परमाणु ऊर्जा विरोधी प्रदर्शन
दिसम्बर 8, 2011। अणु-ऊर्जा के अंधाधुंध विस्तार की शासकवर्ग की नीति के खिलाफ विभिन्न संगठनों और आन्दोलनों के कार्यकताओं ने दिल्ली के जंतर मंतर पर 8 दिसंबर को विरोध प्रदर्शन किया। जैतापुर (महाराष्ट्र), कूडनकुलम (तमिलनाडु), चुटका (मध्य प्रदेश), मीठी विर्डी (गुजरात), गोरखपुर (हरियाणा) और कोवाडा (आंध्र प्रदेश) जैसे इलाकों में लोग अणु-प्रकल्पों के खिलाफ जुझारू लड़ाई लड़ रहे हैं। इन सभी जगहों के लोग और देश के अन्य कई जगहों के समूह और नागरिक संगठन भी इस प्रतिरोध में शामिल हुए। परमाणु-विरोधी इस प्रदर्शन में अणु-प्रकल्पों से जुड़े स्थानीय मुद्दों के साथ-साथ परमाणु तकनीक से सम्बंधित कुछ अनिवार्य खतरों पर रोशनी डालते हुए सरकार से इन सभी परियोजनाओं को तत्काल बंद करने की मांग की गई।
फ्रेंड्स ऑफ कूडनकुलम एंटी-न्यूक्लियर मूवमेंट, परमाणु निरस्त्रीकरण और शान्ति गठबंधन (सीएनडीपी ), जन-आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम), आल इंडिया स्टुडेंट्स एसोसिएशन (आइसा), एस.यू.सी.आई., पी.यू.सी.एल., इन्साफ, लोक राज संगठन समेत कई अन्य समूहों के लोग इस प्रदर्शन में शामिल हुए। धरने को लोकसभा सदस्यों श्री तरुण मंडल और श्री तिरुमावाल्वन के साथ साथ कविता कृष्णन, एस. राघवन, मालती मैत्रेयी, सुव्रत राजू के साथ साथ दर्जनों अन्य वक्ताओं ने संबोधित किया। सभी वक्ताओं ने परमाणु-विरोधी आन्दोलन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला और इसके राजनीतिक और सामाजिक महत्व पर बल दिया। इस विरोध-प्रदर्शन में शामिल लोगों ने इस बात को रेखांकित किया कि हमारे देश का शासक वर्ग अपने निहित स्वार्थों और ‘विकास’ की एकांगी अवधारणा के तहत यह खतरनाक परियोजनाएं हम पर थोप रहा है। आज जब देश के बड़े हिस्से में आम लोग इस खतरे के खिलाफ उठ खड़े हुए हैं, हमें उनका हरसंभव साथ देना चाहिए।
फुकुशिमा के बाद जर्मनी, इटली और स्वीडन जैसे कई देशों ने परमाणु-बिजली के खतरों को देखते हुए इससे तौबा कर ली है।
अणु-बिजली अनिवार्यतः असुरक्षित और खतरनाक है। एक तरफ जहां परमाणु-दुर्घटनाएं दूसरे अन्य औद्याेिगक हादसों से कहीं ़ज्यादा भीषण होती हैं और इनके दुष्प्रभाव लम्बे समय तक रहते हैं, वहीं दूसरी तरफ अणु-बिजलीघरों की सामान्य कार्य-अवधि में भी आस-पास की आबादी और खासतौर पर कामगार विकिरण का शिकार बनते हैं। इस विकिरण से कैंसर, थायराइड और ल्यूकीमिया जैसी जानलेवा बीमारियाँ होती हैं। हाल के कई वैज्ञानिक अध्ययनों में यह दर्शाया गया है कि हमारी ऊर्जा जरूरतें अक्षय ऊर्जा के स्रोतों और विकेन्द्रीकृत बिजली उत्पादन से कहीं अधिक सस्ते में और सुरक्षित तरीके से हल हो सकती हैं।
भारत में परमाणु उद्योग का इतिहास बड़ी-छोटी दुर्घटनाओं और सुरक्षा की अनदेखी के अनुभवों से भरा रहा है। भारत का परमाणु प्रतिष्ठान असल में न केवल इतने बड़े विस्तार के लिए तैयार है बल्कि नाकामयाबियों, हादसों, गैर- जिम्मेवारी और अलोकतांत्रिक आचरण के पिछले इतिहास के कारण इसे लोगों की जान खतरे में डालने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। यह परमाणु-विस्तार काफी महँगा होगा क्योंकि न सिर्फ अणु-बिजली दरअसल महंगी है बल्कि विदेश से आयातित रिएक्टर और भी महंगे हैं। साथ ही, सरकार ने दुर्घटना की स्थिति में इन संयंत्रों को उपकरण बेचने वाली कंपनियों को मुआवजे से लगभग मुक्त कर दिया है और अब परमाणु दुर्घटनाओं की हालत में इसका बोझ आम जनता पर ही पड़ेगा।