संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

ग्रीन ट्रिब्युनल ने गोरखपुर परमाणु संयंत्र पर माँगा जवाब, सुनवाई शुरू

गुजरी 12 मार्च 2014 को राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्युनल के माननीय जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली मुख्य बैंच ने फतेहाबाद के गांव गोरखपुर में बनने वाले परमाणु संयंत्र को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा हाल ही में दी गई पर्यावरण मंजूरी के खिलाफ याचिका संख्या 8/2014 पर सुनवाई करते हुए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, भारत सरकार,न्युक्लियर पॉवर कारपोरेशन ऑफ इंडिया, हरियाणा सरकार, मुख्य वन्य जीव संरक्षक हरियाणा, को नोटिस जारी किया है और दिनांक 21.03.2014 को जवाब देने के निर्देश दिए हैं। जीव रक्षा बिश्नोई सभा के सदस्य याचिकाकर्ता विनोद कड़वासरा ने एडवोकेट डॉ. एम.सी.मेहता (शीर्ष पर्यावरणविद वकील,सुप्रीम कोर्ट) के माध्यम से याचिका दायर की। पांच सदस्यीय खण्डपीठ के अध्यक्ष जस्टिस स्वतंत्र कुमार, न्यायमूर्ति यू.डी. साल्वी-न्यायिक सदस्य,डॉ देवेन्द्र कुमार अग्रवाल-विशेषज्ञ सदस्य, श्री विक्रम सिंह साजवान- विशेषज्ञ सदस्य, डॉ आर. सी. त्रिवेदी-विशेषज्ञ सदस्य ने सुनवाई करते हुए सभी छः प्रतिवादियों को नोटिस जारी करते हुए जवाब देने को कहा है।

याचिका में पुरे प्रोजैक्ट को भी वन्यजीव दृष्टिकोण व अन्य खामियों के अनुसार लिया गया है जिसमें घनी आबादी और हिसार, फतेहाबाद व दिल्ली इत्यादि से नजदीकी भी मुख्य कारणों में शामिल है। संयंत्र में प्रयुक्त होने वाला पानी भी 1955 के भाखड़ा डैम समझोते के अनुसार केवल सिंचाई और जलउर्जा प्राप्ति के लिए था ना कि परमाणु उर्जा के लिए।नहर में विकिरणयुक्त पानी से सिंचाई के साथ साथ लोगों के स्वास्थ्य पर भी बहुत विपरित असर पड़ेगा क्योंकि लाखों लोग पीने के लिए इसी पानी का इस्तेमाल करते हैं।सिचांई का पानी संयंत्र में प्रयोग करने से इलाके के लाखों एकड़ वीरान हो जाऐगें। इसके अलावा तुरंत बाड़बंदी व खम्भे हटाने की अंतरिम राहत के साथ साथ पर्यावरण मंजूरी रदद करने की प्रार्थना की गई है।

पूर्व केसः-

गौरतलब है कि गत वर्ष एनपीसीआईएल द्वारा आनन फानन में बिना पर्यावरण मंजूरी के ही वन्य जीवों को खदेड़कर कालोनी क्षैत्र में बाड़बंदी व खम्भे बनाने की फैक्टरी लगा दी गई। जुलाई में याचिकाकर्ता द्वारा राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्युनल की शरण लेकर कालोनी क्षेत्र से बाड़बदी हटवा दी गई।याचिका दायर करने के बाद भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के वैज्ञानिकों ने क्षैत्र का दौरा करके मंत्रालय को रिपोर्ट सौंपी जिसमें स्पष्ट तौर पर लिखा गया था कि क्षैत्र में अनुसूचि-1 के वन्यजीवों की संरक्षण योजना तैयार करना ही उनके दौरे का उदेदश्य था लैकिन संरक्षण योजना तब तक संभव नहीं है जब तक एनपीसीआइएल कॉलोनी हेतू अधिगृहित भूमि को छोड़ने के लिए तैयार ना हो। इसके अलावा एनपीसीआईएल को तुरंत अपनी फैक्टरी हटानी चाहिए और अनुसूचि-1 के वन्यजीवों के लम्बे समय संरक्षण के लिए प्रशासन को तुरंत कुतों के बधियाकरण का अभियान चलाना चाहिए इसके बाद ही अनुसूचि-1 के वन्यजीवों की संरक्षण योजना तैयार की जाएगी।

22 अगस्त 2013 को ग्रीन ट्रिब्युनल ने मंत्रालय को निर्देश दिए कि मंत्रालय पर्यावरण मंजूरी से संबधित आगामी किसी भी कार्यवाही में याचिकाकर्ता को शामिल करें जिस अनुसार 19 नवम्बर 2013 को मंत्रालय की एक्सर्प एपरसल कमेटी की बैठक में विनोद कड़वासरा एवं एडवोकेट धर्मवीर पुनियां शामिल हुए और वन्यजीवों से संबधित सभी तथ्यों को रखते हुए भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून की रिपोर्ट लागु करने की मांग की।

दिसम्बर के अन्त में सरकार द्वारा प्रधानमंत्री का शिलान्यास कार्यक्रम रख दिया गया और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, भारत सरकार ने वन्यजीवों की संरक्षण योजना बनाए बिना ही एनपीसीआईएल को पर्यावरण मंजूरी दे दी। हालांकि 13 अक्तुबर 2010 को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा एनपीसीआईएल को परमाणु संयंत्र की रिपोर्ट में अनुसूचि-1 के वन्यजीवों की संरक्षण योजना तैयार करने बारे लिखा गया, इसके बाद पर्यावरण मंजूरी हेतू एक्सर्प एपरसल कमेटी की दिनांक 18 नवम्बर 2012 व 22-23 मार्च 2014 की बैठकों में भी अनुसूचि-1 के वन्यजीवों की संरक्षण योजना तैयार करने के निर्देश दिए गए। परन्तु संरक्षण योजना नहीं बनी और पर्यावरण मंजूरी दे दी गई और प्रधानमंत्री महोदय द्वारा संयंत्र का शिलान्यास कर दिया गया। प्रधानमंत्री द्वारा हिरण पार्क की घोषणा भी बैतुकी थी क्योंकि हिरण पार्क भारतीय वन्य जीव संस्थान द्वारा नकार दिया था क्योंकि 300-400 हिरणों व नील गायों को मात्र 40.50 एकड़ में बंद नहीं किया जा सकता।

क्षेत्र के लोग गत कई वर्षों से सरकार से वन्य जीव संरक्षण की गुहार लगा रहे है लेकिन सरकार वन्यजीवों के साथ क्षैत्र के लोगों का जीवन दांव पर लगाते हुए परमाणु बम स्थापित करने को उतावली हो रही हैं।पुरा संयंत्र व इससे निकालने वाला पानी भी लोगों के लिए खतरनाक होगा।यदि पर्यावरण मजुंरी रदद होती है तो एईआरबी(परमाणु उर्जा रैगुलैटरी बोर्ड) व डीएई(डिपार्टमैंट आफॅ एटोमिक एनर्जी) से मंजुरी लेने की प्रक्रिया भी प्रभावित होगी और एनपीसीआईएल को दोबारा नए सिरे से वन्यजीव संरक्षण योजना तैयार करनी होगी। कालोनी क्षैत्र को भारतीय वन्य जीव संस्थान द्वारा अनुमोदन अनुसार ”संरक्षित क्षैत्र“ घोषित करना होगा। संरक्षण योजना तैयार करके नैशनल बोर्ड फॉर वाईल्ड लाईफ से वन्यजीव दृष्टिकोण से मंजूरी लेनी होगी और दोबारा पुरी रिपोर्ट तैयार करके पर्यावरण मजुंरी हेतु आवेदन करना होगा। उस पुरी प्रक्रिया में कई वर्ष लग सकते है।

(जीतेन्द्र कुमार स्वतंत्र पत्रकार हैं और न्यूक्लियर विरोधी आंदोलनों के साथ साथ देश भर के जनवादी आंदोलनों से संवाद स्थापित करते रहे हैं।)

इसको भी देख सकते है