संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

विरोध के बीच केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट मंजूर

जुड़ती नदियाँ, बिखरता जीवन: केन-बेतवा नदीजोड़ परियोजना और आदिवासी विस्थापन

देश की तीस चुनिन्दा नदियों को जोड़ने वाली राष्ट्रीय परियोजना में से एक है केन – बेतवा नदी गठजोड़ परिजोना । इस लिंक हास्यास्पद पहलु ये है कि ग्रेटर गंगऊ बांध बन जाने के बाद दो बड़े बांध धसान नदी, माताटीला जल विहीन होंगे । रनगँवा बांध एक डूब क्षेत्र का बांध है इसमे बारिश का जल ठहरने से यह बांध की स्थति में है इसका क्षेत्रफल बड़े दायरे में विस्तार लिए है वही दौधन बांध को केन में तटबंध बनाकर रोका गया है जिसे गंगऊ बैराज कहते है ।

गंगऊ बैराज के अपस्ट्रीम से 2.5 किलोमीटर दूर दौधन गाँव में केन नदी पर ही 173.2 मीटर ऊँचा ग्रेटर गंगऊ बांध बनाया जाना है . यानि 24 किलोमीटर के दायरे में तीन बड़े बांध केन को घेरेंगे । इससे धसान नदी में पानी कम हो जायेगा जिसका असर माताटीला डैम पर पड़ेगा और अगर ऐसा हुआ तो केन बेतवा में पानी देने काबिल ही नही बचेगी।
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‘वाइल्ड लाइफ’ बोर्ड की बैठक 22 सितम्बर 2015 को भोपाल में हुई जिसमें जबरन केन बेतवा नदी जोड़ परियोजना को मंजूर दी गई जोकि सरासर धोखेबाजी है। ‘वाइल्ड लाइफ’ बोर्ड, वन्य प्राणियों के संरक्षण पर निर्णय लेने के लिए बना है, लेकिन इसका उपयोग परियोजनाओं को मंजूर करने के लिए किया जा रहा है।” ये आरोप 22 सितम्बर को मंत्रालय में हुई वन्य प्राणी बोर्ड की बैठक में सदस्य व वन्यजीव प्रेमी रणजीत सिंह ने लगाए। बैठक में अध्यक्षता कर रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस पर कहा कि आप पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर आए हैं। हमें एकतरफा फैसला करना होता तो हम इसे बोर्ड की पहली बैठक में मंजूर करा लेते।

बैठक में अन्य सदस्यों का विरोध देखते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि सब लोग अपना मत रख चुके हैं। मैं अब बोर्ड का प्रस्ताव पढ़कर सुना रहा हूं कि हमने केन बेतवा प्रथम चरण की परियोजना पर सहमति एवं अनुमति लेने के लिए राष्ट्रीय वन्यप्राणी बोर्ड को भेजने का निर्णय लिया है। बोर्ड की सदस्य बेलिंडा राइट ने कहा कि पन्नाे टाइगर रिजर्व पार्क के डूब में 13 लाख वृक्ष खराब होना बताया जा रहा है। इतनी जल्दी गिनती कर लेना आश्चर्यजनक है। इस पर पूर्व पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) एचएस पाबला बोले कि बोर्ड को पहले प्राथमिकता तय करना होगी।

हमारा मुख्य उद्देश्य वन्य प्राणियों के संरक्षण का होना चाहिए न कि प्रोजेक्ट मंजूरी का। उन्होंने कहा कि विकास भी जरूरी है, लेकिन इसे वन्य प्राणी की कीमत पर करना गलत है। रणजीत सिंह ने कहा कि इस प्रोजेक्ट से पन्ना नेशनल पार्क की 4500 हेक्टेयर जमीन डूब में चली जाएगी। गंगऊ बांध के कारण पहले से ही पार्क की 1000 हेक्टेयर जमीन डूब चुकी है। आने वाले समय में पार्क के वन्य प्राणी धीरे-धीरे कम हो जाएंगे। बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया के संयुक्त संचालक जीपी सिन्हा ने चिंता जताई कि बांध बनने से नदी की धार कम होगी, इससे घड़ियाल अभयारण्य को भी नुकसान पहुंचेगा।

ज्ञात रहे कि पन्ना टाईगर रिजर्व के सैटेलाईट कोर एरिया के दायरे में अब मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में स्थित चार अभ्यारण्यों (सेन्चुरीज) को भी शामिल किया जाएगा। नौरादेही  सेन्च्युरीज,  रानी दुर्गावती  ये दमोह,  सागर और नरसिंहपुर जिले में है और रानीपुर व महाबीर स्वामी वन्य जीव अभ्यारण उत्तर प्रदेश में है और इसके साथ ही है पन्ना टाईगर रिजर्व, इनमें  तीन नये बफर जोन भी विकसित किए जायेगे जिनका कुल क्षेत्रफल 8,000 हैक्टेयर होगा और इनमें चंद्रनगर, अमानगंज और किशनगढ़ के गांवों के विस्थापन का खतरा बढ़ गया है ।

केन-बेतवा लिंक परियोजना के कारण पन्ना टाईगर रिजर्व का कुल 10.07 प्रतिशत हिस्सा या 58.03 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल डूब क्षेत्र में चला जाएगा । वहीं इन प्रस्तावित तीन नए बफर जोन से करीब 31.97 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल और जुड़ जाने से लगभग 90 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल डूब क्षेत्र में आ जाएगा । ऐसा माना जा रहा है कि इन तीन नए बफर जोन के बन जाने से टाईगर को आवाजाही के लिये बहुत बड़ा जंगल मिल जायेगा । ऐसा कहा जा रहा है कि केन-बेतवा लिंक परियोजना से बुन्देलखण्ड की लगभग 5,75,000 हैक्टेयर जमीन पर सिंचाई की सुविधा होगी और करीब 13 लाख लोगों के लिए पेयजल की व्यवस्था सुनिश्चित होगी । हांलाकि अगर इस तरह की परियोजनाओं का इतिहास देखें तो इनका लाभ केवल उद्योगों को ही दिया गया है, और अब जबकि पूरी अर्थव्यवस्था बाहरी निवेश पर आधारित हो गई है तो ऐसे में यह भरोसा करना मुश्किल है। चंद्रनगर, अमानगंज और किशनगढ़ के निवासियों को इस बावत कोई जानकारी भी नहीं है ।

सवाल यह भी है कि अगर बुन्देलखण्ड के विकास की बात हो रही है तो क्या इसमें से छतरपुर, पन्ना, दमोह, सागर और नरसिंहपुर जैसे जिलों को समझ-बूझ कर छोड़ दिया जा रहा है
साभार: नई दुनिया

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