संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

राजघाट,नर्मदा किनारे कसरावद गाँववासियों ने की पुनर्वास की पोल-खोल

         नर्मदा घाटीं में,नदी किनारे राजघाट,बडवानी में (म.प्र.) जीवन
अधिकार सत्याग्रह का  छठा दिन। 15 अगस्त के झंडावंदन,16 अगस्त का आजादी उत्सव, खेती उपजाऊ का प्रदर्शन आदि के बाद आज भी एक नया,जोश लेकर कवठी, कसरावद, कुण्डिया, बोधवाडा ऐसे तहसिलवार गावों से
बहने व भाई पधारे हैं, जब
कि भवरिया,
बडा बडदा, सोंदूल के लोग लौट चुके हैं।
गांव गांव की कहानी स्वंय गाँव के लोग जाहीर कर रहे हैं। अभी भी पोलखोल जारी है। 
           कसरावद वह गाव है,जहाॅ बाबा आमटेजी ने 10 साल तक निवास करते हुए, साधना ताई और पूर्ण परिवार के
साथ आंदोलन को अमूल्य साथ दिया। कसरावद को पूर्ण डूब में बताने वाली शासन ने, न केवल सर्वेक्षण किया, घर प्लाॅटस् आबंटित किये, जिसमें दलाल जुझर बोरा ने अपनी
लाखों की कमाई की। आंदोलन की याचिका में खुले आम ऐसी भ्रष्ट्राचार की हकीकत (जमीन,घर प्लाॅट, पुनर्वास स्थल निर्माण जैसे हर
कार्य में फैली हुई) जब प्रस्तुत की गई तब हाई कोर्ट से गठित हुए न्यायाधीश श्रवण
शंकर झा आयोग की रिर्पोट छहः सालों के बाद अब महीने-दो महीनों में कोर्ट के समक्ष
रखी जायेगी। लेकिन तब तक करीबन कसरावद के सभी 350 पिरवारों को अवैज्ञानिक तरीके से बैक वाटर लेवल नीचे लाकर,डूब क्षेत्र के बाहर कर दिया
गया।ष्क्या उन्हें दिये हुए पुनर्वास के लाभ अब शासन वापस लेगी?ष् ऐसा ही सवाल खडा है। कुल 16000 परिवारों के सामने यह आकडा है
डूब से बाहर किये गए परिवारों का !
            अब तो कसरावद पर नया प्रहार हुआ
है, भ्रष्ट्राचारी, अधिकारी, कर्मचारी, दलाल मिलकर आबंटित किये गए घर
प्लाट जिस भूमि पर खडे है वह बडवानी के कुछ जमीनधारकों से खरीदी हुई निजी जमीन थी।
उन मालिकों ने कानूनी प्रक्रिया में खामियाँ दिखाकर अपना जमीन हक वापस ले लीया
है।
          भले ही कानूनी चुनौती जारी हो
आज के रोज कसरावद के लोगों को घर प्लाटस् का भी हक नही मिला है, क्यों कि घर प्लाॅट के नीचे की
आबादी भूमी अब नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के नाम पर भी नही रही है, आज के रोज! इनकी संख्या करीबन 100 परिवार है। 
           इतना ही नही विस्थापितों के
पुनर्वास के ही लिए जब कि आबादी स्थल (पुनर्वास स्थल) बने है, नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने
घर प्लाॅटस् आबंटित किये तो भी उनके पट्टे नही बनाये, न ही विस्थापितों के नाम वह
जमीन हक दिया। लेकिन नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने स्वंय 5 साल बाद घर प्लाॅट बैच सकते है,यह आदेष निकालकर घर प्लाॅटस्
खरीदी बिक्री के लिये खुले कर दिये। कही स्वंय षासकीय अधिकारी,कर्मचारियों तो कही शहरवासियांे
ने वे खरीदकर अपने बंगले बनाये। यह बिलकुल अवैध होते हुए भी कही-कही घर प्लाॅटस्
की रजिष्ट्रीयां (सेलडीडस्) बनाना भी शूरु हो गया। आज के दिन कसरावद के पुनर्वास
स्थल पर करीबन 60
मकान गैर-विस्थापितों ने बांधे
है, जबकि नर्मदा घाटी विकास
प्राधिकरण झूठा दावा ही नही, झूठा
ए.टी.आर व शपथ-पत्र भी कोर्ट मे पेश करते हुए कह रही
है-कसरावद गाव के सभी विस्थापितों को बसा दिया। जब कि मात्र 60 परिवारों को गुजरात में जमीन
मिली है। 
          कसरावद में बडी संख्या में रहने
वाले दलित,
अल्पसंख्यक, आदिवासी ही नही, मछुआरे, किसान, मजदूर भी वैकल्पिक आजीविका न
मिलने से मूल गाव में ही डटे है। खेत-मत्स्यखेत, दो हजार बडे पडों के साथ वहाँ
प्राथमिक तथा कक्षा 8वी
तक की शाला,धर्मशाला कई मंदिर, भिलटबाबा सब कुछ जीवित है।
लेकिन कसरावद के 11 घर
और कुछ खेत,
खडी फसल के साथ दो साल पहले
डूबें…….. बाबा आमटे निवासरत होते हुए उनके नीजबल कुटीया के पयडी तक पानी आया
था….एक मंदिर डूबा और स्थलांरित भी हुआ। पुनर्वास के बिना क्या पूरा गाव डूबेगा
नही ?
  
           कसरावद के सिर पर टंगी तलवार
है……..कब गिरेगी ? इसी
बीच,
 लेकिन 2013 के कानून की धारा 24(2) , के अनुसार मूल गांव की पूरी
संपत्ति पर,
आज तक गांववासियों का ही कब्जा
होने के कारण उनका भू-अर्जन पूरा रद्द होकर उन्हें अपनी पूर्व अर्जित संपत्ति पर
मालिकी हक फिर मिल चुँका है। 
     पुनर्वास का यह कैसा खेल ? जवाब तो शासन को ही देना है।
आंदोलनकारी कसरावद से केवल 4 मि.मी.
दूरीपर राजघाट मे डटे हुए है…..उनकी ताकत लाजवाब है। पानी से डूबोंने की साजिश  सफल होकर डूब राजघाट की भूमि व आवास/आबादी तक पहुंची, तो पानी से टकरायेंगे , जो व्यवस्था और विनाश –
विस्थापनकारी विकास से होगा टकराव ! 

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