नवउपनिवेशवाद का नया दौर : अफ्रीका में जमीन की लूट में भारत भी शामिल
मई 2009 में प्रकाशित इस समाचार के बाद
से अब तक काफी जमीन हड़पी जा चुकी है
|
विदेशों में भारतीय कंपनियों द्वारा पूंजी निवेश करने या उन देशों की कुछ कंपनियों का अधिग्रहण करने की प्रक्रिया को आम तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास माना जाता है और इसकी बढ़-चढ़ कर प्रशंसा की जाती है। भारतीय उद्योगपति टाटा और मित्तल ने विदेशों में अपनी धाक जमाई और इसे भी भारत की आर्थिक हैसियत का प्रतीक माना गया। लेकिन कम ही लोगों को इस बात की जानकारी है कि यहां की बहुत सारी कंपनियां किस तरह साम्राज्यवादी तौर-तरीके अपनाते हुए अफ्रीका के अनेक गरीब देशों में तेजी से वहां की जमीन पर कब्जा करती जा रही हैं और बदले में उन जमीन के बाशिंदों को विस्थापन का दर्द झेलना पड़ रहा है। पेश है अनंत राय की यह रिपोर्ट;
पिछले दिनों जर्मनी में ‘एफेक्टिव कोऑपरेशन फॉर ए ग्रीन अफ्रीका’ के जर्मनी में आयोजित पहले अधिवेशन में ओबांग मेथो ने विस्तार के साथ बताया कि किस तरह अफ्रीका के अनेक देशों और खास तौर पर उनके देश इथियोपिया की जनविरोधी और तानाशाह सरकारें पैसे के लालच में अपने ही देश की जनता के खिलापफ काम कर रही हैं और अपार प्राकृतिक संपदा से भरपूर उपजाउफ जमीनों को चीन, भारत, सउफदी अरब आदि देशों को बेचती जा रही हैं। ओबांग मेथो ने अपने भाषण में यह भी बताया कि इन विदेशी कार्पोरेट कंपनियों के खिलापफ जनता का प्रतिरोध् कितना तीव्र है और उन्हें किस तरह के दमन का सामना करना पड़ रहा है। उनके भाषणों को पढ़ते समय छत्तीसगढ़ और उड़ीसा सहित देश के अनेक हिस्सों में कार्पोरेट घरानों को दी जा रही जमीनों की परिघटना दिमाग में कौंध् जाती है… हम यहां उस लंबे भाषण का संक्षिप्त रूप प्रस्तुत कर रहे हैं।
इस काम में उन देशों की भ्रष्ट और जनविरोधी सरकारों की मदद तो मिल ही रही है, भारत सरकार भी उन्हें इसके लिए प्रोत्साहित कर रही है। इस दौड़ में भारत के साथ चीन, सउदी अरब, कुवैत, दक्षिण कोरिया और यूरोपियन यूनियन के कुछ देश भी शामिल हैं। ‘ग्रेन’ नामक अंतर्राष्ट्रीय संस्था की ओर से पिछले वर्ष जब रिक राउडेन की रिपोर्ट ‘इंडियाज रोल इन दि न्यू ग्लोबल फार्मलैंड ग्रैब’ सामने आयी तो यह देखकर हैरानी हुई कि भारत के सारे तौर-तरीके वही हैं जो पश्चिम के साम्राज्यवादी देशों द्वारा अपनाए जाते रहे हैं।
भारत में तथाकथित हरितक्रांति के बाद जो बदहाली पैदा हुई उससे निपटने का यहां की सरकार को भी यह एक अच्छा तरीका दिखायी दिया। पूर्वी अफ्रीका के विभिन्न देशों की सरकारों से 2010 में प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 80 से भी अधिक भारतीय कंपनियों ने इथियोपिया, केन्या, मडागास्कर, सेनेगल और मोजांबीक में बड़े-बड़े बागानों और पफार्मों को खरीदने अथवा लीज पर लेने में 2.4 बिलियन डॉलर का निवेश किया है। इन कंपनियों का मानना है कि अफ्रीका में खेती पर निवेश भारत के मुकाबले आधे से भी कम आता है। यहां रासायनिक खादों और कीटनाशकों की कुछ खास जरूरत नहीं पड़ती और सस्ते दर पर मजदूर भी मिल जाते हैं। खेती के काम में लगी भारतीय कंपनियों का यह भी मानना है कि बड़े पैमाने पर व्यापारिक खेती के लिए भारत में जो जमीन उपलब्ध् है वह उतनी अनुकूल नहीं है क्योंकि यह अलग-अलग टुकड़ों में बिखरी पायी जाती है। इसके अलावा निवेश में नौकरशाही की तरपफ से भी तरह-तरह की अड़चनें पैदा की जाती हैं। इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार ‘पंजाब के दोआबा क्षेत्र में जमीन के लीज की दर न्यूनतम 40 हजार रुपए प्रति एकड़ है। जबकि अधिकांश अफ्रीकी देशों में यह दर भारतीय मुद्रा में महज 700 रुपए प्रति एकड़ आती है।’
इसी तरह के अनुबंध् पत्रों के जरिए
जमीन
सहित सभी संसाधनों पर कब्जा की
इजाजत दे दी गयी
|
इन सारे विवादों के बीच इथियोपिया के कृषि और ग्रामीण विकास मंत्री ने हाल में एक सार्वजनिक बयान में घोषणा की कि जमीन की लीज से संबंध्ति 12 अनुबंध् किए गए हैं जिनमें से पांच भारतीय कंपनियों के साथ है। इन अनुबंधों में बेशक पर्यावरण की रक्षा पर जोर दिया गया है लेकिन यह नहीं स्पष्ट किया गया है कि इसका मूल्यांकन कौन करेगा। जहां तक पानी के इस्तेमाल की बात है, इन कंपनियों को इस बात का अधिकार दिया गया है कि वे अपनी सुविधा के अनुसार जहां चाहे वहां बांध् बना सकती हैं और सिंचाई व्यवस्था तैयार कर सकती हैं। करूतुरी एग्रो प्रॉडक्ट्स के साथ जो अनुबंध् किया गया है उसमें तो कंपनी को इस बात का भी अधिकार दिया गया है कि वह नदियों से सिंचाई के लिए पानी ले सकती है लेकिन इसके बदले में क्या भुगतान किया जाएगा इसका कोई उल्लेख नहीं है। इन पांचों अनुबंधों में यह भी कहा गया है कि भारतीय कंपनियों को इलाके में स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र आदि की व्यवस्था की जिम्मेदारी लेनी चाहिए लेकिन इसे जरूरी नहीं बताया गया है। यह भी नहीं स्पष्ट किया गया है कि ये सेवाएं स्थानीय आबादी के लिए है या कंपनी के मजदूरों के लिए। इन पांचों अनुबंधों में न तो न्यूनतम मजदूरी की बात है और न मजदूरों के काम करने की स्थितियों के बारे में कुछ कहा गया है। सबकुछ कंपनी की मर्जी पर छोड़ दिया गया है।
अफ्रीका तथा अन्य विकासशील देशों में भारतीय पूंजीपतियों की उपनिवेशवादी पैठ
- श्री रेणुका सुगर्स ने ब्राजील में 133000 हेक्टेयर जमीन पर मालिकाना हक प्राप्त किया।
नवंबर 2010 में भारत की सबसे बड़ी इस चीनी रिफायनरी ने चीनी बनाने वाली ब्राजील की कंपनी वीडीआई का 24 करोड़ डॉलर में अधिग्रहण किया। इस रिफायनरी के साथ उसे 18 हजार हेक्टेयर गन्ना के खेत भी मिल गए और ब्राजील की दूसरी चीनी मिल में 51 प्रतिशत का शेयर मिला जिसके एवज में इसे और 32 लाख 90 हजार डॉलर देने पड़े। इस सौदे में उसे दक्षिण पूर्व ब्राजील में 115000 हेक्टेयर की अतिरिक्त जमीन मिल गयी।
2. अमीरा ग्रुप ने कंबोडिया में 25 हजार हेक्टेयर जमीन पर कब्जा किया।
3. रुचि ग्रुप ने कंबोडिया में 10 हजार हेक्टेयर जमीन ली।
मार्च 2011 में रुचि ग्रुप नामक भारतीय कंपनी ने कुछ अखबारों को बताया कि इसने कंबोडिया सरकार के साथ एक करारनामे (एओयूद्) पर हस्ताक्षर किया है। जिसके अनुसार उसे 20 हजार हेक्टेयर जमीन पर पाम ऑयल पैदा करने का अवसर मिलेगा। कंबोडिया की यह परियोजना एक अमेरिकी परियोजना का अंग है जिसके अधीन कंबोडिया ने अमेरिका को वनस्पति तेल की सप्लाई की जिम्मेदारी ली है और इसी के लिए उसने रुचि ग्रुप के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए।
4. बायो पाम एनर्जी ने अफ्रीकी देश कैमेरून में दो लाख हेक्टेयर जमीन पर कब्जा किया।
बायो पाम एनर्जी नामक कंपनी सिंगापुर स्थित शिवा ग्रुप की एक सहयोगी कंपनी है जिसके मालिक भारतीय अरबपति सी. शिवशंकरन है। यह कंपनी पाम ऑयल का उत्पादन कर भारत को निर्यात करने के लिए अफ्रीका के ही सिएरा लियोन में 80 हजार हेक्टेयर पर भी कब्जा करने की कोशिश में है। फरवरी 2011 में बायो पाम एनर्जी ने लाइबीरिया की कंपनी इक्वेटोरियल पाम ऑयल में 50 प्रतिशत का शेयर लिया। इस कंपनी के पास 169000 हेक्टेयर जमीन थी। विदेशों में जमीन खरीदने वाली अन्य अनेक कंपनियों में भी शिवशंकरन की उल्लेखनीय हिस्सेदारी है।
5. के.एस. ऑयल्स ने पश्चिम अफ्रीकी देश गैम्बिया में 56 हजार एकड़ जमीन ली।
के.एस. ऑयल्स खाने योग्य तेल का उत्पादन करने वाली भारत की सबसे बड़ी कंपनी है। इसने 2008 में सिंगापुर स्थित अपनी सहायक कंपनी के.एस.नेचुरल रिर्सोसेज प्राइवेट लिमिटेड के जरिए खजूर के बागान लगाने का बृहत कार्यक्रम शुरू किया। अक्टूबर 2009 तक इसने कलिमान्तान और सुमात्र में 56 हजार हेक्टेयर जमीन पर कब्जा किया। के.एस.ऑयल्स के मालिकों में भारतीय अरबपति सी. शिवशंकरन भी शामिल हैं।
6. भारतीय कंपनी लैंडमॉर्क ने मडागास्कर में डेढ़ लाख हेक्टेयर जमीन ली।
2006 में लैंडमार्क ने मडागास्कर में पांच हजार से लेकर डेढ़ लाख हेक्टेयर जमीन के लिए 25 वर्ष के अनुबंध् पर समझौता किया। अक्टूबर 2010 में इस कंपनी ने अपने विशाल फार्म के बगल में पांच हजार टन की क्षमता वाला एक गोदाम बनाया जिसमें मक्के की पैदावार को रखा जाना था लेकिन फसल बर्बाद हो जाने के कारण गोदाम खाली पड़ा रहा। इस परियोजना से स्थानीय लोगों पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा है और उनके अंदर जबर्दस्त असंतोष है।
7. भारत सरकार ने पश्चिम अफ्रीकी देश सेनेगल में डेढ़ लाख हेक्टेयर पर खेती की योजना बनायी।
मई 2011 में ब्लूमबर्ग एजेंसी ने खबर दी कि भारत अफ्रीकी देश सेनेगल में चावल, मक्का, मुंगपफली, कपास और कुछ खाद्यान्न पैदा करने के लिए सेनेगल सरकार से समझौता कर रहा है जिसके तहत उसे डेढ़ लाख हेक्टेयर जमीन पर खेती की सुविध मिलेगी।
8. बायोपाम एनर्जी ने सेनेगल में 80 हजार हेक्टेयर जमीन पर कब्जा किया।
सिंगापुर स्थित शिवा गु्रप की एक सहायक कंपनी बायोपाम एनर्जी न केवल सेनेगल में बल्कि सिएरा लियोन, घाना, अर्जेंटीना, आइवरी कोस्ट और कांगो में बड़े पैमाने पर जमीन ले रहा है ताकि वह वहां खाना पकाने के काम आने वाले तेल का उत्पादन करे और भारत को निर्यात करे। इस कंपनी के मालिक भी भारतीय उद्योगपति सी.शिवशंकरन हैं।
9. करुतुरी ग्लोबल लिमिटेड ने तंजानिया में 311700 हेक्टेयर जमीन पर कब्जा किया।
बंगलोर स्थित इस कंपनी ने दुबई में पंजीकृत अपनी एक अन्य कंपनी करुतुरी ओवरसीज के माध्यम से अफ्रीका के कई देशों में कृषि उत्पादों को तैयार करने के लिए बड़े पैमाने पर जमीन पर कब्जा किया। इसने इथियोपिया और तंजानिया के अलावा जिबुती में भी कापफी जमीन हासिल किया।
10. यस बैंक ने तंजानिया में 50 हजार हेक्टेयर जमीन लेने की पेशकश की।
रायटर के एक समाचार के अनुसार जून 2009 में भारतीय कंपनी यस बैंक ने अफ्रीका के कुछ देशों में अनाज पैदा करने की योजना बनायी और इस योजना के तहत उसने तंजानिया में तकरीबन 50 हजार हेक्टेयर जमीन पर कब्जे की प्रक्रिया शुरू कर दी। यस बैंक ने मोजाम्बिक मलावी, मडागास्कर, अंगोला और नामीबिया में भी इसी तरह की परियोजना शुरू करने की योजना बनायी है।
11. मेहता ग्र्रुप ने उगांडा में 14600 हेक्टेयर जमीन पर कब्जा किया।
भारतीय कंपनी मेहता ग्रुप ने गन्ने के उत्पादन के लिए सबसे पहले उगांडा के मबीरा फारेस्ट में जमीन ली लेकिन वहां के निवासियों द्वारा जबर्दस्त विरोध् के कारण उसे यह जमीन छोड़नी पड़ी। बाद में इसने रकाई इलाके में एक बंद पड़ी चीनी मिल और उसकी जमीन को खरीद लिया।
12. नेहा इंटरनेशनल ने जाम्बिया में एक लाख हेक्टेयर जमीन पर कब्जा किया।
नेहा इंटरनेशनल का मुख्यालय हैदराबाद में है और इसके संस्थापक जी.विनोद रेड्डी हैं। इनका फूलों का कारोबार है। सन 2000 के दशक में इसने अपना कार्य क्षेत्रा अफ्रीका तक बढ़ाया और वहां कृषि उत्पादन का काम शुरू किया। जून 2010 में इसने सबसे पहले कृषि उत्पादन के लिए इथियोपिया में चार हजार हेक्टेयर जमीन ली। फिर दिसंबर 2010 में इसने जाम्बिया डेवलपमेंट एजेंसी के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर किया जिसके अनुसार जाम्बिया में खेती के लिए इसे एक लाख हेक्टेयर जमीन दे दी गयी। कंपनी की योजना अफ्रीका के कुछ और देशों में इसी तरह जमीन लेने की है।
13. अलमिध नामक कंपनी ने अफ्रीका के इथियोपिया में 28 हजार हेक्टेयर जमीन पर कब्जा किया।
ऑकलैंड इंस्टीट्यूट की खबरों के मुताबिक भारतीय कंपनी अलमिध को इथियोपिया के ओरोमिया क्षेत्र में गन्ने का उत्पादन करने के लिए 28 हजार हेक्टेयर जमीन के लीज अध्किार दिए गए।
14. बीएचओ बायो प्रोडक्ट्स को इथियोपिया में 25 हजार हेक्टेयर जमीन मिली।
मई 2010 में बीएचओ बायो प्रोडक्ट्स नामक कंपनी ने इथियोपिया सरकार के साथ एक समझौता किया जिसके अनुसार उसे इथियोपिया के गैम्बेला क्षेत्र में 25 हजार हेक्टेयर जमीन 25 साल के लीज पर-जिसका नवीकरण किया जा सकता है-प्रदान की गयी और कहा गया कि यहां वह दाल तथा तिलहन की खेती करे।
15. चढ्ढा एग्रो ने इथियोपिया में एक लाख हेक्टेयर जमीन का प्रस्ताव रखा।
भारतीय कंपनी चढ्ढा एग्रो ने इथियोपिया के कृषि मंत्रालय से अनुरोध् किया कि उसे गन्ने के उत्पादन के लिए एक लाख हेक्टेयर जमीन प्रदान की जाए। उसे गुजी क्षेत्र में फौरन 22 हजार हेक्टेयर जमीन दे दी गयी और साथ में वायदा किया गया कि जैसे ही इस जमीन पर वह उत्पादन शुरू करेंगे उन्हें 78 हजार हेक्टेयर जमीन और प्राप्त हो जाएगी।
16. कॉनफेडरेशन ऑफ पोटैटो सीड फारमर्स नामक संगठन ने इथियोपिया में 50 हजार हेक्टेयर जमीन लेने का प्रस्ताव रखा।
फरवरी 2011 में ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ ने खबर दी कि पंजाब के कुछ किसानों ने जो कॉनफेडरेशन ऑफ पोटैटो सीड फारमर्स के सदस्य हैं उन्होंने इथियोपिया के ओरोमिया, गैम्बेला आदि इलाकों में 2000 से 5000 हेक्टेयर तक जमीन की शिनाख्त की है जिसे वे लेना चाहते हैं। इन जमीनों की लेने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है और जल्दी ही 50 हजार हेक्टेयर पर इनका स्वामित्व स्थापित हो गया।
17. बंगलोर स्थित करुतुरी ग्लोबल लिमिटेड ने इथियोपिया में 311000 हेक्टेयर जमीन पर कब्जा किया।
साई राम कृष्ण करुतुरी द्वारा स्थापित यह कंपनी कट फ्रलावर्स का उत्पादन करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है। 2008 में इस कंपनी ने दुबई की अपनी एक सहायक कंपनी करुतुरी ओवरसीज के माध्यम से अफ्रीका में कृषि उत्पादन के लिए पूंजी निवेश शुरू किया। सबसे पहले इसने इथियोपिया के ओरोमिया क्षेत्र में 11000 हेक्टेयर जमीन पर एक दीर्घकालीन लीज के तहत कब्जा किया। धीरे-धीरे उसके पास 3 लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन हो गयी। इसने तेल और चीनी के अलावा चावल का उत्पादन भी शुरू कर दिया और कुछ अन्य अफ्रीकी देशों को चावल निर्यात करने का समझौता भी किया। इथियोपिया के अलावा तंजानिया और सूडान में भी खेतिहर भूमि पर इसकी कब्जा करने की योजना है।
18. नेहा इंटरनेशनल ने इथियोपिया में 4000 हेक्टेयर जमीन पर कब्जा किया।
नेहा इंटरनेशनल हैदराबाद स्थित कंपनी है जिसके संस्थापक जी.विनोद रेड्डी हैं और यह भी कट फ्रलावर्स का उत्पादन करने वाली एक प्रमुख कंपनी है। इसने 2000 के दशक में अफ्रीकी देशों में अपने काम का विस्तार किया और जून 2010 में इसने जानकारी दी कि कृषि उत्पादन के मकसद से इथियोपिया में इसने 4000 हेक्टेयर जमीन खरीदी है। दिसंबर 2010 में इसने बताया कि जाम्बिया डेवलपमेंट एजेंसी के साथ इसने एक करारनामे पर हस्ताक्षर किया है जिसके तहत जल्दी ही जाम्बिया में एक लाख हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण हो जाएगा।
19. राष्ट्रीय किसान संगठन ने इथियोपिया में 5000 हेक्टेयर जमीन ली।
राष्ट्रीय किसान संगठन भारत के व्यावसायिक खेती करने वालों का एक संगठन है जिसका मुख्यालय नयी दिल्ली में है। 2011 में इसने जानकारी दी कि इसके कुछ सदस्यों ने इथियोपिया में जमीन खरीदी है।
20. रोमटोन एग्री पीएलसी नामक कंपनी ने इथियोपिया में जमीन ली।
ऑकलैंड इंस्टीट्यूट की एक खबर के अनुसार भारतीय कंपनी रोमटोन एग्री ने इथियोपिया के ओरोमिया राज्य में टमाटर पैदा करने के लिए 10000 हेक्टेयर जमीन लीज पर हासिल की है।
21. रुचि ग्रुप की सहायक कंपनी रुचि सोया ने इथियोपिया में 50000 हेक्टेयर जमीन ली।
अप्रैल 2010 में वनस्पति तेल पैदा करने वाली प्रमुख भारतीय कंपनी रुचि सोया ने इथियोपिया सरकार के साथ एक अनुबंध् किया जिसके तहत उसे सोयाबीन पैदा करने के लिए 25000 हेक्टेयर जमीन प्रदान की गयी। इस अनुबंध् में इस बात की व्यवस्था है कि वह जब चाहे करारनामे में उल्लिखित जमीन से दुगुनी जमीन यानी 50000 हेक्टेयर पर कब्जा कर सकती है।
22. सन्नति एग्रो फार्म इंटरप्राइज ने इथियोपिया में 10000 हेक्टेयर जमीन ली।
अक्टूबर 2010 में खास तौर पर अमेरिका को चावल का निर्यात करने के लिए इस भारतीय कंपनी ने इथियोपिया की सरकार के साथ एक करारनामे के तहत 10000 हेक्टेयर जमीन लीज पर प्राप्त किया।
23. सपूरजी पालोनजी ऐंड कंपनी ने इथियोपिया में 50 हजार हेक्टेयर जमीन ली।
मार्च 2011 में भारत की एस ऐंड पी कंपनी ने इथियोपिया सरकार के साथ एक समझौता किया जिसके अंतर्गत खाद्यान्न और कृषि ईंधन के लिए पांगेमिया पफल के पैदावार के मकसद से 50 हजार हेक्टेयर जमीन इस कंपनी को दी गयी।
24. जालंधर आलू उत्पादक संघ ने इथियोपिया में एक लाख हेक्टेयर जमीन पर कब्जा किया।
जुलाई 2010 में सिख संगत न्यूज ने एक खबर दी कि जालंधर के पोटाटो ग्रोवर्स एसोसिएशन का एक प्रतिनिधिमडल इथियोपिया की यात्र पर गया और उसने वहां के गैम्बेला और टिग्रे क्षेत्र में एक लाख हेक्टेयर जमीन लेने के बारे में बातचीत की। यह एसोसिएशन यहां कपास, मक्का, धन, आलू, गेहूं और कई तरह के दाल की खेती करेगा।