तबाही और जमीन की लूट का दूसरा नाम है गुजरात मॉडल : मेधा पाटेकर
अहमदाबाद, 16 जुलाई 2016 : आज अहमदाबाद के गुजरात विद्यापीठ में भूमि अधिकार आंदोलन के बैनर तले तीन दिवसीय जनसंघर्षों के राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन सत्र पूर्व सांसद हनन मुल्ला की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। सम्मेलन में आए वक्ताओं ने देश में प्रचारित किए जा रहे गुजरात के विकास मॉडल का पर्दाफाश करने पर जोर दिया और जल-जंगल-जमीन और जनतंत्र की कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ एक जुट होने की अपील की। सम्मेलन में देश भर के 15 राज्यों से 250 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने हिस्सेदारी की। सम्मेलन की शुरुआत में आयोजन समिति के मुजाहिद नफीस ने प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए कहा कि आज देश में राज्य व्यवस्था जहां एक तरफ सांप्रदायिकता, धार्मिक विभेदीकरण जैसे मुद्दे पर चुप्पी लगाए हुए है वहीं दूसरी तरफ कॉर्पोरेट लूट को सुगम बनाने के लिए नई-नई नीतियां बना रही है। ऐसे समय में जनांदोलनों के ऐसे सम्मेलन का महत्व और भी बढ़ जाता है।
सम्मेलन के प्रथम सत्र राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य व चुनौतियां (जल-जंगल-जमीन-खनिज और जनतंत्र) का संचालन किसान संघर्ष समिति के डॉ. सुनीलम ने किया। सत्र के प्रथम वक्ता इंसाफ से अनिल चौधरी ने सम्मेलन की पृष्ठभूमि रखते हुए कहा कि जमीन पर संघर्ष तो बहुत लंबे समय से चल रहे थे किंतु उनको एक सूत्र में पिरोया नहीं जा पा रहा था। जब तक जनसंघर्ष एक दूसरे से जुड़ेंगे नहीं तब तक बड़ी लड़ाई संभव नहीं हैं। 2014 के लोक सभा चुनावों के बाद इस जुड़ाव की जरूरत और तीव्रता से महसूस हुई। जनसंघर्षों में आपसी एकता कायम करने के प्रयास स्वरूप नवंबर 2014 में उड़ीसा के ढिंकिया गांव में, जहां पर कोरियाई कंपनी पॉस्को के विरुद्ध लड़ाई चल रही थी, 250 से ज्यादा जनसंघर्षों का एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित हुआ। इस सम्मेलन के तुरंत बाद मोदी सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण अध्यादेश जारी कर दिया गया। इस अध्यादेश के विरोध में सभी राजनीतिक व गैर-राजनीतिक भूमि संघर्षों को लेकर एक व्यापक भूमि अधिकार आंदोलन का गठन किया गया। आपसी मतभेदों को भुलाकर डेढ़ साल चले आंदोलन की वजह से मोदी सरकार को भूमि अध्यादेश पर पीछे हटना पड़ा। किंतु केंद्र में पीछ हटने के बावजूद राज्य सरकारों को अपने हिसाब से अधिग्रहण की अनुमति दे दी गई। इसको देखते हुए यह तय किया गया कि अगला सम्मेलन गुजरात में आयोजित किया जाए।
अखिल भारतीय किसान सभा (कैनिंग लेन) के महासचिव हनन मुल्ला ने भूमि अधिकार आंदोलन की पृष्ठभूमि पर बात करते हुए कहा कि भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ शुरु किए गए भूमि अधिकार आंदोलन को और तेज करने की जरूरत है। पच्चीस साल पहले लागू हुए आर्थिक सुधारों ने कृषि में किसान को तबाह कर उसको कॉर्पोरेट हाथ में सौंप दिया। हनन मुल्ला ने आगे कहा कि इस साल अपने पच्चसी साल पूरे कर रहे आर्थिक सुधारों का जनता के हर हिस्से पर कॉर्पोरेट नीत मीडिया द्वारा इसके सकारात्मक प्रभाव दिखाने की कोशिश कर रहा है। किंतु जनसंघर्ष जानते हैं कि इन सुधारों ने सिर्फ तबाही ही फैलाई है। इसी लिए हमने इसके खिलाफ एक संयुक्त लड़ाई शुरु करने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि भूमि अधिग्रहण कानून 2013 को लेकर आज भ्रम की स्थिति फैलाई जा रही है। केंद्र में अध्यादेश वापस लेने के बावजूद आज भी राज्यों में भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के प्रावधान लागू नहीं हो रहे हैं। राज्य सरकारें मनमाने ढंग से भूमि अधिग्रहण कर रही हैं। इन्हीं सरकारी नीतियों के खिलाफ इस आंदोलन की शुरुआत की गई है। उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हमें मोदी के गुजरात के विकास मॉडल का जनता के सामने पर्दाफाश करना होगा क्योंकि गुजरात की असली तस्वीर आज तक गुजरात के बाहर निकल ही नहीं पाई है जो किसानों-मजदूरों की असल तबाही बर्बादी चित्रित करती है। हमें इस सच्चाई को अपने-अपने राज्यों में जाकर स्थापित करना होगा।
अखिल भारतीय वन श्रमजीवी यूनियन के अशोक चौधरी ने बोलते हुए कहा कि 1980 तक आते-आते भूमि अधिकार की चर्चा खत्म हो चुकी थी। लेकिन 2007 से भूमि अधिग्रहण के खिलाफ शुरु हुए जनांदोलनों के बाद ही यह प्रश्न फिर से चर्चा में आया। भूमि अधिग्रहण का सवाल भूमि पर अधिकार के बारे में बात किए बिना हल नहीं हो सकता है। भूमिहीन तबके का भूमि पर अधिकार कायम किया जाना चाहिए। उन्होंने जनसंघर्षों की आपसी एकता पर जोर देते हुए कहा कि खनिज और वनाधिकार का मसला भूमि अधिकार से जुड़ा है इसलिए इन सबकों एक करने की जरूरत है।
अशोक चौधरी ने वनाधिकार कानून पर रोशनी डालते हुए कहा कि वनाधिकार कानून के 2006 में बन जाने के बावजूद आज तक उसे लागू नहीं किया गया है क्योंकि मोदी सरकार समस्त वनभूमि उन्हीं निजी हाथों में सौंप देना चाहती है जो उसे सत्ता में लेकर आए हैं।
निरमा सीमेंट प्लांट विरोधी आंदोलन के नेता पूर्व विधायक कन्नुभाई ने कहा कि आज देश में भूमि अधिग्रहण छल के बिना संभव नहीं है। इसे हम 2003 से निरमा सीमेंट प्लांट के आंदोलन में देख रहे हैं। 1450 हेक्टेयर भूमि खनन के लिए स्वीकृत कर दी गई थी लेकिन हम लोगों को सुप्रीम कोर्ट में जाकर सफलता मिली।
मध्य प्रदेश में पुनर्वास की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए किसान संघर्ष समिति के डॉ. सुनीलम ने बताया कि छिंदवाड़ा जिले में पेंच बांध परियोजना के लिए जून महीने में जबरन लोगों को विस्थापित किया गया। पुनर्वास संबंधी कोई भी नीति या उच्च न्यायालय के किसी भी आदेश का मध्य प्रदेश में पालन नहीं किया जा रहा है। इस सम्मेलन का उद्देश्य गुजरात में चल रहे संघर्षों को मजबूती देना है तथा उन्हें यह आश्वस्त करना है कि उनके जमीनी संघर्ष में देश भर के जनसंघर्षों के साथी साथ देंगे। उन्होंने यह भी अपील की कि गुजरात के जनसंघर्षों के साथी समय निकाल कर देश भर में होने वाले जनसंगठनों के कार्यक्रमों में हिस्सा ले ताकि गुजरात मॉडल की तस्वीर देश के सामने आ सके।
नर्मदा बचाओ आंदोलन तथा जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से मेधा पाटकर ने अपनी बात की शुरुआत करते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी द्वारा लाए गए अध्यादेश के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए 300 से अधिक जनसंघर्षों ने भूमि अधिकार आंदोलन का गठन किया गया था। उन्होंने कहा कि समाज का एक व्यापक हिस्सा आज अपने संसाधन बचाने की लड़ाई लड़ रहा है क्योंकि उनके संसाधनों को असंवैधानिक रूप से हड़पने की कोशिश हो रही है। यह आर्थिक शोषण का दौर है जो जीवन के अधिकार का हनन कर रहा है। जिस विकास मॉडल की बात नरेंद्र मोदी कर रहे हैं उसका स्पष्ट उदाहरण बरूच में देखने को मिल रहा है। नर्मदा नदी पर बांध बनाने की वजह से बरूच में आज समुद्र 40 किमी. अंदर आ गया है जिसके चलते भूमि का जल खारा हो गया है। मेधा ने भूमि अधिग्रहण की स्थिति पर बोलते हुए कहा कि आज राज्य सरकारें एक कागज के नोट के आधार पर कंपनियों को जमीनें दी जा रही हैं। अकेले गुजरात की ही 60 प्रतिशत जमीन दिल्ली मुबंई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (डीएमआईसी) के तहत जा रही है। उन्होंने आगे कहा कि हमें इस बात पर सोचने की जरूरत है कि आज जिस विकास की चर्चा हो रही है उसमें सड़क, शहर, पत्थरों का विकास हो रहा है किंतु इस विकास की दौड़ में इंसान कहीं पीछे छूटता जा रहा है। विकास का लाभ पांच प्रतिशत लोगों को मिला है तथा इसकी कीमत 95 प्रतिशत आबादी को चुकानी पड़ी है। हमें विकास की वैकल्पिक नीति को देश के सामने रखना होगा।
सम्मेलन के प्रथम दिन के दूसरे सत्र में विभिन्न राज्यों से आए जनसंघर्षों के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने क्षेत्र में चल रहे आंदोलनों का विस्तृत ब्यौरा रखा। इस सत्र का संचालन माइन्स मिनरल एंड पीपल से अशोक श्रीमाली ने किया। इस सत्र में मंगलौर कॉरिडोर विरोधी आंदोलन से विद्या दिनकर, इंसाफ से इरफान अहमद, नेशनल हॉकर फेडरेशन से शक्तिमान घोष, भूषण मित्तल विरोधी आंदोलन, झारखंड से कुमार चंद मार्डी, कन्हर बांध विरोधी आंदोलन से गंभीरा प्रसाध और रोमा मलिक, जन संघर्ष समन्वय समिति से रामाश्रय यादव, जन हक, हरियाणा से संजय ब्रह्मचारी, राजस्थान से खेम राज चौधरी तथा अन्य जनसंघर्षों के प्रतिनिधियों ने अपनी बात रखते हुए आपसी एकता कायम करने पर बल दिया।