संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

नवीकरणीय एवं टिकाऊ ऊर्जा

इण्डिया इस्लामिक सेण्टर, नयी दिल्ली में 25-26 फरवरी 2012 को ‘नवीकरणीय एवं टिकाऊ ऊर्जा’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संवाद का आयोजन सी.एन.डी.पी. एवं एन.ए.पी.एम. द्वारा किया गया। इसमें जैतापुर (महाराष्ट्र), चुटका (मध्य प्रदेस) एवं गोरखपुर (हरियाणा) के परमाणु ऊर्जा संयंत्र के विरोध में चलने वाले जनसंघर्षों के साथियों ने भी शिरकत की। यू.एस.ए. से अर्जुन मखिजानी तथा जर्मनी से स्वेन टेस्के ने वीडियो कांफरेंसिंग के जरिये अपनी बातों को इस ‘राष्ट्रीय संवाद’ के मौके पर रखा।

इस संवाद को 9 सत्रों में विभाजित करके इस परिचर्चा को चलाया गया। पहला सत्र- ‘इण्डियाज़ एनर्जी स्ट्रेटजी: इनइक्विटस एण्ड क्लाइमेट अनफ्रेंडली’ विषय पर था जिसे शंकर शर्मा, अश्विन गंभीर, वाइ्र.बी. रामकृष्णन, प्रफुल्ल बिदवई ने संबोधित किया तथा इस सत्र की अध्यक्षता एडमिरल रामदास ने की। दूसरा सत्र ‘न्यूक्लियर पावर: ए डेंजरस नान-साल्यूशन’ विषय पर था, इस सत्र के समक्ष बी.के. सुब्बाराव, नीरज जैन तथा मिहिर इंजीरियर ने अपने विचार रखे। इस सत्र की अध्यक्षता अचिन वनायक ने की। तीसरा सत्र ‘वीडियो कांफरेंसिंग’ का था जिसमें ‘ए कार्बन फ्री एण्ड न्युक्लियर फ्री फ्यूचर आफ इण्डिया’ विषय पर अर्जुन मखिजानी (यू.एस.ए.) ने अपनी बातें रखीं और चौथेसत्र में वीडियो कांफरेंसिंग के जरिये जर्मनी के स्वेन टेस्के ने ‘द रिन्युबल एनर्जी रिवोल्यूशन सण्ड द शिफ्ट इन जर्मनी’ विषय पर अपने विचार व्यक्त किये। पांचवें सत्र का विषय था- ‘ए न्यू एनर्जी विज़न फार इण्डिया’ इस सत्र को अनिल चौधरी, सुनील, डा0 एक्सेल हरनिट, सौम्या दत्ता ने संबोधित किया। इस सत्र की अध्यक्षता वीना जोशी ने की।
दूसरे दिन (26 फरवरी) को पहला सत्र- ‘द रिन्युबल्स रिव्योलुशन: हु विल कण्ट्रोल इट’ विषय पर समर्पित था। इस सत्र की अध्यक्षता प्रफुल विदवई ने की तथा वी. सुब्रमनियम, असीम रॉय तथा प्रो0 भार्गव ने सम्बोधित किया। दूसरे सत्र का विषय था- ‘रिन्युबल एनर्जी डेवलमेण्ट: ग्रासरूट्स इक्सपीरिएंसेज’ इस सत्र को प्रियदर्शिनी कार्वे, निखिल जैसिंघानी, कृष्ण स्वामी श्रीनिवास तथा सिद्धार्थ मलिक ने संबोधित किया। इस सत्र की अध्यक्षता प्रमोद देव ने की। तीसरा सत्र- ‘सपोर्टिंग पीपुल सेण्ट्रिक स्ट्रेटीज फार रिन्युबल इनर्जी’ पर केन्द्रित था। इस सत्र की अध्यक्षता अनिल चौधरी ने की तथ ललिता रामदास, अरविन्द कृष्णमूर्ति आदि ने अपने विचार रखे। चौथे सत्र में- ‘स्ट्रगलिंग फार कार्बन फ्री एण्ड न्युक्लिअर फ्री फ्यूचर’ विषय पर वैशाली पाटिल, यशवीर आर्य, जस्टिस बी. जी. कोल्से पाटिल एवं पी.के. सुंदरम ने अपनी बातें रखीं ओर अन्तिम सत्र में प्रस्ताव पारित किये गये।
इस राष्ट्रीय संवाद में जो बातें मुख्य रूप से उभरकर आयीं वे थीं, इसे अविलंब रोका जाय।
  • परमाणु एवं कोयला प्लांट्स के खिलाफ चलने वाले जन संघर्षों, विशेषतौर पर कुडनकुलम के परमाणु संयंत्र विरोधी संघर्ष, का दमन किया जा रहा है तथा निराधार आरोप लगाये जा रहे हैं।
  • इस बात को एक बार फिर से दोहराया गया कि आजादी के बाद से ही बड़े-बड़े थर्मल, बांध आधारित एवं परमाणु ऊर्जा के संयंत्र लगाये गये तथा एक बड़ी धनराशि खर्च की गयी परंतु देश की 40 फीसदी आबादी अभी भी बिजली की सहूलियत से वंचित है। तथ्य यह है कि परंपरागत पावर प्लांट्स- विशेषतौर पर कोयला, हाइडिल एवं परमाणु आधारित, ने सामाजिक एवं पर्यावरणीय क्षति अपूरणीय स्तर तक की है। योजना आयोग द्वारा तैयार की गयी ऊर्जा नीति एवं ऊर्जा उत्पादन की योजनायें भारत जैसे निर्धन देश के वश की नहीं हैं और न ही इससे आम लोगों को बिजली की आपूर्ति ही हो पायेगी।

अतएव भारत को ऊर्जा नीति की समीक्षा की जरूरत है और एक बार पुनः विचार की जरूरत है।
इस राष्ट्रीय संवाद ने मांग की है कि-
  • देश के विभिन्न हिस्सों में प्रस्तावित बड़े स्तर के परमाणु ऊर्जा संयंत्रों, थर्मल एवं हाइड्रो प्रोजेक्ट्स के निर्माण को तत्काल प्रभाव से रोका जाय, इनकी आवश्यकता की गहन समीक्षा करने के बाद प्रभावित लोगों से बातचीत करके, इनके द्वारा होने जा रही क्षति का सही मूल्यांकन करके लोकतांत्रिक तरीके से ही इन पर आगे कार्यवाही की जाय।
  • मौजूदा परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सुरक्षा की समीक्षा एक स्वतन्त्र बाडी द्वारा जो परमाणु ऊर्जा विभाग के अधीन न हो, के द्वारा अविलंब करायी जाय। इस तरहके सुझाव कई विशेषज्ञों ने भी फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना के बाद दिये हैं।
  • कम से कम अगली दो पंचवर्षीय योजनाओं में नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों को ऊर्जा उत्पादन में सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाय। प्राथमिकता से तात्पर्य यह है कि नवीकरणीय ऊर्जा को भी सब्सिडी, वित्तीय सहायता उसी तरह दी जाय जिस तरह परमाणु ऊर्जा को दी जाती रही है।
  • भविष्य में बड़े आकार के तथा व्यापक प्रभाव डालने वाली सभी परियोजनाओं/संयंत्रों का निर्णय एक ऐसे प्रभावकारी तंत्र द्वारा लिया जाय जो लोगों से सलाह-मशविरा भी करें तथा लाभ-हानि का  भी मूल्यांकन करे। और यह तंत्र संस्तुति के लिए उत्तरदायी हो।
  • पॉवर सेक्टर की क्षमता का संवर्द्धन तत्काल प्रभाव से किया जाय, ऊर्जा की मांग पर विशेष ध्यान दिया जाय तथा ट्रांसमिशन एवं वितरण में होने वाली ऊर्जा क्षति को रोका जाय।
  • पिछले दौर और मौजूदा समय की ऊर्जा नीति की समीक्षा की जाय। जी.डी.पी. ग्रोथ के प्रति समर्पित यह नीति सामाजिक एवं पर्यावरणीय सरोकारों के प्रति लगातार उदासीन बनी हुई है। फलस्वरूप इसका सरकार की अन्य नीतियों जैसे वन नीति, एन.ए.पी.सी.सी. आदि से अन्तर्विरोध बना रहता है।
  • कार्बन फ्री एवं परमाणु मुक्त दृष्टि के साथ ऊर्जा नीति एवं ऊर्जा के रोड मैप की घोषणा की जाय तथा यह घोषित किया जाय कि किस वर्ष से कोयला एवं परमाणु आधारित ऊर्जा संयंत्रों को बंद करना शुरू किया जायेगा।
  • ऊर्जा नीति की सर्वांगीण समीक्षा के लिए एक बाडी का गठन किया जाय जिसमें नागर समाज संगठनों एवं जन आंदोलनों के प्रतिनिधियों के साथ ही साथ सांसदों, अधिकारियों, वैज्ञानिकों, तकनीशियनों के प्रतिनिधियों को भी रखा जाय।
नागर समाज संगठनों एवं जन संगठनों के साथ प्रत्येक राज्य में मंत्रणा करके ही 12वीं पंचवर्षीय योजना को अंतिम रूप दिया जाय।

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