छत्तीसगढ़ : हसदेव अरण्य क्षेत्र में प्रस्तावित मदनपुर साउथ कोयला खदान के विरोध में खड़े स्थानीय समुदाय के प्रति एकजुटता प्रकट करता है-एन.ए.पी.एम.
केंद्रीय कोयला मंत्रालय द्वारा कोयला धारक क्षेत्र अधिनियम, 1957 के तहत 700 हेक्टेयर से अधिक वन और आदिवासी भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना कई केंद्रीय कानूनों – PESA, 1996; FRA, 2006; EIA अधिसूचना, 2006; और LARR, 2013 – के सार्वजनिक परामर्श प्रावधानों को दरकिनार करने का प्रयास है
आदिवासी ग्राम सभाओं के संवैधानिक अधिकारों को ध्यान रखते हुए सरकार भूमि अधिग्रहण अधिसूचना वापस ले और ग्राम सभाओं द्वारा सामुदायिक वन संसाधनों पर अधिकार की मांग को स्वीकार करे
20 फरवरी, 2021: जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एन.ए.पी.एम.) कोरबा, छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में प्रस्तावित मदनपुर साऊथ कोयला खदान के लिए केंद्रीय कोयला मंत्रालय द्वारा भूमि अधिग्रहण के प्रयास की घोर निंदा करता है। यह प्रतिक्रिया प्रभावित गोंड आदिवासी और अन्य स्थानीय समुदायों के परामर्श और सहमति के बिना की जा रही है। 24 दिसंबर 2020 को कोयला मंत्रालय ने 712.072 हेक्टेयर वन और आदिवासी भूमि को कोयला धारक क्षेत्र (अर्जन और विकास) अधिनियम, 1957 के प्रावधानों के तहत अधिग्रहण करने की अधिसूचना जारी की, जिसमें 648.601 हेक्टेयर वन भूमि और 63.471 हेक्टेयर गैर-वन और निजी भूमि है। इस भूमि का अधिकांश भाग हसदेव अरण्य के घने और जैवविविध वन क्षेत्र में है। जिसे इस क्षेत्र में प्रस्तावित कई कोयला खनन परियोजनाओं द्वारा नष्ट कर दिया जाएगा। इस खनन परियोजना के लिए निर्धारित वन क्षेत्र पर राज्य सरकार द्वारा एक हाथी रिजर्व प्रस्तावित भी है।
मदनपुर साऊथ खदान 2016 में आंध्र प्रदेश मिनरल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (APMDC) को केंद्र सरकार द्वारा आवंटित किया गया था। APMDC ने एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड (जो आदित्य बिरला औद्योगिक समूह का हिस्सा है ) को निजी माइन डेवलपर और ऑपरेटर (MDO) के रूप में चुना है। इस परियोजना को भूमि अधिग्रहण और खनन शुरू करने से पहले आवश्यक पर्यावरणीय और वन मंजूरी अभी तक प्राप्त नहीं हुई है। हसदेव अरण्य क्षेत्र के गोंड आदिवासी और वन आश्रित समुदायों द्वारा परियोजना का कड़ा विरोध किया गया है। प्रस्ताविक माइन से मोरगा और केतमा के दो गांवों में अनुमानित 90 परिवारों का विस्थापन होगा। साथ ही क्षेत्र में रहने वाले सैकड़ों परिवारों की आजीविका जंगल, नदिया और अन्य प्राकृतिक संसाधन पर आधारित है, जो खनन के कारण पूरी तरह से नष्ट हो जायेंगे।
आदिवासी भूमि के अधिग्रहण और वन भूमि के गैर-वन उपयोग के लिए कई ऐसे केंद्र कानून है जिनके तहत प्रभावित समुदायों की पूर्व परामर्श और सहमति आवश्यक है। इनमें वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980; पंचायत के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा); EIA अधिसूचना, 2006; वन अधिकार अधिनियम, 2006; और भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजा एवं पारदर्शिता का अधिकार, सुधार तथा पुनर्वास अधिनियम, 2013, शामिल हैं। परन्तु कोयला धारक क्षेत्र (अर्जन और विकास) अधिनियम के तहत प्रभावित समुदायों के परामर्श और सहमति के बिना भूमि अधिग्रहण किया जा सकता है। अधिग्रहण के विरोध मैं अपनी आपत्तियां प्रस्तुत करने के लिए उन्हें केवल 30 दिन दिए जाते है। भूमि अधिग्रहण के लिए इस पुराने और सख्त अधिनियम का उपयोग कोयला मंत्रालय द्वारा सार्वजनिक परामर्श और सहमति के महत्वपूर्ण प्रावधानों को दरकिनार करने का एक स्पष्ट प्रयास है।
आदिवासी और अन्य स्थानीय समुदाय, जो मदनपुर साऊथ खदान के कारण अपनी जमीन और जंगल खो देंगे, सरकार के यह गैरकानूनी और अवैध प्रयास का सख्त विरोध कर रहे है। 16 जनवरी को हसदेव अरण्य क्षेत्र के दस ग्राम सभाओं ने औपचारिक रूप से केंद्रीय कोयला मंत्रालय और छत्तीसगढ़ सरकार के साथ परियोजना के प्रति और सार्वजनिक परामर्श प्रक्रियाओं की अनुपस्थिति पर अपना विरोध दर्ज कराया। खदान से प्रभावित गाँव मोरगा में चल रहे विरोध प्रदर्शनों में क्षेत्र के अन्य गाँवों ने मजबूत भागीदारी दी है।
11 फरवरी को हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले सार्वजनिक सम्मलेन में हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में तीन अन्य प्रस्तावित कोयला खदान – परसा, पटुरिया और गिधमुरी – से प्रभावित सैकड़ों ग्रामीण शामिल हुए। क्षेत्र के 21 ग्राम सभाओं द्वारा वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत सामुदायिक वन संसाधनों के अधिकार की मांग भी लंबित है। वन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के तहत दावों के औपचारिक निपटान के बिना वन भूमि का गैर-वन उपयोग के लिए डायवर्सन नहीं किया जा सकता है।
हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में मदनपुर साऊथ कोयला खदान और अन्य प्रस्तावित खननों का विरोध करते गोंड आदिवासी और स्थानीय समुदायों के साथ एन.ए.पी.एम. एकजुटता में खड़ा है। यह परियोजनाओं – जो उनकी आजीविका, पर्यावरण, स्वास्थ्य और जीवन के लिय गंभीर रूप से हानिकारक हैं – को रद्द करने की उनकी वैध मांग का हम पूरा समर्थन करते हैं।
कोयला मंत्रालय तुरंत कोयला धारक क्षेत्र (अर्जन और विकास) अधिनियम, 1957 के प्रावधानों द्वारा भूमि अधिग्रहण के लिए अपनी अनुचित और अवैध अधिसूचना वापस ले। सार्वजनिक परामर्श और स्थानीय समुदायों की सहमति के लिए स्थापित प्रक्रियाओं को दरकिनार करने के लिए पुराने कानूनों का उपयोग निंदनीय है।
हम मांग करते हैं कि प्रभावित ग्राम सभाओं द्वारा वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत सामुदायिक वन संसाधनों के दावों को तत्काल मान्यता दी जाये।
केंद्र सरकार द्वारा हसदेव अरण्य और अन्य अत्यधिक जैवविविध वन क्षेत्रो को कोयला खनन परियोजनाओं के लिए ‘नो गो‘ क्षेत्र बनाने का आदेश फिर से लागू किया जाये।
एनएपीएम द्वारा जारी विज्ञप्ति