संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

परमाणु ऊर्जा संयंत्र विरोधी संघर्ष : एक साथी और शहीद

सितंबर 2011 माह की शुरूआत में हरियाणा के गोरखपुर में प्रस्तावित परमाणु ऊर्जा संयंत्र परियोजना के खिलाफ लड़ रहे किसानों को जब अपने साथी ईश्वर सिंह सिवाच (62 वर्ष) की हृदय आघात से हुई मौत का पता चला तो उन्होंने यह पहचानने में कोई गलती नहीं की कि यह मौत उनके संघर्ष की तीसरी आहुति है। ईश्वर सिंह सिवाच, राम कुमार और भागु राम फतेहाबाद जिला मुख्यालय के सामने चल रहे पिछले चौदह महीनों से धरने में भागीदार उन किसानों में रहे हैं जिन्होंने ठण्ड-गर्मी-बरसात और सरकार की बेरहमी सब सहते हुए यह धरना जारी रखा और इस संघर्ष में शहीद हुए। इस आंदोलन को राष्ट्रीय मीडिया में न के बराबर जगह मिली है; क्योंकि न तो वहां कोई सेलिब्रेटी है, न कोई तमाशा और ना ही गोरखपुर के किसानों की समस्या ऐसी है कि टीवी समाचार के एंकर ब्रेक पर जाने से पहले कुछ सैकेंडों में बिना सत्तावर्ग पर चोट किये उसका समाधान सुझा पाएं।

पूरे देश में भूमि अधिग्रहण पर किसानों के गुस्से का सामना कर रही सरकारें और भूमाफिया हरियाणा को आम तौर पर थोड़ा आसान समझते हैं क्योंकि यहां किसान थोड़ा मोलभाव के बाद ऊँचे पर मान जाते हैं। लेकिन फतेहाबाद के मामले में धीरे-धीरे लोग यह समझ गए हैं कि यहां बात मुआवजे से बहुत बड़ी है- यहां सेहत, जिंदगी और पर्यावरण का सवाल है। यह भी कम अजीब संयोग नहीं है कि जब फतेहाबाद में लोग ईश्वर सिंह जी के मृत शरीर के साथ प्रदर्शन कर रहे थे, उस समय सूबे के मुख्यमंत्री निवेश आमंत्रित करने के लिए उसी जापान की यात्रा पर गए हुए थे, जहां हुई फुकुशिमा दुर्घटना ने दुनिया भर में परमाणु-खतरे को लेकर आम लोगों को झकझोर दिया है।

20 सितम्बर 2011 को स्थानीय लोगों ने ईश्वर सिंह सिवाच की याद में शोक सभा आयोजित की जिसमें आसपास के गांवों से एक हजार के आसपास लोग पहुंचे। इनमें जिले के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ-साथ सरकार चला रही पार्टी को छोड़कर लगभग सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि भी थे जिन्हेांने स्थानीय लोगों और उनके आंदोलन के साथ अपना समर्थन दुहराया। अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति और किसान सभा के वरिष्ठ नेता भी इस शोकसभा में शामिल हुए। सभा का माहौल गमगीन था। लेकिन फिर भी ईश्वर सिंह के साथ संघर्षरत लोगों ने, जिनमें ज्यादातर बचपन से उनके दोस्त रहे हैं, उनकी स्मृति को नमन करने के साथ-साथ उनके संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प भी लिया। इस मौके पर लोगों ने गांव में एकता को और मजबूत करने और अपनी कमियों पर ध्यान देने पर साफ दिल से बातें रखीं। सभा में मौजूद ईश्वर सिंह के परिवार को भी लोगों ने ईश्वर सिंह के मृत शरीर के साथ आंदोलन की इजाजत देने को साहस की एक मिसाल बताया।
इससे पहले नवलगढ़ (राजस्थान) में सीमेंट प्लांट के विरोध में संघर्ष कर रहे नवलगढ़ भूमि अधिग्रहण विरोधी किसान संघर्ष समिति तथा जन संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक कैप्टन दीप सिंह शेखावत तथा श्रीचन्द डूडी ने भी अपने साथियों के साथ 15 सितम्बर को गोरखपुर जाकर शहीद साथी ईश्वर सिंह सिवाच को अपनी श्रद्धांजलि दी तथा गोरखपुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र विरोधी आंदोलन के साथ अपनी एकजुटता दिखाई।
एक साल से अधिक समय से चल रहा यह आंदोलन पूरे देश की तरफ आशा भरी निगाहों से देख रहा है। इस बात के बावजूद कि हाल में प्रषांत भूषण जैसे नामचीन वकील फतेहाबाद का दौरा करके इस मुद्दे पर समर्थन जता चुके हैं। राष्ट्रीय जनमानस का ध्यान इस मुद्दे पर खींचने के लिए बड़ी पहल की जरूरत है ताकि सरकार पर मुकम्मल दबाव बनाया जा सके।
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