झारखंड में विरोध के बावजूद जिंदल के स्टील प्लांट को हरी झंडी, आंदोलनकारियों पर लाठी चार्ज
जिंदल के स्टील प्लांट पर मार्च 8, 2014 को असनबोनी, जिला-सिंहभूम (झारखण्ड) में सरकार ने पुलिसिया दमन के साये में जनसुनवाई की नौटंकी लिखी. प्रशासन इस दूसरी जनसुनवाई को किसी भी हाल में फेल नहीं होने देना चाहता था इसलिए सुरक्षा और नाकेबंदी ऐसी कि असनबोनी जाने वाले हर रस्ते पर सन्नाटा. इस परियोजना में 12 गाँवों की भूमि का अधिग्रहण किया जाना है जिसका पिछले दस सालों से विरोध हो रहा है. पेश है इस लम्बे संघर्ष पर कुरुष कैंटीनवाला की रिपोर्ट;
मार्च 8, 2014 को मैं जमशेदपुर के पास असनबोनी में था और लूट का मकेनिज्म देख रहा था। मैंने अन्य लोगों को अपनी फिल्म के द्वारा इंटरनेट पर इस मकेनिज्म को दिखाने का प्रयास किया । मैंने कई खूबसूरत इलाकों में समय गुजारा, इस उम्मीद में कि वे इस रास्ते सें रूकेंगे लेकिन रेडिमिक्स विकास भविष्य का ढांचा बदल रहा है।
झारखंड राज्य की स्थापना साल 2000 में हुई और विकास के उन्माद से यह राज्य ग्रस्त हो गया। राज्य की सरकारों ने एक के बाद एक विकास की 108 बड़ी योजनाओं के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इनमें स्टील प्लांट, खनन, सीमेंट एवं विद्युत आदि शामिल हैं। मैं असनबोली में एक जनसुनवाई में शामिल हुआ जिसका आयोजन झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा किया गया था ताकि जिंदल स्टील और पावर लिमिटेड को एक वर्ष में 6 मिलियन टन स्टील प्लांट के लिए हरी झंडी दी जा सके। इस प्लांट का नाम जानबूझकर ग्रीनफील्ड इंटीग्रेटेड स्टील प्लांट रखा गया।
मै कुमार चंद मार्डी के साथ था, यह नाम कोलहन के एक आंदोलनकारी और राजनेता के तौर पर इस्तेमाल होता है और यह संदर्भ देने के लिए इस्तेमाल होता है कि दक्षिण झारखंड में अब क्या है। उनके जमशेदपुर स्थित आवास पर आप भगत सिंह, गांधी और जयप्रकाश नारायण की तस्वीरें सिद्धू और कान्हु मुरमु की तस्वीरों के साथ देख सकते हैं जो कि 19वीें शताब्दी में अंग्रेजों के खिलाफ संथाल विद्रोही थे। जहां एक ओर पूरे समुदाय के लिए लोगों ने हथियार उठा लिए थे वहीं मार्डी दा कानूनी प्रक्रिया में विश्वास रखते हैं। वह और उनकी पत्नी सालगी संथाली भूमि समस्या पर पुनर्वास और आदिवासियों के अधिकारों को लेकर 80 के शुरुआती दशक से काम करते रहे हैं। मार्डी दा के लिए कुछ शब्दों में कहा जाए तो मनोरम वायु और दयालु विनोदी। वह इस अच्छी लड़ाई के अनुभवी सैनिक हैं।
जमशेदपुर में हर ओर उद्योग है। जिस साइबर कैफे में बैठकर मैं यह टाइप कर रहा हूं उसमें कंप्यूटर के डेस्कटॉप पर जमशेदजी टाटा की तस्वीर सम्मान के तौर पर लगी है जिसके नीचे लिखा है ‘ हमारे संस्थापक’ जमशेदपुर को टाटा नगर के नाम से भी जाना जाता है। इसमें करीब 18 गांव आते हैं जिनमें सकची,कालीमाटी,गोलमूर्ति और सोनारी भी शामिल हैं जो सभी भारत के सौ साल पुराने स्टील टाउन के पड़ोसी बने। लेकिन ये सभी लंबे समय तक यह इस क्षेत्र के लिए लाभदायक रहे। सर्वप्रथम अंग्रेजोंने रेलवे के लिए वनों की कटाई का काम किया। संथालों ने इसका विरोध किया और दोबारा विरोध किया जब अंग्रेजों और बाद में भारत सरकार ने वनों और भूमि से वन समुदाय को अलग करके देखने का काम किया। छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट, 1908,संथाल परगना टेनेंसी एक्ट, 1949 और संविधान की पांचवी और छठी अनुसूचि में इस मामले को जन्म दिया।
मार्च 8, 2014 को हमने जमशेदपुर की उपनगरीय, उपग्राम्य हौजपॉज नगरीयता से छुटकारा पाकर बाद में तुरमादीह के बरबाद पर्वतों को पार करके यूरेनियम कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड के क्वाटर्स को पार किया तो मेरे शरीर में झुनझनी पैदा होने लगी जैसे मै रेडिएशन को महसूस कर रहा था और इस इलाके में रेडिएशन की अधिकता साफ महसूस हो रही थी।
इसके कुछ किलोमीटर बाद सड़क कुछ दूरी पर थी और हम अल्पविकसित भारत में आ गए थे। पूरी तरह से साफ सुथरी गलियां और संथालों के घर- मिट्टी से बने हुए, क्रमबद्ध, साफ और ताजगी भरे और सुंदर। यह क्या है पांच हजार साल बीत चुके हैं। सुंदर किनारों वाली खिड़किया जिसपर सजावट हुई थी। इस सब में पशुओं के चारे और फूंस का इस्तेमाल किया गया था।
जैसे ही हम आसनबोली की तरफ चले सभी सड़कें अति व्यस्त मिली। हमने एक मुश्किलभरा सफर किया और अचानक अपने आपने आपको हमने विकास की दौड़ में शामिल व्यवस्था का हिस्सा पाया। कंपनी सरकार यहां मौजूद थी धूल उड़ाती हुई उन लोगों पर जो सड़क के किनारे-किनारे पैदल चल रहे थे या साईकल चला रहे थे। जैसे घर घने हो रहे थे एक मैटल डिटेक्टर और एक बंदूकधारी पुलिसवाला दिखाई दिया। लोग अपने हाथों में अपने मतदाता पहचान पत्र लिए हुए थे और सड़क के बीच में एक लाइन बनाकर खड़े थे ताकि तलाशी के बाद आगे जा सकें। हम एक वाहन में थे और इसी इसी लहर में शामिल थे लोग अपनी तलाशी दे रहे थे इनमें वे लोग थे जो अपनी जमीन गंवा चुके थे और जो उन्हें वापस नहीं मिलेगी।
इसी तरह के पैमाने पर सभी भूमि अधिग्रहण किए जाते हैं यह केवल असनबोली की बात नहीं है इसके अलावा इससे लगे 12 गांव और हैं जिनपर कंपनी सरकार की नजर है। चोतरो, तिलामुडा, घोतीदुबा, दिगरसई, कनीकोला, कुदापाल, लोखंडी, बर्धा, बिरगांव, लालमोहनपुर, आजादबस्ती, गोपालपुर, आसनबोनी अपने आपमें कस्बा है इसके रास्ते में पड़ने वाले गांव अधिक जनसंख्यावाले होने के कारण एक टाउन का रूप ले चुके हैं जहां अधिक दुकाने हैं अधिक लोग हैं और जो कोई भूमि रखते हैं वे इसे बेचने के इच्छुक हैं। इनमें से अधिकतर लोग कंपनी सरकार के दलाल बने हुए हैं। यह केवल अदालत में एक छोटी सी कागजी लड़ाई बनकर रह गई है और साल 2004 से ही पुलिस केस चल रहे हैं जिसे दस साल का समय बीत चुका है।
पहली जनसुनवाई में करीब 350 लोगों ने भाग लिया और जो समान संस्था द्वारा जनवरी में आयोजित की गई थी। विरोधकर्ताओं ने सफलतापूर्वक इस जनसुनवाई को रुकवा दिया था और एडीसी को इस जनसुनवाई को दोबारा आयोजित करना पड़ा। इस जनसुनवाई का आयोजन एक खुले स्थान पर किया गया और विरोधकर्ता जो वास्तव में दूर थे और समर्थक वहां मौजूद थे।
इस बार पूरी तरह से जनसुनवाई को मैनेज कर लिया गया। यह स्थिति सालों की कोशिश के बाद आई। गांव के बीचो बीच एक पंचायत भवन में जिस तक पहुंचने के लिए एक संकरा रास्ता जाता था और स्टेज पर जाने के लिए एक छोटा सा रास्ता बनाया गया था जो कंपनी सरकार के लिए आरक्षित रखा गया था। पुलिस बल हथियारों के साथ मुस्तैद था और भवन के अंदर समर्थकों की भीड़ थी।
गैर संथाली महिलाएं जो चमकदार नई साड़ियों में मौजूद थीं उन्हें जिन्दल की सीएसआर विंग द्वारा साड़ियां पहले ही दी जा चुकी थीं अपने नए कपड़ों का आनंद लेती हुई दिखाई दे रहीं थीं। मानों कंपनी सरकार के समर्थन में एक सत्संग हो रहा हो। भावहीन, पाउडर ब्लू शर्ट पहने अधिकारी मंच पर थे जो स्थानीय समर्थकों का सामना कर रहे थे जो चारों तरफ बिखरे हुए थे चमकदार साड़ियों में और उनके पीछे एक बैरिकेड्स की तरह पीछे मौजूद थे। साड़ी वाली महिलाओं के पीछे और समर्थक दीवार बनाए खड़े थे। और उसके बाद पुलिसवाले खड़े थे। इन सबके पीछे कुछ लोग विरोध में बैनर और लिए नारेबाजी कर रहे थे लेकिन ये लोग मंच के निकट भी नहीं पहुँच सकते थे। इनके लिए पहले से ही सभी रास्ते बंद करके रखे गए थे।
जैसे ही हम वहां पहुंचे और सामने की तरफ से प्रवेश किया मार्डी दा को स्थानीय कंपनी समर्थकों ने रोक लिया और चिल्लाने लगे ‘‘ ये लोकल नहीं हैं, ये नेता हैं। हट साले नेता’’ तभी मंच से एक स्कूल टीचर बनमाली महतो जो गोटीदुबा से थे विरोध की अगुवाई करते हुए माइक हाथ में लेकर बोलने लगे कि ‘‘हम लोकल हैं आप हमें बोलने दीजिए ’’इस पर कंपनी के समर्थकों ने विरोध किया और चिल्लाने लगे। कंपनी समर्थकांे ने मार्डी दा को और उनके साथियों को मंच से नीचे उतार दिया और उन्हें धकेल कर सड़क पर फेक दिया और उनकी पिटाई की यह सब सभा के सामने हुआ। पिछले दो सालों में मार्डी दा को जितना मैं जानता हूं उन्होंने पहली बार अपना धैर्य खोया। विडंबना देखिए कि कोई दलाल नाराज नहीं हुआ या उत्तेजित नहीं हुआ।
उसी समय धक्का मुक्की में सभा भवन का पीछे का हिस्सा टूट गया। इसके बाद कंपनी सरकार ने तुरंत प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज करवा दिया। इसमें कंपनी के स्थानीय समर्थक और भाड़े के गुंडे भी शामिल थे उन्होंने बांस उखाड़ लिए और पत्थरों से हमला किया। वे प्रदर्शनकारियों को गालियां दे रहे थे और चोट पहुंचा रहे थे इनमें महिलाएं भी उनका साथ दे रही थीं इस घटना में कुछ लोग बुरी तरह घायल हो गए 22 साल के प्रवीन महतो केा इतनी चोट लगी कि उन्हें अस्पताल लेकर जाना पड़ा जिनके सर पर पांच टांके लगाने पड़े। एक बूढ़े आदमी को सर पर चोट के कारण बुरी तरह खून बहा। सभा की समाप्ति के बाद हम वहां से लौट आए और प्रदर्शनकारियों की खबरगीरी में लग गए। यह तय हुआ कि हम गांव और पुलिस से दूर एक मैदान में जमा होंगे। एक बुजुर्ग व्यक्ति इस बात पर जोर दे रहे थे कि हम सबको घर जाकर अपने हथियार और लाठी डंडे लेकर आना चाहिए और पुलिस पर हमला बोल देना चाहिए। लेकिन उनकी इस बात पर किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया। कदम कदम पर कहानी में बदलाव आता रहा और जो लोग तितर बितर हो गए थे फिर से एकजुट होने लगे और मैदान में ‘‘जिंदल मुर्दाबाद’’ के नारे गूंज उठे। हर कोई आगे के बारे में सोच रहा था यह बात सभी की समझ में आ चुकी थी कि जनसुनवाई की पटकथा पहले से लिखी जा चुकी थी अब यह साफ हो चुका था कि लड़ाई पहले से भी मुश्किल हो गई है। स्थानीय समाचार चैनल भी प्रदर्शनकारियों से सवाल पूछने पहुंच गया और अधिक से अधिक लोग जमा होते गए।
इसके बाद हम घायलों को लेकर जादूगोड़ा पुलिस स्टेशन गए और एफआईआर दर्ज कराई। रास्ते में प्रवीन महतो की कई बार पट्टियां बदलनी पड़ी। उन्होंने कहा कि जिसने मेरा सर फोड़ा है मैं उसके कजिन्स को 7वीं से लेकर 10वीं तक ट्यूशन पढ़ाता आ रहा हूं। किसी ने महतो से पूछा कि उसने तुम्हे चोट क्यों पहुचाई है तो इस बात पर सभी हंस पड़े। दुर्भाग्य से हम यूरेनियम कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड की एम्बुलेंस में थे जो सोवियत संघ की 70 के दशक की वैन प्रतीत हो रही थी।
जादूगोड़ा की पुलिस आशा के अनुसार ही थी। उनके केस बिना किसी रुकावट के दर्ज कर लिए गए थे जबकि एक केस दर्ज करवाने के लिए सैकड़ों लोगों की भीड़ मौजूद थी। तहरीर लिखी गई और दोबारा लिखी गई, अस्पताल की रिपोर्ट जोड़ी गई और फिर हटा दी गई।
आसनबोनी में बाद में एक घंटे में जनसुनवाई समाप्त कर दी गई। पुलिस की गाड़ी वापस जादूगोड़ा पुलिस थाने लौट आई। थके मांदे पुलिसवाले प्रदर्शनकारियों के साथ खुले लान में ताजा दम होने लगे। उस शाम को जब हम वापस हो रहे थे तो हम अनेक संथाल महिलाओं के जत्थों के बीच से गुजरे जो संगीत पर नृत्य कर रहीं थीं। गांववाले बाहा पूजा का उत्सव मना रहे थे। हमारे सभी वनवासी समूदायों में यह वसंत उत्सव का अवसर होता है। कोल्हान में जब साल के पेड़ पर पहली कलियां आती हैं तब यह उत्सव मनाया जाता है।
अगले दिन सुबह मार्डी दा ने गहराई से समाचार पत्र पढ़ा। हेडलाइन चौकाने वाली थी-‘‘ जिन्दल को हरा सिगनल’’, ‘‘22000 करोड़ स्टील प्रोजेक्ट की बाधा समाप्त’’ और बहुत कुछ। केवल प्रभात खबर ने सही खबर छापने की कोशिश की फिर भी इसके मुख्य पृष्ठ पर हरी झंडी मिलने की घोषणा थी। समाचार एबले ने खबर छापी कि सवाल उठाए गए और उनका जवाब दिया गया। जमशेदपुर टेलीग्राफ ने खबर छापी कि लेबोरेटरी बेस्ड साइंस। जबकि यह सारा मामला चुनावी है और तिलेस्वर साहू की हत्या।
हम एक लोकतंत्र होने का दावा करते हैं। और हमारे मुख्य सरोकार क्या हैं जबकि चुनाव आने वाला है। देश में 4 मार्च की शाम से ही चुनावी आचार संहिता लगी हुई है। सरकार नई योजनाएं लागू नहीं कर सकती है लेकिन कंपनी सरकार चल रही है। जनसुनवाई 8 मार्च को आयोजित हुई जबकि 7 मार्च को मार्डी दा और उनके साथियों ने लिखित में डिप्टी कलेक्टर को सूचित किया था कि चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन किया जा रहा है। वर्तमान विधायक रामदास सोरेन ने भी इस बाबत झारखंड के मुख्य चुनाव अधिकारी को सूचित किया था कि यह जनसुनवाई आचार संहिता का उल्लंघन है। इस संबंध में देश के मुख्य चुनाव आयुक्त वीएस संपथ को नई दिल्ली एक मेल भी किया गया था। इसलिए अब भी यह आशा बनी हुई है कि इस जन सुनवाई को शायद रद्द कर दिया जाए।
जेएसपीएल के प्रवक्ता का कहना है कि योजना को 40-60 महीनों में कार्यरूप में लाया जाएगा। गणित साफ है हरी झंडी मिलने के बाद भी कंपनी सरकार भूमि अधिग्रहण से दूर है। कंपनी ने केवल 285 एकड़ भूमि की मांग की है। यह अफवाह भी फैलाई जा रही है कि कंपनी ने कुछ हिस्से पर कब्जा हासिल कर लिया है। यह मामला बड़े स्तर पर भूमि अधिग्रहण का है जो तथ्य सामने आए हैं उनके अनुसार अधिकतर लोगों की भूमि बिक चुकी है। बिना उनके हस्ताक्षर के और तब हर्जाना स्वीकारने के लिए उत्साहित किया जाएगा। कंपनी सरकार को चाहिए 1417 एकड़-1132 एकड़। जैसा कि भूमि शैड्यूल है कंपनी जल्द भूमि को कब्जे में लेने का काम शुरू करेगी। जनसुनवाई के दिन बनमाली महतो ने करीब 1200 लोगों के विरोध का एक विरोधपत्र तैयार किया है जिसमें जिंदल का विरोध करने वाले लोगों के मतदाता पहचान पत्र भी शामिल हैं।
संविधान की 5वीं और 6ठी अनुसूची में किए गए प्रावधान की विकास के नाम पर अनदेखी पिछले 20 सालों से हो रही है और कंपनी सरकार को फायदा पहुँचाया जा रहा है। वीरप्पा मोइली का पेन आज भी बेहतरीन तरीके से काम कर रहा है। और हर नियमगीरी के लिए सैकड़ों नंदीग्राम-अनेक अचानक मौतें लेकिन इसके बाद भी हर ग्रे योजना को लागू करने की प्रतिबद्धता।
इस समय चुनाव करीब हैं। और कोई भी राजनीतिक दल इस पृथ्वी के बारे में नहीं सोच रहे हैं जिस पर हम सभी निवास करते हैं। यह हम लोगों का दायित्व है जो इस मामले की गंभीरता को समझते हैं और संभावित बेहतर तरीके के हिमायती हैं।
(कुरुष कैंटीनवाला एक फिल्मकार हैं। उनकी हाल ही की फिल्म है कौनकांची मेगा वाट।)