संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

नवलगढ़ के किसानों का बांगड़-बिरला के सीमेंट प्लांटों के खिलाफ 2140 दिनों से धरना जारी; 28 अगस्त को तहसील भवन पर प्रदर्शन

– दीप सिंह शेखावत 

नवलगढ़ के गोठडा गांव में श्री सिंमेट कम्पनी का प्लांट लगना प्रस्तावित है और प्लांट के लगने की सरकार व सेठों ने मिलकर पूरी कागजी कार्यवाही भी पूरी करली है लेकिन किसानों से न कोई सहमति ली गई ओर न पुछा गया। 25 जून 2016 को सभी प्रभावित किसानों को न्यायालय झुंझुनूं से नोटिस भेजे गए हैं। बताया गया है फलां तारीख को कोर्ट में हाजिर होना है । अगर नहीं आये तो एकतरफा फैसला कर दिया जाएगा। मैं ये सोचता हूँ आज तक किसानों से कुछ पुछे बिना ही सब कुछ कर लिया। व जब जब जनसुनवाई की बैठक हुई सबने अधिग्रहण का पुरजोर विरोध किया तो जन सुनवाई भी क्यों करवाते हैं। अब बात समझ में आ रही है कि कागजों का पेट भरा जा रहा है। जब किसी की जायब बात भी सुनने वाला नहीं हो इसे कहते हैं जंगल राज…. ।

नवलगढ तहसील कि पांच ग्राम पंचायतें जिनमें गोठडा, बसावा, पुजारी की ढाणी, मोहनवाडी, खिरोड का ईलाका सीमेंट कम्पनियों के लिए किये जा रहे अधिग्रहण से प्रभावित है। तथा सीकर जिले की बेरी व कोलीडा का ईलाका सिंमेट कम्पनियों के लिए रेल्वे लाईन से प्रभावित है। जो कुल मिलाकर 70 हजार बिघा जमीन है। गोठडा गांव के पास श्री सिंमेट कम्पनी का प्लांट लगना है इसके लिए सरकारी तोर पर व कम्पनियों की तरफ से कार्रवाई पूरी हो चुकी है।

प्लांट के लिए 1280 बीघा जमीन की जरूरत है अभी तक कम्पनी को 300 बीघा जमीन मिली है अगर ये प्लांट लग गया तो सभी कम्पनी लगना व खनन होना निश्चित है जो हमारे ईलाके के आसपास के गांवों को भी जल विहिन व पर्यावरण को दुषित कर देगा। इसी बात को लेकर पिछले छह साल से किसान धरने पर बैठे हैं। लेकिन पिछले कुछ दिनों से हमारे बीच से ही कुछ लोगों को कम्पनी वालों ने लालच देकर अपनी तरफ मिलाने की भरपूर कोशिश की है जिसमें वो कुछ सफल भी हुऐ हैं।

सोचने वाली बात यह है कि इसमें जनप्रतिनिधि भी शामिल हैं। ये लोग किसानों को ज्यादा कीमत दिलाने की बात कहकर बहका रहे हैं हालांकि लोग इनका कहना नहीं मान रहे हैं लेकिन प्रयास कर रहे हैं कि जमीन बिके। हम लोग पुरा प्रयास कर रहे हैं कि हमारा ईलाका बर्बाद न हो तथा आने वाले दिनों में अगर कम्पनियां लग गई तो पानी पीने को भी नहीं मिलेगा व पर्यावरण को भारी नुकसान होगा। ये बात आप सभी  भलीभांति जानते हैं लेकिन इतना समय गुजरने के बावजूद युवाओं में कोई खास हलचल नहीं है। कभी-कभी मन में आशंका उठती है कि कहीं हमारे युवा यह तो नहीं चाह रहे हैं कि हम लोग कम्पनियों को रोककर गलत कर रहे हैं? दुसरी बात ये भी हो सकती है कि युवाओं में संगठन शक्ति नहीं है ये ऐसी कोई सोच नहीं है? या युवाओं में नेतृत्व करने वाले ही नहीं है?

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