संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

कंपनियां आदिवासी क्षेत्र छोड़ो; चुटका परमाणु प्लांट प्रभावितों की घोषणा

9 अगस्त 2020। भारत छोड़ो आंदोलन की 78वीं वर्षगाँठ पर भारत सरकार की कोर्पोरेट गुलामी के खिलाफ चुटका परमाणु परियोजना से प्रभावित आदिवासी समुदाय ने मध्य प्रदेश के मंडला जिले के चुटका गाँव में परमाणु परियोजना के खिलाफ प्रदर्शन किया है। मध्य प्रदेश के मंडला और सिवनी जिले में चुटका सहित 54 आदिवासी गांवों के लगभग 60 हजार लोगों पर परमाणु विकिरण का खतरा पैदा हो सकता है। यह खतरा प्रस्तावित 14 सौ मेगावाट की चुटका परमाणु विद्युत परियोजना के कारण बढ़ गया है। आशंका है कि इस रेडिएशन का असर चुटका गांव के आसपास के 30 किलोमीटर दायरे तक हो सकता है। यही नहीं, इन 54 गांवों में से चार गांव चुटका, टाटीघाट, कुंडा गांव और मानेगांव 1990 में नर्मदा नदी पर बने बरगी बांध के कारण पहले ही विस्थापित हो चुके हैं। अब ये दूसरी बार विस्थापित होने के कगार पर खड़े हैं। विस्थापन के साथ-साथ इन 54 गांवों के ग्रामीणों पर परमाणु रेडिएशन का भी खतरा मंडराएगा।

9 अगस्त 2020 को विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर चुटका परमाणु परियोजना से प्रभावित आदिवासी समुदाय एवं अन्य परम्परागत निवासियों ने कंपनियां आदिवासी क्षेत्र छोड़ो का नारा दिया है। बरगी के बांध की त्रासदी झेल रहे महिला पुरुषों ने कहा कि बरगी बांध विस्थापितो का पुनर्वास करो और चुटका परियोजना रद्द करो। चुटका परमाणु परियोजना बरगी बांध के जलग्रहण क्षेत्र विस्थापित गांव में प्रस्तावित है।

ज्ञात हो कि भू अर्जन अधिनियम 1894 के माध्यम से मंडला कलेक्ट द्वारा 26 जुन 2012 को धारा 4 के अन्तर्गत भूमि अधिग्रहण के लिए ग्राम वासियो से सहमति मांगी गई थी। जिसका 25 जुलाई 2012 को लिखित में ग्रामीणों द्वारा विरोध किया गया। फिर भी धारा 6 का प्रकाशन कर 26 अगस्त 2013 को एसडीएम निवास द्वारा उन सभी काशतारो को धारा 7 की नोटिस भेजा गया जिनका भूमि अधिग्रहण होना था।

इस नोटिस का भी सामूहिक और वयक्तिगत आपत्ति 10 सितम्बर 2013 को किया गया। आपत्ति में लिखा गया कि मध्यप्रदेश भू राजस्व संहिता 1959 की धारा 165 में पांचवीं अनुसूची के तहत क्षेत्रों में 26 जनवरी 1977 के पश्चात आदिम जनजाति के सदस्यों की भूमि गैर आदिवासी वयक्ति के हित में अंतरण पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया गया है। कलेक्टर को भी यह अधिकार नहीं है कि आदमी जनजाति के सदस्यों की भूमि के अंतरण की अनुमति प्रदान करे।परन्तु भू अर्जन अधिनियम 1894 की धारा 17 के अर्जेंसी क्लाज के तहत कमिश्नर जबलपुर ने अनुमति प्रदान कर दिया। यह आदिवासी क्षेत्रों में निवास कर रहे आदिवासी समुदाय के साथ अन्याय है,जहां उनके द्वारा लिए लिए गए निर्णयों का सम्मान नहीं है।इसी प्रकार 12 दिसंबर 2017 को मंडला में आयोजित चेतावनी सभा कार्यक्रम के माध्यम से क्षेत्र की 101 ग्राम सभाओं ने प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल को परियोजना पर पुनर्विचार हेतु ज्ञापन कलेक्टर मंडला के द्वारा भेजा गया था। परन्तु उक्त ज्ञापन का भी आज दिनांक तक कोई जबाब नहीं आया है।

क्या इसे न्याय का शासन कहा जा सकता है? इसलिए करोना संक्रमण की महामारी में विश्व आदिवासी दिवस पर अपने अपने गांव में शारीरिक दूरी एवं मुंह ढक कर इस कार्यक्रम में शामिल होकर संकल्प लिया है और शाम अपने घरों में 9 दीप भी जलाएंगे। यह संकल्प संविधान में दिया गया जीवन जीने के मौलिक अधिकार अनुच्छेद 21 से प्रेरित है। इस कार्यक्रम में क्षेत्र के चुटका,मोहगांव, मानेगांव, पाठा,पिंडरई,छिंदवाहा आदि गांव शामिल हुए।

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