कारपोरेट लूट- पुलिसिया दमन विरोधी लोक संघर्ष यात्रा : ‘विकास’ ने लिला पति, सुगिया के द्वारा सुदर्शन की खोज जारी
लोक संघर्ष यात्रा के तीसरे दिन की रवि शेखर की संक्षेप रिपोर्ट;
यात्रा के तीसरे दिन 28 दिसम्बर को प्रथम पड़ाव हर्रहवा ग्राम पंचायत भवन बना, जहा पहले से लोग यात्रियों का इन्तजा़र कर रहे थे। ग्राम पंचायत स्तर पर सभी लोगों ने विस्तार से बात की और बताया की रिलायंस के इस 3960 मेगावाट बिजली संयंत्र किस कदर गांव और आस पास के जान माल का नुकसान किया है। आज कि बैठक में यह तय किया गया कि पंचायत स्तर पर एक समिति बनाकर गांव के लोग प्रतिरोध करें और यात्रा में शामिल संगठनों के लोग उनका सहयोग करें।
स्थानीय श्री जीतलाल ने बताया कि रिलायंस के अधिकारीगण अक्सर गांव मे आकर हमें जल्द से जल्द गांव छोड़ देने के लिए दबाव बनाते हैं। उन्होंने कहा कि जब उनसे पूनर्वास के बावत् पुछा जाता है तो वे कहते हैं कि जाकर शिवराज सिंह चोहान से बात करो उसके ही कहने से कंपनी यहं आई है। उनकी मनमानियों का उदाहरण देते हुए पंचायत भवन पर एकत्र हुए लोगों ने उत्पीड़न के एैसे एैसे वाकए गिनाए जिससे कि शहरों में सुने जाने वाले विकास के जुमले की हकीकत पता चलती है।
वालों ने एैसे घर दिखाए जिन्हें बिना किसी पुर्व सुचना के ही रातो रात गिरा दिया गया और घर मे मौजुद लोगों को सारे समान छोड़ कर जान बचाकर भागना पड़ा, वे खेत दिखाए जिनपर लहलहाती फसल को बुलडोजर से कुचलकर सपाट मैदान तैयार किया गया और फिर सड़के बना ली गईं, वे मकान दिखाए जिन्हें गैर रिहायशी बताकर मुआवजा देने से इन्कार कर दिया गया और एैसे लोगों से मिलवाया जिन्हें कम्पनी और जिला प्रशासन की मिलीभगत से कागज पर मृत दिखाते हुए उनकी सम्पत्ती का मुआवजा आपस में बांट लिया गया।
यहा से आगे बढकर यात्रा श्रीमती सुगिया रजक के घर पहुॅची। श्रीमती रजक सुदर्शन रजक की पत्नी हैं और पिछले साढे तीन साल से श्री रजक को ढुंढ रहीं हैं। रजक परिवार ने अपनी जमीन रिलायंस को औने पौने दाम पर देने से इन्कार कर दिया था। रिलायंस के अधिकारीगण वी.वी सिह, संग्राम सिंह, और बैढन थाना के एस आई बी एल तिवारी से इसी सिलसिले में कहासुनी होने के बाद श्री रजक दिनांक 30.05.09 से गायब हैं। श्रीमती रजक और पुरा परिवार आज तक करीबन हर जगह अपनी गुहार लगा चुका है पर उन्हें खोजने की सभी कोशिशें केवल थाने मे रिपोर्ट लिख लेने भर सीमित रह गईं।
यहां से आगे बढकर यात्रा तियरा गंाव मे पहुॅची जहां केन्द्र सरकार द्वारा घोषित, ‘संरक्षित जनजाती‘ बैगा आदिवासी रहते हैं। इन्हें कम्पनी ने अपनी रिहायसी कालोनी बनाने के लिए उजाड़ा है। अपने स्वभाव के अनूसार ही इन बैगा परीवारों ने नोटिस मिलते ही चुपचाप अपनी जगह छोड़ दी और सड़क के दुसरी ओर जहां जैसी जगह मिली वहीं बस गयें। मुआवजे के रूप मे भी जो मिला ले लिया । उनके रहने की जगह देख कर यह बात साफ समझ मे आई की उनके भोलेपन का फायदा उठाते हुए उनके अधिकारों का संगीन हनन किया गया है।
यात्रा मे शामिल लोग की सलाह पर लोकविद्या आश्रम ने यात्रा के बाद एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित करने का निर्णय किया है जिससे कि ‘देश हित में होते विकास‘ की कीमत किस कदर चुकाई जा रही है और कौन लोग चुका रहें हैं इसे समझा जा सकेगा।