जलविद्युत परियोजनाओं से जैवविविधता का विनाश
विश्व के तीन महाद्वीपों दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और एशिया की तीन विशाल उष्णकटिबंधीय नदियों क्रमशः अमेजान, कांगो एवं मेकांग पर बन रहे बांधों से विश्व की तकरीबन एक तिहाई मछलियों (मीठे जल) का विनाश हो जाएगा। इन तीनों नदियों पर 450 नए बांध प्रस्तावित हैं। भारत में उत्तराखंड में गंगा व उसकी सहायक नदियों में 200 के करीब बांध प्रस्तावित हैं। निर्माणाधीन अवस्था के दौरान उत्तराखंड में जलप्रलय की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। क्या हम अब भी सबक नहीं लेंगे। पेश है एलिजाबेथ ग्रॉसमेन का सप्रेस से साभार यह आलेख;
विश्व की तीन सर्वाधिक महत्वपूर्ण उष्णकटिबंधीय नदियों – अमेजान, कांगों एवं मेकाँग पर पिछले वर्षाें में जलविद्युत हेतु बांधों के निर्माण में असाधारण तेजी आई है। विश्व के विभिन्न विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों एवं संरक्षण संस्थानों के तीन दर्जन से ज्यादा वैज्ञानिकों की एक रिपोर्ट ’’साइंस’’ नामक पत्रिका में छपी है। इसके अनुसार इन परियोजनाओं से जैवविविधता, जिसमें विश्व की एक तिहाई ताजा जल में विचरण करने वाली मछलियों आदि की प्रजातियां शामिल हैं, को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। लेखकों का कहना है इन जलविद्युत परियोजनाओं से लंबी अवधि में पड़ने वाली प्रभावों का शायद ही कभी ठीक से आकलन किया गया है। अतएव उन्होंने मांग की है कि इन बांधों की पूर्ण लागत का आकलन करते हुए अधिक पारदर्शी योजना बनाना जरुरी है। इसके अभाव में इन परियोजनाओं की वजह से अनेक प्रजातियां न केवल विलुप्त होगी बल्कि मछलियों और अन्य ’पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं ’ में तेज गिरावट आएगी।
इन नदियों पर वर्तमान में स्थित 830 बांधों में से अधिकांश तुलनात्मक रूप से छोटे हैं। परंतु अमेजान, कांगो एवं मेकांग पर प्रस्तावित 450 नए बांधों में से 75 प्रतिशत सिर्फ अमेजान पर ही स्थित हैं। दस्तावेज के अनुसार सामान्यतया बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं के वास्ताविक लाभ एवं लागत के आकलन में हमें असफलता ही हाथ लगी है, इसकी वजह से लागत में वृद्धि हुई है एवं पर्यावरण एवं सामाजिक लागतों को कम करके आंका गया है। यह लागत बहुत अधिक हो सकती है क्योंकि जैवविविधता पर पड़ने वाली मार एवं मछलियों की आबादी में कमी से मछली पालन पर निर्भर समुदाय की खाद्यसुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। इस दस्तावेज के मुख्य लेखक किर्क वाईन मिलर जो कि टेक्सास ए एण्ड एम विश्वविद्यालय के वन्यजीवन एवं मछली पालन विज्ञान विभाग में प्रोफेसर हैं, का कहना है कि इन तीन उष्णकटिबंधीय नदी बेसिन में विश्व की जैवविविधता का बड़ा भंडार है जिसमें विश्व की एक तिहाई ताजा जल में विचरण करने वाली मछलियां शामिल हैं। उनका यह भी कहना है कि इन नदियों के उप बेसिन एवं सहायक नदियों में ऐसी अनूठी प्रजातियां मिलती हैं जो कि अन्यत्र दिखाई नहीं पड़तीं। उदाहणार्थ ब्राजील स्थित शिंगु नदी जो कि अमेजान की मुख्य सहायक नदी है, में मछलियों की चार दर्जन ऐसी प्रजातियां पाई जाती हैं जो अन्य कहीं नहीं मिलतीं। इसके अलावा अमेजान बेसिन में 1500 के करीब स्थानीय प्रजातियां पाई जाती हैं।
शोध पत्र के अनुसार ब्राजील का महाकाय बेलो मोंटे बांध जो कि इसी वर्ष पूर्ण होगा ’’जैवविविधता विनाश का रिकार्ड बना सकता है।’’ क्योंकि वह ऐसे स्थान पर स्थित है जहां पर स्थानीय प्रजातियों की भरमार है। वाईन मिलर का कहना है, ’’यह विवादास्पद परियोजना अब पूर्ण होने के कगार पर है और यह नदी की पारिस्थितिकी और देशज समुदाय खासकर उनके, जो कि नदी के पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर हैं, जीवन में आमूलचूल परिवर्तन कर डालेगी।’’ अमेजान नदी पर पहले से परिचालित एवं निर्माणाधीन बांधांे के अलावा 334 नए बांधों का निर्माण प्रस्तावित है।
मेकांग नदी बेसिन जिसमें की भारी संख्या (तकरीबन 370) में बांधों का निर्माण हो चुका है,पर तकरीबन 100 नए बांध बनाने की योजना है। इस नदी की मुख्यधारा पर तकरीबन एक दर्जन बांधों का निर्माण प्रस्तावित है। निचली मेकांग नदी बेसिन जो कि वर्तमान में अंतरदेशीय मछली पालन का महत्वपूर्ण केंद्र है, में हालिया अनुमान के अनुसार करीब 17 अरब डॉलर प्रतिवर्ष का व्यापार होता है। मेकांग पर बांध निर्माण योजना की वजह से घुमंतू मछलियों के आवागमन में बाधा पड़ेगी, जिससे उसके प्रजनन एवं रहवास पर विपरीत प्रभाव पडेेेेेेेे़गा। इतना ही नहीं मछली पालन पर निर्भर कंबोडिया, लाओस, थाइलैंड एवं वियतनाम के तीस लाख लोगों की जीविका भी बांध के कारण प्रभावित होगी। मेकांग नदी बेसिन में रहने वाले 6 करोड़ से ज्यादा लोग किसी न किसी रूप में इसी नदी पर निर्भर हैं।
यह एक जानामाना तथ्य है कि बांध मछलियों के आवागमन में बाधा डालते हैं एवं नदी की जलीय संरचना को तहस नहस कर देते हैं। इसके परिणामस्वरूप नदी का पारिस्थितिकीय संतुलन बिगड़ता है और मछलियों एवं अन्य जलीय प्रजातियों के प्रजनन एवं रहवास पर खतरा पैदा हो जाता है। परंतु इस सबकी गणना ठीक प्रकार से नहीं होती। इंटरनेशनल रिवर्स के निदेशक पीटर बोस्शार्ड का कहना है कि ’’हमारे पास परियोजना विशेष को लेकर तमाम सारे सबूत हैं, लेकिन इसका वैश्विक आकलन जैसा कि इन तीन नदी बेसिन का इस शोध में किया जाता है, दुर्लभ है। इन मुद्दों पर वैज्ञानिक शोध करने के लिए बहुत धन भी उपलब्ध नहीं है। जबकि आवश्यकता इस बात की है कि बांध का निर्माण प्रारंभ होने में पहले इसे पूरा कर लिया जाए, पर अक्सर यह नहीं होता। जब तक यह आकलन पूरा होता है तब तक करोड़ों डॉलर खर्च किए जा चुके होते हैं या नदियों का रुख मोड़ा जा चुका होता है। उस समय पर किसी परियोजना को रोक पाना असंभव हो जाता है। इतना ही नहीं तमाम परियोजनाओं में ऐसा आकलन किसी तृतीय पक्ष द्वारा नहीं बल्कि बांध बनाने वाली कंपनी द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति द्वारा किया जाता है।,’’
विश्वबैंक जो कि विश्वभर में अनेक बांध निर्माण परियोजनाओं को वित्तीय मदद प्रदान करती है अभी तक इस दस्तावेज पर मौन है। और इसके जवाब में उसने जलविद्युत पर विश्वबैंक की सन 2014 की एक रिपोर्ट को संक्षेप में प्रकाशित कर दिया। इसमें कहा गया है, अनेक विकासशील देशों में जलविद्युत उत्पादन बिजली प्रदान करने का सबसे सस्ता साधन है। इससे कई स्थानांे पर स्थानीय गरीबी समाप्त हुई है और खाद्यसुरक्षा की स्थिति बेहतर हुई है। इसके अलावा रिपोर्ट बताती है कि ’’हालांकि जलविद्युत से कुछ महत्वपूर्ण खतरे भी हैं। अतएव पिछले दशक में इनसे निपटने का दबाव बढ़ता ही जा रहा है।’’
‘साइंस’ पत्रिका के इस दस्तावेज में उल्लेख किया गया है कि परियोजना की अनुमति और वित्त प्रदान करते समय जोखिमों का आकलन करने में अक्सर चूक हो जाती है। इसके अनुसार जो भी संस्थान जलविद्युत विकास की अनुमति देता है या वित्तप्रदान करता है, को बेसिन स्तर का आकलन इस तरह करवाना चाहिए जिससे कि संचित प्रभावों, जिसमे जलवायु परिवर्तन भी शामिल है, की गणना संभव हो सके।
(सुश्री एलिजाबेथ ग्रॉसमेन अर्थ आइसलेंड जर्नल में स्तंभकार हैं।)