन्द्र सरकार ने इन कोयला ब्लॉक का आबंटन किया था। आबंटित कोयला ब्लॉक महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, ओड़ीशा, झारखण्ड, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के हैं, अतः इन राज्यों की सरकारें भी अवैध आबंटन में सहयोगी रही हैं। कोयला ब्लाक घोटाले के पूर्व कैग की रिपोर्ट से ही 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला सामने आया, इनके आबंटन को भी उच्चतम न्यायालय ने निरस्त किया था। इन घोटालों के दौर में राडिया टेप उजागर हुए, जिनसे सिद्ध हुआ कि कार्पोरेट घरानों के हाथ में सरकार की लगाम होती है। प्रायः सभी पार्टियां ऐसे गोरखधंधों को प्रोत्साहित करती हैं।
सामंती भारत में सत्ता के हस्तांतरण से मिली आजादी के बाद ऐसा वर्ग सत्ता में आया जो लोकतंत्र की आड़ में कार्पोरेट के हित के लिए काम करता रहा है। प्रायः सभी राजनीतिक दलों में इसी वर्ग का वर्चस्व रहा है, इसलिए भारत में औद्योगिक पूंजीवाद की बजाय लंपट पूंजीवाद आया। इस व्यवस्था में व्यावसायिक दक्षता के बजाय सत्ता-संबंध महत्वपूर्ण होता है। व्यवसाय की सफलता के लिए राजसत्ता से संबंध या मिलीभगत आवश्यक होती है। यही कारण है कि भारतीय प्रतिभाएं मातृ-भूमि को छोड़कर अमेरिका, यूरोप, अरब मुल्कों आदि देशों में जाकर व्यावसायिक रूप से सफल हो जाती हैं। सामंती मानसिकता वाले भारतीय समाज में भ्रष्ट नौकरशाही, गुण्डावाहिनी और स्वार्थपूर्ण राजनीति की सड़ांध से त्रस्त प्रतिभाशाली देशवासी अब विदेशी नागरिक बनना पसंद करने लगे हैं। 2जी स्पेक्ट्रम और कोयला ब्लाक घोटालों पर उच्चतम न्यायालय के फैसलों और भ्रष्ट राजनेताओं को जेल भेजे जाने की ताजा घटनाओं ने भारत में पनप रहे लंपट पूंजीवाद पर अंकुश लगाने की ऐतिहासिक पहल की है।
– जयंत वर्मा वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता हैं। भोपाल से प्रकाशित पाक्षिक पत्रिका ”नीति मार्ग” के प्रधान संपादक हैं।