संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

झारखंड : झूठे आरोपो के जरिय जनसंघर्षों को कुचलती बीजेपी सरकार

अपने एवं अन्य 6 लोगों के ऊपर केस होने के बाद जेएनयू छात्र नेता बिरेन्द्र कुमार द्वारा प्रेस के लिए जारी विज्ञप्ति;
देश में हर जगह की भाजपा सरकार जेएनयू तथा हरेक लोकतांत्रिक आवाज को कुचलने के लिये किसी भी हद तक जाकर बिना किसी तथ्य के झूठी कहानियाँ गढ़ते हुए मुकदमा लादने की हड़बड़ी में रहती है।
झारखंड की भाजपा सरकार के इशारे पर 19 जून को गोड्डा पुलिस के द्वारा मेरे अलावे जिन 6 लोगों पर फर्जी केस किया गया है उसमें से एक आदमी मो. नौशाद उर्फ साबिर का नाम है। मजेदार बात ये है कि मो. नौशाद को हमलोग जानते तक नही हैं और इस नाम का कोई व्यक्ति 16 जुलाई के मीटिंग में भी शामिल नहीं था।
इससे स्पष्ट है कि CNT/SPT एक्ट में संशोधन एवं बढ़ते सांप्रदायिक हमलों के खिलाफ जल, जंगल व जमीन और लोकतंत्र को बचाने के लिये उठने वाली लोकतांत्रिक आवाज को दबाने के लिये भाजपा और आरएसएस की सरकार व उसकी पुलिस किसी भी हद तक जाकर एक षड्यंत्र के तहत फर्जी नाम जोड़कर तथा फर्जी केस लगाकर आंदोलनकारियों को चुप कराना चाहती है। जारी बयान में उन्होंने कहा है कि इन सरकारी दमन के बावजूद हमलोग जल-जंगल और जमीन को बचाने के लिए जनता के पक्ष में आवाज उठाते रहेंगे।
आगे उन्होंने कहा है कि केंद्र-राज्य की बीजेपी सरकार के रवैये से साफ जाहिर होता है कि अगर आप अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, दलितों, महिलाओं के हक-अधिकार के मुद्दे पर बैठक भी करते पाये गए तो आपको माओवादी-आतंकवादी कुछ भी बताकर संगीन धाराएं लगाकर झूठे मुकदमें में फंसा दिया जाएगा। अगर आप साम्प्रदायिक हिंसा के खिलाफ हैं तो आप पर अशांति भड़काने का मुकदमा दर्ज कर दिया जाएगा। इससे साफ जाहिर होता है कि यह लोकतंत्र की हत्या की शर्त पर देश में चौतरफा मोदी-योगी-शिवराज और रघुवरों का राज आगे बढ़ रहा है। यह राज कॉर्पोरेट लूटेरों की सेवा में जनता और लोकतंत्र पर हमलावर है।
ज्ञातव्य हो कि झारखण्ड के गोड्डा जिला मुख्यालय में जेएनयू के छात्र नेता बिरेन्द्र कुमार, इंसाफ इंडिया के राष्ट्रीय संयोजक मुश्तकीम सिद्दीकी व राजू खान, अम्बेडकर स्टूडेंट यूनियन के संयोजक रणजीत कुमार एवं नीतीश आनंद अपने 7-8 साथियों के साथ राज्य में बढ़ते साम्प्रदायिक हमले और आदिवासियों के भूमि अधिकार के संरक्षण के लिए बने कानून CNT-SPT एक्ट को कॉर्पोरेट हित में बदले जाने के खिलाफ 16 जून को बैठक किया था। स्थानीय पुलिस को सोशल मीडिया के जरिये इस बात की जानकारी मिली। पुलिस ने अगले ही दिन मीटिंग में शामिल रहे गोड्डा के स्थानीय नेता रंजीत कुमार व नीतीश आनंद को थाने पर बुलाया और फर्जी मुकदमे में फंसाने की धमकी दी। पुलिस ने 19 जून को सांप्रदायिक नफरत फैलाने व देश की अखंडता को खतरा बताते हुए संगीन धाराओं के तहत 7 लोगों पर फर्जी मुकदमे लाद दिया।
जेएनयू के छात्र नेता ने अपने बयान में कहा है कि जब यूपी में मुजफ्फरनगर और सहारनपुर होता है तो देश की अखंडता को उस वक्त कोई खतरा नहीं पहुंचता और जब अख़लाक़ से लेकर मिन्हाज अंसारी, पहलू खान और जफर को पीट-पीटकर मार दिया जाता है तब भी कोई अशांति भंग नहीं होती! जब बीजेपी-आरएसएस से जुड़े लोग ISIS की मुखबिरी करते पकड़े जाते हैं, तब यह मीडिया के लिए भी कोई खबर नहीं होती! झारखण्ड के हजारीबाग जिले के बड़कागांव में जब अपनी भूमि बचाने के लिए लड़ रहे दर्जन भर किसानों को राज्य की बीजेपी-आरएसएस की पुलिस रात्रि में घर में घुस-घुसकर गोली मार देती है, तब भी सरकार और पुलिस के लिए यह जरूरी कदम होता है। किंतु अगर कुछ लोग लोकतंत्र के लिए, संवैधानिक अधिकारों को बचाने के लिए उठ खड़े होते हैं और महज मीटिंग करते हैं तो एक ही साथ साम्प्रदायिक सद्भाव से लेकर देश की एकता-अखंडता सब खतरे में पड़ जाती है!
सोचने की बात है कि संघियों के लिए देश का मतलब क्या है और उनकी नजर में कानून का मतलब क्या है? पूरे देश में गौ-आतंकियों, अफवाह फैलाकर दलितों-अल्पसंख्यकों की हत्या के लिए उकसाने वालों को कानून हाथ में लेने की खुली छूट मिली हुई है। लेकिन लोकतंत्र पसंद-न्याय पसंद लोगों ने अगर एक बैठक भी कर लिया तो ISIS से उनके संबंध बता दिए जाएंगे और उनकी आवाज दबा दी जाएगी!
इतना सब जानने के बाद आपको लगता होगा कि आखिर ये छः-सात लोग हैं कौन जिनके मीटिंग से बीजेपी-आरएसएस की मौजूदा झारखण्ड सरकार इतना कुपित हो उठी है कि उसे नष्ट कर देने पर तुल गई है! तो जान लीजिए शुरू में ही बता दूं कि इन सात में से जो नौशाद नामक किसी व्यक्ति का एक नाम पुलिस ने दर्ज FIR में लिया है, उसे कोई जानता तक नहीं। उस नाम का न तो कोई व्यक्ति मीटिंग में ही था और न ही मीटिंग में शामिल लोग उस नाम के किसी व्यक्ति को जानते ही हैं। यह पुलिस की एक गहरी चाल भी हो सकती है। इसके बाद आइये बारी-बारी से आपको बाकी के छह लोगों से परिचित कराता हूँ- बिरेन्द्र कुमार जेएनयू के चर्चित छात्र नेता हैं और झारखण्ड के ही दुमका जिले के रहने वाले हैं। पिछले दिनों जेएनयू में सामाजिक न्याय की जुझारु लड़ाई लड़ते हुए उन्होंने और उनके साथियों ने जेएनयू के संघी प्रशासन का दमन भी झेला है। इन दिनों वे बिहार, झारखण्ड सहित देश के उन हिस्सों में जा रहे हैं जहां साम्प्रदायिक हिंसा व बर्बरता की कोई घटना सामने आ रही है और बेखौफ होकर इंसाफ की आवाज बुलंद कर रहे हैं। उन्होंने बिहार के नवादा और झारखण्ड के जमशेदपुर में हुई हिंसा की घटनाओं के दोषियों पर भी कार्रवाई की आवाज बुलंद की है। पिछले माह की 25 मई को झारखण्ड पुलिस के इशारे पर बिहार की राजधानी पटना में इन्हें माओवादी बताकर 6 घंटे तक पुलिस हिरासत में ले लिया गया था। वहीं मुश्तकीम सिद्दीकी सोशल मीडिया का जाना-पहचाना नाम है। वे पिछले एक वर्ष से इंसाफ इंडिया नामक संगठन के जरिये झारखण्ड, बिहार, पश्चिम बंगाल सहित अन्य राज्यों में साम्प्रदायिक हिंसा, दलित उत्पीड़न व महिला हिंसा की घटनाओं को सड़क और सोशल मीडिया पर बड़ी शिद्दत से उठा रहे हैं।
जैसे ही उन्हें इस किस्म के किसी वारदात की जानकारी मिलती है, वे बेधड़क वहां पहुंच जाते हैं और इंसाफ की आवाज जाति-धर्म से ऊपर उठकर बुलन्द करते हैं। झारखण्ड और बिहार में पिछले दिनों हुई दर्जनों हिंसा-उत्पीड़न की घटनाओं को उन्होंने मजबूती से उठाया है। जमशेदपुर और नवादा की घटनाओं को भी सामने लाने में उनकी प्रमुख भूमिका रही है। जबकि रंजीत कुमार और नीतीश आनंद गोड्डा के चर्चित छात्र-युवा नेता हैं। ये दोनों छात्र-नौजवानों, दलितों-आदिवासियों व किसान-मजदूरों के मसले पर अत्यंत ही मुखर रहते हैं और सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक अपनी आवाज बुलंद करने के लिए जाने जाते हैं। पिछले दिनों गोड्डा में किसानों की उपजाऊ 1700 एकड़ जमीन मोदी जी के चहेते उद्योगपति अडानी को दिए जाने के खिलाफ किसान आंदोलन में भी ये दोनों शुरुआती दौर से सक्रिय रहे हैं। यही वजह है कि इंसाफ की इस आवाज को झारखण्ड की संघी सरकार दबाने पर आमादा है।
अंत में बिरेन्द्र कुमार ने लोकतंत्र पर रघुवर सरकार के इस खुले फासीवादी हमले के खिलाफ सभी लोकतांत्रिक राजनीतिक शक्तियों, न्याय व लोकतंत्र पसंद नागरिकों, मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं को एकजुट होकर विरोध के लिए आगे आने की अपील की।
बिरेन्द्र कुमार
छात्र नेता, जेएनयू
मो- 7291817162

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