जेपी कंपनी को पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की मिली सबसे बड़ी सजा
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने 4 मई 2012 को एक महत्वपूर्ण फैसले में जेपी कंपनी के बघेरी (नालागढ़) स्थित थर्मल पॉवर प्लांट को नष्ट करने के आदेश दिए हैं।
वहीं, जेपी कंपनी पर सौ करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है। न्यायाधीश दीपक गुप्ता एवं न्यायाधीश संजय करोल की खंडपीठ ने कहा कि जेपी कंपनी ने सोलन जिले के बघेरी गांव में सीमेंट प्लांट झूठे दस्तावेजों के आधार पर लगाया है।
हाईकोर्ट ने जेपी कंपनी के सीमेंट प्लांट के लिए दी गई विभिन्न सरकारी स्वीकृतियों के मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच टीम का गठन किया है। कमेटी सतर्कता विभाग के अतिरिक्त महानिदेशक केसी सडयाल की अध्यक्षता में गठित की गई है। हिमांशु मिश्रा उपमहानिदेशक सतर्कता को कमेटी का सदस्य बनाया गया है। हाईकोर्ट ने कहा कि कमेटी एक पुलिस उपअधीक्षक को इस कमेटी का सदस्य बना सकती है।
हाईकोर्ट ने जांच कमेटी को आदेश दिया कि वह जेपी कंपनी को अनुचित लाभ देने के मामले में सरकारी अधिकारियों की भूमिका की जांच करे। जांच कमेटी यह भी जांच करेगी कि कहीं कंपनी ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर सरकारी अधिकारी को बिजनेस आउटलेट तो नहीं दिए हैं? वहीं, उन्हें अपने विभाग में दोबारा रोजगार दिया या नहीं?
हाईकोर्ट ने कहा कि यदि प्रदूषण नियंत्रण विभाग और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और पर्यावरण असेसमेंट कमेटी के सदस्यों ने अपनी भूमिका सही निभाई होती तो आज यह स्थिति न होती। हाईकोर्ट ने कहा कि हम यह विश्वास से कह सकते है कि अधिकारियों की मिलीभगत और ढुलमुल रवैये के कारण ही जेपी कंपनी को सरकारी स्वीकृतियां मिलीं।
अतः इस मामले के लिए विशेष जांच कमेटी का गठन आवश्यक है जो इस मामले की जांच करे और उन अधिकारियों की पहचान करें, जिन्होंने कंपनी की मदद की है। जांच कमेटी इन अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की अनुशंसा करेगी।
न्यायालय ने पाया कि जेपी कंपनी ने कदम-कदम पर सरकारी एजेंसियों को गुमराह किया है। न्यायालय ने कहा कि अब समय आ गया है कि कानून का उल्लंघन करने वालों के साथ सख्ती से निपटा जाए। कोर्ट ने माना कि जेपी कंपनी ने बिना परमिशन लिए थर्मल पॉवर प्लांट बना लिया। न्यायाधीश दीपक गुप्ता ने फैसले में कहा कि मुख्यमंत्री ने 2007 में फैसला लिया था कि थर्मल प्लांट नहीं लगेंगे, लेकिन एक वर्ष के भीतर नवंबर 2008 में फैसले को बिना किसी मजबूत आधार के पलट दिया गया।
न्यायालय ने पाया कि प्लांट का मूल्य 450 से 500 करोड़ रुपए था, जबकि कंपनी ने इसे 900 करोड़ से कम का प्लांट बताया। इसका उद्देश्य था पर्यावरण संबंधी परमिशन लेने से बचना। न्यायालय ने दस्तावेजों के अवलोकन के बाद पाया कि जेपी कंपनी का पूरा प्लांट झूठ के आधार पर खड़ा किया गया है। कंपनी ने बताया था वह केवल गाइडिंग यूनिट लगा रही है। यह सारा खेल एनवायर्नमेंट इम्पैक्ट असेस्मेंट नोटिफिकेशन 2006 के प्रावधानों के मध्य नजर किया गया था।
वर्ष 2009 में तैयार की गई ईआईए रिपोर्ट झूठी है। इन्वायर्नमेंट असेस्मेंट कमेटी को जेपी कंपनी ने गुमराह किया। न्यायालय ने पाया कि सरकार ने बिना किसी कानूनी आदेश के जमीन जेपी कंपनी को दे दी। ग्रामीणों की सहमति लिये बिना ऐसा किया गया, जो गैर कानूनी है। जेपी कंपनी ने सीमेंट प्लांट गैरकानूनी ढंग से बनाया है, लेकिन न्यायालय को इस बात को भी ध्यान में रखना है कि जिन सैकड़ों ग्रामवासियों ने माल सप्लाई के लिए ट्रक खरीदे हैं, उन्हें भी नुकसान न पहुंचे।
न्यायालय ने कहा कि सीमेंट प्लांट चलाने की आज्ञा एक एक्सेशन के तौर पर दी जा रही है। अतः यह स्पष्ट किया जाता है कि यदि कंपनी भविष्य में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की दोषी पाई गई तो न्यायालय सीमेंट प्लांट बंद करने के आदेश दे सकता है। न्यायालय ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कहा कि वह इस मामले की गहनता से निगरानी और कंपनी द्वारा किए गए किसी भी उल्लंघन को न्यायालय के ध्यान में लाए। इसके लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सतर्क होना पड़ेगा।
न्यायालय ने कहा-हमें यह सुनिश्चित करना है कि जेपी कंपनी भविष्य में ऐसा न कर सके अतः प्रोजेक्ट का 25 फीसदी यानि 100 करोड़ रुपए का हर्जाना कंपनी पर लगाया जा रहा है। इस राशि को प्रदेश सरकार उस क्षेत्र के पर्यावरण एवं वातावरण को बनाए रखने पर खर्च करेगी। न्यायालय ने कहा कि 10 करोड़ रुपए ग्रामवासियों कि विभिन्न सुविधाएं देने लिए दिए जाएं।