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राज्यवार रिपोर्टें
मुलताई गोलीकांड के 15 साल पुरे : किसान लाचार, इंसाफ का इंतजार
मुलताई गोलीकांड में मारे गये किसानों के परिजन तो परेशान हैं ही फर्जी अभियुक्त बनाए गए किसानों को भी अभी तक न्याय नहीं मिल पाया है उनकी मांगे सुनने वाला कोई नहीं है.
मध्य प्रदेश के मुलताई में गुजरी 12 जनवरी को उसी जिला कोर्ट के सामने जिसमें 19 अक्टूबर 2012 को डा0 सुनीलम् और उनके साथियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी, देश भर के जन आंदोलनों के…
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सर्वोच्च न्यायलय : इंदिरा सागर बांध में बिना पुनर्वास के पानी भरने पर सरकार को…
न्यायलय के आदेशों का उल्लंघन कर लायी गई थी डूब!
डूब के खिलाफ हुआ था जगह जगह जल सत्याग्रह!!
गुजरी 4 जनवरी को…
सर्वे के झरोखे से अति वंचितों की स्थिति
सर्वे का दायरा था आठ जिलों (भदोही, जौनपुर, वाराणसी, इलाहाबाद, कौशाम्बी, फ़तेहपुर, उन्नाव और बाराबंकी) के 14…
पोस्को के खिलाफ आंदोलनरत किसान गिरफ्तार, जबरन भूमि-अधिग्रहण का सरकारी फरमान जारी
पोस्को भारत छोड़ो ! सरकार और कारपोरेट गठजोड मुर्दाबाद !! 8 जनवरी 2013 से उड़ीसा के गोविन्दपुर में विस्थापन के खिलाफ शुरू हुए प्रतिरोध आंदोलन में पोस्को प्रतिरोध संग्राम समिति के 6 सदस्यों सहित पोस्को स्टील प्लांट का विरोध कर रहे दो हज़ार ग्रामीणों पर पुलिस द्वारा 230 फर्जी मुकदमे दायर कर दिए गए हैं. वहीं सरकार ने पुलिस के बल पर आठ जनवरी से जबरन…
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बेघरी की बेबसी बनाम सरकारी बेदिली
राजधानियों से बाक़ी शहरों के हाल का सुराग़ मिलता है। सब जानते हैं कि चमकते विकास के बरअक़्स नयी दिल्ली से लेकर…
मुलताई गोलीकांड के दोषियों पर कार्यवाही हो : किसान संघर्ष समिति
15 वर्ष पहले मुलताई गोलीकांड में अपना पति खो चुकी परमंडल गांव की लक्ष्मी बाई, मोही गांव की सुखी बाई, मरमंडल की पुसली बाई, रम्भाखेड़ी की उर्मिला बाई गड़ेकर और ताईखेड़ की पार्वती बाई 03 जनवरी 2013 को गोलीकांड के दोशियों के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर उन्हें कठोर सजा की मांग को लेकर एसपी बैतुल को ज्ञापन सौंपा गया है। पेश है यहाँ पर किसान…
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दिल्ली की प्यास बनी हिमाचल की त्रास
दिल्ली के निवासियों को ज़िंदा रखने की कीमत हिमाचल के लोग अपनी आजीविका के विनाश और रेणुका बाँध परियोजना के…
कारपोरेट लूट- पुलिसिया दमन विरोधी लोक संघर्ष यात्रा : प्रतिदिन 100 लीटर पानी में…
प्रतिदिन100 लीटर पानी में जिन्दा रहने को विवश हैं विस्थापित परिवार!
कामरेड संजय नामदेव रिहा, जेल से निकल कर…
कि नया साल सचमुच नया हो
हर साल नया साल आता है। मुबारकबाद के रस्मी अल्फ़ाज़ में, धूमधड़ाकों और शानदार नज़ारों में सजता है। चार दिन की चांदनी में इतराता है और फिर बेरंग-बेनूर और बदहवास सा गुज़र जाता है, बेदम और पुराना होकर दोबारा नये साल की दहलीज पर पहुंच जाता है, नये कलेंडर में बदल जाता है। घना करता हुआ कुहासा- ज़ुल्म और सितम का, ख़ौफ़ और दहशत का, ऊंचनीच और नाइंसाफ़ी…
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