झारखण्ड : 23 बैठकों के बाद भी नहीं सुलझ सके डिमना बांध विस्थापितों के मुद्दे
सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए लिए गए डिमना डैम की ज़मीन को टाटा कंपनी अपनी निजी जमीन की तरह मानती है। शहर को पीने का पानी देने वाले स्रोत क्या टाटा कंपनी के हो सकते है? फिर आखिर क्यों टाटा कंपनी को लीज पर मिली ज़मीन को कंपनी अधिकारी अपना मान बैठे हैं? विस्थापितों को मूल सुविधाओं से वंचित क्यों किया जा रहा है? इन सवालों को लेकर डिमना डैम के विस्थापितों ने 8 जुलाई 2019 को जमशेदपुर कलेक्ट्रेट के सामने एक दिन का धरना दिया।
डिमना डैम क्षेत्र में एक समुचित आंदोलन 2009 से चल रहा है। इस मामले में 23 बार त्रिपक्षीय वार्ता संपन्न हो चुकी है। यह मामला निर्णायक अवस्था में रहने के बावजूद विगत तीन वर्षों से यथावत है। विस्थापित इलाके में csr के तहत बुनियादी विकास का कार्य नहीं हो रहा है।
टाटा कंपनी के प्रबंध निदेशक और जुस्को के महाप्रबंधक के नाम से बोड़ाम थाना में आदिवासी रैयतों को प्रताड़ित करने और उनके फसल बर्बाद करने पर सनहा दर्ज किया गया है।
कलेक्टर को दिए ज्ञापन में विस्थापित आंदोलन से जुड़े संगठन के लोगो ने अपना मांग पत्र प्रस्तुत किया।
1. टाटा कंपनी द्वारा अतिक्रमित 102 एकड़ ज़मीन की क्षतिपूर्ति दी जाए।
2. डिमना बांध में अनुसूचित मौजा पूनसा के 3.84 एकड़ और लायलम के 1.99 एकड़ ज़मीन के फसल के नुक़सान की क्षतिपूर्ति दें।
3. डिमना बांध विस्थापितों को बकाया मुआवजा, नौकरी और पुनर्वास की व्यवस्था की जाए।
4. टाटा कंपनी के द्वारा विस्थापित परिवारों को डिमना के पानी के उपयोगिता मूल्य या लाभ का आधा हिस्सा दिया जाए।
5. डिमना बांध में नौका परिचालन और मछली पालन का अधिकार विस्थापितों के समूह को दिया जाए ।