नर्मदा जल के अंतहीन दोहन से बचेगी नर्मदा?
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान रामनवमी के अवसर पर चित्रकूट में घोषणा किया कि नर्मदा से जोड़कर मंदाकिनी नदी को सदानीरा बनाएंगे। ज्ञात हो कि इसके पहले नर्मदा से पानी लाकर क्षिप्रा, कालिसिंध, मालवा-गंभीर और पार्वती लिंक परियोजनाओ से पुनर्जीवित करने का कार्य जारी है। जबकि नर्मदा चंबल, नर्मदा माही, नर्मदा मांडू और नर्मदा ताप्ती योजना प्रस्तावित है। इसमें से पांच लिंक परियोजनाओ पर 20 हजार 253 करोङ रुपए खर्च होना अनुमानित है। सवाल यह उठता है कि कबतक मध्यप्रदेश में नर्मदा को ही जल संकट का एकमात्र विकल्प माना जाता रहेगा। कब तक नर्मदा पानी का दोहन करते रहेंगे। नदियों के प्राकृतिक नदी तंत्र बचाना ज्यादा जरूरी है या कहीं और से पानी लाकर ही उन्हे जीवित रखने की औपचारिकता निभानी है। कहीं ऐसा न हो कि कल को कल को नर्मदा की अथाह जल भंडार भी हमारी अंतहीन मांग को पुरा कर पाये।हमें अपने संसाधनों के बेहतर उपयोग और विकल्प पर विचार करना चाहिए।
नर्मदा नदी के किनारे बसे 30 बङे शहरों एवं कस्बों और हजारों गांव को पेयजल व्यवस्था की जिम्मेदारी नर्मदा की है।नर्मदा से दूर इंदौर को 110 एमएलडी पानी दिया जा रहा है। भोपाल को 185 एमएलडी और देवास को 23 एमएलडी पानी नर्मदा से पहुंचाने का कार्य चल रहा है। नर्मदा नदी से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर 22 हजार 460 मेगावाट की 18 थर्मल पावर प्लांट प्रस्तावित है।जिसमें से 6 हजार 900 मेगावाट क्षमता वाली थर्मल पावर प्लांट शुरू हो चुका है। जानकार बताते हैं कि एक मेगावाट बिजली उत्पादन हेतु प्रति घंटा लगभग 3 हजार 238 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि नर्मदा से कितने मात्रा में पानी का दोहन होगा।इसी नर्मदा नदी पर बने बरगी बांध के जलग्रहण क्षेत्र में 1400 मेगावाट की प्रस्तावित परमाणु बिजलीघर के लिए 7 करोङ 80 लाख 40 हजार घनमीटर पानी प्रति वर्ष लगेगा। वर्तमान में नर्मदा घाटी की विभिन्न परियोजनाओ से अबतक लगभग 6 लाख 37 हजार हेक्टेयर में सिंचाई व्यवस्था निर्मित किया जा चुका है और लगभग 20 लाख 50 हजार हेक्टेयर सिंचाई क्षमता की 37 परियोजना निर्माणाधीन है।
नर्मदा की कुल 41 सहायक नदियां है। इस सहायक नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र में जंगलों की बेतहाशा कटाई के चलते ये नदियां नर्मदा में मिलने की बजाए बीच रास्ते में ही दम तोङ रही है। केंद्रीय जल आयोग द्वारा गरूडेश्वर स्टेशन से जुटाए गये वार्षिक जल प्रवाह के आंकङो से नर्मदा में पानी की कमी के संकेत मिलते हैं। मुख्यमंत्री बरगी बांध के दायीं तट नहर से मंदाकिनी को जोङने की बात कही है। परन्तु सच्चाई यह है कि बरगी बांध के बने 32 साल बाद भी सतना और रीवा के 855 गांव में एक बुंद नर्मदा का पानी नहीं पहुंचा है,क्योंकि दायीं तट नहर का निर्माण ही नहीं हुआ है। दूसरी ओर नर्मदा समीप बरगी – चरगांव (जबलपुर) और बरगी बांध से प्रभावित क्षेत्र बीजाडांडी और नारायणगंज जिला मंडला के आदिवासी किसान सिंचाई की मांग को लेकर रैली, मोर्चा, धरना देकर संघर्ष कर रहे हैं। क्या महाकौशल क्षेत्र के आदिवासी मुख्यमंत्री के प्राथमिकता में नहीं है?