संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

अम्बेडकर जयंती के दिन उत्तर प्रदेश में कनहर बांध का विरोध कर रहे लोगों पर पुलिस फायरिंग

तीन राज्यों के 80 गांवों/बस्तियों को जल समाधि देने एवं कनहर तथा पाँगन नदियों की मौत का ऐलान है कनहर बाँध परियोजना

अपने जन्मदिन 15 जनवरी 2011 को उ. प्र. की मुख्यमंत्री मायावती ने अपनी रियाया को बख्शीशें बांटी और सोनभद्र जनपद की दुद्धी तहसील के अमरवार गांव के पास पाँगन और कनहर नदी के संगम पर प्रस्तावित कनहर बाँध का तोहफा इस इलाके के लोगों को देने की दरियादिली दिखायी। यह दरियादिली केवल उ. प्र. तक ही सीमित न रही बल्कि इस परियोजना का मजा छत्तीसगढ़, झारखण्ड के गांवों को भी चखने का मौका दिया है। अब यह बात अलग है कि उ. प्र. के सोनभद्र, छत्तीसगढ़ के सरगुजा तथा झारखण्ड के गढ़वा जिले के तकरीबन 80 गाँव, बस्तियां परियोजना के पूरा होते ही जल समाधिस्थ हो जायेंगी। यह जानकर इन गांवों के वासी मायावती जी के तोहफे से आनंदित नहीं हो पा रहे हैं। आगे पढ़ें…

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में कन्हार बाँध पर गैर कानूनी ढंग से किये जा रहे जमीन अधिग्रहण का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारी ग्रामीण जनों पर पुलिस ने आज 14 अप्रैल अम्बेडकर जयंती के दिन गोली बरसाना शुरू कर दिया है.सुन्दरी गाँव के एक आदिवासी नेता अक्कू खरवार को सीने में गोली लगी है और 8 लोग पुलिस की गोलीबारी और लाठीचार्ज से बुरी तरह जख्मी हुए हैं.

हजारों की संख्या में महिलायें और पुरुष अम्बेडकर जयंती पर बांध की प्रस्तावित जगह पर विरोध करने के लिए जमा हुए थे. ये प्रदर्शनकारी “संविधान दिवस बचाओ” दिन के रूप में चिन्हित करने के लिए बाबा साहेब अम्बेडकर की तस्वीर लिए हुए थे. अखिलेश सरकार ने बर्बरतापूर्वक ढंग से गोलीबारी की जिसमें सबसे आगे महिलाएं थीं. अधिकांश महिलाएं घायल हुई हैं. यह गोलीबारी दुद्धी तहसील, सोनभद्र, उत्तरप्रदेश के अमवार  पुलिस थाने के इन्स्पेक्टर  द्वारा की गई है.

इस आपराधिक कुकृत्य की भर्त्सना करें और गैर कानूनी जमीन अधिग्रहण और कन्हार नदी पर बन रहे गैर कानूनी बाँध का विरोध कर रहे लोगों के संघर्ष को समर्थन दें.

रोमा मलिक (एडव्होकेट)
आल इंडिया यूनियन ऑफ़ फारेस्ट वर्किंग पीपल

कनहर नदी पर बँध रहे बाँध की त्रासदी

सोनभद्र का विकास वनाम विस्थापन

सोनभद्र का इलाका औद्योगिक विकास के लिहाज से प्रदेश में एक बडी हैसियत रखता है। यह अलग बात है कि आदिवासियों को इसका फल निरंतर विस्थापन व बदहालियों के घनीभूत हो जाने के रुप में मिलता रहा है। रेनुकूट स्थित हिन्डालको एशिया का सबसे बड़ा एल्यूमिनियम संयंत्र है। बिड़ला समूह के इस उपक्रम में 5000 से भी अधिक मजदूर काम करते हैं। बिड़ला हाइटेक कार्बन प्लांट भी इसी क्षेत्र में हैं इसके अलावा शक्तिनगर तथा बीजपुर में एन0टी0पी0सी0 विद्युत संयंत्रों की श्रृंखला है जिसका नियंत्रण केन्द्र सरकार के हाथ में है। यह औद्योगिक इलाका मिनी मुम्बई के नाम से जाना जाता है। इस आइने से जिले के औद्योगिक विकास एवं कद के रुतबे का अंदाजा लगाया जा सकता है।

जाहिर है इसके तार सियासी गलियारे तक कितने मजबूत बंधे हैं।

इस औद्योगिक विकास की शुरुआत 1953 में रिहन्द बॉध निर्माण के साथ हुई। पूर्णतया कंकरीट का बना हुआ पक्का बॉध गोविन्द बल्लभ पन्त सागर के नाम से एशिया की सबसे बडी कृत्रिम झील के रुप में जाना जाता हैं। इस बॉध के निर्माण से 46 हजार ग्रामीण आदिवासी (105 गॉवों के) विस्थापित हुए हैं। इसके बाद ओबरा में थर्मल पावर प्लांट का निर्माण कर एन0टी0पी0सी0 की स्थापना के साथ एक के बाद एक सुपरतापीय बिजली घरों की परियोजना एवं अन्य परियोजनाओं का जाल इस क्षेत्र में बिछना शुरू हुआ। चुर्क व डाला में सीमेंन्ट फैक्ट्री के लिए अनेक निर्माण कार्यो के लिए 250 से ज्यादा क्रेशर उद्योग एवं चूने के पत्थर के कारखानों द्वारा निःसंदेह इस क्षेत्र में औद्योगिक विकास का परचम लहरा रहा हैं।

किन्तु सत्य यह भी है कि ऐसे छोटे-बड़े सभी उद्योगों, औद्योगिक बस्तियों ने अनेक आदिवासी परिवारों को उजाड़ा है उनको उजाड़ने के बाद इनकी जीविका, जिंदगी तथा अस्तित्व की रक्षा के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं किये गये हैं। कई तो ऐसे गांव हैं जिन्हें विस्थापित करके बसाया गया और फिर नयी-नयी परियोजनाओं के नाम पर कई-कई बार उजाड़ा आगे पढ़ें…

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