दमन, उत्पीड़न के बावजूद भी जारी है जैतापुर परमाणु संयंत्र के खिलाफ संघर्ष
भारत एवं अमरीका के परमाणु समझौते के बाद भारत सरकार ने अपनी परमाणु शक्ति को बढ़ाने का और प्रयत्न किया है। अमरीका के बाद भारत सरकार ने रूस एवं फ्रांस के साथ भी अपना परमाणु समझौता बनाते हुए महाराष्ट्र के जैतापुर में 9900 मेगावाट वाले परमाणु ऊर्जा संयंत्र की घोषणा की। जैतापुर के इस परमाणु संयंत्र को फ्रांस की आरेवा कंपनी द्वारा बनाया जा रहा है। गौरतलब है कि आरेवा कंपनी का रिएक्टर, जो इस संयंत्र में इस्तेमाल किया जाएगा, अभी तक कहीं भी परीक्षित नहीं हुआ है लेकिन परमाणु विभाग के मुताबिक यह रिएक्टर लोगों के लिए बिल्कुल सुरक्षित है, शायद यह कहते हुए वह चेर्नोबिल एवं हाल ही में जापान में हुए परमाणु हादसों को भूल जाते हैं या ध्यान ही नहीं देना चाहते।
जैतापुर परमाणु संयंत्र परियोजना कुल 968 हेक्टेयर जमीन पर बनाने की कोशिश चल रही है। यह पांच गांवों- मादवन, निवेली, कारेल, मिठगावने व वर्लीवडा के हजारों लोगों को अपनी जमीन से विस्थापित होने पर मजबूर करेगी। परमाणु एनर्जी विभाग के हिसाब से यह जमीन बंजर है लेकिन कृष्णा एवं गोदावरी तट पर स्थित रत्नागिरी जिले के इन गांवों में खेती एवं आम की पैदावार भारी मात्रा में होती है। दुनियाभर में मशहूर ‘अलफैन्सो’ आम का इसी जिले में उत्पादन होता है।
महाराष्ट्र के कश्मीर कहे जाने वाले इस जिले में ‘आरेवा’ के परमाणु संयंत्र के खिलाफ शुरू से ही लोगों का संघर्ष जारी है। पिछले दिनों 6-7 मार्च को जैतापुर में लोगों के जन सुनवाई पर महाराष्ट्र पुलिस ने रोक लगा दी एवं जैतापुर संघर्ष के कार्यकर्ताओं को हिरासत में भी ले लिया गया। आंदोलन में पूर्व जस्टिस पी.वी. सावंत, बी.जी. कोलस पाटिल एवं सामाजिक कार्यकर्ता वैशाली पाटिल को इस जन सुनवाई में जाने से पहले ही महाराष्ट्र पुलिस ने यह कहते हुए कि इस तरह की जन सुनवाई लोगों के निस्तब्धता को हानि पहुंचायेगी, रोक लिया। इस जन सुनवाई के रास्ते में हर जगह पुलिस ने नाकाबंदी करते हुए कार्यकर्ताओं को एवं अन्य लोगों को आने से रोका। पुलिस की भाषा में शांति भंग करने वाली इस सुनवाई में अदालतों के कई पूर्व जस्टिस, सामाजिक क्षेत्रों में काम करने वाले कार्यकर्ता राजनीतिक दलों के नेता एवं पर्यावरण विशेषज्ञ शामिल होने जा रहे थे। जैतापुर परमाणु संयंत्र के खिलाफ हो रही लोगों की इस अदालत के साथ जनहित सेवा समिति, कोंकण विनाशकारी प्रकल्प बचाओ समिति, ह्यूमन राइट्स ला नेटवर्क, लोकायत, कोंकण ऊर्जा प्रकल्प समिति जैसे संगठन भी शामिल थे।
राज्य सरकार ने प्रकल्प का विरोध करने वाले स्थानीय लोगों का क्रूर दमन किया है। शांतिपूर्ण विरोध करने वालों को गिरफ्तार करना, उन पर जिलाबदर का नोटिस लागू करना और अपराध संहिता की दफा 144 के तहत बंदी की नोटिस लगाना और अंग्रेजों के जमाने की मुंबई पुलिस कानून की कड़ी दफा 37 लागू करना रोजमर्रा की बात हो गयी है।
इस दमन का एक उदाहरण क्षीणकाय 70 वर्षीय मधुमेह रोगी श्रीराम घोंघों परांजपे हैं जिन पर पुलिस के ऊपर पत्थर फेंकने का झूठा आरोप लगाया गया जबकि वह एक कंकड़ भी उठाने लायक नहीं थे। 15 दिन तक उन्हें जेल में डाले रहे। अन्य लोगों पर झूठे आरोप, जैसे हत्या की कोशिश, लगाये गये हैं। उच्च न्यायपालिका नाभिकीय प्रौद्योगिकी की पवित्र गाय पर सवाल उठाने से डरती लगती है इसलिए उसने भी एंटीसिपेटरी जमानत देने से इंकार कर दिया है।
विरोध करने वाले ग्रामीणों के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए जाने वाले प्रतिष्ठित नागरिकों पर जैतापुर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इन प्रतिष्ठित नागरिकों में शामिल हैं, भारत के साम्यवादी दल के महासचिव ए.बी. बर्धन, नौसेना के पूर्व प्रमुख एडमिरल एल. रामदास, सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और प्रेस काउंसिल आफ इंडिया के चेयरमैन पी.बी. सावंत, पुणे आधारित प्रसिद्ध समाजविज्ञानी सुलभा ब्रह्मे और जाने-माने पर्यावरणविद माधव गाडगिल जो पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा गठित पश्चिमी पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल के चेयर मैन भी हैं।
दिसम्बर 2010 में मुंबई उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बीजी कोल्से-पाटिल को 5 दिन पुलिस हिरासत में रखा और उन्हें 24 घण्टे के अंदर मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं किया गया जैसा कि कानूनन होना चाहिए था।
लोगों की खासतौर से महिलाओं की जमीनी बुद्धिमत्ता- अपनी आजीविका के बारे में, अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के बारे में हृदयस्पर्शी है। बच्चे और महिलाएं हर गुजरने वाले वाहन पर चिल्ला कर नारा लगाते हैं ‘अणु ऊर्जा नाको’ (अणु ऊर्जा नहीं)। प्रशासन के खिलाफ शांतिपूर्ण असहयोग और अहिंसक संघर्ष के तरीके पूरे क्षेत्र ने सीख लिये हैं।
हाल में 20 पुलिस वाहनों और एक अम्बुलेंस के साथ रत्नागिरि के कमिश्नर गांववालों के साथ शांति बैठक करने गये तो एक भी गांववासी बैठक में नहीं गया। एक वृद्ध महिला बैठक स्थल पर गयी और कमिश्नर से पूछा कि आपको किससे डर है ? और आप ‘‘शांति बैठक’’ के लिए इतने हथियारबन्द लोगों और वाहनों को क्यों लाये हैं ?
प्रकल्प का विरोध लोग इसलिए कर रहे हैं क्योंकि यह उनकी आजीविका ऐसे ही नष्ट कर देगा जैसे कि पास के तारापुर रियेक्टर ने किया है। ये लोग जानते हैं कि तारापुर में सैकड़ों कर्मचारियों को परमिट सीमाओं से ज्यादा रेडियेशन असर झेलना पड़ा है,जादूगोड़ा में यूरेनियम की खदान के असर से प्रभावित क्षेत्र में विकलांग बच्चे जन्म ले रहे हैं और अलग-अलग स्थानों पर लगे रियेक्टरों के आसपास कैंसर रोग ज्यादा फैल रहा है।
प्रकल्प का विरोध कर रहे लोगों का संकल्प देखने लायक है। जिन लोगों की जमीन सरकार ने अधिग्रहण कर ली है, उनमें से 95 फीसदी से ज्यादा लोगों ने प्रति एकड़ 10 लाख रूपये तक का मुआवजा लेने से साफ इन्कार कर दिया है। जिन लोगों ने मुआवजा ले लिया है वे गैरहाजिर जमीन मालिक हैं जो मुम्बई में रहते हैं।
दमनचक्र के शिकार ग्रामीणों ने असहयोग का रास्ता अपनाया है। उन्होंने सरकारी अधिकारियों को खाद्य सामग्री और अन्य सामान बेचने से इन्कार कर दिया है। जब अभी हाल में सरकार ने विद्यालयों के अध्यापकों को आदेश दिया कि वे विद्यार्थियों के दिमाग में यह बात बिठायें कि नाभिकीय ऊर्जा स्वच्छ है और पर्यावरण रक्षक है तो लोगों ने कई दिन तक अपने बच्चों को विद्यालय नहीं भेजा। 10 गांवों के 70 पंचायत प्रतिनिधियों ने अपने पदों से त्यागपत्र दे दिया है। इन गांवों में गणतंत्र दिवस पर झण्डा नहीं फहराया गया।
जैतापुर के परमाणु विरोधी आंदोलन को तोड़ने के लिए नेताओं की इच्छाशक्ति और हौसले तोड़ने में सरकार कोई कसर नहीं छोड़ रही है।
जैतापुर संघर्ष का एक उत्साहवर्धक पक्ष यह है कि इसका नेतृत्व मजबूती से स्थानीय लोगों के हाथ में है। उन्होंने अपने कई संगठन बना लिये हैं जैसे माडवन जनहित सेवा समिति, कोंकण विनाशकारी प्रकल्प विरोधी समिति, कोंकण बचाओ समिति। अणुमुक्ति और लोकायत जैसी संस्थाये नाभिकीय ऊर्जा के खतरों की जानकारी देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
पिछले चार सालों में जो सघन संघर्ष हुए हैं उनके मुख्य घटनाक्रम हैं-
जनवरी 2006 जनहित सेवा समिति, माडवन ने बम्बई उच्च न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया जिसने प्रकल्प पर स्टे दे दिया परन्तु बाद में उसे उठा लिया।
23 नवम्बर 2009 आसपास के गांवों की विशाल सभा आयोजित की गयी।
29 दिसम्बर 2009, 12 जनवरी 2010 और 22 जनवरी 2010 जब सरकारी अधिकारी माडवन में अनिवार्य भूमि अधिग्रहण के मुआवजे के चेक बाँटने गये तो ग्रामीणों ने चेक लेने से इन्कार कर दिया। अधिकारियेां को काले झंडे दिखाये गये और उनकी गतिविधियों में सहयोग करने से इन्कार कर दिया गया।
22 जनवरी 2010 जबर्दस्ती भूमि अधिग्रहण के विरोध में 72 लोगों ने गिरफ्तारी दी।
16 मई 2010 पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट पर एक जन सुनवाई प्लांट स्थान पर आयोजित की गयी। सुनवाई में विवाद खड़ा हो गया क्योंकि चार में से तीन ग्राम सभाओं को एक महीने पहले रिपोर्ट नहीं दी गयी थी जैसा कि कानूनन होना चाहिए था।
4 दिसम्बर 2010 लगभग 6000 प्रदर्शनकारियों ने दफा 144 उस दिन तोड़ी जिस दिन फ्रांस के राष्ट्रपति सरकोजी की भारत यात्रा शुरू हो रही थी। उन्होंने मानव श्रृंखला बनायी, काले झण्डे दिखाये और ‘सरकोजी वापस जाओ’, ‘अरेवा, वापस जाओ’ के नारे लगाये। लगभग 1500 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया। इनमें पर्यावरणविद और स्थानीय ग्रामीण शामिल थे।
मुंबई उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और जनहित सेवा समिति के सदस्य बी.जी. कोल्से-पाटिल, कोंकण बचाओ समिति के मधुमोहिते गिरफ्तार किये गये। जिला प्रशासन ने एडमिरल रामदास को उस क्षेत्र में प्रवेश करने से रोक दिया।
18 दिसम्बर 2010 को नाटे गांव के 40 वर्षीय इरफान यूसुफ काजी अपने बच्चे को स्कूल से लेने जा रहे थे एक पुलिस जीप ने उनके स्कूटर को धक्का दे दिया। इरफान की मौत हो गयी।
11 जनवरी 2011 जैतापुर के बच्चों ने स्कूलों का बहिष्कार कर दिया जब राज्य सरकार ने अध्यापकों को आदेश दिया कि वे बच्चों के दिमाग में यह बात भरें कि नाभिकीय ऊर्जा स्वच्छ और पर्यावरण रक्षक है। उस क्षेत्र के 70 स्कूलों के 2500 से अधिक विद्यार्थी अपनी कक्षाओं में नहीं गये।
18 जनवरी 2011 जैतापुर के प्रकल्प-प्रभावित लोगों ने मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान की मुंबई में नाभिकीय प्रकल्प के बारे में ‘‘भ्रान्तियां’’ दूर करने की सार्वजनिक सुनवाई का बहिष्कार किया।
18 जनवरी 2011 10 गांवों के 70 चुने हुए पंचायत सदस्यों ने सामूहिक त्यागपत्र दिया।
26 जनवरी 2011 नाभिकीय प्रकल्प और राज्य के दमन के विरोध में लोगों ने गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने से इन्कार कर दिया।
26 फरवरी 2011 ग्रामीणों की सभा करने के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और उद्योगमंत्री जैतापुर आये। ग्रामीणों ने सभा का बहिष्कार किया, उल्टे उनके विरोध में 7000 लोगों ने रैली निकाली।
भारत में कई विशाल परमाणु ऊर्जा केन्द्र लगाये जा रहे हैं, जैतापुर प्रकल्प उनमे से एक है। जो भारी नाभिकीय विस्तार देश में हो रहा है उसमें दर्जनों विदेशी-देशी रियेक्टर लगेंगे। इस विस्तार के नतीजन बड़े पैमाने पर विस्थापन और पारिस्थितिकीय विनाश होगा, रेडियेशन खतरे होंगे और वित्तीय बोझ पड़ेगा।
देश में जहां-जहां नाभिकीय प्रकल्प लग रहे हैं, वहां विरोध हो रहा है, हरिपुर (पश्चिम बंगाल) में, कडापा (आन्ध्र प्रदेश) में, कूडनकुलम (तमिलनाडु) में, मिठी विरडी (गुजरात) में, चुटका (म. प्र.) में और गोरखपुर (हरियाणा) में प्रकल्प लगाने की तैयारी शुरू हो गयी है। दो स्थान यूरेनियम की खदान के लिए प्रस्तावित हैं पहला, डोमियासियात (मेघालय) और दूसरा, नलगोंडा (आन्ध्र प्रदेश) में। ये दोनों स्थानीय आबादी के लिए स्वास्थ्य के गंभीर खतरे पैदा करेंगे। लोगों का चल रहा विरोध ही एक मुख्य कारण है जिसकी वजह से सरकार इन प्रकल्पों पर धीमी गति से चल रही है।