पेसा : आदिवासी क्षेत्रों में परंपरागत स्वशासन को क़ानूनी मान्यता देने वाला कानून
पेसा कानून संविधान संधोशन से बना एक ऐसा कानून है जिसे लोकसभा और राज्य सभा ने भारी बहुमत से पारित किया था 1996 में। 24 दिसंबर 1996 को पारित यह कानून महज कानून नहीं है बल्कि आदिवासी इलाके खासकर पांचवीं अनुसूची के आदिवासी इलाके के लिए परंपरागत ढंग से जीने का एक संविधान है। पेसा कानून का अर्थ है- ”पंचायत राज एक्सटेंशन टू शिड्युल्ड एरिया”।
शिड्युल्ड एरिया के बारे में भी देश में जानकारी का घोर अभाव है। संविधान सभा के दौरान मारांगगोम के जयपाल सिंह ने संविधान द्वारा प्रदत्त लोकतंत्र पर सवाल खड़ा करते हुए कहा था कि अगर लोकतंत्र सीखना है तो आदिवासियों से सीखिये। तब उनके सकारात्मक हस्तक्षेप से संविधान में दो प्रावधान किये गये थे- इसे पांचवीं अनुसूची और छठी अनुसूची का दर्जा दिया गया। देश के उन राज्यों में आदिवासियों की आबादी 50 प्रतिशत से ऊपर थी या आसपास थी को पांचवीं अनुसूची में रखा गया। इसके तहत अभी देश के 10 राज्य आते हैं। छठी अनुसूची पूर्वोत्तर भारत के कुछ राज्यों में लागू हुआ है।
पांचवीं अनुसूची के इन्हीं राज्यों में परंपरागत रीति रिवाज और अपनी संस्कृति के अनुरूप अपने गांव में स्थानीय स्वशासन की व्यवस्था के संचालन के लिए पेसा कानून 1996 में बना। जिसके तहत ग्रामसभा को पूरे अधिकार सौंपे गये। कायदे से इस कानून के बनने के एक साल के भीतर संबंधित राज्यों को इसके आलोक में कानून और नियम बनाने थे लेकिन अधिकांश राज्यों ने इसे नजरअंदाज किया है। 21 साल बाद भी अभी तक अधिकांश राज्यों ने रूल्स नहीं बनाये है।
इस कानून में कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान किये गये हैं, जिनमें गांव को अपने रीति रिवाज से चलाना, ग्राम प्रधान
(परंपरागत ग्राम प्रमुख) की अध्यक्षता में संभव हो सकेगा। सरकार इसमें सीधे हस्तक्षेप नहीं करेगी। गांव के विकास का निर्णय भी ग्राम सभा करेगी। इतना ही नहीं, गांव हे तमाम वनोपज पर गांव का मिलकाना हक होगा। गौण खनिज पदार्थ पर भी मालिकाना हक के प्रावधान इसमें किये गये। गांव की जमीन अधिग्रहण पर भी ग्राम सभा से साथ विमर्श अनिवार्य माना गया.इस तरह को बहुत सारे ऐसे प्रावधान किये गये हैं जिससे गांव स्वशासी बन कर लोकतंत्र को गहरा और बना सके। यानी गांधी के गांव गणराज्य को साकार किया जा सके और असली स्वराज कायम हो सके।