राजस्थानः चुनावी साजिशों की ‘रिफाइनरी’
…तो कहानी शुरू होती है बाड़मेर जिले की बायतू तहसील में और खत्म होती है इसी जिले की बालोतरा तहसील स्थित नमक की पुरानी खदानों के बीच पचपदरा(पंचभद्रा) में, जहां युद्धस्तर पर बनाए जा रहे राष्ट्रीय राजमार्ग से उड़ती धूल में लिपटे साइबेरियाई सारस नमक की झीलों में अपने प्रवास की आखिरी सांसें गिन रहे हैं। बायतू, जोधपुर-बाड़मेर हाइवे पर बाड़मेर शहर से करीब पचास किलोमीटर पहले पड़ता है। क्षेत्रफल की दृष्टि से काफी विशाल इस ब्लॉक में आबादी बिखरी हुई सुदूर ढाणियों में रहती है। यह ब्लॉक बाड़मेर जिले में पलायन के लिहाज से काफी अहम है क्योंकि यहां के करीब अस्सी फीसदी परिवारों के लोग गुजरात के कांडला और गांधीधाम में जाकर मजदूरी करते हैं। खेती के नाम पर रेत में सिर्फ बाजरा, ग्वार, मोठ और मूंग उपजते हैं। ग्रामीण जीवनशैली का आलम ये है कि शहर से आए किसी व्यक्ति को अगर गेहूं की रोटी खानी हो तो पहले बताना पड़ता है क्योंकि ढाबों में अमूमन बाजरे की रोटी ही मिलती है। यहां सुबहें दोपहर जैसी सूनी होती हैं और शामें रात जैसी सुनसान। इसी शुष्क वीराने में चार साल पहले अचानक धरती की छाती से तेल की धार फूटी थी और प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने जनता को अब तक के सबसे बड़े पूंजी निवेश के तौर पर एक तेल रिफाइनरी का सपना दिखाया था। तब काफी विचार-विमर्श के बाद यह तय हुआ था कि रिफाइनरी बायतू ब्लॉक के लीलाणा गांव (प्रशासनिक नाम है लीलाला) में लगाई जाएगी।
लीलाला(बायतु) में रिफाइनरी का शिलान्यासमुख्य अतिथिः आम जनताअध्यक्षः आम जनताके कर कमलों के द्वारा दिनांक 21 सितम्बर 2013 को किया गया
रिफाइनरी का सरकारी शिलान्यास सोनिया गांधी के हाथों जब 22 सितम्बर को पचपदरा में किया गया, उससे एक दिन पहले ही यहां के लोगों ने खुद यह काम धरना स्थल से कुछ दूर कर डाला था। लेकिन वह धरना? 199 दिनों का आंदोलन? वह सब क्या था? आखिर पांच गांवों की एकता का मतलब क्या था? युवक ने मेरी असहजता को ताड़ते हुए समझाया कि आंदोलन तो ‘‘सिर्फ पांच लोगों ने किया था।’’ ‘‘लेकिन ज्ञापन पर तो करीब दो दर्जन लोगों के दस्तखत रोज़ थे?’’ उसने कहा, ‘‘सब उन्हीं के रिश्तेदार थे। हमारी जमीनें जा रही थीं, लेकिन हम लोग तो दस लाख प्रति बीघा मुआवजे पर तैयार हो ही गए थे। वे लोग नहीं चाहते थे कि रिफाइनरी यहां लगे। हमने कभी रिफाइनरी का विरोध नहीं किया।’’ मुझे रूपाराम की बात याद आई कि कैसे कुछ लोगों ने आंदोलन को कमज़ोर करने की कोशिश की थी और दस लाख रुपया प्रति बीघा के मुआवजे पर तैयार हो गए थे। मैंने उस युवक से खुलकर जानना चाहा कि ‘‘वे लोग’’ कौन थे ‘‘हम लोग’’ कौन हैं? उसने बताया, ‘‘पांचों गांवों के लोग चाहते थे कि रिफाइनरी यहीं लगे। उससे काम मिलता, विकास होता। लीलाणा गांव के कुछ लोग ऐसा नहीं चाहते थे क्योंकि उससे कांग्रेस को रिफाइनरी का फायदा मिल जाता। उन्हीं लोगों ने विरोध किया और लोगों को बहकाया। वे अब भी यहां रिफाइनरी लगाने के विरोधी नहीं हैं। बस ये चाहते हैं कि उसका शिलान्यास भाजपा के राज में हो। रिफाइनरी तो वैसे भी यहीं लगनी है, इसीलिए हम लोगों ने खुद ही शिलान्यास कर दिया।’’
(क्रमशः जारी )