संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

हरियाणा में परमाणु ऊर्जा के विरोध में पहुंचे पूर्व-सेनाध्यक्ष वी.के.सिंह

 31 जुलाई को हरियाणाके फतेहाबाद में चल रहे परमाणु पावर प्लांट-विरोधी आंदोलन को समर्थन देने दिल्ली से पूर्व थलसेनाध्यक्ष श्री वी.के. सिंह. प्रोफ़ेसर अचिन वनायक, सेवानिवृत्त आई.ए.एस. अधिकारी श्री एम.जी.देवसहायम और परमाणु ऊर्जा के विशेषज्ञ कुमार सुन्दरम गोरखपुर पहुंचे. उन्होंने फतेहाबाद में एक प्रेसवार्ता तथा बार एसोशिएशन की बैठक को संबोधित किया तथा गोरखपुर गाँव में आंदोलनरत किसानों से मिले. इस टीम की रिपोर्ट हम संघर्ष संवाद के पाठकों से साझा कर रहे हैं:

हमने हरियाणा के फतेहाबाद का दौरा किया जहां किसान और गांव के लोग प्रस्तावित गोरखपुर न्यूक्लियर पावर प्लांट का पिछले दो सालों से विरोध कर रहे हैं। हमने गोरखपुर में किसानों और उनके समर्थकों से भी बात की। हमने प्रस्तावित रिएक्टर में शामिल हरित और उपजाऊ खेतों को भी देखा और भाखड़ा नहर को भी देखा।
इस देश की आत्मा और ज़रूरतों से बिलकुल अनजान नीति-तंत्र ही ऐसे विकास की कल्पना कर सकता है जिसके तहत हजारों किसानों व कृषि मजदूर विस्थापित किए जाएंगे जिनकी आजीविका खेती पर निर्भर है. गांव व इसके आस-पास के इलाकों में रहने वाले लोग जो कृषि से संबंधित सामग्री या उपकरण और परिवहन आदि से जुड़े कार्यों से अपनी आजीविका चला रहे हैं, वह भी इस विकास से प्रभावित होंगे ऐसी तरक्की का किसानों और मजदूरों की जिंदगियों से कोई लेना-देना नहीं है.

इस इलाके के लोग इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि एनपीसीआईएल और राज्य सरकार गैरलोकतांत्रिक तरीके से इस प्रोजेक्ट को लगा रही है और प्राजेक्ट को लेकर प्रभावित लोगों से कोई परामर्श नहीं किया गया है।

हाल ही में एक ‘जन सुनवाई’ के दौरान लोगों को एनवायरनमेंट इंपेक्ट असेसमेंट-ईआईए मुहैया नहीं कराया गया, जिसका लोगों ने विरोध किया। स्थानीय जनता ने ईआईए सुनवाई और अधिकारियों का बड़े पैमाने पर विरोध किया और अधिकारियों को जनसुनवाई को चालीस मिनट के अंदर ही समेटकर उस स्थान से भागने पर मजबूर होना पड़ा। लेकिन जिला प्रशासन ने इसके बावजूद यह घोषणा कर दी कि ईआईए सुनवाई कामयाब रही और मुआवजा राशि तय की गई। गोरखपुर, बडोपल और काजलहेडी के किसानों ने मुआवजा स्वीकार करने से इंकार कर दिया ओर भाखड़ा नहर के पास विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया।  स्थानीय लोगों ने बताया कि प्रशासन की ओर से किसानों को मुआवजा स्वीकार करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है।

यह नहर इस इलाके की कृषि की जीवन रेखा है. प्रस्तावित येाजना के लिए बड़ी मात्रा में इसका पानी इस्तेमाल किया जाएगा, जो किसी भी परमाणु संयंत्र के लिए जरूरी है। स्वतंत्र विशेषज्ञ और शोधकर्ता मानते हैं कि किसी परमाणु संयंत्र को चलाने के लिए नहर का पानी नाकाफी है और दुर्घटना की स्थिति में पानी की कमी खतरनाक हो सकती है। इससे किसानों की सिंचाई भी प्रभावित होगी।

यह क्षेत्र बहुत उपजाऊ है जिसमें अनेक प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं। प्रोजेक्ट के लगने से यह क्षेत्र बर्बाद हो जाएगा। कोई भी रकम किसानों को लंबे समय तक अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए  काफी नहीं है. वे पारंपरिक रूप से किसान हैं और खेती के अलावा आजीविका के अन्य  स्रोत ढूँढना उनके लिए आसान नहीं है.

इस परमाणु संयंत्र का विरोध भूमि अधिग्रहण और विस्थापन के साथ-साथ परमाणु विकिरण की वजह से भी किया जा रहा है। फुकुशिमा हादसे के बाद परमाणु ऊर्जा को लेकर अनेक देशों ने अपनी परियेाजनाएं रोक दी हैं। दुर्घटना के अलावा परमाणु विकिरण सामान्य स्थिति में भी स्थानीय और आसपास के इलाके में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती है यह दुनिया भर में अलग-अलग जगहों पर हुए स्वास्थय सर्वे से सामने आया है.

परमाणु ऊर्जा अन्य प्रकार की ऊर्जाओं से महंगी है। यदि इसके पर्यावरण, सामाजिक प्रभाव की कीमत, परमाणु कचरे का निपटान आदि छिपी हुई कीमत पर गौर करें तो यह बहुत महंगी साबित होती है। अमरीका सहित विश्व में कहीं भी परमाणु ऊर्जा मुक्त बाजार सिद्धांतों से नहीं चल पा रही है. जनरल इलेक्ट्रिकलस के प्रमुख जो विश्व की बड़ी परमाणु ऊर्जा प्रोमोटर है ने हाल ही में यह बात उठाई कि परमाणु ऊर्जा को आर्थिक स्तर पर मुश्किल से ही न्यायोचित ठहराया जा सकता है।

जमीन, जल और जंगल जो मुख्य प्राकृतिक संसाधन हैं इन पर देश के लोगों का जीवन निर्भर करता है। विकास का कोई मतलब नहीं होता, यदि प्रकृति को नुकसान पहुंचाकर किया जाए। हम सरकार और नीति-निर्माताओं से मांग करते हैं कि  इस प्रकार के ‘विनाशकारी विकास’ से बचा जाए।

हम यह भी मांग करते हैं कि गोरखपुर और दूसरे परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं पर तुरंत रेाक लगाई जाए और विस्तृत और परदर्शी प्रक्रिया को अपना कर इसमें जनता की राय और समस्याओं को शामिल किया जाए.  विशेषज्ञों और नागरिकों को इसके साथ पूरी तरह जोड़ा जाए और उनकी जरूरतों का ध्यान रखा जाए.  लोगों के जीवन से जुड़े संदर्भों को नजरअंदाज करना विकास की इस दौड़ के लिए घातक हो सकता है।

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