मित्तल को अब चाहिए बोकारो में जमीन विरोध में आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच ने कसी कमर
झारखण्ड सरकार ने अगस्त 2005 में मित्तल कंपनी के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किये थे। इस एमओयू के आधार पर कंपनी 12,000 हेक्टेयर भूमि हथियाना चाहती थी। इस भूमि पर कंपनी आयरन ओर की माइनिंग, कोल ब्लाक, टाउनशिप, एसईजेड, आवागमन के लिए सड़क मार्ग, कच्चा माल तथा तैयार माल बाहर भेजने के लिए रेलवे मार्ग, पानी के लिए डैम जैसी बुनियादी सुविधायें जुटाना चाहती थी। आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच के तले हजारों स्थानीय आदिवासियों ने 2005 से इसके खिलाफ संघर्ष शुरू कर दिया। इसी संघर्ष के कारण मित्तल स्टील कंपनी अपना स्टील प्लांट लगाने के लिए जमीन का अधिग्रहण करने में सफल नहीं हो पायी। अब मित्तल कंपनी बोकारो जिले में जमीन की तलाश कर रही है जहां पहले से ही हजारों लोग विस्थापित हैं और बेहतर पुनर्वास की लड़ाई लड़ रहे हैं। इस बीच मित्तल कंपनी विरोधी अभियान (झारखंड) ने 30 जून 2010 को आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच की बैठक की। इस बैठक में आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच के पदाधिकारियों के साथ-साथ कर्रा, तोरपा, कमडरा, रनिया प्रखंड से आये कार्यकर्ता भी शामिल थे। इस बैठक में निम्न संकल्प लिये गये-
- छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 की मूलधारा 46 में आदिवासियों को जो अधिकार दिया गया है, इसकी रक्षा के लिए मंच वचनबद्ध है।
- 73वें संविधान संशोधन के तहत इस इलाके की ग्राम सभा को जल-जंगल-जमीन, गांव, समाज को संचालित, विकसित तथा नियंत्रित करने का अधिकार प्राप्त है। इसकी रक्षा के लिए मंच हमेशा संघर्ष के लिए तैयार रहेगा।
- आदिवासी-मूलवासियों का परंपरागत अधिकार जमीन के साथ, जंगल, पहाड़, नदी-नालों सहित तमाम जल स्रोतों पर है; इस पर बाहरी, सरकारी या कंपनियों का हस्तक्षेप मंच कतई स्वीकार नहीं करेगा।
- विकास योजनाओं में हर आम किसान, महिला एवं युवाओं को बराबरी की भागीदारी बनाने के लिए मंच संघर्ष करेगा।
- कृषि, पर्यावरण के विकास के लिए कारो नदी, कोयल नदी सहित सभी जल स्रोतों का पानी किसानों के खेतों तक लिफ्ट एरिगेशन के तहत पहुंचाने की व्यवस्था के लिए मंच हर संभव कोशिश करेगा।
- इस इलाके में किसी तरह की परियोजनाएं, जिससे विस्थापन हो, को रोकने के लिए संघर्ष जारी रहेंगे।
- विकास के लिए क्षेत्र में कृषि तथा वन आधारित कुटीर उद्योगों की स्थापना के लिए सरकार पर दबाव डाला जाएगा।
- शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे घोटालों को रोकने का प्रयास किया जाएगा।
- जनराजनीतिक चिंतन को मजबूती देने के लिए मंच तत्पर रहेगा; ताकि झारखंड के इतिहास, धरोहर- जंगल-पानी-जमीन, गांव समाज की रक्षा के साथ ही इसके विकास को दिशा दी जा सके।
- जाति-धर्म, वर्ग और स्वार्थपरस्त राजनीति से ऊपर उठकर मंच संघर्ष जारी रखेगा।
- हम विकास विरोधी नहीं हैं- विकास चाहते हैं लेकिन जल-जंगल-जमीन, समाज, भाषा-संस्कृति की कीमत पर नहीं।
- पुनर्वास और पुनर्स्थापन नीति उनके लिए बने जो आजादी के बाद विस्थापित होकर बेघर-बार, भूमिहीन, बेरोजगारी, अशिक्षा, बीमारी और कंगाली का जीवन जी रहे हैं। जब तक इन पूर्व में विस्थापितों का पूर्ण एवं आदर्श पुनर्वास नहीं किया जाएगा; झारखण्ड में किसी तरह का विस्थापन नहीं होने दिया जाएगा।
- हमारी भाषा-संस्कृति, सामाजिक मूल्यों, धार्मिक आस्था, सरना-ससन दीरी, मंदिर, मंिस्जद, गिरजाघर को किसी पुनर्वास पैकेज से नहीं भरा जा सकता है, और न ही इनको पुनर्वासित किया जा सकता है।
साझा मंच एवं साझी पहल का निर्णय
16 मई को बोकारो में सम्पन्न जन संगठनों की संयुक्त बैठक में विभिन्न संगठनों ने वक्त की नजाकत को समझते हुए एक साझा मंच तैयार करने की पहल की है। क्योंकि उन्हें इसका आभास हो चला है कि दशकों से चले आ रहे विस्थापन की समस्या के खिलाफ आंदोलन चलाने के लिए एक साझे मंच की आवश्यकता है और साथ ही सभी विस्थापितों की जनगोलबन्दी के लिए सभी विस्थापित गांवों में व्यापक रूप से जन जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है। यहाँ चल रहे उद्योगों के कारण विस्थापित हुए लोग अपने अधिकार के लिए संघर्ष तो कर रहे हैं लेकिन साथ ही साथ दर-दर की ठोकरें भी खा रहे हैं। इनका अधिकार दिलाने के लिए एक वृहद अभियान चलाना पड़ेगा, जिसके लिए साझा प्रयास करना आवश्यक है।
इस चर्चा में जनवादी विस्थापित महापंचायत, बंरमों विस्थापित संघर्ष मोर्चा, झारखंड विस्थापित मुक्ति मोर्चा, क्रेज जनमुक्ति आन्दोलन, प्लांट अटेन्डेन्ट, विस्थापित साक्षात्कार मंच, विस्थापित संघर्ष मोर्चा, जन सांस्कृतिक फ्रंट, विस्थापित महापंचायत सहित कई विस्थापित जन संगठनों के प्रतिनिधि उपस्थित थे।