संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

72 वर्षों से डिमना डैम विस्थापित आदिवासियों का टाटा के खिलाफ बहादुराना प्रतिरोध



झारखण्ड के जमशेदपुर में टाटा स्टील कंपनी को पानी देने के लिए के लिए 1942 में जमशेदपुर से 12 किमी दुर डिमना डैम बनाया गया. डैम के लिए 12 गांव के लोगों को विस्थापित  किया गया. गांव वालों को उस समय मुआवजे की  सिर्फ एक क़िस्त दी गई. शेष मुआवजे के लिए विस्थापित आदिवासी 72 वर्षों से संघर्षरत है. जमशेदपुर से दीपक रंजीत की रिपोर्ट;

उस समय जो जमीन लिया सो लिया ही उसके अलावे टाटा कंपनी ने ग्रामीणों के रैयती जमीनों को पिलर गाड़ के कब्जा कर रक्खा था. उन जमीनों में ग्रामीणों में डैम के निर्माण काल से ही ग्रामीणों को न तो खेती करने के लिए देते थे और न ही अन्य कोई और काम करने देते थे.

जमशेदपुर में #TATA #STEEL अपने कंपनी के पानी के पूर्ति के लिए के लिए 1942 को जमशेदपुर से 12 किमी की दुरी स्थित मिर्जाडीह में एक डैम बनाया है. जिसका नाम डिमना डैम रखा. डैम के निर्माण के लिए 12 गांव के लोगों को विस्थापित होना पड़ा था. गांव वालों का कहना है की उस समय उन्हें मुआवजे का सिर्फ एक क़िस्त ही क़िस्त मिला है. शेष राशी के लिए विस्थापित लोग अबतक संघर्षरत है.

उस समय जो जमीन लिया सो लिया ही उसके अलावे टाटा कंपनी ने ग्रामीणों के रैयती जमीनों को पिलर गाड़ के कब्जा कर रक्खा था. उन जमीनों में ग्रामीणों में डैम के निर्माण काल से ही ग्रामीणों को न तो खेती करने के लिए देते थे और न ही अन्य कोई और काम करने देते थे.

2009 में जब Jharkhand Mukti Vahini वाहिनी ने टाटा के मनमानी के खिलाफ ग्रामीणों को गोलबंद करने लगा. तब जाकर लोगों में आत्मविश्वास जगा और लोगो में हिम्मत जगा. उसके बाद ग्रामीणों के रैयती जमीनों पर के टाटा के द्वारा गाड़े गये पिलरो को उखाड़ फेंका और उन जमीनों के एक बार फिर अपने कब्जे में ले खेती करने लगा.

अधिग्रहित जमीनों के अलावे भी रैयतो के तिन एकड़ जमीनों पर डिमना डैम का पानी हर साल वर्षा के समय घुस जाती है. इसतरह ग्रामीणों का जमीन पे लगा खड़ी फसल जबसे डैम बना है तब से हर साल बरवाद होते आया है. तो ग्रामीणों का मांग है कि टाटा कंपनी साल दर साल बर्बाद हो हो रहे फसलों का मुआवजा बिना आना कानी के दे.

डैम से विस्थापित भानु सिंह बताते है कि जब भी हम किसी के घर रात को बिना बताये घुसते है तो उसे चोरी कहा जाता है कि चोरी के नियत से घुस रहा है. परन्तु टाटा कंपनी तो दिनदहाड़े हमारे खेतों में जबरन अपना पानी घुसा हमारे फसलों को बर्बाद कर रहा है. तो इस हिसाब से टाटा कंपनी क्या हुआ. इसे भी चोर का लुटेरा का दर्जा मिलाना चाहिए. इसके खिलाफ हमने बोडाम थाना में टाटा कंपनी के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज किये है. फैसला आना बाकि है.

और हम दुनिया के लोगों से अपील भी करना चाहेंगे हक के लिए और टाटा के इसतरह के गड़बड़ झाले के खिलाफ हम विस्थापितों के संघर्ष में सहभागी बने.

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