संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

परमाणु ऊर्जा पर जनता का अधिकार-पत्र

परमाणु ऊर्जा पर जनता का यह अधिकार-पत्र हमारे जन-आन्दोलनों के साझा अनुभवों, संघर्षों तथा परमाणु-मुक्त भविष्य के प्रति हमारी दृष्टि का दस्तावेज है.

परमाणु ऊर्जा पर जनता का अधिकार-पत्र

प्रिय साथियों,
परमाणु ऊर्जा पर जनता के इस अधिकार-पत्र को अहमदाबाद में 25-26 जुलाई को होने वाले सम्मलेन में अंतिम रूप दिया जाएगा. परमाणु ऊर्जा के खिलाफ,युरेनियम खनन और मौजूदा संयंत्रों के नजदीक संघर्ष कर रहे सभी स्थानीय आन्दोलनों के साथियों से अनुरोध है की इसे अपने दोस्तों के बीच साझा करें और अपने सुझाव हमें 22 जुलाई 2013 तक भेजें।

अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें
कुमार सुन्दरम
परमाणु निरस्त्रीकरण एवं शान्ति गठबंधन
वेब पता: www.cndpindia.org,
ईमेल: pksundaram@gmail.com
फोन: 9810556134

आज विश्व में ऐसे समुदायों की संख्या बढ़ती जा रही है जो परमाणु ऊर्जा को अपनी सुरक्षा, जीविका और पर्यावरण के लिए खतरनाक पाते हैं। जापान की फुकुशिमा दुर्घटना ने दुनिया के स्तर पर पुनर्विचार पर मजबूर किया है और यह राय बन रही है कि यह ऊर्जा आज ke समय-संगत नहीं है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है पीढ़ियों तक दुष्प्रभाव रखने के मामले में इसका खतरा अन्य किसी भी औद्योगिक प्रक्रिया से ज़्यादा है. अपने अपरिहार्य खतरों, अत्यधिक कीमत तथा जनता से तथ्य छिपाने की प्रवृत्ति के कारण इस ऊर्जा को हर जगह आम लोगों पर दमन और हिंसा के द्वारा ही आगे बढाया जा रहा है।

भारत में परमाणु ऊर्जा का विस्तार एक प्रकार से सामूहिक आत्महत्या है. भारत की ऊर्जा ज़रूरतों के लिए परमाणु ऊर्जा की अनिवार्यता का दावा एक छलावा भर है. बड़े पैमाने पर परमाणु परियोजनाओं को लागू किए जाने के पीछे असल में भारत सरकार द्वारा अमेरिका और अन्य देशों को किये गए उन वादों को पूरा करना है जो कि भारत-अमेरिका परमाणु करार के दौरान अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह के नियमों से छूट के बदले किए गए थे. इस विस्तार से उन घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय औद्योगिक लॉबीयों को मुनाफ़ा होगा जो इन परियोजनाओं में उपकरण और अन्य ठेके मुहैय्या कराएंगी। इससे घोर अलोकतांत्रिक और अपारदर्शी ढंग से काम कर रहे परमाणु ऊर्जा विभाग की ताकत तथा प्रतिष्ठा और बढ़ेगी एवं केंद्रीकृत विकास की उस अवधारणा को बल मिलेगा जिसके तहत नवउदारवादी भूमंडलीकरण का एजेंडा आगे बढ़ रहा है.

इस सबसे हमारी असल प्राथमिकताएं पिछड़ जाएँगी जिनमें विकेन्द्रीकृत, पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ और बंटवारे के के लिहाज से न्यायसंगत ऊर्जा-व्यवस्था का निर्माण करना शामिल है. परमाणु परियोजनाएं अत्यधिक महंगी हैं तथा स्थानीय खतरों, नियमन की कमियों एवं परमाणु तकनीक में निहित खतरों की वजह से विनाश का कारण बन सकती हैं।

कूडनकुलम(तमिलनाडू), जैतापुर(महाराष्ट्र), मीठी विर्डी(गुजरात), कोवाडा(आन्ध्र प्रदेश), गोरखपुर(हरियाणा), चुटका(मध्यप्रदेश) तथा हरिपुर(प. बंगाल) में आम लोग इन खतरनाक जन-विरोधी परमाणु परियोजनाओं को लागू करने वाले भारतीय परमाणु ऊर्जा कारपोरेशन लिमिटेड(NPCIL) के खिलाफ लगातार संघर्ष कर रहे हैं।
तारापुर, रावतभाटा, कलपक्कम, कैगा, काकरापार और हैदराबाद जैसी जगहों पर मौजूद परमाणु संयंत्रों में विकिरण के रिसाव के खतरों को लेकर अपनी आवाज उठाते रहे हैं जिसे स्थानीय अफसरों द्वारा दबा दिया जाता है. झारखंड आन्ध्र और मेघालय में वर्तमान और प्रस्तावित युरेनियम खनन का भी स्थानीय समुदायों ने शुरू से जुझारू विरोध किया है.

परमाणु ऊर्जा कारपोरेशन के अधीन परमाणु उद्योग में काम कर रहे श्रमिक भी बार बार इस क्षेत्र में व्याप्त कदाचारों के खिलाफ विरोध में सामने आए हैं। हाल के वर्षों में प्रतिरोध की इन सभी आवाजों को व्यापक नागरिकों का समर्थन भी मिला है. देश के लोकतांत्रिक तबके से बुद्धिजीवी, कलाकार सामाजिक कार्यकर्ता और विशेषज्ञ इन आन्दोलनों के समर्थन में उतरे हैं।

हम भारत की व्यापक जनता से इन आन्दोलनों का समर्थन करने का आग्रह करते हैं ताकि हम सब मिल जुल कर देश के लिए ऊर्जा के टिकाऊ,पर्यावरण-हितैषी और न्यायसंगत विकल्पों को अपना सकें।

हम विशेष रूप से यह मांग करते हैं कि:

  •  सभी प्रस्तावित परमाणु परियोजनाओं को तत्काल प्रभाव से स्थगित किया जाए। 
  • देश में परमाणु ऊर्जा की ज़रुरत के बारे में एक लोकतांत्रिक और खुली बहस कराई जाए। 
  • स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा देश में मौजूद संयंत्रों की निष्पक्ष सुरक्षा जांच कराई जाए।
  • परमाणु परियोजनाओं के लिए भूमि-अधिग्रहण को तत्काल प्रभाव से नए भू-अधिग्रहण एवं पुनर्स्थापन क़ानून के आने तक रोका जाए।

कोई भी नई गतिविधी शुरू करने से पहले सरकार को उस इलाके में स्वतंत्र जांचकर्त्ताओं स्वास्थ्य सर्वेक्षण करवाना चाहिए ताकि भविष्य में इन परियोजनाओं के प्रभावों का पता चल सके। यह प्रक्रिया युरेनियम खनन से लेकर रिएक्टरों और परमाणु कचरे के निष्पादन तक हर कदम पर अपनाई जानी चाहिये। इस सर्वेक्षण के आंकड़ों को स्थानीय और व्यापक जनता के लिए सार्वजनिक करना चाहिए क्योंकि लोगों को अपनी सेहत के बारे में जानने का पूरा हक़ है।

  •  इलाके में विकिरण की मात्रा के लगातार मापन के लिए एक नागरिक-आधारित नेटवर्क स्थापित किया जाए और इसके लिए ज़रूरी तकनीकी प्रशिक्षण तथा उपकरण [सरकारी पैसे से मुहैय्या काराया जाए।
  •  परमाणु संयंत्रों में काम कर रहे श्रमिकों की सेहत की निष्पक्ष जांच समय-समय पर की जाए। 
  • सरकार को परमाणु ऊर्जा के खिलाफ आन्दोलन कर रहे लोगों पर से हज़ारों झूठे मुकदमे तत्काल वापस लेना चाहिए. ऐसा न करके वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन कर रही है. 
  • सरकार को परमाणु ऊर्जा के स्वास्थ्य-संबंधी प्रभावों को स्वीकार करना चाहिए और इस बाबत एक स्वतंत्र और उच्च-स्तरीय आयोग गठित कर परमाणु ऊर्जा की वांछनीयता उसके स्वास्थ्य-प्रभावों, सुरक्षा, कीमत, और पर्यावरणीय प्रभावों के आलोक में परमाणु ऊर्जा उत्पादन के लाभ-हानि पर पुनर्विचार करना चाहिये. इस आयोग में स्वतंत्र विशेषज्ञों, समाज-शास्त्रियों तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं को शामिल किया जाना चाहिये.
    देश के लिए एक समग्र और यथार्थपरक ऊर्जा-नीति तय किया जाना ज़रूरी है जो न्यायसंगत, पर्यावरण-हितैषी तथा कम खर्चीली हो तथा इसमें सौर ऊर्जा, वायु ऊर्जा, छोटी पनबिजलियों और अन्य अक्षय ऊर्जा स्रोतों का शुमार हो. 
  • सरकार को परमाणु दायित्व क़ानून (2010) का उल्लंघन करने वाले ऐसे नियम बिलकुल नहीं बनाने चाहिये जो ‘प्रदूषणकर्ता खर्च वहन करेगा’ के सिद्धांत और अधिनियम की मूल भावना के खिलाफ जाते हों। परमाणु संयंत्रों के संचालक और उसके कलपुर्जों की आपूर्ति करने वाली देसी-विदेशी कंपनियों को दुर्घटना की स्थिति में होने वाली हानी के लिए जिम्मेदार ठहराना और उनसे समुचित हर्जाना वसूलना ज़रूरी होना चाहिये. इस क़ानून में कंपनियों को राहत देने के लिए और परिवर्तन करने से सरकार को बाज आना चाहिए.
    • सरकार को 1962 के परमाणु ऊर्जा अधिनियम को हटाकर एक नया क़ानून जल्द बनाना चाहिए जिसमें सैन्य और नागरिक परमाणु संयंत्रों को अलग किया जाय और नागरिक परमाणु उद्योग में समाज के प्रति पारदर्शिता सुनिश्चित की जाय. 
  • परमाणु ऊर्जा नियमन बोर्ड (AERB) को परमाणु ऊर्जा विभाग से तुरंत स्वतंत्र किया जाना चाहिए और इसमें ऐसे अफसर नियोक्त किए जाने चाहिए जो परमाणु उद्योग की निष्पक्ष जांच कर सकें और उस पर नज़र रखें। साथ ही, इसके लिए बजट का प्रावधान पर्यावरण मंत्रालय से किया जाए.
  •  सूचना के अधिकार क़ानून को परमाणु उद्योग के हर हिस्से पर यथाशीघ्र लागू किया जाए ताकि सरकार सुरक्षा का बहाना बनाकर परमाणु से जुड़ी सूचनाओं से आम जनता को वंचित न रख सके. 
  • परमाणु दुर्घटना की स्थिति में ज़रूरी निकास और बचाव कार्य की पूरी योजना स्थानीय लोगों से साझा की जाय. किसी भी नए संयंत्र की स्थापना से पहले और पहले से मौजूद संयंत्रों में सरकार को तीव्र और असरकारी बचाव कार्य तथा प्रभावित लोगों की तत्काल निकासी की पूरी योजना और इसके हर व्यावहारिक कदम और प्रक्रिया से लोगों को अवगत कराना चाहिए तथा इसके लिए ज़रूरी अभ्यास एक ख़ास अन्तराल के बाद लोगों को देना चाहिये.
  •  पर्यावरणीय प्रभावों के अध्ययन की वर्तमान पद्धति में विकिरण से जुड़े खतरों- रिसाव, कचरा-भंडारण, परिवहन के खतरों तथा दुर्घटनाओं का ज़िक्र भी नहीं होता. इसको पूरी तरह बदलने की ज़रुरत है. परमाणु परियोजनाओं के लिए पर्यावरणीय मंजूरी की प्रक्रिया को चुस्त-दुरुस्त किया जाना चाहिए और इसके अंतर्गत लोगों को परमाणु ऊर्जा के खतरों की जानकारी समेत उस इलाके के पानी, हवा, जीव-जंतुओं और स्थानीय पर्यावरण पर विकिरण के संभावित प्रभावों की भी जानकारी देनी चाहिये. परमाणु कचरे, रेडियोधर्मी पदार्थों के परिवहन और दुर्घटना की स्थिति में सम्भावित खतरों की भी चर्चा होनी चाहिए. 
  • स्थानीय समुदाय को अंततः यह पूरा अधिकार होना चाहिए कि वे तय कर सकें कि परमाणु संयंत्र, खनन या इससे जुड़ी अन्य खतरनाक परियोजनाओं को अपने इलाके में लगाना चाहते हैं या नहीं। वर्तमान में जन-सुनवाई के नाम पर जो झूठ रचा जाता है उसकी जगह पर इसको प्रभावी और खुला बनाया जाना चाहिए जिससे इसमें स्थानीय लोगों के साथ-साथ नागरिक समूह और स्वतंत्र विशेषज्ञ भी हिस्सा ले सकें। स्थानीय लोगों को दोनों पक्षों को सुनने का पूरा अवसर दिया जाना चाहिए और अंगरेजी, हिन्दी तथा स्थानीय भाषा में जानकारी उपलब्ध कराई जानी चाहिए ताकि वे इसके बारे में समुचित निर्णय ले सकें.
इसको भी देख सकते है