गृह मंत्रालय ने दिया दो आदिवासी जनसंगठनों को माओवादी होने का तमगा : ताकि संसाधनों की लूट जारी रहे
गृह मंत्रालय द्वारा जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में अपने प्राकृतिक संसाधनों के लिए लड़ रहे दो आदिवासी जनसंगठन-नियामगिरी सुरक्षा समिति और विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन को एनजीओ बताते हुए उन्हें माओवादियों का फ्रंट संगठन बोला गया है। केंद्र सरकार द्वारा जारी यह रिपोर्ट इस बात की तरफ स्पष्ट इशारा करती है कि अब इस देश में अपने अधिकारों और अपने संसाधनों की सुरक्षा के लिए लड़ रहे हर जनसंगठन को माओवाद का नाम लेकर दबाया जाएगा जिससे कि प्राकृतिक संसाधनों की कॉर्पोरेट लूट बिना किसी अवरोध के बदस्तूर जारी रहे….
17 अप्रेल 2017 को अंग्रेजी दैनिक द हिंदू में छपी एक खबर के अनुसार गृह मंत्रालय ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में दो जनसंगठनों उड़ीसा के नियामगिरी सुरक्षा समिति और झारखंड के विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन को माओवादियों का फ्रंट संगठन बताया है। सरकार का कहना है कि उड़ीसा के नियामगिरी पर्वतों में नियामगिरी सुरक्षा समिति के बैनर तले माओवादियों के दिशा निर्देश में विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जा रहे हैं।
यह दोनों ही जनसंगठन अपने-अपने क्षेत्र में खनन के विरुद्ध लड़ रहे हैं। नियामगिरी सुरक्षा समिति लंबे समय से उड़ीसा खनन निगम को दक्षिण-पश्चिमी उड़ीसा में वेंदाता ग्रुप में प्राकृतिक संसाधनों के खनन का अधिकार दिए जाने से रोक रही है। विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन झारखंड में दो कानूनों छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट में हुए संशोधनों के खिलाफ लड़ रहा है। यह दोनों कानून झारखंड में आदिवासियों का जमीन पर अधिकार की रक्षा करते हैं।
गृह मंत्रालय द्वारा दिया गया यह बयान इस बात की ओर साफ इशारा करता है कि मौजूदा कॉर्पोरेट समर्थित मोदी सरकार हर कीमत पर इस देश के प्राकृतिक संसाधनों पर कॉर्पोरेट का कब्जा स्थापित करने के लिए पूरा जोर लगाए हुए। इसी के तहत वह प्राकृतिक संसाधनों की लूट को रोक रहे जनसंगठनों पर माओवाद और विकास विरोध का लेबल लगाकर उन्हें किनारे लगाने का प्रयास कर रही है।