संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

मुलताई कांड का अत्याचार जारी है

सुनील जी समाजवादी जन परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं ‘सामयिक वार्ता’ के संपादक है। पेश है मुलताई गोलीकांड और डॉ. सुनीलम की उम्रकैद पर उनका वक्तव्य;

मध्यप्रदेश में बैतूल की एक अदालत द्वारा किसान नेता एवं पूर्व विधायक डॉ० सुनीलम और उनके दो साथियों को हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा का फैसला अप्रत्याशित, हैरान करने वाला और अफसोसजनक है। समाजवादी जन परिषद, जन संघर्ष मोर्चा मध्यप्रदेश, जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय, भारत जन आंदोलन तथा देश भर से कई जन संगठनों ने इसकी निंदा की है।

चौदह बरस पहले 12 जनवरी 1998 को बैतूल जिले में मुलताई नगर में अपनी नष्ट हुई फसल के मुआवजे के लिए आंदोलन कर रहे किसानों पर पुलिस ने गोली चलाई थी। इस गोलीकांड में 23 किसान मारे गए थे। यह शायद किसानों पर हुआ आजाद भारत का सबसे बड़ा गोलीकांड था। इस घटना में फायर ब्रिगेड का एक ड्राईवर भी मारा गया था। इसी ड्राईवर की हत्या के मामले में यह सजा सुनाई गई है।
इस मामले में सबसे बड़ा सवाल उठता है कि मुलताई गोलीकांड में मारे गए 23 किसानों की हत्या का क्या हुआ ? उनके लिए कौन दोषी है और किसे सजा दी गई ? इस गोलीकांड की जांच के लिए एक सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश को लेकर जांच आयोग बनाया गया था। किन्तु इस आयोग ने किसी को दोषी नहीं पाया। किसी भी अफसर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। किसानों को गोली से भूनने वाले अफसर प्रमोशन पाकर ऊपर पहुंच गए और आंदोलन के नेता को बिलकुल फर्जी तरीके से मुकदमा लगाकर उम्र कैद दे दी गई। यह बिलकुल विश्वसनीय नहीं है कि डॉ० सुनीलम, प्रह्लाद अग्रवाल और परमंडल गांव के किसान शेषु राव ने उस ड्राईवर को पत्थरों से मार कर जान ले ली होगी। यह भी गौरतलब है कि यह सजा भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश) की मदद से हुई, उसे भी अभी एक माह पहले सितंबर 2012 में ही इस प्रकरण में जोड़ा गया है।

यह गोलीकांड मध्यप्रदेश में कांग्रेस शासन के कार्यकाल में हुआ था। तब भारतीय जनता पार्टी ने इससे फैले असंतोष को भुनाने की कोशिश की और विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के प्रचार विज्ञापनों में मुलताई की लाशों के रंगीन चित्र भी छापे थे। किन्तु सत्ता में आने के बाद न तो भाजपा ने इस गोलीकांड के दोषियों को सजा दिलाने की कोई कोशिश की और न ही आंदोलनकारियों व किसानों पर लगाए गए दर्जनों फर्जी मुकदमों को खतम करने की कार्रवाई की। जबकि इसी बीच भाजपा सरकार ने अपने कार्यकर्ताओं पर से एक लाख से ज्यादा मुकदमे खतम करवाए। यह एक और उदाहरण है कि कैसे दोनों प्रमुख राजनैतिक दलों का चरित्र और आचरण एक ही है और जनता के खिलाफ साजिशें रचने में वे एक हो जाते हैं।

दूसरा सवाल यह है कि किसानों की फसल के नुकसान के मुआवजे को लेकर इतना बड़ा गोलीकांड हुआ, क्या किसानों की इतनी बड़ी शहादत के बाद उनकी समस्या का स्थायी हल निकला ? इसका जवाब भी है ‘नहीं’। इसके बाद भी लगातार फसलें नष्ट होने, मुआवजा और फसल बीमा को लेकर आंदोलन होते रहते हैं। फसल बीमा की योजनाओं की असफलता मुलताई कांड में दिखाई दी थी, और बाद में भी दिखाई देती है। मध्यप्रदेश के किसान लगातार बुरी हालत में हैं। मध्यप्रदेश लगातार देश के उन पांच राज्यों में शुमार है जहां सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या करते हैं।

भारत की न्याय व्यवस्था में कितना अन्याय छिपा है, यह फैसला उसकी एक और मिसाल है। भारत की पुलिस व्यवस्था, न्याय-व्यवस्था, राजनीति और किसान-विरोधी विकास नीति सबकी विडंबना इसमें जाहिर होती है। मुलताई कांड के घाव फिर हरे हो गए हैं। कह सकते हैं कि मुलताई का अत्याचार चैदह साल बाद भी जारी है।
 

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