मोदी सरकार ने नियमों को ताक पर रख शुरु किया गोरखपुर परमाणु सयंत्र का काम : परमाणु संयत्र के 10 किमी के दायरे में है हजारों की आबादी
हरियाणा के फतेहाबाद जिले के गोरखपुर गांव में मोदी सरकार ने जबरन परमाणु संयंत्र का काम शुरु कर दिया है जिसकी वजह से लाखों लोगों की जिंदगियां दांव पर लग गई है। पूरी दुनिया जहां परमाणु रिएक्टरों से तौबा कर रही है वहीं मोदी सरकार देश पर एक के बाद एक परमाणु संयंत्र थोप रही है जिसमें एक है गोरखपुर परमाणु संयंत्र। इस परमाणु संयंत्र ने किन नियमों का उल्लंघन किया है यह जानने के लिए पढ़िए भास्कर से साभार संजय आहूजा की यह महत्वपूर्ण रिपोर्ट;
किसी भी जगह जब परमाणु संयंत्र लगाया जाता है, तब ये देखा जाता है कि उसके आसपास आबादी वाला क्षेत्र तो नहीं है। क्योंकि इसकी रेडिएशन से 30 किलोमीटर तक जनजीवन को खतरा रहता है। फतेहाबाद के गोरखपुर में जो परमाणु संयंत्र लगने जा रहा है, वह बिलकुल आबादी के मध्य में है। गांव गोरखपुर इसके बिल्कुल पास स्थित है। नियमों के मुताबिक परमाणु संयंत्र से 5 किलोमीटर के दायरे में 20 हजार से कम और 15 किलोमीटर के दायरे में एक लाख से कम आबादी होनी चाहिए।
हकीकत ये है कि इस संयत्र के 5 किलोमीटर के दायरे में गोरखपुर के अलावा कुम्हारिया, काजलहेड़ी गांव आते हैं। वहीं 10 किलोमीटर के दायरे में बड़े गांव बड़ोपल, खारा खेड़ी, एमपी रोही, मोचीवाली जैसे आधा दर्जन गांव आते हैं। इनकी आबादी लगभग 20 हजार है। संयंत्र से फतेहाबाद शहर की दूरी केवल 23 किलोमीटर है। फतेहाबाद की आबादी करीब एक लाख है। नियमों को ताक पर रखकर इस सयंत्र को यहां बनाया जा रहा है। संयंत्र के लिए अधिग्रहित जमीन के दायरे में बड़ोपल के आसपास का कुछ एरिया भी शामिल है, जोकि वन्य प्राणी संरक्षित है। सयंत्र के बनने से जीवों को दिक्कत आ सकती है, बल्कि इसके आसपास बसी आबादी को भी बड़ा खतरा है।
पानी निकालने में हो रहा नियमों का उल्लंघन
एनपीसीआईएल की ओर से गोरखपुर परमाणु संयंत्र की जमीन से पानी निकाल कर नहर में डाला जा रहा है। एक आरटीआई में मांगी गई जानकारी में खुलासा हुआ है कि एनपीसीआईएल नियमों का उल्लंघन कर रहा है। संयंत्र प्रबंधन की ओर से भूमिगत पानी निकालने को लेकर कोई अनुमति ली गई हो, यह स्पष्ट नहीं किया गया है। पानी का लेवल 3 मीटर बाद ही निकला है। संयंत्र की जमीन से करीब 2200 क्यूसिक पानी निकलना है। यहां के ग्रामीणों राजेंद्र कुमार, फकीर चंद, सुभाष, सुरेश कुमार, सुरेंद्र कुमार, राजकुमार, रोहताश, महेंद्र कुमार, रघुबीर सिंह आदि ने पिछले दिनों डीसी को ज्ञापन सौंपकर बताया था कि इस प्रक्रिया से दो नुकसान हैं। पहला जमीन से इतना ज्यादा पानी निकालने से आसपास जल स्तर कम हो जाएगा। दूसरा, जो पानी जमीन से निकाल कर नहर में डाला जा रहा है, उसका टीडीएस 2600 है। जोकि एक तरह से जहरीला पानी है। इससे फसलों को नुकसान होगा।
आरटीआई में ये मिली जानकारी
आरटीआई कार्यकर्ता सतपाल भादू ने संयंत्र की जमीन से पानी निकालने जाने को लेकर पिछले दिनों गोरखपुर अणु विद्युत परियोजना से आरटीआई के माध्यम से कुछ जानकारी मांगी थी। इसमें उन्होंने पूछा था कि जमीन का पानी नहर में डालने के लिए सिंचाई विभाग व भाखड़ा प्रबंधन से कोई अनुमति ली गई है तो पत्र दिखाएं। जवाब में अनुमति मांगने की प्रति जरूर लगाई गई है, लेकिन अनुमति मिलने का पत्र नहीं है। वहीं पूछा था कि जमीन का पानी नहर में डालने के लिए जीएचएवीपी द्वारा सिंचाई विभाग हरियाणा से कोई अनुमति ली गई है। जवाब मिला कि कोई पत्राचार नहीं हुआ है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
परमाणु मामलों के विशेषज्ञ डॉ. प्रमोद कुमार का कहना है कि परमाणु ऊर्जा से बिजली का उत्पादन महंगा और जोखिम भरा है। इसके भयानक प्रभाव लंबे समय तक रहते हैं। दुर्घटना के खतरे के अलावा, हर परमाणु संयंत्र अपने साथ रेडियोधर्मी कचरा भी लाता है, जो सैकड़ों और हजारों साल तक हानिकारक बना रह सकता है। आज भी इस कचरे के निस्तारण के लिए कोई उचित हल मौजूद नहीं है। रेडियोधर्मी प्रभाव से प्राणियों के जीन एवं गुणसूत्रों पर प्रभाव, जिनके आनुवांशिक प्रभाव से विकलांगता एवं अपंगता हो जाती है। इसके प्रभाव क्षेत्र में आने पर कैंसर जैसी घातक बीमारी हो सकती है। इससे त्वचा, खून की गुणवत्ता, हड्डियों में मौजूद मज्जा, सिर के बालों का झड़ना, शरीर में रक्त की कमी जैसी बीमारियां हो सकती हैं। रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारण गर्भ में पल रहे शिशु की मौत तक हो सकती है। रेडियोधर्मी प्रदूषण पेड़-पौधों, जीव-जन्तुओं, खाद्य सामग्री आदि को प्रभावित करते हैं। रेडियोधर्मी पदार्थ रेडियोधर्मी-स्रोतों के खनन के दौरान पर्यावरण में प्रवेश करते हैं। रेडियोधर्मिता पेड़-पौधों एवं भोजन के द्वारा अन्य जीवों तक पहुंच कर खाद्य-शृंखला का हिस्सा बनती है। ये जल के स्रोतों तथा वायुमंडल में भी आसानी से प्रवेश कर जाते हैं।
CREDIT : BHASKAR