पहले पास्को, अब जिंदल : ढिंकिया के ग्रामीण अब भी अपनी जमीन बचाने के लिए सघर्षरत
उड़ीसा 3 फरवरी 2020। पास्को विरोधी आंदोलन के सदस्य पोस्को से अपनी लड़ाई जितने के बाद फिलहाल जिंदल की जेएसडब्ल्यू कंपनी द्वारा प्रस्तावित पांच परियोजनाओं का विरोध कर रहे हैं। उनका दावा है कि जेएसडब्ल्यू द्वारा प्रस्तावित परियोजनाएं आवश्यक पर्यावरणीय मंजूरी के मानकों पर अधूरी हैं। सबरंग इंडिया से साभार रिपोर्ट जिसका हिंदी अनुवाद विभांशु केशव ने किया है;
मैसर्स जेएसडब्ल्यू उत्कल स्टील लिमिटेड की पांच परियोजनाओं द्वारा होने वाले पर्यावरणीय क्षति के संबंध में ओडिशा के ढिंकिया गांव के निवासियों ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को पत्र लिखा है। ग्रामीणों ने जिंदल और पास्को विरोधी आंदोलन के देवेंद्र स्वैन की मदद से पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के सचिव सीके मिश्रा को लिखे पत्र के माध्यम से पांचो परियोजनाओं के प्रस्तावित निर्माण के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया है।
मैसर्स जेएसडब्ल्यू उत्कल स्टील लिमिटेड द्वारा प्रस्तावित परियोजनाएं निम्नलिखित हैं-
-13।2 एमटीपीए कच्चे इस्पात का एकीकृत इस्पात संयंत्र
-10 एमटीपीए सीमेंट पीसने की इकाई
-900 मेगावाट कैप्टिव पावर प्लांट
-221,500 वर्ग किलोमीटर के जटाधारी टाउनशिप में किसी भी प्रकार के मौसम में कार्य कर सकने वाले 52 MTPA क्षमता के ग्रीनफील्ड, मल्टी कार्गो कैप्टिव जेटी का निर्माण
ओडिशा के जगतसिंहपुर जिले में पड़ने वाले ढिंकिया के ग्रामीणों का मानना है कि परियोजनाओं से स्थानीय आजीविका और पारिस्थितिकी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। परियोजना से स्थानीय आजीविका और पारिस्थितिकी को होने वाली क्षति मंत्रालय के अपने रिकॉर्ड में भी साबित हुई है। परियोजनाओं के लिए दी गई पर्यावरणीय मंजूरी का विरोध करते हुए, ग्रामीणों ने कहा है कि परियोजना प्रस्तावकों द्वारा परियोजना मंजूर कराने के लिए परियोजना के पैमाने और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव के बारे में भ्रामक जानकारी दी गई है।
परियोजना प्रस्तावकों मैसर्स जेएसडब्ल्यू उत्कल स्टील लिमिटेड द्वारा दी गई भ्रामक जानकारी के खिलाफ ग्रामीणों की आपत्तियां:
-परियोजना प्रस्तवाक मैसर्स जेएसडब्ल्यू उत्कल स्टील लिमिटेड द्वारा दो परियोजनाओं के बारे में जानकारी दी गई है। जबकि देखा जाय तो ये अलग-अलग पांच योजनाएं हैं। जैसे कि पहले प्रोजेक्ट के तहत तीन अलग-अलग प्लांट का निर्माण होगा- स्टील प्लांट, थर्मल पावर प्लांट और सीमेंट ग्राइंडिंग प्लांट। परियोजना मंजूर कराने के लिए इन तीनों प्लांट को धातुकर्म उद्योग, लौह और अलौह (Metallurgical Industries, ferrous & non-ferrous) टर्म का प्रयोग करते हुए एक की संख्या बताई गई है।
-परियोजना प्रस्तावक ने 20 दिसंबर, 2019 की जन सुनवाई में एक टाउनशिप के निर्माण का उल्लेख नहीं किया था। टाउनशिप एक अन्य निर्माण परियोजना है। इस परियोजना को ओडिशा राज्य प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए) द्वारा अलग से स्वीकृति प्रदान की गई है। स्वीकृति प्राप्त करने के लिए मैसर्स JSW उत्कल स्टील ने झूठे और भ्रामक डेटा का प्रयोग किया, जिसके तहत प्रोजेक्ट को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। इस तोड़-मरोड़ के सहारे मैसर्स JSW उत्कल स्टील ने सभी विशेषज्ञ मूल्यांकन समितियों (EAC) द्वारा विस्तृत जांच और व्यापक मूल्यांकन से बच निकलने का रास्ता तैयार किया। ग्रामीणों का कहना है कि मैसर्स JSW उत्कल स्टील केवल दो परियोजनाओं का उल्लेख कर सभी योजनाओं के लिए आवश्यक सार्वजनिक सुनवाई से बच निकला है। दो परियोजनाओं के उल्लेख से केवल दो सार्वजनिक सुनवाई होगी।
-ग्रामीणों का यह भी आरोप है कि परियोजना के तहत लगने वाले सभी प्लांट के लिए आवश्यक सामान्य पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) रिपोर्ट तैयार नहीं की गई है। ग्रामीणों का कहना है कि सामान्य ईआईए रिपोर्ट के बिना, परियोजना से प्रभावित लोगों और संबंधित नागरिकों को एकीकृत परियोजना के सभी घटकों से स्थानीय आजीविका और पारिस्थितिकी पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों की व्यापक समीक्षा करने का अवसर नहीं मिलेगा।
-ग्रामीणों ने परियोजना के लिए कटक स्थित नदी, महानदी से की जाने वाली जलापूर्ति पर आपत्ति जताई है। ग्रामीणों का कहना है कि परियोजना के लिए जिस स्थान से जलापूर्ति प्रस्तावित है, वह इलाका पहले से ही पानी को लेकर संकटग्रस्त है। गौरतलब है कि के रॉय पॉल कमेटी ने सिफारिश की थी कि पानी की आवश्यकता के स्रोत और उसकी स्थिरता का अध्ययन किया जाए, लेकिन योजना बनाते समय इस सावधानी को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया। योजना में भीषण बाढ़, चक्रवात और योजना से प्राकृतिक जल निकासी पैटर्न पर पड़ने वाले प्रभाव का कोई आकलन या विश्लेषण नहीं किया गया है।
अपनी आपत्तियों के निस्तारण के लिए जिंदल और पास्को विरोधी आंदोलन के सदस्यों ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के सचिव सीके मिश्रा को लिखे पत्र के माध्यम से अपनी मांग रखी है। उनकी मांगों के अनुसार-
-20 दिसंबर 2019 को हुई जन सुनवाई को आपका कार्यालय संज्ञान में लेकर उचित कार्रवाई करे।
– प्रोजेक्ट को तोड़-मरोड़, गलत और भ्रामक डेटा के माध्यम से जनता और अनुमति प्रदान करने वाली समितियों को गुमराह कर निर्मित हो रहे प्रोजेक्ट्स को रद्द किया जाए।
स्थानीय ग्रामीण सुपारी की खेती बचाए रखने के लिए संघर्षरत हैं। इस इलाके में लगभग 50 करोड़ रुपए का सुपारी उद्योग है। मछली पकड़ने और कृषि के अलावा सुपारी उद्योग स्थानीय लोगों की आजीविका का महत्त्वपूर्ण श्रोत है। सज्जन जिंदल की जेएसडब्ल्यू उत्कल स्टील से अपनी जमीन और पर्यावरण बचाने की लड़ाई लड़ रहे ग्रामीणों ने इसके पहले भी दक्षिण कोरियाई स्टील दिग्गज पास्को के खिलाफ भी जमीन बचाने की लड़ाई लड़ी थी।
दक्षिण कोरियाई स्टील दिग्गज पास्को इस इलाके में अपने प्लांट के लिए जमीन अधिगृहीत करना चाहती थी। The Hindu में प्रकाशित रिपोर्ट्स के अनुसार पास्को के खिलाफ हुए आंदोलन को तोड़ने के लिए नेतृत्वकर्ताओं पर हत्या, बलात्कार, अपहरण और डकैती जैसे संगीन अपराधों में गैर जमानती मुकदमें दर्ज कराए गए थे। इसी क्रम में जगतसिंहपुर और कुजांग में 1,500 ग्रामीणों को अदालतों के बीच बंद कर दिया गया था। उनके खिलाफ 2500 गैर जमानती वारंट जारी किए गए थे। 22 मामलों में अभियुक्त बनाए गए स्वैन ने बताया कि हमने 2005 से पहले एक पुलिस स्टेशन भी नहीं देखा था, जब भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हुई थी। इन मुकदमों को बंद कर देना चाहिए।
जेएसडब्ल्यू द्वारा पोस्को भूमि पर संयंत्र स्थापित करने के बारे में एक ग्रामीण ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि पॉस्को भूमि पर जेएसडब्ल्यू संयंत्र स्थापित करना अवैध है। नियमतः राज्य सरकार को लोगों को जमीन वापस करनी चाहिए थी क्योंकि इसके अधिग्रहण के पांच साल के भीतर कोई परियोजना स्थापित नहीं की जा सकी थी। ग्रामीण ने यह भी आरोप लगाया कि पॉस्को के लिए भूमि अधिग्रहण के दौरान सुपारी की लताओं को हटा दिए जाने के कारण सुपारी की खेती बुरी तरह प्रभावित हुई थी। जिससे लगभग 5,000 सुपारी श्रमिक बेरोजगार हुए थे। इसके एवज में सरकार ने प्रत्येक सुपारी श्रमिक को 2500 रूपये भत्ता देने का निर्णय लिया था। सुपारी खेत मालिक को मुआवजे का 20 प्रतिशत दिए जाने का निर्णय लिया गया था। ग्रामीण ने बताया कि अभी तक 99 प्रतिशत श्रमिकों को मुआवजा और भत्ता प्राप्त नहीं हुआ है।