संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

मुम्बई-दिल्ली कोरीडोर संघर्ष यात्रा औरंगाबाद पहुंचीः मराठवाड़ा में नई जाग्रति

खानदेश से चलकर मुम्बई-दिल्ली कारीडोर संघर्ष यात्रा 11 मार्च को महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में पहुंची। डीएमआईसी विरोधी शेतकारी हक्क समिति और सेज-डीएमआईसी विरोधी संघर्ष समिति ने एक सार्वजनिक सभा में यात्रा का स्वागत किया। सभा के आयोजक विजय दिवान ने कहा की औरंगाबाद जिले के गांवों को कैंसर और अन्य जानलेवा रोग हो गये है। जो नासूर बनकर लोगों की जिंदगियां ले रहा है। महाराष्ट्र औद्योगिक विकास कानून (एमआईडीए) के तहत 902 हेक्टेयर जमीन सन् 2000 मे ही अधिग्रहित की जा चुकि है। 70 के दशक में पैठन/जायकवाडी बांध में जिनकी जमीन गई है उन्हे हरेक वायदे के बाद भी ना तो लाभ क्षेत्र में जमीन मिली और न ही नौकरी। महाराष्ट्र औद्योगिक विकास क्षेत्र लगी सिर्फ 50 प्रतिशत फैक्टरियंा आज काम कर रही है। और यह इंतजार है कि कब उनपर मकान बनाकर बेंच दिये जाये। 

इन सबके बावजूद सरकार शैन्द्रा बिदलीन औद्योगिक क्षेत्र के लिये 24 गांवो की 10,000 हेक्टेयर जमीन पर कब्जा करना चाहती है। शहर-औद्योगिक विकास कारपोरेशन ने भी 28 गांवों की 15,000 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहण की योजना बना रखी है। वहीं डीएमआईसी परियोजना के तहत औरंगाबाद को महाशहर घोषित किया गया है। जिसमें 310 गांवो की 209000 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित की जायेगी इस तरह औरंगाबाद जिले में कुल मिलाकर अगले कुछ सालो में 362 गांवो की 234000 हेक्टेयर जमीन को अधिग्रहण करने की योजना है। इन सभी परियोजना से विस्थापितों की संख्या के मात्र 20 प्रतिशत को ही शायद रोजगार मिल सकेगा।

सुभाष पाटिल ने कहा कि आज मराठवाड़ा क्षेत्र में भीषण अकाल पड़ा है। और यहाँ 54 एमआईसी पानी की आवश्यकता जायकवाड़ी बांध से पूरी नही हो पा रही है। अब पानी नही है। अब उपर के क्षेत्र में भी बांध बन गया है। आज मुआवजे के तौर पर सरकार अगर किसानों को एक करोड़ रूपया प्रति एकड़ भी देती है तो भी औरंगाबाद शहर में 2 कमरे का एक फ्लैट खरीदना मुश्किल है। इस हकीकत से जमीन से जुड़े हुए लोग वाकिफ हैं। यहाँ के एम एल ए और एम पी सब इस लूट में शामिल हैं। उनकी जमीने इन गाँवों में अधिग्रहित नहीं होती लेकिन किसानों की जमीने लूटी जाती है।

नसरीन बी, घर बचाओ घर बनाओ आन्दोलन से और पे्रमा भाई, नर्मदा बचाओ आन्दोलन से, ने सभा में अपनी बात रखते हुए कहा की, हमारी लड़ाई शहर और गाँव दोनों में जमीन के ऊपर अपने हक की है। पूंजीवादी ताकतों और सरकार के गठजोड़ ने हमारी ताकतों को छिनना चाहा है लेकिन हम यह लड़ाई जारी रखेंगे। सालों से हम लड़ रहे हैं और आगे भी लड़ते रहेंगे एक सम्मानजनक जिन्दगी के लिए।

मेधा पाटकर ने इस सभा को संबोधित करते हुए कहा की विरोध विकास का नहीं है बल्कि विरोध इस बात का है की इस स्वतंत्र देश में जनता का क्या स्थान है। 65 साल की आजाादी के बाद भी संविधान में जनता को जो हक मिले हैं, चाहे वो ग्राम सभा हो या बस्ती सभा के, पर्यावरण कानून, मजदूरों के कानून, इन सब को ताक पर रख कर डीएमआईसी जैसी परियोजनाये बनायी जाती है जिसके तहत लाखो हेक्टर जमीन का अधिग्रहण किया जायेगा यह क्या न्याय संगत है। विकास आज की मौजूदा परिस्थिति को देखकर करना होगा, न की देशी विदेशी पूंजीवादी ताकतों के साथ मिलकर।

लिगंराज आजाद नियमगिरी सुरक्षा परिषद् उडि़सा, ने कहा कि पिछले तीन दिनों में जो बात हरेक जगह सुनाई दी है उससे साफ है कि उद्योगो के नाम पर ली गई जमीनों का पूर्ण उपयोग आज भी नही हुआ है। तो ऐसे में नये भूअधिग्रहण की बात क्यों? उडि़सा में भी यही स्थिति है जो महाराष्ट्र में दिख रही है। लोगो के सामने सिवाय लड़ने के कोई चारा नही है।

जन आंदोलनो का राष्ट्रीय समंवय यह मानता है कि विकास की प्रक्रिया को बदलना होगा। खेती, छोटे उद्योग जो ज्यादा लोगो को काम और आजीविका देते है सरकार उन्हे प्रोत्साहन क्यो नही देती? जो कि आज की जरुरत है। विकास के नाम पर पूरे देश में बड़ी परियोजनाओं का जाल बिछाना जो औद्योगिकीकरण के नामपर लोगो की जीविका समाप्त कर उन्हे बेरोजगारी और गरीबी की ओर धकेल रहा है। बड़े शर्म की बात है कि आजादी के 65 वर्ष बाद भी आज का मेहनतकश मजदूर, किसान वर्ग गुलाम है।

एनएपीएम की संघर्ष यात्रा 8 मार्च को मुंबई के आजाद मैदान से शुरु हुई और पिछले चार दिनो में महाराष्ट्र में विभिन्न इलाको में चल रहे आंदोलनों में सहभाग किया। कल यह यात्रा गुजरात में पंहुचेगी।

गुजरात में 12 मार्च को उमरगांव, पार-तापी नदी जोड़ परियोजना क्षेत्र,
13 मार्च को सूरत निवेश क्षेत्र, हजेरिया, गरुड़केश्वर, राजपीपला,
14 मार्च को खेड़ा और अमहदाबाद रहेगी। 

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