संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

पोस्को विरोधी धरने पर किये गये पुलिसिया हमले के खिलाफ 6 राजनीतिक दल पी.पी.एस.एस. के समर्थन में आये सामने तथा किया पोस्को कम्पनी का विरोध

पोस्को कम्पनी की स्थापना के लिए चुने गये तीन ग्राम पंचायतों- ढिंकिया, नुआगांव तथा गढ़कुजंग के प्रवेश द्वार बालिटुडा में जनवरी माह से चल रहे धरने; जिसने इन ग्राम पंचायतों में कम्पनी तथा सरकार के अधिकारियों-कर्मचारियों के प्रवेश को प्रतिबंधित कर रखा था; पी.पी.एस.एस. के इस आंदोलन को पूरे देश के विभिन्न जन संघर्षों से मिल रहे समर्थन तथा उड़ीसा में चल रहे संघर्षों की एकता से बौखलायी सरकार ने 15 मई को इस शांतिपूर्ण धरने पर हमले करवाये, इजरायल तथा द. अफ्रीका में इस्तेमाल किये गये हथियारों का इस्तेमाल किया, महिलाओं को निशाने पर लिया और न केवल इन्हें रबर की गोलियों-लाठियों से घायल किया गया बल्कि गांवों की नाकाबंदी कराके घायलों को इलाज कराने से भी रोक दिया गया। स्थानीय सांसद तथा सी.पी.आई. नेता विभु प्रसाद तराई को सुबह ही गिरफ्तार कर लिया गया था।

इस पुलिसिया हमले से आंदोलनकारी न तो डरे और न सहमे बल्कि पी.पी.एस.एस. द्वारा 19 मई को इसी स्थान पर आयोजित विरोध सभा को सी.पी.आई. महासचिव ए.बी. बर्धन समेत मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, फारवर्ड ब्लाक, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल तथा झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के नेताओं ने न केवल सम्बोधित किया बल्कि पोस्को विरोधी आंदोलन का समर्थन भी किया। इस सभा में ढिंकिया, नुआगांव तथा गढ़कुजंग पंचायतों के हजारों निवासियों ने शिरकत की।

 

पोस्को-एम.ओ.यू.-सरकार एवं स्थानीय आबादी

 

पांच सालों में पोस्को विरोधियों की संख्या हजारों में पहुंच गई है। प्लांट के लिए जिस स्थान का चयन किया गया था वहां के वाशिंदे अपनी जगह छोड़ने को तैयार नहीं हैं। पांच साल पहले बीस पेज के जिस एमओयू को दिखा कर बीजेड़ी गर्व कर रही थी विभिन्न शर्तों वाली उक्त एमओयू में पांचवीं शर्त थी कि इस एमओयू की मियाद बढ़ाई भी जा सकती है लेकिन इसके लिए पोस्को को इन पांच सालों में ढांचा खड़ा करने के अलावा, प्लांट स्थापना, मशीनों की फिक्सिंग के अलावा पूंजी विनियोग आवश्यक होगा। अगर ऐसा नहीं किया गया तो एमओयू की मियाद कतई नहीं बढ़ाई जाएगी। शर्त के मुताबिक पोस्को एक भी शर्त पूरा करने की बात तो दूर एक इंच जमीन भी अपने नाम हस्तांतरित नहीं करवा सकी। ऐसी हालत में एमओयू रद्द हो जानी चाहिए। एमओयू की आठवीं शर्त यह थी कि नियत समय पर प्रकल्प कार्य शुरू न होने की स्थिति में कंपनी को लोहा पत्थर खदान की लीज, कोयला की लीज व अन्य जो भी प्रोत्साहन सरकार देगी वो खुद-ब-खुद खत्म मानी जाएगी। एमओयू की शर्त के अनुसार सरकार द्वारा दी गई तमाम सहूलियतें अपने आप एक्सपायरी हो गई हैं। ऐसे में सवाल ये है कि पोस्को क्या करेगी?

 

विगत 22 जून को एमओयू के पांच साल पूरा होने पर पोस्को के लिए विस्थापित होने जा रहे आदिवासियों ने काला दिवस मनाया और हजारों की संख्या में पोस्को विरोधियों ने रैली निकाली। अब सरकार क्या करे ? स्थानीय लोगों का प्रबल विरोध सरकार का सिरदर्द बढ़ा चुका है। बीते पांच साल में मुख्यमंत्री ने पहली बार प्रभावित अंचलों का दौरा करने की बात कही और वो भी बिना पुलिस फोर्स के, परंतु वे वादे से मुकर गये। इसके लिए मुख्यमंत्री को पोस्को विरोधियों के साथ सहानुभूतिपूर्ण माहौल में चर्चा भी करनी पड़ी। मुख्यमंत्री के आश्वासन के बाद सर्वे आरंभ हुआ लेकिन पोस्को विरोधियों ने इसे बंद करवा दिया।

 

पोस्को के खिलाफ कमर कसें

 

पोस्को प्रतिरोध संग्राम समिति का कथन है कि एमओयू को दुबारा हस्ताक्षर होने के लिए टेबल पर आने दीजिए फिर देखेंगे। यह भी देखेंगे कि पोस्को के मोह में सरकार एमओयू को एक्सटेंशन देती है या फिर इसे रद्द करती है। इधर मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने कहा है कि कानून के अनुसार जो उचित होगा सरकार वही कदम उठायेगी। अब पोस्को के बारे में फैसला सरकार को करना है। इधर पोस्को विरोधी जनमंच समेत विपक्षी दल भी पोस्को के खिलाफ कमर कस चुके हैं। उधर सरकार ने पोस्को के लिए सर्वे का काम श्ुारू करवा दिया था जिसे जनमंच के व्यापक विरोध के बाद बंद करना पड़ा। इस बीच देश के विभिन्न अंचलों में चल रहे जन संघर्षों का पी पी एस एस को समर्थन एवं सहयोग बढ़ता जा रहा है।
पोस्को कम्पनी के खिलाफ बढ़ता जन-विरोध

 

जटाधार बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं पर कातिलाना हमला तथा हत्या, पोस्को प्रतिरोध संग्राम समिति की अगुवाई में चलने वाले आंदोलनों पर हमले, गिरफ्तारियां, फर्जी मुकदमे कायम करने आदि के तरीके अपनाने के बाद भी सरकार तथा कम्पनी को जब कामयाबी मिलती नजर नहीं आयी तो लालच देकर रास्ता साफ कराने की योजना बनायी गयी। परंतु अपनी जमीन, पहाड़ तथा नदियां बचाने के लिए संकल्प ले चुकी स्थानीय आबादी ने अपने अस्तित्व, आजीविका तथा प्रकृति एवं पर्यावरण की रक्षा करने के लिए अपने संघर्ष को और तेज कर दिया है।

 

स्पेशल कम्पेनसेशन पैकेज के खिलाफ जन-सभा

 

उड़ीसा सरकार एवं पोस्को कम्पनी की तरफ से पोस्को कम्पनी के प्लांट लगाने, माइनिंग करने आदि से विस्थापित होने जा रहे लोगों के लिए विशेष मुआवजा पैकेज की घोषणा किये जाने एवं पोस्को इण्डिया के डायरेक्टर जी ऊंग सुंग की तरफ से रास्ता साफ होने का आकलन करके खुशियां मनाने के तीसरे दिन ही 11 जुलाई 2010 को पारादीप के पास बालधिया नामक स्थान पर पोस्को प्रतिरोध संग्राम समिति की तरफ से विरोध सभा का आयोजन किया गया। पी.पी.एस.एस. के अध्यक्ष अभय साहु की अध्यक्षता में हुई इस सभा में स्पेशल कम्पेनसेशन पैकेज की प्रतियों को जलाकर पोस्को विरोधी स्थानीय निवासियों ने अपना विरोध दर्ज कराया है। सभा में मौजूद हजारों लोगों ने शपथ ली कि वे किसी भी हालत में पोस्को कम्पनी को प्रवेश नहीं करने देंगे। सभा में वक्ताओं ने स्पेशल पैकेज के माध्यम से पैसों की लालच देने की कम्पनी तथा सरकार की घृणित साजिश की निंदा की। उनका कहना था कि सरकार कृषि को क्यों नहीं बढ़ावा देती जिससे कि मीन, धान, पान तथा केवड़ा के फूलों की पैदावार के बल पर किसान एक बेहतर जिंदगी बिता सकें।

 

पी.पी.एस.एस. अध्यक्ष अभय साहु ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने स्थानीय लोगों के साथ धोखा किया है तथा प्रभावित होने जा रहे लोगों से मिलने एवं वहां की स्थितियों को समझने के लिए आने के अपने वादे को पूरा नहीं किया। अभय साहु ने कहा कि कम्पनी या सरकार के कर्मचारियों-अधिकारियों को इलाके में घुसने नहीं दिया जायेगा।

 

इस सभा को उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति पी. के. मिश्रा, लोक शक्ति अभियान उड़ीसा के अध्यक्ष प्रफुल्ल सामंतरा, पश्चिम उड़ीसा कृषक समन्वय समिति के नेता लिंगराज प्रधान, रबि दास, ढ़िकिया ग्राम पंचायत के सरपंच सिसिर महापात्रा, नुआगांव पंचायत सदस्य बासुदेव बेहरा तथा प्रकाश जेना आदि ने सम्बोधित किया।

 

पोस्को कम्पनी के कार्यालय के समक्ष प्रदर्शन

 

एक तरफ तरफ जहां पी.पी.एस.एस. ने 22 जून 2005 को पोस्को कम्पनी तथा सरकार के बीच हुए एम.ओ.यू. जिसकी मियाद 22 जून 2010 को समाप्त हो रही है को रद्द करने की मांग की है वहीं दूसरी तरफ पोस्को कम्पनी की परियोजना को रद्द करने की मांग करते हुए 18 जून 2010 को नव निर्माण समिति के कार्यकर्ताओं ने अपने संयोजक अक्षय कुमार की अगुआई में भुवनेश्वर स्थित पोस्को कम्पनी के कार्यालय में जबरन घुसकर विरोध दर्ज कराया है। इस प्रदर्शन में समिति के 6 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया। इस प्रदर्शन में इरासामा क्षेत्र के गोविंदपुर गांव के भी कुछ लोगों ने हिस्सेदारी की।

 

इन प्रदर्शनकारियों ने पोस्को परियोजना को रद्द करने तथा एम.ओ.यू. को खारिज करने की मांग की। प्रदर्शनकारी पोस्को कम्पनी के विरोध में नारे लगा रहे थे।

यह प्रदर्शन ऐसे समय पर किया जा रहा था जब मुख्यमंत्री अपने कार्यालय में कम्पनी समर्थक कुछ लोगों के साथ बैठकर मुआवजे के पैकेज के बारे में बातचीत कर रहे थे।

दिखने लगा है वेदांत कम्पनी का जहरीला असर

नियामगिरि पहाड़ की माइनिंग किसी भी हालत में न होने देने के लिए कालाहाण्डी जनपद के लांजीगढ़ तथा मुनिगुडा के आस-पास के गांवों के निवासी लगातार संघर्षरत हैं तथा तमाम प्रकार के उत्पीड़न, हिंसक हमलों, फर्जी मुकदमों, धमकियों एवं लालच देने की कम्पनी, सरकार की साजिशों के खिलाफ एकजुट संघर्ष की राह पर हैं।

इस बीच लांजीगढ़ में वेदांत कम्पनी के बाक्साइट प्रोसेसिंग के चल रहे प्लांट ने आस-पास के गांवों खासतौर पर नियामगिरि की तलहटी में बसे बारभाटा, किन्नारी, रेंगोपाली, वाण्डुगुडा तथा छत्तरपुर गांवों में अपना जहरीला असर डालना शुरू कर दिया है। यह वे गांव हैं जो वेदांत अल्युमुनियम लिमिटेड के प्रोसेसिंग प्लांट के पास बसे हैं।

छत्तरपुर गांव में कम्पनी के प्रोसेसिंग प्लांट से निकल रही सफेद राख को एक तालाब (एश पाण्ड) में डाल दिया जाता रहा है। यह एश पाण्ड गांव से सटा हुआ है अतएव यह सफेद राख रातभर गांव में चारों तरफ उड़ती रहती है। रेंगोपाली गांव के लोग भी जब सुबह सोकर उठते हैं तो चारों तरफ सफेद राख के बादल से छाये नजर आते हैं। यह वह राख है जो कम्पनी की रिफाइनरी से उड़कर इस गांव तक पहुंचती रहती है। रिफाइनरी से इस गांव की दूरी बमुश्किल 500 मीटर होगी। कम्पनी के कचरे को इकट्ठा करने के लिए बनाये गये तालाब में लाल रंग का कचरा इकट्ठा होता है। यह लाल रंग का कीचड़ बहकर इस गांव तक पहुंच रही है। कचरे के पानी के संपर्क में आने से पशुओं एवं मनुष्यों के पैर में तेजी के साथ चर्म रोग हो जाता है तथा जानवरों का खुर पक जाता है। जानवरों के मरने, वृक्षों में फल न आने तथा पीने के पानी के विषाक्त हो जाने की शिकायतें इन गांवों के वासी लगातार करते रहे हैं।

 

ग्रामवासियों का कहना है कि भू-जल एवं हवा के विषाक्त हो जाने के नाते पिछले 2 सालों में एक दर्जन से भी ज्यादा ग्रामवासियों की श्वाँस सम्बन्धी दिक्कतों एवं टी.बी. के कारण मौत हो चुकी है।

 

वेदांत कम्पनी की रिफाइनरी की वजह से बंसधारा नदी का पानी तेजी के साथ प्रदूषित हो रहा है। इसी नदी पर तमाम ग्रामवासी तथा उनके पशु पीने के पानी के लिए आश्रित हैं। बरसात के समय में सीधे तौर पर कम्पनी का रासायनिक कचरा नदी से होकर बहता है।

 

वेदांत अल्युमुनियम लिमि. के चीफ आपरेशंस आफिसर डा. मुकेश कुमार ग्रामवासियों के आरोपों से साफ-साफ इंकार करते हैं।

जन संघर्षों की बढ़ती व्यापक एकजुटता कम्पनियों एवं सरकार के लिए बड़ी चुनौती है

कलिंग नगर पुलिस फायरिंग, पोस्को विरोधी आंदोलनकारियों पर पुलिसिया हमला, गोविंदपुर में पी पी एस एस समर्थकों पर हमला, काठीकुंड गोलीकाण्ड या नियामगिरि में माइनिंग करने की अदालती अनुमति या पोटका प्रखण्ड में भूषण कम्पनी विरोधियों की गिरफ्तारी का मामला हो क्षेत्र-इलाका-वैचारिक विशिष्टता तथा मुद्दे की विशिष्टता से ऊपर उठकर विभिन्न जन संघर्षों ने अपने-अपने स्तर पर पहल की है। यह विरोध केवल छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि पी. पी. एस. एस. कार्यकर्ताओं पर किये गये हमले तथा कलिंगनगर के गोलीकाण्ड के विरोध में उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में नवीन पटनायक का पुतला फूंका गया; हिमाचल के किन्नौर में आयोजित रैली में झारखण्ड में हो रहे दमन का मामला उठाया गया। राँची तथा भुवनेश्वर के साझे सम्मेलनों में 5-6 राज्यों के जन संघर्षों ने शिरकत की। झारखण्ड तथा उड़ीसा राज्यों में चल रहे मित्तल कम्पनी विरोधी आंदोलनों के एकजुट पहल हेतु प्रयास आरंभ किये जा चुके हैं।
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