संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

किसानों के हित मे संघर्ष जारी रहेगा : मुलताई किसान घोषणा-पत्र 2015

प्रस्ताव
किसान संघर्ष समिति द्वारा आयोजित 17वां शहीद किसान स्मृति सम्मेलन 12 जनवरी 1998 को शहीद हुए 24 किसान साथियों को भावभीनी श्रद्धांजलि देता है। सम्मेलन शहीदों की कुर्बानी को याद करते हुए किसानों को हक और सम्मान के संघर्ष को अनवरत जारी रखने का संकल्प लेता है।

शहीद किसानों की याद में शहीद स्तंभ के निर्माण के लिए अब तक प्रदेश सरकार द्वारा भूमि आवंटित नहीं किए जाने, 12 जनवरी को पुलिस गोलीचालन में मारे गए किसानों को शहीद का दर्जा नहीं दिए जाने, शहीद परिवारों के एक आश्रित को स्थाई शासकीय नौकरी अब तक उपलब्ध नहीं कराए जाने की निंदा करता है। सम्मेलन की मान्यता है कि पूर्व की कांग्रेस सरकार द्वारा शहीदों के प्रति जो रूख अपनाया गया था, वहीं रूख आज भी कायम है। कांग्रेस सरकार ने अपने ही उप मुख्यमंत्री और प्रदेश के दो राज्यपालों-श्री बलराम जाखड़ और श्री रामनरेश यादव द्वारा गोलीचालन की मुलताई जाकर जांच के बाद तत्कालीन एसपी, कलेक्टर पर हत्या के मुकदमें दर्ज करने की मांग को नजरअंदाज कर दिया था। यही मांग उस समय भाजपा द्वारा दोहराई गई थी, यह मांग करने वाले आज भाजपा सरकार में मंत्री हैं, लेकिन 11 वर्ष बीत जाने के बाद भी आज तक दोषी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमें दर्ज नहीं किए गए हैं। सम्मेलन दोषी अधिकारियों पर हत्या के मुकदमें दर्ज करने, किसानों पर लादे गए फर्जी मुकदमें वापस लेने तथा मुलताई तहसील को शहीद किसान स्मारक घोषित करने की मांग करता है। कलकत्ता के शहीद किसानों के परिवारों को हाल ही में 1993 में हुए पुलिस गोलीचालन की जांच को बनाए गए न्यायिक आयोग की सिफारिष के बाद 25 लाख रूपये राज्य सरकार द्वारा दिए गए हैं। वही राशि मुलताई के शहीद परिवारों को भी देने की सम्मेलन राज्य सरकार से मांग करता है। 

भू-अधिग्रहण अध्यादेश
सम्मेलन मानता है कि वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा लगया गया भू-अधिग्रहण अध्यादेश पूरी तरह किसान विरोधी और कारपोरेट को गरीब किसानों की लूट की छूट देने वाला है। इस कानून में किसानों के पक्ष के जो भी प्रावधान थे, उन्हें संषोधित कर अंग्रेजी राज के 1894 के कानून से भी बदतर बना दिया गया है, जिसे हिंदुस्तान के किसानों ने सत्त आंदोलन चलाकर बड़ी कुर्बानियां देकर और कई मर्तबा सरकारें पलटकर रद्द कराने में सफलता हासिल की थी। नए भू-अधिग्रहण कानून को बनाने की प्रक्रिया में संसदीय समिति के समक्ष जनआंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय, अन्य जनसंगठनों और किसान संगठनों के साथियों ने अपना पक्ष रखा था। लोकसभा में सभी दलों की सहमति से संसद में चर्चा के बाद भू-अर्जन में पारदर्शिता एवं सही पुनर्वास कानून-2013 पारित हुआ था। लेकिन, हाल में संपन्न हुए संसद सत्र में मोदी सरकार द्वारा भू-अधिग्रहण कानून में संशोधनों को लेकर चर्चा कराना तक उचित नहीं समझा।

केंद्र संसदीय लोकतंत्र को ठेंगा दिखाकर कॉरपोरेट की सेवा को दृढ़संकल्पित है। पीपीपी प्रोजेक्ट के लिए 70 प्रतिषत और निजी कंपनियों के लिए 80 फीसदी प्रभावित किसानों की सहमति की अनिवार्यता के प्रावधान को समाप्त किया जाना, सोशल इंपेक्ट अध्ययन की अनिवार्यता, न्यूनतम बहुफसली खेती की जमीन के अधिग्रहण करने के प्रावधान समाप्त करने तथा धारा 24 (2) में 5 वर्ष की समय सीमा समाप्त करने से विकास परियोजनाओं के नाम पर जमीन की लूट को कानूनी मान्यता मिल जाएगी। अंग्रेजो के बनाए गए कानून में बदलाव इसलिए किया गया था, ताकि विकास के नाम पर जबरदस्ती किए जा रहे अधिग्रहण से किसानों के साथ बढ़ रहे तीव्र टकराव को समाप्त किया जा सके तथा भू-अधिकग्रहण में हुए ऐतिहासिक अन्याय को समाप्त किया जा सके। वर्तमान अध्यादेश टकराव बढ़ाएगा, अषांति, तनाव का माहौल पैदा होगा।

जनमुखी कानूनों में बदलाव की आषंका मोदी सरकार आने के बाद से ही जाहिर की जा रही थी। पहले श्रम कानून बदलने और फिर भू-अधिग्रहण अध्यादेश लाने से यह आषंका सही साबित हुई। किसानों के हितों के विरूद्ध आया यह दमनकारी अध्यादेश भाजपा का चाल-चरित्र और चेहरा बताता है। इससे पहले निजी उद्देश्यों के लिए किया जाने वाला अधिग्रहण “कंपनी अधिनियम” के तहत पंजीकृत निजी कंपनियों तक ही सीमित था, मगर अब यह किसी भी निजी संस्था, जिसमें स्वामित्व या साझेदार, गैर सरकारी संगठन या किसी अन्य संस्था शामिल है, के लिए बढ़ा दिया गया है। बुनियादी सुविधाओं के नाम पर भी अब सरकार निजी षिक्षण संस्थानों और निजी अस्पतालों के लिए जमीन का अधिग्रहण कर सकती है, जिसे पहले मूल अधिनियम से बाहर रखा गया था। रक्षा से संबंधित सभी परियोजनाओं को छूट दी गई है। महत्वपूर्ण बात यह है कि रक्षा की परिभाषा में अब कोई भी परियोजना, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है और रक्षा उत्पादन से जुड़ी है, को षामिल किया गया है। इस परिभाषा में सभी प्रकार की ढांचागत परियोजनाएं और निजी स्वामित्व वाली परियोजनाएं आ सकती हैं। मूल अधिनियम में उन किसानों को राहत दी थी, जिनकी भूमि 5 साल से अधिक समय से अधिग्रहित कर ली गई थी, लेकिन अब तक प्रक्रिया पूरी नहीं हुई थी। ऐसे किसानों को नए कानून के तहत मुआवजे का लाभ दिया जाना था, लेकिन अब नया संषोधन लाभ केवल उन मामलों तक ही सीमित करता है, जिनमें देरी किसी भी न्यायिक आदेश या लंबित मामले के कारण नहीं हुई थी, इसकी समयसीमा भी अब पांच से बढ़ाकर 10 साल कर दी गई है। किसी भी सरकारी अधिकारी द्वारा इस अधिनियम के उल्लंघन के लिए सजा का कड़ा प्रावधान मूल अधिनियम में था, जिसे उलट दिया गया है। पहले विभाग के प्रमुख को जिम्मेदार ठहराया गया था (अगर उल्लंघन उनके ज्ञान और मिलीभगत के साथ हुआ तो)। संषोधन इस प्रावधान को न सिर्फ हटाता है, बल्कि वास्तव में सरकार के लिए विषेष उन्मुक्ति प्रदान करता है। संषोधन के हिसाब से सरकार से मंजूरी के बिना इस अधिनियम का उल्लंघन करने के लिए किसी भी सरकारी अधिकारी के खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं होगी। 5 साल के भीतर अगर अधिकृत भूमि का उपयोग नहीं होता तो उसे मूल मालिक को लौटाने का प्रावधान हटा दिया गया है। अब सरकार बिना उपयोग किए हुए भी भूमि अपने पास लंबे समय तक रख सकती है, (अगर परियोजना के लिए निर्धारित अवधि लंबी हो तो) सरकार ने खुद को नए कानून को लागू करने में आई किसी भी कठिनाई को हटाने के लिए नए नोटिफिकेषन जारी करने की समयसीमा को दो से बढ़ाकर पांच साल कर लिया है, ताकि किसानों की जमीन की लूट आसान बनी रहे।

सम्मेलन जनआंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय, जनसंघर्षों के राष्ट्रीय सम्मेलन, समाजवादी समागम, लोकविद्या आंदोलन, इंसाफ, श्रुति, भारतीय किसान यूनियन, विंध्य जनआंदोलनों का समर्थक समूह, किसान संघर्ष समिति, सोषलिस्ट पार्टी इंडिया, समाजवादी जनपरिषद, सोषलिस्ट पार्टी लोहिया, लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी, सोषलिस्ट जनता पार्टी, डोमोक्रेटिक सोषलिस्ट पार्टी, जनता दल सेक्यूलर, जनता दल यूनाइटेड, टीएमसी, समाजवादी पार्टी, सीपीआई, सीपीएम, सीपीआई (एमएल),  द्वारा भू-अधिग्रहण अध्यादेश को निरस्त कराने के लिए आंदोलन चलाने की घोषणा का स्वागत करते हुए गरीब किसान, दलित-आदिवासी, मजदूर विरोधी भू-अधिग्रहण अध्यादेश को निरस्त कराने के लिए व्यापक जनआंदोलन चलाने का ऐलान करता हैै। सम्मेलन जनता दल के बिखराव के बाद बनी विभिन्न पार्टियों की एकजुटता के बाद बनने वाली नई पार्टी से भू-अधिग्रहण निरस्त कराने के आंदोलन में बढ़-चढ़कर भागीदारी की अपेक्षा करता है।

पेंच एवं अदानी परियोजना में भू-अधिग्रहण:-
सम्मेलन पेंच व्यपर्तन परियोजना तथा अदानी पेंच पावर प्रोजेक्ट हेतु अधिग्रहित भूमि पर किसानों का नामांतरण करने की मांग करता है। 30 सितंबर 2014 को जिलाधीष छिंदवाड़ा को धारा-24 (2) के तहत आवेदन देकर पेंच व्यपर्तन परियोजना तथा अदानी पेंच पावर प्रोजेक्ट प्रभावित किसानों द्वारा अपनी मालिकी की घोषणा करते हुए अधिग्रहित जमीनों का नामांतरण करने के लिए आवेदन दिया गया था, लेकिन शासन  द्वारा 1 जनवरी 2014 से लागू ”भूमि अर्जन-पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर (मुआवजा) और पारदर्षिता का अधिकार कानून-2013“ के अंतर्गत नामांतरण नहीं किए जाने की सम्मेलन निंदा करता है। बामनबाड़ा गांव के जो किसान अभी भी अपने घरों में निवासरत हैं, उनके नाम भी अधिग्रहित भूमि पर पुनः दर्ज किए जाने की सम्मेलन मांग करता है। सुश्री मेधा पाटकर, सुश्री एडवोकेट आराधना भार्गव, डा. सुनीलम सहित पेंच व्यपर्तन परियोजना तथा अदानी पेंच पावर प्रोेजेक्ट प्रभावित किसानों पर लादे गए फर्जी मुकदमों को सम्मेलन सरकार से वापस लेने की मांग करता है। सम्मेलन तहसीलदार के निर्देष के बावजूद अब तक छोटे झाड़ के जंगल पर बनी अदानी प्रोजेक्ट की चार मंजिला इमारत नहीं गिराए जाने और सार्वजनिक सड़कें और कूंए ग्रामीणों को इस्तेमाल के लिए उपलब्ध नहीं कराए जाने को प्रदेश सरकार की अडानी से सांठगांठ का स्पष्ट प्रमाण मानता है।

सम्मेलन एसकेएस और मैक्सो प्रोजेक्ट को निरस्त करने तथा अधिग्रहित भूमि किसानों का वापस करने की मांग करता है। सम्मेलन छिंदवाड़ा जिले के 48 गांव बफरजोन में शामिल किए गए गांवों को मुक्त करने की मांग करता है। तोतलाडोह डेम के विस्थापितों को जमीन के बदले जमीन मिले तथा डेम का पानी छिंडवाड़ा जिले को उपलब्ध कराए जाने के साथ ही डेम में मछुवारों को मछली पकड़ने का अधिकार देने की मांग करता है।

सीधी सिंगरौली मे अधिग्रहण
सम्मेलन मेसर्स आर्यन एमपी पावर जनरेशन कंपनी हेतु अधिग्रहित भूमि पर किसानों के नामांतरण करने की मांग करता है। 27 सितंबर 2014 को जिला कलेक्टर सीधी को धारा 24(2) के तहत आवेदन देकर मेसर्स आर्यन एमपी पवार जनरेषन कंपनी के लिए पावर प्रोजेक्ट हेतु ग्राम भूमका एवं मूसामुड़ी के किसानों की अधिग्रहित की गई जमीन के प्रभावित किसानों द्वारा अपनी मालिकी की घोषणा करते हुए अधिग्रहित जमीनों का नामांतरण करने के लिए आवेदन किया गया था, लेकिन कलेक्टर सीधी द्वारा 01 जनवरी 2014 से लागू भूमि अर्जन पुनर्वासन और पुनव्यस्थापन में उचित प्रतिकर मुआवजा और पारदर्षिता अधिकार कानून 2013 के अंतर्गत नामांतरण नहीं किए जाने की सम्मेलन निंदा करता है। साथ ही सीधी जिले में स्थापित जेपी सीमेंट प्लांट बघवार को सीधी एवं सतना जिले के कैमोर पहाड़ क्षेत्र के 500 एकड़ का क्षेत्रफल फर्जी तरीके से चुना पत्थर खनन हेतु जो दिया गया, उससे निरस्त करने की मांग करता है।

सिंगरोली जिले के ग्राम हर्रई एवं बेलौंजी के किसानों की जमीन वर्ष 1984 में अधिग्रहित की गई थी, जिसके लिए भूमि अधिग्रहित की गई थी, उसके लिए उक्त जमीन का उपयोग आज तक नहीं करता है, लिहाजा सम्मसेलन अधिग्रहित जमीन किसानों को वापस लौटाने की मांग करता है। सिंगरौजी जिले में व्यापक पैमाने पर भूअधिग्रहण के कारण विस्थापन हुआ है, विस्थापितों को पिस्थापन नीति के मुताबिक मिलने वाले मुआवजा और दूसरे लाभ से वंचित रखा गया है, विस्थापन से ज्यादातर आदिवासी परिवार प्रभावित हुए हैं। जिसकी सम्मेलन निंदा करता है। पर्यावरण मापदंडों का पालन नहीं कराए जान के चलते संगरौली पर्यावरणीय लिहाज से एषिया का सबसे प्रदूषित स्थान बन गया है। सम्मेलन इस बात की भी निंदा करता है कि निगरी पांवर प्लांट के लिए जल उपलब्धता हेतु बिना अनुमति के जयप्रकाष पावर वंेचर्स द्वारा मनमाने तरीके से गोपद नदी में बैराज बना लिया गया है, सम्मेलन इस ध्वस्त करने की मांग करता है।

विंद क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण
सम्मेलन की मान्यता है कि विंद क्षेत्र के रीवा एवं शहडोल संभाग के जिलों में जिस तरह से व्यापक पैमाने पर उद्योग स्थापित करने के नाम पर किसानों की भूमि अधिग्रहित की गई है, स्थापित सीमेंट एवं पावर प्लांट के दुष्परिणामों के कारण विंद क्षेत्र उत्तराखंड जैसी भयावह स्थिति के मुहाने पर खड़ा है। सम्मेलन विंद क्षेत्र में अब किसी भी प्रकार के भूमि अधिग्रहण का विरोध करता है।
शिक्षा
सम्मेलन की मान्यता है कि भारत के इतिहास में सदियों से देश की बहुसंख्यक मेहनतकष जनता को शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा गया है, लेकिन तमाम मुष्किलों और चुनौतियों के बावजूद जाति व्यवस्था और पितृसत्ता के क्रूर दमन व उससे उपजे अन्याय के खिलाफ जनता ने लगातार संघर्ष किया। लोकायत, बौद्ध दर्षन और भक्ति-सूफी आंदोलनों के जरिए जनता द्वारा चेतना हासिल करने की लड़ाई जारी है। इसमें जनता के सभी तबकों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और कुर्बानियां दी, ताकि एक ऐसे आजाद मुल्क का निर्माण किया जा सके जो लोकतंत्र, बराबरी, धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक-आर्थिक न्याय और इंसानी मूल्यों पर आधारित हो। ऐसे समाज के निर्माण में शिक्षा एक सषक्त माध्यम होता है। जनता को यह उम्मीद थी कि आजाद मूल्क की सरकारें बिना किसी भेदभाव के, पूरी मुफ्त शिक्षा का अधिकार देश के हर बच्चे व युवा को मुहैया कराएंगी। लेकिन आजादी देश की सरकारों ने इस ऐतिहासिक जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। शिक्षा में न सिर्फ गैर बराबरी कायम रही, बल्कि देश की ज्यादातर जनता खासतौर पर दलित-आदिवासी, पिछड़े व अल्पसंख्यक समुदाय और इनमें भी ज्यादातर महिलाएं शिक्षा के अधिकार से वंचित रहीं।

80 और 90 के दषक में जब आर्थिक उदारीकरण व वैष्वीकरण की नीतियों के फलस्वरूप सरकार ने बिना भेदभाव के समतामूलक गुणवत्ता की शिक्षा मुहैया कराने की संवैधानिक जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना शुरू कर दिया। इसके साथ ही विश्व बैंक जैसे वैष्विक कॉरपोरेट पूंजी की संस्थाओं के इशारे पर नीतिगत तौर पर शिक्षा में निजीकरण व बाजारीकरण को बढ़ावा देने के लिए विधिवत प्रयास भी शुरू कर दिए गए और पहले से ही भेदभाव पर टिकी बहुपरती शिक्षा व्यवस्था में भेदभावों को न सिर्फ बढ़ावा दिया गया, बल्कि उसे कानूनी जामा भी पहनाया गया।

इस दोतरफा हमले का नतीजा यह हुआ कि एक तरफ सरकारी शिक्षा व्यवस्था की हालत षड़यंत्रपूर्वक सुनियोजित तौर पर लगातार खराब की गई, दूसरी तरफ इसकी जगह भरने के लिए तेजी से निजी संस्थाओं को बढ़ाया गया। सरकारी स्कूल व्यवस्था कि बुरी दुर्दषा कर उसे इस कगार पर पहुंचा दिया गया कि आज सरकारी स्कूलों की कोई विश्वसनीयता जनता के बीच बची ही नहीं है। इसका नतीजा यह है कि अपने बच्चों को षिक्षित करने के लिए गरीब जनता को मेहनत की कमाई का बड़ा हिस्सा निजी स्कूलों को देना पड़ता है, इसके बावजूद उन्हें दोयम दर्जे की शिक्षा और सुविधा वाले स्कूल ही मिलते हैं। इसी तर्ज पर सरकारी उच्च शिक्षा में भी निजीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। उच्च शिक्षा पहले से ही देश में गरीब खासतौर पर दलित-आदिवासी व अल्पसंख्यकों की पहुंच से बाहर रही है। इसमें निजीकरण के चलते उच्च शिक्षा के दरवाजे गरीब, वंचित समाज के लिए हमेषा के लिए बंद कर दिए गए हैं।

शिक्षा में बाजारीकरण के चलते न सिर्फ असमानता बढ़ी है, बल्कि शिक्षा के स्वरूप, चरित्र व मायने भी विकृत किए गए हैं। आजादी की लड़ाई की विरासत को नकारते हुए वैष्विक कॉरपोरेट पूंजी के हित साधने के लिए शिक्षा के अर्थ को सीमित कर इसे मात्र कुछ कुषलताओं के विकास का जरिया बना दिया गया है, ताकि हर इंसान सिर्फ पूंजीवादी व्यवस्था का गुलाम पुर्जा बनकर रह जाए। आज की शिक्षा का देश की जनता की वास्तविक जरूरतों से कोई वास्ता नहीं है, न ही इससे कोई वास्ता है कि शिक्षा के माध्यम से देश में जारी अन्याय, गैरबराबरी, अंधविष्वास, धार्मिक कट्टरता और लोकतंत्र विरोधी विचारों को खत्म किया जाए।
  
शिक्षा के सांप्रदायिकरण को सम्मेलन संपूर्ण समाज और देश के लिए बड़ा खतरा मानता है। धार्मिक कट्टरता अवैज्ञानिक व अमानवीय मूल्यों की शिक्षा के माध्यम से समाज पर थोपा जा रहा है। सांप्रदायिक ताकतें ऐसा माहौल बना रहीं है कि देश की अधिकांष जनता निजीकरण व बाजारीकरण की असल समस्याओं से जूझना बंद कर धर्म के नाम पर आपस में लड़ती रहे, जिसका सीधा फायदा कॉरपोरेट पंूजी को होता रहे।

सम्मेलन देश की शिक्षा व्यवस्था और देश की मेहनतकष जनता के अधिकारों पर कॉरपोरेट पूंजीपतियों और सांप्रदायिक ताकतों के हमले को पहचानते हुए इसके खिलाफ एकजुट संघर्ष का संकल्प लेता है। हमारा ये संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक देश में केजी से पीजी तक समानता पर आधारित और पूरी तरह मुफ्त व सरकार द्वारा वित्त पोषित समान शिक्षा व्यवस्था की स्थापना नहीं हो जाती। इस समान शिक्षा व्यवस्था का प्रबंधन पूरी तरह लोकतांत्रिक, सहभागितापूर्ण व विकेंद्रीकृत होना चाहिए, ताकि यह जनता की वास्तविक जरूरतों के प्रति संवेदनषील होगी। इसका मकसद देश में एक ऐसे समाज का निर्माण करना होगा जो लोकतंत्र, समानता, न्याय, बंधुत्व, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और इंसानी मूल्यों पर आधारित हो। सम्मेलन ”अखिल भारत शिक्षा मंच“ द्वारा उक्त संकल्प को पूरा करने के लिए देशभर के कौने-कौने में निकाली गई “शिक्षा संघर्ष यात्रा” की सराहना करते हुए भोपाल में बीती चार दिसंबर 2014 को आयोजित समापन कार्यक्रम में लिए गए संकल्पों को पूरा करने में हर स्तर पर प्रयास करने की घोषणा करता है।

लोकविद्या
 सम्मेलन की मान्यता है कि देश के किसान-आदिवासियों के पास वह लोक ज्ञान है, जिसके आधार पर वे अपनी दुनिया का पुनर्निर्माण कर सकते हैं। लेकिन, बाजारवाद के चकाचौंध में डूबी सरकारें लोकविद्या आधारित समाज, समूहों के ज्ञान को न तो महत्व देने को तैयार है, न ही इसे प्रोत्साहित करने के प्रयास हो रहा है। जिससे लोक विद्या लुप्त हो रही है, इससे जुडे़े लोग हाषिये पर चले गए हैं। जबकि, लोकविद्या के बल पर अपनी जीविका चलाना और समाज में खुषहाली हासिल करना, लोकविद्या समाज का जन्मसिद्व अधिकार है। सम्मेलन इस देश के सभी नागरिक स्त्री और पुरूष, जिस काम को भी अपनी आजीविका चलाने के लिए करते हैं, उसी काम के लिए उन्हें पक्की आय की व्यवस्था एक सरकारी कर्मचारी की आय के बराबर करने की मांग करता है। इस दिषा में राष्ट्रीय स्तर पर लोकविद्या आंदोलन द्वारा चलाए जा रहे अभियान का समर्थन करता है।

श्रमिक
सम्मेलन की मान्यता है कि केंद्र सरकार द्वारा श्रम कानूनों में किए गए परिवर्तन पूंजीपतियों को लूट की खुली छूट देने हेतु किए गए हैं। परिवर्तित हुए कानूनों में न्यूनतम वेतन, 8 घंटे की ड्यूटी, ओवर टाइम, मजदूर महिलाओं से रात की पाली में काम करवाना, छुट्टियों में कटौती, ओवर टाइम के घंटे बढ़वाना और उसका कार्यकाल में जोड़ना ईत्यादि शामिल हैं। “श्रमेव जयते” के नाम पर हो रहे इन संषोधनों का सीधा फायदा सिर्फ उद्योगपतियों को ही होगा। उन्हें इंस्पेक्टर राज से मुक्ति के नाम पर रजिस्टर बनाने से मुक्ति दे दी गई है। अब उद्योगों में किसी भी प्रकार की कोई निगरानी नहीं रखी जाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ”मेक इन इंडिया” नारा, जो मूलतः विदेश पूंजीपतियों को संबोधित था के तहत सरकार उन्हें हर तरह की सुविधा और छूट देगी, पूंजीपतियों को दिए जा रहे ये लुभावने अवसर देश के आम मेहनतकष मजदूर के श्रम की लूट पर ही टिके हैं। कॉरपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकारें सरेआम श्रमिकों को बंधुआ मजूदर में बदलने पर आमादा दिखलाई पड़ती है। औद्योगिक विवाद अधिनियम में छंटनी की सीमा एक सौ से बढ़ाकर तीन सौ कर्मचारी कर 90 फीसदी कर्मचारियों को कानूनी सुरक्षा से बाहर करने, 20 से कम श्रमिकों वाले औद्योगिक कारखानों को श्रम कानून से मुक्त रखने, लाखों बीड़ी मजदूरों की मजदूरी नहीं बढ़ाने की सम्मेलन निंदा करता है। सम्मेलन हाल ही में रेलवे संगठनों द्वारा हड़ताल की चेतावनी देने तथा कोयला श्रमिक संगठनों द्वारा हड़ताल के बाद सरकारा द्वारा रेलवे व कोयला क्षेत्र में निजीकरण नहीं करने की घोषणा को श्रमिक आंदोलनों की बड़ी जीत मानता है तथा श्रमिक आंदोलन के साथ जुड़कर कार्य करने का संकल्प करता है।

पर्यावरण:-
 केंद्र सरकार वनाधिकार अधिनियम और पर्यावरणीय कानूनों में कई ऐसे संषोधन लाने की कोषिष में है, जो सीधे आदिवासी और स्थानीय समुदायों के हितों के विरूद्ध है। जल-जंगल और जमीन के लिए पहले से संघर्षरत आदिवासियों के लिए इन संषोधनों के बाद अपना अस्तित्व बचाना तक मुष्किल हो जाएगा। खनन कंपनियों के लिए खनन से जुड़ी सभी कार्रवाईयों और पर्यावरणीय मंजूरी को ज्यादा तेज और सुगम बनाने को मंजूरी दी जा चुकी है। मोदी राज के तीन महीने में 240 मंजूरी मिल चुकी है। वनाधिकार अधिनियम के तहत किसी भी परियोजना की मंजूरी के लिए ग्रामसभा के अनुमोदन संबंधित प्रावधान समाप्त करने की भी प्रक्रिया चल रही है, जिससे किसानों की अपनी जमीनों पर हकदारी सीधे-सीधे समाप्त हो जाएगी। सिंचाई परियोजनाओं में पहले से मौजूद प्रावधान, जिसके अनुसार 2,000 हेक्टेयर से कम जमीन के लिए पर्यावरणीय मंजूरी की आवष्यकता नहीं थी, उसकी सीमा बढ़ाकर अब 10,000 हेक्टेयर कर दी गई है। सम्मेलन देश को पर्यावरणीय संकट से उभारने के लिए देश में कार्य कर रहे संगठनों के साथ मिलकर संघर्ष करने का ऐलान करता है।

किसानी का संकट
किसानी खत्म करके कृषि कार्य को कॉर्पोरेट घरानों को हस्तांतरित करने की सभी राजनीतिक पार्टियों की नीति की मुलताई में सम्पन्न यह किसान सम्मेलन भर्त्सना करता है तथा संविधान विरोधी होने के कारण इस पर तत्काल रोक लगाने की संविधान के तथाकथित रक्षकों से अपील करता है। सम्मेलन किसानी के संकट से देश को उबारने के लिए तत्काल निम्न कदम उठाने के लिए सरकार से मांग करता है: –

  1. मध्य प्रदेश में पिछली दो फसलें प्राकृतिक आपदा के चलते नष्ट हो गई थीं। मुख्यमंत्री द्वारा बार-बार घोषणा के बावजूद अब तक किसानों को समूचित मुआवजा राषि उपलब्ध नहीं कराई गई हैै, न ही फसल बीमा राशी का भुगतान किया गया है। सम्मेलन प्रभावित किसानों को तत्काल मुआवजा राषि प्रदान करने, किसानों का कर्जा और सिंचाई शुल्क माफ करने, बकाया बिजली बिल माफ करने, उपभोक्ताओं से बिजली बिल मीटर रिडिंग के आधार पर वसूलने, किसानों को पंजाब और तमिलनाडू की तर्ज पर मुफ्त बिजली देने, सभी तरह के बिजली के बिल (मुनाफा कमाने वाली कंपनियों को छोड़कर) आधा करने, सभी सहकारी समिति के किसान सदस्यों को फसल बीमा का भुगतान करने, कैपिसिटर चार्ज को समाप्त कर अब तक अनाधिकृत तौर पर की गई वसूली को आगामी बिलों में समायोजित करने की मांग करता है। 
  2. किसानों के बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए बिना गारंटी ब्याज रहित शिक्षा ऋण उपलब्ध कराने, अनावारी संबंधी कृषि एवं राजस्व विभाग के सर्वे को ग्राम पंचायत की पुष्टि बगैर स्वीकार नहीं करने, यूरिया की कालाबाजारी रोक कर उचित मूल्य पर उपलब्ध कराने की मांग करता है। 
  3. सम्मेलन 2014 में सोयाबीन का समर्थन मुल्य 4500 प्रति क्विंटल, गेहूं का मूल्य 2500 रूपये प्रति क्विंटल और मक्का के दाम 2000 रूपये प्रति क्विंटल घोषित करने की मांग करता है।
  4. सम्मेलन कृषि को विश्व व्यापार संगठन से बाहर रखने की मांग को दोहराते हुए डब्ल्यूटीओ के तहत किए गए सभी समझौतों को निरस्त करने तथा विषेषतौर पर बाली (इंडोनेषिया) में हुए फैसलों को निरस्त करने की मांग करता है। सम्मेलन खुला व्यापार समझौते (एफटीए) के तहत बड़े पैमाने पर विकसित देशों से भारत आ रही खाद्य सामग्री पर रोक लगाने की मांग करता है। विदेशों से आने वाले कृषि उत्पादों पर आयात शुल्क लगाने की पुरजोर मांग करता है।
  5. कटनी के ग्राम सेदा-जमुनिया, मढ़ादेवरी में बांध के लिए बिना पुनर्वास तथा समूचित मुआवजे के भूमि अधिग्रहित की गई है। डुकरिया, बुझबुझा में वैलिस्पन कंपनी ने गैर कानूनी तरीके से जमीन अधिग्रहित किए बगैर कार्य शुरू कर दिया है। सम्मेलन उसे तत्काल रोकने तथा किसानों को उनकी जमीन शासकीय दस्तावेजों में दर्ज कर वापस लौटाने की मांग करता है।
  6. सम्मेलन मध्यप्रदेश के बीड़ी मजदूरों के लिए आवास योजना के लिए दिए जा रहे 40 हजार रूपये की राषि बढ़ाकर 80 हजार रूपये करने एवं सभी बीड़ी मजदूरों को आवास उपलब्ध कराए जाने की कटनी में किसंस द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन का समर्थन करता है और मुख्यमंत्री से आवास योजना के तहत सभी गरीबों को पक्के मकान देने की अपनी घोषणा पर अमल करने की मांग करता है।
  7. इतना तय किया जाय कि सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान बढ़कर 45 फीसदी हो जाये।
  8. सम्मेलन किसान की न्यूनतम आमदनी छठे वेतन आयोग में निर्धारित तृतीय श्रेणी सरकारी कर्मचारी के वेतन के बराबर सुनिष्चित किए जाने की मांग करता है। 
  9. सम्मेलन किसानी की बढ़ती लागत तथा लगातार कम होते समर्थन मूल्य के चलते आत्महत्या के कगार पर पहुंच रहे किसानों को तत्काल राहत देने के लिए किसानों को संगठित वर्ग के समतुल्य मेहनत का दाम देने की मांग करता है।
  10. सम्मेलन अधिक लागत और कम मूल्य की चक्की में पिसते किसानों को राहत देने, खेती-किसानी की समस्त लागत शासन द्वारा लगाई जाए तथा किसान को संगठित वर्ग के समतुल्य श्रम मूल्य दिया जाए।
  11. सम्मेलन बैंककारी विनियमन अधिनियम की धारा-21(क) को भूतलक्षी प्रभाव से समाप्त करने की मांग करता है।
  12. सम्मेलन कृषि क्षेत्र को विकास प्रक्रिया के केन्द्र में रखकर उसमें सार्वजनिक विनिवेश बढ़ाया जाने तथा उद्योगों की भूमिका कृषि कार्यों में सहायक के रूप में तय किए जाने की नीति सरकार से बनाने की मांग करता है।
  13. सम्मेलन खेती-किसानी की लागत घटाने, जहरीले खाद्य पदार्थों से आम नागरिकों को मुक्ति दिलाने, मिट्टी की हालत में सुधार करने, स्वास्थ्य पर पढ़ने वाले विपरित असर के कारण इलाज पर होने वाले खर्च को नियंत्रित करने के उद्देष्य से जैविक एवं प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए शासन से नीति बनाने और किसानों से रसायन मुक्त खेती पद्ती अपनाने की अपील करता है।
  14. नशाखोरी:    सम्मेलन की मान्यता है कि देश में लगातार बढ़ती नशाखोरी समाज और देश को खोखला कर रही है, जिसमें सरकारें तथा सत्तारूढ़ पार्टियां अहम भूमिका निभा रही हैं। नशाखोरी के चलते आम नागरिकों का एक तरफ इलाज पर खर्च लगातार बढ़ रहा है, वहीं दूसरी तरफ समाज में हिंसा (घरेलू हिंसा, यौन हिंसा) तथा दुर्घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही है। देश की राजनीति पर नषा बेचने वाले अपराधी लगातार हावी होते जा रहे हैं। चुनाव में शराब का इस्तेमाल लगातार बढ़ता जा रहा है, जिससे लोकतंत्र कमजोर हो रहा है। युवा पीढ़ी में नशाखोरी ने भटकाव पैदा किया है। सरकारें शराब से प्राप्त होने वाले राजस्व से चलाई जा रही हैं, जिसे महात्मा गांधी जी ने पाप की कमाई कहा था। सम्मेलन देश में नशाखोरी को रोकने के लिए कड़े कानून बनाने तथा ग्राम सभाओं एवं मौहल्ला सभाओं को शराबबंदी का अधिकार देने की मांग करता है। सम्मेलन तमिलनाडू में युवाओं द्वारा “शराब  एवं मादक पदार्थों के खिलाफ जनआंदोलन के बैनर तले की जा रही 100 दिन की पदयात्रा के समापन के अवसर पर आज 12 जनवरी 2015 को राष्ट्रीय स्तर पर शराब बंदी लागू किए जाने के लिए शुरू किए गए अभियान का समर्थन करता है।

प्रस्तावक
किसान संघर्ष समिति,
शहीद किसान स्मृति कुटीर, स्टेशन रोड़, मूलतापी, जिला बैतूल, म.प्र.-460661
मो. 09425109770,Email- sunilam_swp@yahoo.com

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