संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

जेपी, ज़मीन और जनाक्रोश: 2011 का पुलिस दमन नहीं भूलेंगे करछना के लोग

बंदूक की संस्कृति के खिलाफ! 
लाठी की संस्कृति के साथ, जनतंत्र का निर्माण करों!!
उत्तर प्रदेश के करछना में 21 जनवरी को किसानों के दमन के खिलाफ सामाजिक न्याय सम्मेलन आयोजित किया गया । यह आयोजन 2011 से हर साल इसी तारीख को मनाया जाता है ताकि 2011 में ग्रामीणों पर हुए पुलिसिया हमले की याद जिंदा रहे और उसके खिलाफ गुस्से की आग सुलगती रहे। जेपी को ज़मीन न देने पर आमरण अनशन में आए लोग बर्बर पुलिसिया दमन के शिकार हुए जिसमें  एक किसान की जान चली गई तथा दो दर्जन से अधिक किसान बुरी तरह घायल हुए थे. पेश है इलाहाबाद के सामाजिक कार्यकर्ता रविन्द्र सिंह की रिपोर्ट;

ज्ञातव्य है कि करछना क्षेत्र के आठ गांवों की जमीन जे.पी.के द्वारा
स्थापित होने वाले पॉवर प्लांट के लिए अधिग्रहित कि जा रही थी. इसके विरोध में करछना के किसान बाइस अगस्त दो हजार दस से धरने पर बैठे  थे. सरकर, प्रशासन द्वारा कोई सुनवाई नहीं होने पर किसानों ने आमरण अनशन शुरू कर दिया. पुलिस ने दमन के सहारे आन्दोलन को कुचलने की कोशिश की. पुलिस ने किसानों पर आशुगैस और बलेट गोलियां, फायरिंग कर दी। फायरिंग में एक किसान की मौत हो गई। किसान की मौत होने से किसान और अधिक भड़क गए। किसानों ने पुलिस को पीछे हटने पर विवश कर दिया।

तब से हर साल  21 जनवरी को काला दिवस के रूप में याद करने की शुरूआत हुई। इस साल करछना  के लोगों ने सामाजिक न्याय सम्मेलन आयोजित किया । राजबहादुर सिंह पटेल ने सम्मलेन को संबोधित करते हुए कहा कि आप जानते है पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप की नीति के चलते सूबे की सरकार गैर कानूनी ढंग से कचरी करछना पावर प्लांट के लिए आठ गाँवों की जमीनों का अर्जन कर रही थी। उस पर कानून के तहत अगुवाई कर रहे किसानों से सूबे की सरकार किसानों के संघर्ष व माननीय उच्च न्यायालय में हार गई! देश के अन्दर करचरी का किसान आन्दोलन बाइस अगस्त दो हजार दस से (22/08/2010) तमाम दुश्वारियों के बावजूद अबाद गति से चल रहा है। जिसका क्रमिक अनशन का आज 1250वां दिन है। प्रदेश में गन्ना किसान, गंगा एक्सप्रेस वे, यमुना एक्सप्रेस वे, भठ्टा परसौल, बारा पॉवर प्लांट, कोहडार पॉवर प्लांट पर किसानों ने सामूहिक विकास के साथ जन संस्कृति को लेकर संघर्ष में आगे बढे़। शासन सत्ता के नुमाइन्दें लोकसेवक (नौकरशाही), एवं कारपोरेट घरानों की तिकड़ी के तमाम दमन, प्रलोभन, झूठे वादे किसानों के चट्टानी नेतृत्व एवं फौलादी एकता के आगे नतमस्तक हो गए। यही नहीं कचरी करछना का किसान संघर्ष हमारे पूरे सूबे में अपने नए तेवरों कुशलता एवं जिम्मेदारियों के लिए नायाब मिशाल के रूप में खडा है। यह आवश्यक है। हर संघर्ष अपने आप में मिशाल है। कचरी में सफलता के साथ संघर्षशील जुझारू किसान गुलाब विश्वकर्मा की शहादत! जो आज के दिन पुलिस के द्वारा की गयी थी। इक्कीस जनवरी दो हजार ग्यारह को एक महान बलिदान के रूप में हमारे आपके सामने हो।! हमारे लिए सदी के किसान संघर्ष के दखल पर इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में अमिट छाप के बतौर दाखिल है।

संघर्ष के बहादुर भाइयों – बहनों! हम आप जानते है। विकास किसी युग मे हो। इसके केन्द्र में आम आदमी की सम्मानजनक हिस्सेदारी एवं उस विकास के निर्णय एवं संचालन प्रक्रिया में जनवरी दो हजार ग्यारह को एक महान बलिदान के रूप में हमारे आपके सामने हो।! हमारे लिए सदी के किसान संघर्ष के दखल पर इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में अमिट छाप के बतौर दाखिल निर्णय लेने का भी हक हो। तभी वह विकास, उस समुदाय के समग्र विकास का रास्ता होगा। इस दौर में विकास के लिए जरूरी पूँजी के लिए जन एवं उसका तंत्र पर सरकारे कारपोरेट घरानों के जरगुलाम की तरह पेश हो रही है। जो बेहद शर्मताक है। तीनों की तिकड़ी एक सुनियोजित लूटतंत्र चला रही है। किसान का गेहू तेरह सौ में और शक्ति भोग आटा (आई.टी.सी) छब्बीस सौ में, किसान का दूध बीस रू0 लीटर में – धनपशुओं का चालीस रू0 में सबका पानी में हक है उसे भी बीस रूपये लीटर, नमक अस्सी रूप्ये कुतंल का पन्द्रह सौ रूप्ये में बेचा जा रहा है। आखिर उत्पादन-वितरण के बीच आतार्किक अन्तर दुनियां के सभ्य देशों में कहीं नहीं है। तब यह शासन, भ्रष्ट अफसर एवं कारपोरेट घरानों का लूटतंत्र नहीं तो क्या है।

आप जानते है कि कचरी का आन्दोलन माननीय उच्च न्यायालय ने भी विजेता घोषित किया। तब किसानों के ऊपर सूबे का प्रशासनक द्वारा लगाए मुकदमों को सपा सरकार को स्वतः समाप्त कर देना चाहिए। ऐसे में आइए हमस ब आप मिलकर! विकास के लिए, प्रदुषण पर्यावरणीय जन भागीदारी सामुदायिक, जनतांत्रिक विकास के लिए एकजुट हों। इक्कीसवीं सदी के नए राष्ट्र के निर्माण में किसानों की चुनौतियों। इसमें जूड़े तिरानवें करोड़ लोगों के कुपोषण का सवाल हम मिलकर हर करें। आत्मनिर्भर विकास में प्रकृति, मानव सम्पदा, तकनीक पर जोर संस्कृति के विकास के साथ जोड़े।

मुख्य वक्ता – राजबहादुर सिंह पटेल (प्रदेश अध्यक्ष किसान संघर्ष मोर्चा उत्तर प्रदेश), रवीन्द्र सिंह (बिहान), रामसागर (वरिष्ठ उपध्यचक्ष राज्य कर्मचारी महासंघ इलाहाबाद), जवाहर विश्वकर्मा (प्रदेश महासचिव उत्तर प्रदेश बिजली कर्मचारी संघ) राजीव चंदेल (संयोजक विस्थापना विरोधी किसान मंच) भीमसेन शर्मा, हरिश्चन्द्र मिश्रा, सुमन अवस्थी, मुन्नी निषाद, मस्तराम पटेल, रामबरन यादव, शुम्मारी, राजनारायण पटेल, दुलारी विश्वकर्मा, राजमणि यादव, प्रताप बहादुर पटेल, घनश्याम प्रधान (भनौरी) राकेश प्रधान (बसहरा), सरदार सिंह (प्रधान बारी बजहियाँ) अकबाल सिंह भष्मा, लल्लू भाई (बंधवा) रामतीरथ (मिश्रा बांध), सख्खू कोल, सुदामा कोल, रमाकांत यादव (पूर्व प्रधान घोरहा मेजा), प्रेम भाई पटेल, महेन्द्र कुशवाहा, जंगीलाल।

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