संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

बाड़मेर में चारागाह-तालाब-श्मशान की 400 बीघा जमीन विघुत सब स्टेशन के लिए आवंटित; विरोध में स्थानीय लोग एकजूट



राजस्थान के सरहदी जिले बाड़मेर के कोरणा गांव की  400 बीघा गोचर (चारागाह) और तालाबों की जमीन को भाजपा सरकार ने विघुत सब स्टेशन के लिए आवंटित कर दिया है। इस आवंटन से वहां के स्थानीय निवासी खासे नाराज हैं। प्लांट निर्माण को लेकर कोरणा ग्राम पंचायत ने प्रशासन को पत्र भेजकर आपत्ति जताई है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि इस आवंटन से वहां की गोचर भूमि और सार्वजानिक तालाब खत्म हो जाएगे। यहां के तलाब में पानी एकत्रित नहीं होने की वजह से स्थानीय निवासियों और जानवरों के सामने भयावक पानी का संकट पैदा हो जाएगा। हम यहां पर आपके साथ उपरोक्त आवंटन के विरोध में पीपल फॉर एनिमल द्वारा 4 दिसम्बर 2016 को जिला कलेक्टर को सौंपा गया ज्ञापन साझा कर रहे हैं;

इसलिए स्थानीय लोग विरोध कर रहे है। 

– प्रस्तावित भूमि राजस्व रिकॉर्ड में गोचर (चरगाह) भूमि दर्ज है।

– यह जमीन क्षेत्र के प्रसिद्ध गंगावास तालाब, मामाजी नाड़ी, कुतासरिया तालाब, कुंपावास तालाब का केचमेंट क्षेत्र है।

– आसपास के गांवों के ग्रामीण इन तालाबों का पानी प्रयोग करते हैं। पशु व जंगली जानवर इसका ही पानी पीते हैं।

– कई प्रवासी पक्षी सर्दी में यहां पड़ाव डालते हैं।

– इस भूमि पर श्मशान घाट और कब्रिस्तान भी है।

– यह कैचमेंट क्षेत्र बरसाती पानी को कोरना-गंगवास के तालाबों में संग्रहित करने के काम आता है।

– यह भूमि चिंकारा, नीलगाय, जंगली खरगोश, रेगिस्तानी लोमड़ी, जंगली सूअर, चंदन गो जैसे वन्य जीवों का प्राकृतिक आवास क्षेत्र है

श्रीमान जिला कलेक्टर महोदय,
बाड़मेर, राजस्थान

विषय – गोचर (चरागाह) व तालाबों की ग्राम कोरणा स्थित खसरा सं 27 रक्बा 400 बीघा सब स्टेशन बनाने हेतु आवंटित नहीं करनें बाबत।

महोदय जी,

उपरोक्त विषय में सादर निवेदन है कि पीपुल फॉर एनीमल्स संस्था केन्द्रीय मंत्री एंव राष्ट्रीय अध्यक्षता श्रीमती मेनका गांधी के नेतृतत्व में राष्ट्रीय स्तर पर पशु व पर्यावरण संरक्षण अधिकारों के लिए कार्यरत संस्था है।
संस्था की जानकारी में आया है कि आप द्वारा बाड़मेर जिले की पंचपदरा तहसील की ग्राम पंचायत कोरणा में स्थित गोचर (चरागाह) भूमि सरहद मौजा कोरणा के खसरा सं. 27 रकबा 400 बीघा 765/423 विघुत सब स्टेशन बनाने हेतु आवंटित किया जाना प्रस्तावित हैं।

यह है कि यह भूमि राजस्व रिकॉर्ड में गोचर (चरागाह) भूमि दर्ज है तथा इस भूमि पर गंगावास तालाब, मामाजी की नाड़ी, कुतासरया तालाब, कुतासरया तालाब, कुपावास तालाब है। ये तालाब यहां के आसपास के दर्जनो गांवो के निवासियों व बेजुबान जानवरों (पशुओं) का प्रमुख पेयजल स्त्रोत है। जंगलों में विचरण करने वाले जंगली जानवर तथा अनेक प्रजातियों के विदेशी पक्षी भी सर्दियों के मौसम में तालाबों में तथा भूमि पर विचरण हेतु यहाँ आते है, इसी भूमि पर श्मशान घाट, कब्रिस्तान आदि भी स्थित है।

इस क्षेत्र का भूमिगत जल भी अत्यधिक खारा है तथा यह क्षेत्र कैचमेंट एरिया बरसाती पानी को कोरना-गंगावास के तालाबों में संग्रहित करने के काम में आता है। कोना-गंगावास का संपूर्ण क्षेत्र कई तरह के वन्य जीव जैसे चिंकारा, नीलगाय, जंगली, खरगोश, रेगिस्तानी लोमड़ी, जंगली सूअर, चन्दनगो आदि का प्राकृतिक आवास क्षेत्र है तथा यह क्षेत्र इन वन्यजीवों के लिये अत्यधिक सुरक्षित होकर इनके अनुकूल है।

माननीय सर्वोचय न्यायलय एवं उच्च न्यायलय द्वारा भी तालाबों की भूमि एंव वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास की भूमि के आवंटन पर पूर्णतया रोक है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने न्यायिक निर्णय एआईआर 2001, एस सी 3215 के पैरा संख्या 13 में भी जंगलों, तालाबों, पहाड़ों की भूमि को पर्यावरण संतुलन हेतु आवश्यक बताया है।

अतः आपसे निवेदन है कि तालाबों की व पशुओं के हक की भूमि को विघुत सब स्टेशन हेतु आवांटित नहीं की जावे, अन्यथा मुझे बेजुबानो के हक के लिए मजबूरन माननीय ग्रीन ट्रिब्यूनल की शरण लेकर आवंटन रद्द करवाना पड़ेगा एवं इ बाबत् क्षतिपूबर्ति की जिम्मेदारी आप स्वयं की होगी।

पीपल फॉर एनिमल
4 दिसम्बर 2016

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