संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

मोदी सरकार ने लॉकडाउन की आड़ में दिबांग घाटी में दो लाख सत्तर हजार पेड़ काटने की मंजूरी दी

-अविनाश चंचल

इस त्रासदी के समय जंगल, नदी और प्रकृति की बात कौन करे?

लेकिन हमारी सरकार इसी त्रासदी का फायदा उठाकर पर्यावरण खत्म करने और अपने कॉरपोरेट दोस्तों को खुश करने में लगी है।

क्या आपको पता है अरुणाचल प्रदेश के दिबांग घाटी में 2 लाख सत्तर हजार पेड़ काटे जाने की तैयारी हो रही है? अरुणाचल प्रदेश अपने ट्रोपिकल फॉरेस्ट कवर के लिये जाना जाता है।

पर्यावरण मंत्रालय की एक सब कमिटी ने दिबांग वैली में हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट के लिये विडियो कॉन्फ्रेंस के जीरये पर्यावरण की मंजूरी दे दी है।

इस तरह की मंजूरी दिलाने वाली एजेंसी के साथ काम करने वाले एक दोस्त ने बताया जिस तरह के बड़े नक्शे और दूसरी जरुरी प्रक्रियाओं को मंजूरी के लिये पूरा किया जाना जरुरी है, वो विडियो कॉन्फ्रेंस के जरीये पूरी करना लगभग नामुमकिन बात है।

इस प्रोजेक्ट से करीब 1150 हेक्टेयर वन भूमि खत्म हो जायेगी।

देबांग वैली हिमालय के सबसे जैव विविधता यानि की बायोडायवर्स इलाके में से एक है। यह सिर्फ पेड़ों के कटने का मामला नहीं है। जंगल से जुड़ा पूरा वन जीवन और नदी सबके खत्म होे जाने का भी मामला है।

वाईल्डलाईफ इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया के एक स्टडी के अनुसार इस इलाके में 413 पौधों, 159 तितलियों, 113 स्पाडर, 230 चिड़ियों, 31 सांप और 21 स्तनधारी प्रजाति रहते हैं। यह सब खत्म हो जायेंगे।

सिर्फ जंगल और वाईल्डलाईफ ही नहीं बल्कि अठारह गांवों में रहने वाले करीब चौदह हजार स्थानीय आदिवासी समुदाय भी इससे बुरी तरह प्रभावित होने वाले हैं।

यह इलाका भूंकप के लिहाज से भी काफी संवेदनशील माना जाता है, अगर यहां डैम बनाया जाता है तो इलाके में भूंकप का खतरा भी बढ़ जायेगा। मछुआरा समुदाय से लेकर आम किसान तक तबाह हो जायेंगे।

लेकिन हमारी सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता, न जलवायु परिवर्तन के डर से और ना ही स्थानीय लोगों के जीवन से।

शहरी मीडिल क्लास भी अमेजन जंगल में लगी आग पर दुख जता कर अपनी प्रकृति बचाने की जिम्मेदारी पूरी कर लेता है..

दिबांग वैली की बात कौन करे? ‘आरे फॉरेस्ट’ के वक्त कर लिया, वही क्या कम था?

-फेसबुक से साभार

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