संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

मध्य प्रदेश : ऊर्जा राजधानी सिंगरौली का स्याह सच

मध्य प्रदेश का सिंगरौली जिला विंध्य प्रदेश का महत्वपूर्ण क्षेत्र है। जहां हरिजन, आदिवासी की बहुलता वाली आबादी के जीवन यापन का मुख्य आधार प्राकृतिक संपदा थी। जब इस क्षेत्र के भू- गर्भ में कोयले के अतुल भंडार, वन संपदा एवं जल की प्रचुर मात्रा आदि ज्ञात हुआ। तब 1957 में रेलवे लाइन का काम शुरू हुआ और 1963 से यहाँ से कोयला निकालना शुरू किया गया। कोयला पश्चिम क्षेत्र स्थित ताप संयंत्रों को निर्यात किया गया। विधुत संयंत्रों का निर्माण कोयला क्षेत्र के समीप ज्यादा मितव्ययी होने के उद्देश्य से सिंगरौली क्षेत्रों को प्रमुख ऊर्जा केंद्र हेतु सर्वाधिक उपयुक्त पाया गया। राष्ट्रीय ऊर्जा राजधानी बनने के दृष्टिकोण से विकसित क्षेत्र का अधिकांश भाग मध्य प्रदेश के सिंगरौली तथा कुछ भाग उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में आता है। कोयला भंडार से परिपूर्ण इस क्षेत्र में विधुत उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले पानी के लिए 60 के दशक में रिंहद नदी पर बांध बनाया गया।आज इस क्षेत्र में 21 हजार मेगावाट की 10 थर्मल पावर प्लांट और नार्दन कोल लिमिटेड (एनसीएल) समेत निजी कम्पनियों की 16 कोल माइन्स संचालित है। जिससे लगभग 70 मिलियन टन अर्थात 7 करोङ मैट्रिक टन कोयला प्रति वर्ष निकाला जाता है।

एनसीएल के चेयरमैन पी.के.सिन्हा ने दिसम्बर 2019 के एक कार्यक्रम में कहा कि सिंगरौली क्षेत्र में 2021 तक 10 करोड़ 60 लाख मैट्रिक टन और 2023-24 के लिए 11 करोड 50 लाख मैट्रिक टन कोयला उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।इसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए क्षेत्र में मोरवा बाज़ार, पिटरवाह,सुलियरी, सिधौली,बरका महुली आदि नये कोल ब्लॉक से उत्पादन करने की तैयारी चल रही है। देश के कुल कोल रिजर्व का 8 प्रतिशत मध्यप्रदेश में है।सिंगरौली सबसे बड़ा कोयला क्षेत्र है।जिले के चितरंगी क्षेत्र में चकरिया और गुरार पहाङ में सोने के अयस्क का पर्याप्त भंडार है। 147 हैक्टर में सरकार ने खनन का निर्णय लिया है।सिंगरौली क्षेत्र के थर्मल पावर प्लांट और कोयला बेचने से लगभग 5 हजार करोड़ का राजस्व पैदा होता है। परन्तु विषमता देखिये नीति आयोग ने 2018 में देश के 20 अति पिछङा जिलों में सिंगरौली शामिल है। ये है असली असली विकास का चेहरा?1991 में विश्व बैंक और एनटीपीसी द्वारा गठित पर्यावरणीय आयोग ने पाया कि 90 प्रतिशत स्थानिय समुदाय को इन सभी उद्योगों के कारण एक बार विस्थापित किया गया है और इसमें से 35 प्रतिशत लोगों को बार बार विस्थापित होना पङा है।

विगत एक साल में एस्सार, एनटीपीसी और सासन रिलांयस पावर प्लांट का राखङ बांध टूटने से 6 लोगों की मौत, दर्जनो मवेशी मारे गए और सैकड़ों एकङ फसल बर्बाद और जमीन बंजर हो गया। 6 अक्तूबर 2019 को एनटीपीसी विंध्यांचल का शाहपुर स्थित विशालकाय राखङ बांध टूट गया था।जिससे 35 मैट्रिक टन राख रिंहद बांध में समा गया जो नदी के पानी को जहरीला करेगा। रेणुका नदी पर बने इस बांध से सोनभद्र और सिंगरौली जिले के लाखों लोगों के लिए पेयजल वयवस्था किया जाता है।

देश के उर्जा राजधानी के रूप में ख्यात सिंगरौली क्षेत्र गहरे संकट की ओर बढ़ रहा है। जो जमीन कभी घने जंगलों, वन्य जीवों और भारी वर्षात के कारण बीहङ और रहस्मय मानी जाती थी। वह आज उजाड़ है। हवा में जहर घुल गया है, चारों तरफ कोयला की राख और धूल ने खेतों और पानी के स्रोतों को जहरीला बना दिया है।नदियां सुखती जा रही है और खेती की उपज आधी हो गई है।पुरी आबादी फेफङे और पेट की तरह-तरह की बीमारियों से ग्रस्त है,बच्चे कई गंभीर बीमारियों के शिकार होते जा रहे हैं। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के निर्देश पर गठित विशेषज्ञ कोर कमेटी की रिपोर्ट भी यहां की मुसीबतों का कुछ ऐसा ही उल्लेख करती है।

कोर कमेटी के आंकड़े अनुसार इस क्षेत्र में 350 से अधिक उधोग संचालित है। जिसमें 10 थर्मल पावर प्लांट, 16 कोल माइन्स, 10 केमिकल कारखाने, 8 एक्सपलोसिव ,309 क्रशर और स्टील, सीमेंट एवं अल्युमिनियम का एक-एक उधोग है।जिससे करीब 45 लाख टन कचरा हर साल उत्सर्जित होता है।इसमें लगभग 35 लाख टन तो सिर्फ़ कोयले की राख है। 21 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन करने के लिए साल भर में 10.3 करोङ टन कोयलेकी जरूरत होती है।इतनी बङी मात्रा में में कोयले की खपत से हर साल 3.5 करोड़ टन फ्लाई ऐश (राख) पैदा होता है, जिसका सही तरीके से निस्तारण नहीं हो पा रहा है।इसके अलावा 10 लाख टन से अधिक लाल कीचङ (रेड मड) व अन्य रसायन उत्सर्जित होते हैं।परन्तु इनके निस्तारण के लिए उचित प्रबंध नहीं होने के कारण 20 लाख टन से अधिक कचरा सिंगरौली क्षेत्र में खुले में फेंका जा रहा है। कमेटी रिपोर्ट के अनुसार करीब 17 हजार टन सल्फर डाईआक्साइड और नाइट्रोजन आक्साइड जैसी स्वास्थय के लिए हानिकारक गैस हवा में तैरने के साथ ही हर साल 8.4 हजार टन यानी 8.4 लिटर मरकरी भी पावर प्लांटों से निकल रहा है। जो इस इलाके की जल संरचनाओं में समाहित हो रही है। मरकरी की इतने बङे पैमाने पर मौजूदगी मानव भर ही नहीं बल्कि पशु-पक्षियों के लिए भी अत्यधिक खतरनाक बताया है।राख से खाक होते जिंदगी को बचाने के लिए कमेटी ने कुछ सुझाव भी दिये हैं।

पीने के पानी का किसी भी तरह से उद्योगों में इस्तेमाल नहीं हो, बांध के समीप सभी राखङ बांध हटाया जाए, कोयले की ढुलाई किसी भी स्थिति में सङक मार्ग से नहीं हो ,सिंगरौली और सोनभद्र जिला निकाय वाटर ट्रीटमेंट पलांट लगाए,वायु प्रदूषण को कम करने के लिए एंवियेंट क्वालिटी सिस्टम लगातार सक्रिय रहने जैसी महत्वपूर्ण सुझाव शामिल है। परन्तु बीते चार सालों में इस सुझावों पर अमल हुआ होता तो राखङ बांध फूटने जैसी हादसा से बचा जा सकता था।विकास में स्थानिय समुदाय की हिस्सेदारी जैसे सवालों पर वर्षों से केवल राजनीति हो रही है और विकास के नाम पर स्थानिय समुदाय की बलि चढ़ाई जा रही है।

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