हूल दिवस : आजादी की पहली लड़ाई थी हूल क्रांति, आज भी संताल हूल की चिंगारी मौजूद है आदिवासियों में
संताल हुल को समझने के लिए जरुरी है की हम हुल के अर्थ को समझे । “हुल” संताली आदिवासी शब्द है जिसका अर्थ होता है क्रांति/आंदोलन……… शोषण, अत्याचार और अन्याय के खिलाफ आवाज । सिदो-कान्हू ने लगातार पांच वर्षो तक शोषण, अत्याचार और अन्याय का शिकायत दारोगाओ से करते रहे लेकिन इसका कोई समाधान नहीं हुआ, पूरा तंत्र(SYSTEM) इस मुद्दे पर बहरा बना रहा । जब अति हो गयी तब 30 जून 1855 को सिदो-कान्हू मुर्मू के नेतृत्व में अंग्रेजो, महाजनों, दरोगा के शोसन, अत्याचार और अन्याय के विरुध संताल आदिवासी बरहेट, संताल परगना, झारखण्ड के भोगनाडीह गांव में जमा हुए और शपत लिए की इस शोषन, अत्याचार और अन्याय के विरुध लाड़ाई लड़ने के लिए और अबुवा दिसोम अबुवा राज (अपना देश अपना राज्य) की स्थापन करने की । वर्तमान भोगनाडीह में “कादम ढडी” नाम का एक जल स्रोत अभी भी अस्तित्व में है । जिसे घेर कर कुआं का रूप दे दिया गया है । जानकारों का मानना है की यहाँ पर सिदो-कान्हू नित्य नहाते थे और “जाहेर एरा” (संतालों का देवी) का पूजा करते थे और उन्हें साक्षात दर्शन देते थे और उन्हें बताते थे की आगे की रणनीति क्या होगी ।
हुल की शुरुवात “जाहेर एरा” (संतालों का देवी) के पूजा के बाद से ही हुई । इसलिए कुछ इतिहासकार संताल हुल को धर्म युद्ध की भी संज्ञा देते है । धर्म ने इस संताल हुल को और मजबूती प्रदान किया इससे इंकार नहीं किया जा सकता है । संताल हुल इतना ही शक्तिशाली और प्रभावशाली था की पूरा ब्रिटिश सम्राज्य हिल कर रह गया और ब्रिटिश शासकों को इस क्षेत्र के सामाजिक, भौगोलिक और आर्थिक स्थिति के बारे में गंभीरता से पुनर्विचार करने के लिये मजबूर होना पड़ा । इस संताल हुल के प्रतिफल 22 दिसम्बर 1855 को संताल परगना जिला का उदय/गठन वर्तमान बंगाल,बिहार राज्यों के कुछ हिस्सों को लेकर बना । हालांकि अब इसको छ:(6) जिलों में बाट दिया गया है लेकिन संताल परगना डिविजन के रूप में अभी भी अस्तित्व में है । इसी संताल हुल के प्रतिफल SPT एक्ट भी अस्तिव में आया । इस संताल हुल में सिदो-कान्हू, चाँद-भाइरों, फूलो-झानो (एक ही परिवार के शहीद) और असंख्य अनुयायों ने देश के नाम अपना प्राण त्याग दिया । इस संताल हुल में सिर्फ आदिवासी ही नहीं बल्कि अन्य सभी संप्रदाय के लोगों ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और देश के नाम हँसते- हँसते शहीद हो गए । उन शहीदों को अन्तर आत्मा से हुल जोहार । संताल हुल के 163 वर्ष हो गए लेकिन झारखण्ड के मूलवासी और आदिवासी विशषेकर ग्रामीण लोग अभी भी विकास से कोसो दूर है । आजादी मिली,अबुवा झारखण्ड मिला लेकिन गांव में अभी तक मूलभूत समस्याए है । लोगों को प्रयाप्त मात्रा में पीने का पानी उपलब्ध नहीं,प्रयाप्त बिजली, दूरसंचार, सिचाई नहीं है,गुणवता शिक्षा नहीं है, सड़क है तो आने-जाने के साधन उपलब्ध नहीं है आदि । फिर भी हम सभी हुल दिवस मना रहे है ।
लेकिन विकास हम सबों से कोसो दूर है । हुल दिवस मनाने का सार्थकता तभी पूरा होगी जब हम सभी शिक्षित होकर अपने-अपने अधिकारों के लिए लड़े और ले पाए । तभी जाकर सिदो-कान्हू मुर्मू का संताल हुल का सपना पूरा होगा । सिदो-कान्हू के संताल हुल ने सबों को अंग्रेज जमाने में ही यहाँ के विकास के लिय संताल परगना और SPT एक्ट दिलाया । आज हम सभी शिक्षित है और पूर्ण रूप से आजाद है फिर भी लोग बुनियादी सुविधाओं से वंचित है । आखिर इस आजाद भारत में ऐसा क्यों ? कही हम सभी हुल दिवस अपने स्वार्थ सिद्धी के लिए तो नहीं मना रहे है ? यकीनन हम सभी अपने स्वार्थ सिद्धी के लिए ही मना रहे है । अगर हम सभी समाज और देश के लिए मनाते तो शायद झारखण्ड और देश की यह स्थिति नहीं होती,हमारे लोग मूलभूत सुविधाओ से वंचित नहीं रहते । गरीबों और ग्रामीणों के लिए सरकार के कई योजनाएं है लेकिन ग्रामीण अभी भी मुलभुत सुविधाओं से वंचित है । जबकि ग्रामीणों का वोट शहर से अधिक अहम भूमिका निभाता है । क्या ग्रामीणों को सुविधाओं से वंचित रहना/रखना शोषण का रूप नहीं है ?
आखिर ऐसा क्या बात है जिस धरती से अंग्रेजो के विरुद हुल हुआ आज वहां के ही लोग अपने अधिकार को लेने के लिए आवाज नहीं उठा रहे है या उनके आवाज को दबा दिया जा रहा है । आखिर इसके पीछे वजह क्या है ? कही हम सभी सिदो-कान्हू के आदर्शो से तो नहीं भटके है ? गुलाम भारत में लोगों के साथ जो शोषण,अत्याचार और अन्याय हुआ,वह प्रत्यक्ष रूप से हुआ । उसे अनुभव करने के लिए आपको शिक्षित होना जरुरी नहीं था । जैसे जरुरत से जादा लगान लेना और जबरजस्ती लेना,महिलावों के साथ अभद्र व्यवहार करना,बिना गलती का सजा देना,शरीरिक और मानसिक शोषण करना आदि । इन सभी शोषण को अनुभव या एहसास करने के लिए आपको शिक्षित होना जरुरी नहीं है ।
लेकिन आज आजाद भारत में ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं से वंचित है,जो अधिकार/सुविधाएं ग्रामीणों को मिलना चाहिए नहीं मिल रहा है, जबकि सरकार सब के लिए मूलभूत सुविधाए मुहैया करा रही है । ये मूलभूत सुविधाए ग्रामीणों को नहीं मिलना भी एक तरह का शोषण है लेकिन यह अप्रत्यक्ष शोषण है । ग्रामीणों/आदिवासियों को अपने अधिकार भी नहीं मालूम है,अगर अधिकार मालूम भी है तो कैसे लेना है यह नहीं मालूम है । इसके पीछे एक ही वजह है ग्रामीणों का शिक्षित और जागरूक नहीं होना । लेकिन क्या हम शिक्षित वर्ग का यह कर्तव्य नहीं होता है की हम उन्हें अधिकार बताये,दिलाये और उन्हें जागरूक करे । हम सभी उनलोगों के आंखों का रोशनी बने । इसके लिए जरुरत है आजाद भारत में पुनः हुल करने की,अपने अन्तर आत्मा में हुल करने की और पूछने का की हमने अपने समाज और देश को क्या दिया ? हम सभी को पुनः हुल करना है अशिक्षा के विरुध,हम सभी को पुनः हुल करना है अपने अधिकारियों को लेने के लिए । इस हुल के हथियार होगे शिक्षा और एकता । जिस दिन ऐसा होने लगेगा तो समझिये संताल हुल का मनाना सार्थक होगा तभी जा कर सिदो-कन्हू, फूलो-झानो, चाँद-भाइरो और उन असंख्या शहीदो का सपना पूरा होगा जिन्होंने देश के लिए प्राण हँसते-हँसते बलिदान कर दिए ।
आइये हम सभी मिलकर वचन ले की सिदो-कान्हू,फूलो-झानो,चाँद-भाइरो के सपनो को पूरा करने का और हुल दिवस मनाने को सार्थक करने का । आप जहाँ कही भी हो जरुरत है हुल करने का तभी देश की दशा और दिशा बदलेगी तभी देश के अच्छे दिन आयेगे । आप सबों को हुल जोहार और शहिदो को नमन !