सिंगरौली: बीमारियां बांटते ताप बिजली घर
भारत का तापघर कहे जाने वाले सिंगरौली में कोयले का अकूत भंडार है और यहां कई ताप उर्जा घर हैं। नतीजतन इस इलाके को बेहद सम्पन्न होना चाहिए । लेकिन सच्चाई यह है कि यह गरीब और अत्यंत प्रदूषित क्षेत्र है। यहां के लोग असाधारण बीमारियों से जूझ रहे हैं। दिल्ली स्थित सेंटर फॅार साइंस एंड एनव्हायरमेंट ने यहां जांच कर पाया कि कोयले में पाया जाने वाला घातक विषैला तत्व पारा धीरे- धीरे लोगों के घरों, भोजन, पानी और खून में भी प्रवेश कर रहा है। पारे के इन्हीं खतरों से आगाह कराता सुंगध जुनेजाध/चन्द्रभूषण यह महत्वपूर्ण लेख;
दुनिया भर में पारे का उपयोग बेटरी, पेंट, प्लास्टिक, चिकित्सा उपकरण, कास्टिक सोड़ा, कागज, कीटनाशी, ट्यूबलाइट एवं ऊर्जा बचाने वाले सीएफएल बल्ब में किया जाता है । इसीलिए इन कारखानों के अपषिष्ट में पारा किसी न किसी रूप में पाया जाता है। पारा या उसके यौगिक एक बार पर्यावरण में आने पर भोजन श्रृंखला के अलग-अलग स्तर पर एकत्र होते हैं एवं उनकी मात्रा भी बढ़ती रहती है। मनुष्य में पारा मछली, सब्जी, अनाज, दूध, पेयजल, हवा आदि स्त्रोतों से पहुंच कर जमा होता रहता है। माना जाता है कि मनुष्य प्रतिदिन भोजन से 0.005 मिलीग्राम पारा ग्रहण करता है। मिथाईल मरक्युरी पारे का सबसे विषाक्त रूप है, क्योंकि मानव शरीर इसका 90 प्रतिषत से ज्यादा भाग अवषोषित करता है। पारे की विषेषता यह है कि यह कोषिकाओं में उपस्थित प्रोटीन से जुड़कर शरीर के विभिन्न अंगों में पहुंच कर अपना प्रभाव डालता है। प्रारम्भ में पारे की विषाक्तता के लक्षण नहीं दिखाई देते हैं। हानिकारक प्रभाव के लक्षण तभी दिखाई देते हैं जब शरीर में एकत्रित पारे की मात्रा ज्यादा होनेे लगती है। पारे की विषाक्तता का अंतिम प्रहार दिमाग एवं केन्द्रीय स्नायुतंत्र पर होता है, जहां क्षति पहुंचने से लकवा, अंधापन एवं याददाष्त में कमी, महिलाओं में मासिक धर्म की अनियमितता एवं कुछ अन्य प्रभाव पैदा होते हैं।