गंगा एक्सप्रेस-वे एवं भूमि अधिग्रहण क्यों और किसके हित में
तृतीय सत्र का आरंभ 10 अप्रैल को 10.30 बजे शुरू हुआ जिसकी अध्यक्षता श्री सत्यपाल सिंह और अमरनाथ यादव ने की। संचालन श्री शिवाजी सिंह ने किया। तृतीय सत्र में भूमि अधिग्रहण कानून के औचित्य संगठन के विस्तार तथा साझा कार्यक्रम पर चर्चा हुई। वक्ताओं ने भूमि अधिग्रहण कानून पर चर्चा करते हुए कहा कि यह कानून अंग्रेजों द्वारा 1984 में अपने उद्योगों को लगाने, कच्चे माल को उद्योगों तक ले आने और पक्के माल को लोगों तक पहुंचाने के लिए रेल लाइन बिछाने तथा सड़क बनाने के लिए उद्योग में काम करने वाले मजदूरों को उद्योग के बगल में ही रहने के लिए भवन बनाने आदि के लिए भूमि अधिग्रहण कानून को आजाद भारत के किसानों पर जनहित के नाम पर थोप दिया गया है। इस अधिग्रहण कानून में जो भी कमियां रह गयी हैं उसे दूर किया जा रहा है जिससे उसे इतना ताकतवर बना दिया जाय, जिससे किसान अपनी भूमि कानूनी रूप से भी न बचा सकें। इसके लिए भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल जल्दी संसद में पेश होने वाला है। इसके खिलाफ किसानों को एकजुट करने और एक ताकतवर आंदोलन खड़ा करने का निर्णय लिया गया तथा अंत में एक प्रस्ताव पास किया कि-
- सोनभद्र जिले में बनने वाले कनहर डैम, बभनी पावर प्लांट; राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के रावतभाटा में बनने वाले नेशनल पार्क तथा झुझुनूं जिले के नवलगढ़; महाराष्ट्र के जैतापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र; इलाहाबाद जिले के करछना, बारा, पावर प्लांट आदि के लिए किये जा रहे भूमि अधिग्रहण के खिलाफ संघर्ष कर रहे किसानों तथा आदिवासियों के साथ कृषि भूमि बचाओ मोर्चा अपनी एकजुटता के लिए प्रतिबद्ध है।
- छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा में जल, जंगल, जमीन के खिलाफ चल रहे आंदोलनों को राष्ट्रव्यापी आंदोलन में बदलने के लिए कृषि भूमि बचाओ मोर्चा अपनी पूरी ताकत के साथ प्रयास करने के लिए कटिबद्ध है। -अरूण कुमार सिंह, उत्तर प्रदेश से