संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

महाराष्ट्र : गडचिरोली में विस्थापन विरोधी संघर्ष को मजबूत बनाने का ऐलान

महाराष्ट्र के गडचिरोली जिले के सुरजागड़ पहाड़ क्षेत्र में आयोजित ठाकुर देव यात्रा और अधिकार सम्मेलन 5-6 जनवरी 2018 में “हमें खदान नहीं चाहिए” के नारे में विस्थापन विरोधी संघर्ष को मजबूत बनाने का ऐलान हुआ है;

“हमे खदान नहीं चाहिए..

खदान पहाड़ और नदियों का विनाश है, खदान संस्कृती का विनाश है, खदान जल-जंगल-जमीन का विनाश है, खदान आदिवासियों एवं अन्य समुदायों का विनाश है.”

“हमें खदान नहीं चाहिए..
खदान रोजगार और विकास नहीं पैदा करता. खदान दलित, आदिवासी, गरीब और मेहनतकश के फायदे के लिए नहीं है. बल्कि खदान, अमिर पूंजीपतियों, दलाल नेतायों, भ्रष्ट अधिकारियों के मुनाफे और फायदे के लिए है ..खदान लुट के लिए है.”

सुरजागड़ पहाड़ क्षेत्र में आयोजित ठाकुर देव यात्रा और अधिकार सम्मेलन में “हमें खदान नहीं चाहिए” के नारे में विस्थापन विरोधी संघर्ष को मजबूत बनाने का हुआ ऐलान.

  1. सुरजागड़ में लोयड्स मेटल द्वारा जबरन शुरू की गयी खदान तुरंत बंद की जाये.
  2. सुरजागड़ में प्रस्तावित गोपानी कंपनी, दमकोंडवाही में प्रस्तावित जे.एस.डब्लू. कंपनी, और झेंडेपार में प्रस्तावित खनन प्रस्ताव तुरंत रद्द किये जाये.
  3. क्षेत्र में शाश्वत रोजगार निर्माण के लिए लघु वन उपजों पर आधारित ग्रामसभाओं के अधिकारों में लघु उद्दोग निर्मित किये जायें।
  4. महाराष्ट्र के राज्यपाल द्वारा १५ नवंबर २०१७ को पेसा क्षेत्र में भूमिअधिग्रहण को लेकर जारी की गयी अधिसूचना तुरंत रद्द की जाये.
  5. पेसा एवं वन अधिकार कानून का प्रभावी अमल किया जाये और ग्रामसभयों की सार्वभौमता को मानी किया जाये.
  6. जनविरोधी खनन नीतियों का जनतांत्रिक तरीकों से विरोध कर रहे स्थानिक जनता, आन्दोलन कर्मियों पर पुलिसी दमन तो तुरंत रोका जाये, मारपीट-फर्जी मुकदमे लगाना तुरंत बंद किया जाये, आदिवासी क्षेत्र में बढ़ता सैनिकीकरण रोक दिया जाये.

आदि मुद्दों पर पारित किये गए प्रस्ताव.

सुरजागड़, एटापल्ली (जिला: गडचीरोली):

जल-जंगल-जमीन, पहाड, नदी-नाले ये ही हमारी असली संपदा है, इन्ही नदी-पहाड़ो में हमारे भगवान है, हमारे श्रद्धास्थल है. वन संसाधनों पर आधारित रोजगार और देवी-देवतायों के सहवास के वजह से ही यहाँ की संस्कृती और आदिवासींयों की संपन्नता टिकी हुई है. विकास के नाम पर पुरे गडचिरोली जिल्हे में अगर खदाने होती है तो भारी मात्रा में वनसंपदा नष्ट हो जाएगी. स्थानिक आदिवासी एवं अन्य समुदायों को विस्थापन की मार झेलनी पड़ेगी. इसीलिये गडचिरोली जिले में शुरू की गयी और प्रस्तावित सभी खदानों को तुरंत रद्द किया जाये ये ऐलान गडचिरोली जिल्हे के एटापल्ली तहसील में सुरजागड़ पहाड़ क्षेत्र में आयोजित “ठाकुर देव यात्रा, सुरजागड़ वार्षिक महोत्सव एवं अधिकार सम्मेलन” में किया गया. विस्थापन एवं जनविरोधी विकास नीतियों के खिलाफ जनतांत्रिक संघर्ष को और भी मजबुत बनाने का हुआ आगाज. संस्कृती की रक्षा के लिए, जल-जंगल-जमीन,संसाधनों पे अधिकार के लिए, जन केन्द्रित विकास के निर्माण के लिए, मुक्ति के संघर्ष को आगे ले जाने का संकल्प हजारों की तादात में जमा हुयी जनता द्वारा लिया गया.


गडचिरोली जिल्हे के एटापल्ली तहसील के सुरजागड़ क्षेत्र में सुरजागड़ की पहाड़िया स्थानिक आदिवासी एवं अन्य समुदायों के लिए महत्वपूर्ण पूजा स्थल है. इन्ह पहाडियों में मुख्य पहाड़ पर इस क्षेत्र के प्रमुख ‘ठाकुर देव’ का पूजा स्थल और अन्य प्राकृतिक पूजा स्थल है. कितने शताब्दीयों से स्थानिक आदिवासी एवं अन्य समुदाय यहाँ पर हर साल पूजा के लिए सम्मलित होते है. इस सुरजागड़ पहाड़ का यहाँ के स्थानिक समुदायों के परंपरा, संस्कृती, धार्मिक रचना में महत्वपूर्ण स्थान है. साथ ही १८५७ के अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष के गडचिरोली क्षेत्र के महान शहीद वीर बाबुराव शेडमाके के गढ़ के रूप में ‘सुरजागड़’ पहाड़ की ऐतिहासिक पहचान है. उस समय के ऐतिहासिक अवशेष आज भी इस पहाड़ पर उपलब्ध है जो वीर शाहिद बाबुराव शेडमाके के क्रांतिकारी इतिहास को आज भी बया करते है. लोगो के अस्तित्व का इस पहाड़ के अस्तित का सीधा संबंध है. पर अब इस पहाड़ का ही अस्तित्व ख़तम करने के लिए सरकार प्रयास कर रही है.
जनविरोधी खनन प्रयासों और हिंसक विकास प्रक्रिया का पुरजोर विरोध कर रहे स्थानिक जनता के तरफ से सुरजागड़ पारंपरिक इलाखा गोटुल समिती, एटापल्ली तहसील के सभी ग्रामसभायों और जिल्हे के अन्य क्षेत्रों के सहयोग से हर साल के तरह इस साल भी “ठाकुर देव यात्रा, सुरजागड वार्षिक उत्सव एवं अधिकार सम्मेलन” का आयोजन 5 से 8 जनवरी 2018 को किया गया था. चार दिनों तक चली इस ऐतिहासिक संघर्षमयी यात्रा और सम्मलेन में सुरजागड़ क्षेत्र के 70 गावों के साथ-साथ गडचिरोली जिल्हे के कोरची, कुरखेडा, धानोरा, एटापल्ली,भामरागड, चामोर्शी, मुलचेरा, अहेरी, सिरोंचा यादी तहसील के विभिन्न इलाकों से लोग सम्मलित हुए. इस यात्रा एवं सम्मलेन में स्थानिक जनता के साथ-साथ अन्य जगहों के जन संगठनो, राजनैतिक दल, बुध्दिजीवी, संशोधक सहभागी हुए.
यात्रा के पहले दिन श्याम को पारंपरिक पूजा द्वारा शुरुवात की गयी. रात्रि में पारंपरिक नृत्य, सांकृतिक कार्यक्रम चले. दुसरे दिन 6 जनवरी 2018 को ‘जल-जंगल-जमीन और संसाधनों पे अधिकार, विस्थापन के सवाल’ पर मुख्य चर्चा एवं जनसभा का आयोजन किया गया. जिसमे स्थानिक जनता के साथ-साथ विस्थापन विरोधी आन्दोलन कर्मियों, राजनैतिक दलों ने अपनी भूमिका रखी. सुरजागड़ एवं अन्य जगहों पर खदाने आवंटित करते वक्त पेसा और वन अधिकार कानूनों का उलंघन किया गया है. ग्रामसभायों के अधिकारों को नकारते हुए ये खदाने आवंटित किये गए. निजी कंपनियों को मुनाफा कमाने के लिए स्थानिक जनता के संसाधन कौड़ियो के दाम पर बेचे जा रहे है. आदिवासियों के पूजा स्थल, पवित्र पहाड़ नष्ट किये जा रहे है. इसी कारण सुरजागड़ खदान के साथ-साथ गडचिरोली में प्रस्तावित सभी खदाने तुरंत रद्द किये जाये और सभी एम्.ओ.यु. निरस्त किये जाये ये भूमिका चर्चा में प्रमुखतासे रखी गयी. सभा में सुरजागड़ क्षेत्र के भूमिया और प्रमुख गायतायों ने अपनी भूमिका रखी. कोरची में झेंडेपार क्षेत्र में प्रस्तावित खनन के विरोध में जोरदार आन्दोलन चल रहा है, इस आन्दोलन क्षेत्र के प्रतिनिधि के तौर पर झेंडेपार ग्रामसभा के महारु कल्लो इन्होने कोरची में चल रहे संघर्ष की बात रखी. साथ ही उन्होंने गडचिरोली जिले में खनन के खिलाप एक व्यापक जनांदोलन खड़ा करने का आवाहन किया. जय जवान-जय किसान मंच नागपुर के अरुण वनकर, जिल्हा परिषद् सदस्य एड. लालसू नोगोटी, सुरजागड़ इलाका समिति के प्रतिनिधि एवं जिल्हा परिषद् सदस्य सैनु गोटा, जिल्हा परिषद् सदस्य संजय चरडुके,  भामरागड इलाका से पंचायत समिति सभापति सुखराम मडावी, पंचायत समिति सदस्य शिला गोटा, सुरजगड़ ग्रामपंचायत प्रमुख कल्पना आलाम, भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के जिला सह-सचिव कॉ. अमोल मारकवार, अलापल्ली से आये राहुल मेश्राम, पेरिमिली इलाका से बालाजी गावडे, सुरेन्द्र हिचामी, झोडे यादी वक्तायो ने अपनी बात रखते वक्त आदिवासी क्षेत्र की संस्कृती, पारंपरिक व्यवस्था की रक्षा के लिए, जल-जंगल-जमीन और संसाधनों की रक्षा कर स्थानिक संसाधनों पर आधारित रोजगार निर्माण हेतु गडचिरोली जिल्हे में शुरू की गयी और प्रस्तावित सभी जन विरोधी खदाने तुरंत रद्द किये जाये ये मांग रखी. और सरकार को आवाहन किया किआ की वोह स्थानिक जनता की मांगो को नजरंदाज न करे अन्यता आनेवाले समय में इन्ह जनविरोधी खनन के विरोध में और भी प्रखर आन्दोलन छेड़ा जायेगा.
श्याम को ग्रामसभायों द्वारा जल-जंगल-जमीन पर अधिकार के संघर्ष पर गीतों और नृत्य प्रस्तुत किये गए. तीसरे दिन’ठाकुर देव’, ‘मराई छेड़ो’, ‘भीमा पेन’ आदि प्राकृतिक पेनों की पूजा की गयी, और सुरजागड़ पहाड़ पर चढ़कर पहाड़ के चोटी पर स्थित ‘ठाकुर देव’ के मुख्य पूजा स्थल पर ठाकुर देव को बलि चढाकर पूजा की गयी. साथ में वीर बाबुराव शेडमाके के संघर्ष से जुड़े इस पहाड़ के ऐतिहासिक जगहों पर पूजा कर वीर बाबुराव शेडमाके के क्रन्तिकारी संघर्ष को याद किया गया. यात्रा के आखरी दिन सुबह पेसा-वनाधिकार और ग्रामसभा मजबूतीकरण के मुद्दों पर ग्रामसभायों की चर्चा सभा चली. फिर सुरजागड़ और अन्य क्षेत्र के सम्मलित हुए पारंपरिक प्रमुखों द्वारा सभा लेकर ठाकुर देव के सरक्षण में खदान विरोधी संघर्ष को मजबूत बनाने का ऐलान किया गया. फिर पारंपरिक आखरी पूजा द्वारा “ठाकुर देव यात्रा, सुरजागड़ वार्षिक महोत्सव एवं अधिकार सम्मलेन”का समापन किया गया.
आदिवासी एवं अन्य समुदायों की सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक प्रथा, परंपरा, बोलीभाषा, देवी-देवता, जल-जंगल-जमीन,संसाधन और वन आधारित शास्वत रोजगार और विकास के निर्मण के लिए गडचिरोली जिल्हे की सभी खदाने रद्द कर दी जाये, इस प्रमुख मांग के साथ साथ आदिवासी क्षेत्र की संस्कृती-परंपरा रक्षण, पेसा-वन अधिकार कानून का ओर प्रभावी अमल, जनता के लोकतांत्रित आन्दोलन पर पुलिसि दमन का विरोध. और अन्य मुद्दों को लेकर सभा में भूमिकाये रखी गयी और विस्थापन के खिलाफ आन्दोलन को और भी मजबूत बनाने का आवाहन किया गया.
सुरजागड़ यात्रा के दौरान आदिवासी क्षेत्र की संस्कृति, सभ्यता, जीवनशैली को प्रदर्शित करता “Humans of Gondwana”( गोंडवाना के लोग) इस ग्रुप द्वारा फोटो प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था. आदिवासी क्षेत्र की खुदकी अपनी व्यवस्था है, एक बहोत ही शाश्वत रचना है. इस रचना को, हमारी संस्कृति को विकास और रोजगार के झूठे वादों के लिए ख़तम न किया जाये इस सन्देश को दर्शाने क प्रयास इस फोटो प्रदर्शनी द्वारा किया गया.    .
सम्पूर्ण यात्रा विस्थापन के विरोध, पूंजीवादी लुट खिलाफ संघर्ष, ग्रामसभायों के अधिकारों को लेकर सामूहिक संघर्ष को मजबूत बनाने में एक ऐतिहासिक पहल के रूप में उभर कर आई.
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