पेंच बांध : 30 गाँव पानी में डूबेंगे; जिला प्रशासन ने धारा 144 से कसा शिकंजा
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा पेंच व्यपवर्तन परियोजना के अंतर्गत माचागोरा बांध में 15 जून के बाद बारिश का पानी एकत्र होना शुरू हो जाएगा, लेकिन अब तक प्रभावित गांवों के लोगों ने विस्थापन स्थल पर रहना शुरू नहीं किया है। पानी भराव के बाद जब ये गांव डूब में आ जाएंगे, तब तनाव बढऩा शुरू हो जाएगा। यह प्रतिवेदन पुलिस अधीक्षक जीके पाठक ने कलेक्टर जेके जैन को 3 जून को भेजा। इसके बाद कलेक्टर ने तहसील छिंदवाड़ा, अमरवाड़ा और चौरई के अंतर्गत आनेवाले गांवों में 4 जून से धारा 144 लागू कर दी है।
इन गांवों में ग्राम देवर्धा, बिल्वा,जम्होड़ी पंडा, खैरीलड्डू, ककई, काराघाट, नेर, जमुनिया, नगझिर, राजाखोह, चन्हियाकला, जटलापुर, भुतेरा, हिवरखेडी, मडवाढाना, मोहगांव, केवलारी, मोआर, देवरीकला, कलकोटी, सिहोरा, बाम्हनवाड़ा, धनोरा, बारहबरियारी, भूला, करबे पिपरिया, माचागोरा, महेन्द्रवाड़ा, खकराचौरई और बान्द्रा ढाना शामिल है। इस आदेश के बाद प्रतिबंधित क्षेत्र में कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार के घातक अस्त्र/शस्त्र जैसे चाकू, लोहे की छड़, लाठी, तलवार, भाला, बरछी, फरसा, गंडासा, पत्थर आदि का प्रदर्शन व उपयोग नहीं कर सकेगा एवं न ही घातक हथियार को अपने आधिपत्य में रख सकेगा।
पुलिस अधीक्षक ने अपने प्रतिवेदन में बताया कि ग्राम माचागोरा में 15 जून तक बांध और गेट निर्माण का कार्य पूर्ण किया जाना है। इसी माह वर्षा प्रारंभ होने से बांध में पानी का भराव होगा। इससे विकासखंड छिंदवाड़ा, अमरवाड़ा और चौरई के 30 ग्रामों के बांध के पानी में डूबने की सम्भावना है। डूब क्षेत्र में आने वाले ग्रामों के किसानो और ग्रामवासियों से अन्यत्र स्थानों पर विस्थापन के लिये अपील की जा रही है लेकिन किसान और ग्रामवासी अन्यत्र स्थानों पर जाने से इंकार कर रहे है। ऐसी स्थिति में भविष्य में कानून व्यवस्था की स्थिति निर्मित होने की पूर्ण सम्भावना है।
ज्ञात रहे कि छिंडवाड़ा जिले में पेंच नदी पर 41 मीटर का बड़ा बांध केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ जी के चुनाव क्षेत्र में राज्य और केन्द्र शासन मिलकर बिना मंजूरी के बना रहे हैं। इसके खिलाफ संघर्ष सीमा पार पहुंचा है। इस परियोजना के क्षेत्र के 31 गांव डूब क्षेत्र में आ रहे हैं, लगभग 5600 हेक्टेयर भूमि जो कि किसानों की है इसमें से अधिकांश किसानों की भूमिअर्जन का कार्य पूरा नहीं हुआ है। बांध को 1984 में पर्यावरण विभाग था मंत्रालय नहीं था उस समय दी गई एक सादे कागज की मंजूरी थी अब आवेदन पत्र श्री मुदगल पर्यावरण एवं वनविभाग से केन्द्रीय जल आयोग को एवं पर्यावरण निर्धारण कमेटी को अनापत्ति जताने वाला फैसला उपलब्ध है जो कि 21 अप्रैल 1984 को आया था। उक्त एक पन्ने की मंजूरी अब निरस्त मानी गई है। इस महत्वपूर्ण विषय पर बांध निर्माण के लिए कानूनन मंजूरी लेना अत्यंत आवश्यक हो गया है। इस आशय की जानकारी देते हुए नर्मद बचाओ आंदोलन की नेत्री एवं जनआंदोलनों के राष्ट्रीय समनवय की सदस्य सुश्री मेधा पाटकर ने सत्याग्रह स्थल से कहा कि पर्यावरण सुरक्षा कानून 1996 और वन सुरक्षा कानून 1980 से मंजूरी नहीं ली गई। इस आशय की जानकारी स्वयं श्रीमती जयंति नटराजन केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री ने हमारे समक्ष दी है। वन भूमि के लिए भी मंजूरी नहीं ली गई यह जानकारी है। 1984 के बाद दिया गया किसानों को मात्र 30 से 40 हजार रुपये का मुआवजा केवल धोखाधड़ी थी और आंदोलन के चलते मुआवजा का पैकेज 1 लाख रुपये प्रति एकड़ का घोषित हुआ पर 90 प्रतिशत से अधिक किसानों ने विस्थापन को स्वीकार नहीं किया।