छत्तीसगढ़ : अडानी के खिलाफ बस्तर के आदिवासियों का संघर्ष जारी
बैलाडीला मामले में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की बातचीत की पहल और जांच के आदेश का आंदोलनकारी आदिवासियों ने स्वागत किया है, लेकिन अभी इसमें कई पेच हैं और जब तक कुछ ठोस परिणाम नहीं निकलता धरना-प्रदर्शन जारी रहेगा।
छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग अंतर्गत दन्तेवाड़ा ज़िला के किरन्दुल में 7 दिनों से क्षेत्र के 200 गांवों के हजारों आदिवासी पहाड़ बचाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं। आदिवासी अपने साथ राशन-पानी लेकर रतजगा करते अपने पारंपरिक वाद्य यंत्रों में थिरकते अपने पहाड़ में लौह खनन रोकने को अडिग होकर किरन्दुल एनएमडीसी मुख्यालय के सामने बैठे हुए हैं।
बुधवार 12 जून 2019 को आंदोलन के सातवें दिन अडानी को पहाड़ देने के विरोध में प्रदर्शन तेज़ हो गया है। छत्तीसगढ़ के दूसरे जिलों, ब्लाक मुख्यालयों से आदिवासियों का पहुंचने का सिलसिला शुरू हो चुका है।
बस्तर में सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर का कहना है कि सरकार अपना रुख स्पष्ट करे नहीं तो फिर से समुदाय बुमकाल 2 की ओर ही बढ़ेगा। बैलाडीला के नंदराज मट्टा के साथ ही उस पहाड़ में कई जगहों पर आदिवासियों के पुरखे देव स्थान हैं। यहाँ पर स्थानीय आदिवासी समुदाय को बिना विश्वास में लिए दोहन अन्याय है।
बताते चले कि दंतेवाड़ा जिले के डिपाजिट 13 के संबंध में बस्तर के सांसद शदीपक बैज और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम के नेतृत्व में प्रतिनिधि मंडल ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से 11 जून को मुलाकात की, मुलाकात के बाद मुख्यमंत्री ने तत्काल वन कटाई पर रोक लगाने, अवैध वन कटाई और फर्जी ग्राम सभा की जांच कराने तथा परियोजना से संबंधित कार्यों पर रोक लगाने के निर्देश दिए।
आंदोलनरत आदिवासियों ने सरकार के बातचीत के फैसले का स्वागत किया है, लेकिन उनका कहना है कि जब तक हम पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो जाते, तब तक प्रदर्शन जारी रहेगा।
कई मुद्दों पर पेच फंसा
संयुक्त पंचायत संघर्ष समिति की तरफ से चर्चा में सुरेश कर्मा, बल्लू भावनी, नंदाराम, राजू भास्कर, भीमसेन मण्डावी सहित आंदोलन में पहुंचे सरपंचों ने हिस्सा लिया। पहले दौर में आधे घंटे तक बातचीत में दीपक बैज ने मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए आदेश की कॉपी दिखाई। समिति के सदस्यों ने पेड़ कटाई पर रोक और फर्जी ग्रामसभा की जांच के आदेश में कानूनी धाराओं का उल्लेख न होने का हवाला देकर मानने को तैयार नहीं हुए। इसके बाद पेच एमओयू रद्द करने पर फंस गया। समिति ने यह भी शर्त रखी कि तीन दिन में फर्जी ग्रामसभा की जांच और दोषी पर एफआईआर होनी चाहिए। जबकि इस पर शासन ने 15 दिन में जांच कराने की बात कही थी।
संयुक्त पंचायत संघर्ष समिति के बैनर तले प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों को लेकर समिति के बल्लू भोगामी कहते है ” बैलाडीला लोह अयस्क खदान नम्बर 13 को अडानी के हाथों में दिया गया है। उस पहाड में हमारे इष्ट देव नंदी देव का वास है, जहां हम गर्मी के शुरूवाती दिनों में बहुत बड़ा मेला जात्रा करते हैं। जहां 84 गांवों के लोग शामिल होते है अब वह लौह अयस्क खोदने के लिए अडानी को दे दिया गया है। अडानी ने पहाड़ में पेड़ों की कटाई चालू कर दी है। इसी के विरोध में हम 6 जून से इकट्ठा होकर अपना विरोध जता रहे हैं, और जब तक अडानी को दिया गया ठेका वापस नहीं होगा हम यहां से नहीं जाएंगे।
“बैलाडीला महज़ पहाड़ नहीं”
आदिवासी समाज के तुलसी नेताम कहते हैं, “बैलाडीला महज़ पहाड़ नहीं है हमारे लिए। बैलाडीला बस्तर के आदिवासी समुदाय का मात्र पेन ठाना पुरखा पेन ( देवताओं का स्थल) स्थान तो है ही अपितु बैलाडीला का पहाड़ पेड़ वनस्पति जैव विविधता उनकी सम्पूर्ण अस्तित्व की पहचान आन बान शान के साथ उनके जेहन में रची बसी हुई जान है।”
“फर्जी ग्राम सभा की अनुमति ली गई”
ग्राम पंचायत हिरोली की सरपंच बुधरी बताती हैं कि साल 2014 में पिटोड़ मेटा के नाम के डिपाजिट 13 नम्बर पहाड पर लोह अयस्क के खुदाई के लिए एक फर्जी ग्राम सभा कर अनुमति दी गई। यहां ग्राम सभा असल में हुई ही नहीं थी। मात्र 104 लोगों की मौजूदगी में ग्राम सभा के प्रस्ताव में ग्रामीणों के हस्ताक्षर हैं, जबकि उस समय ग्रामीण जब साक्षर ही नहीं थे तो कहां से हस्ताक्षर करेंगे? ग्रामीण अंगूठे ही लगाते हैं फिर ये हस्ताक्षर किसने किए? बुधरी आगे कहती हैं कि 104 लोगों में से जिनके हस्ताक्षर ग्राम सभा प्रस्ताव में दर्शाए गए हैं उनमें दर्जनों ग्रामीणों की मौत हो चुकी थी।
आदिवासियों के मन में कई आशंकाएं
अडानी के कोयला उत्खनन से प्रभावित गांवों में लड़ाई लड रहे सामाजिक कार्यकर्ता आलोक शुक्ला से जब मुख्यमंत्री के निर्देश को लेकर बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की पहलकदमी स्वागत योग्य है कि उन्होंने आंदोलनकारियों की मांगों पर गंभीरता से विचार किया परंतु अभी भी हमारे मन मे शंकाये हैं जो राज्य सरकार की घोषणा से दूर नही होती। ये आशंकाएं कुछ इस तरह हैं-
(1) वन भूमि (डायवर्सन) अधिनियम 1980 के तहत खनन के लिए स्टेज 2 की वन स्वीकृति के बाद राज्य सरकार ने अंतिम आदेश धारा 2 के तहत जारी किया था । तत्पश्चात वन विभाग ने कंपनी के पक्ष में पेड़ काटने का आदेश जारी किया। क्या राज्य सरकार ने इन दोनों आदेश को वापस लिया है? या किस आदेश के तहत पेड़ कटाई को रोक गया उसकी स्पष्टता नही है।
(2) ग्राम सभा के प्रस्ताव की जांच कितने दिन में होगी। फर्जी घोषित होने पर राज्य सरकार की अगली कार्यवाही क्या होगी।
(3) छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल के द्वारा जारी कंसेंट टु आपरेट अर्थात संचालन की सहमति का आदेश भी वापस लिया जाएगा कि नहीं।
उनके मुताबिक- हमे लगता है कि यदि राज्य सरकार इस पहाड़ को बचाना चाहती है तो अपने द्वारा जारी आदेश को पहले वापस ले सकती है। आलोक ने कहा फिलहाल हम सरकार की इस पहल का स्वागत करते हैं। भूपेश बघेल जी ने संवेदशीलता का परिचय दिया है।
बता दे कि बुधवार, 12 जून को खबर लिखे जाने तक एनएमडीसी मुख्यालय किरन्दुल के समक्ष आदिवासी आंदोलन पर डटे हुए है, जहां मुख्यमंत्री से मिलने गए प्रतिनिधि मंडल उन्हें मनाने की कोशिश में लगे हुए हैं। वहीं ख़बरें यह भी आ रही है कि सरकार धारा 144 लगा कर आंदोलन को तोड़ने की कोशिश में लगी हुई है। लेकिन आदिवासी किस भी शर्त में अपने देव् पहाड़ में उत्खनन होने नही देना चाहते है।
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