संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

हिमाचल प्रदेश : दिले राम शबाब न होते तो कुल्लू की तीर्थन घाटी को निगल जाते हाइड्रो  प्रोजेक्ट

यह पुराना आलेख है जिसे एक लेखक समूह (डॉ निरंजन देव शर्मा, कुलराजीव पन्त, सुरेश सेन निशांत,अजेय, मुरारी शर्मा, आत्मा रंजन और दीपेन्द्र मांटा) ने कुछ बर्ष पहले लिखा था। आज शबाब जी हमारे बीच नहीं हैं परंतु उन के इन प्रयासों से आज तिर्थन घाटी प्रयटन केंद्र बना जिससे हजारों युवायों को रोजगार मिला। आज जो ब्यास नदी घाटी में बाढ़ आई इस में सबसे कम नुकसान तिर्थन में हुआ, कारण स्पष्ट ही है कि हाइड्रो  प्रोजेक्ट को रोका गया;

हिमाचल प्रदेश के सराज क्षेत्र में आने वाली तीर्थन नदी के तट पर बसी रमणीय घाटी में बसा ‘ग्रेट हिमालयन नॅशनल पार्क’ पिछले कुछ वर्षों से विश्व मानचित्र की सुर्ख़ियों में है। इससे भी पहले इस घाटी में पर्यावरण और प्रकृति का संरक्षण करने के लिए बहुत बड़े प्रयास हुए हैं। ऐसा नहीं हैं कि हिमाचल प्रदेश के अन्य स्थानों की भाँति इस रमणीय स्थली पर पूंजीपति दानवों की दृष्टि नहीं पडी। परन्तु इस क्षेत्र का नेतृत्व करने वाले एक जागरूक और उच्च शिक्षा प्राप्त नेता, चिन्तक और सामाजिक कार्यकर्ता दिले राम शबाब के रहते यहाँ के परिंदों, जानवरों, कीट पतंगों, तीर्थन नदी में उन्मुक्त विचरण करने वाली ट्राउट मछलियों, उन्मुक्त आसमान छूते देवदारों, खुशबूदार फूलों सहित अनेक छोटे-छोटे जंगली जीवों को उन खतरों का सामना नहीं करना पड़ा जो हिमाचल के अन्य स्थानों पर करना पडा है। इन्हीं जीव जंतुओं के कारण तीर्थन नदी के तट के आस-पास बसी सराज घाटी आज भी ताज़ा हवाओं की संवाहक है। यहाँ का पानी इतना साफ और निर्मल है कि ट्राऊट मछलियाँ बेखौफ नदी में यहाँ वहां झूमती साफ़ दिखाई देती हैं।

आप सोच रहे होंगे कि दिले राम शबाब आखिर हैं कौन.. दिले राम शबाब तीर्थन नदी के तट पर बसे सईरोपा क्षेत्र का रहे वाले 96 वर्षीय उस नेता का नाम है, जो अब भी अपने क्षेत्र के स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण के लिए लड़ाई लड़ रहा है। दिले राम शबाब सराज क्षेत्र के 1967 से 1977 तक लगातार दो टेन्योर में विधायक रहे और तत्कालीन शिक्षा मंत्री लाल चंद प्रार्थी, यशवंत परमार और ठाकुर रामलाल के साथ इनके मधुर सम्बन्ध रहे। दिले राम पंजाब सरकार में पटवारी की सरकारी नौकरी करने के बाद लोक संपर्क विभाग में पी आर ओ और पर्यटन अधिकारी भी रहे। पता ये भी चला है कि किसी समय जब कुल्लू घाटी में कोई आपदा आई थी और भुखमरी जैसे हालात पैदा हुए थे, तो उस समय शबाब को खाद्य आपूर्ति विभाग में उच्च अधिकारी के रूप में नियुक्ति दी गयी थी और उन्होंने इस आपदा को बहुत कम समय में निपटा लिया।

पंजाब सरकार में इनके पी आर ओ के कार्यकाल में इन्हें काबिल अधिकारी के रूप में खूब सराहा गया। उसके बाद लाल चंद प्रार्थी और शबाब की जोड़ी ने कुल्लू और सराज घाटी में जनजागरण अभियान चलाया और सक्रीय राजनीति में आकर दस साल तक एक विधायक के तौर पर सराज घाटी का प्रतिनिधित्व किया और सराज घाटी के अस्तित्व को न केवल बचाए रखा बल्कि वहां पर किसी भी प्रकार की अप्राकृतिक गतिविधि के मंसूबे को कामयाब होने नहीं दिया। तीर्थन घाटी में ‘ग्रेट हिमालयन नेचर पार्क’ बेशक आज बना हो, लेकिन दिले राम शबाब ने इसकी परिकल्पना कई साल पहले कर ली थी। दिले राम तीर्थन घाटी की शुद्ध हवा और बहती तीर्थन नदी के निर्मल जल की कल-कल से निकलने वाला संगीत समझते थे। वे जानते थे कि इस घाटी पर हाइडल प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि पर्यटन की ऐसी नींव रखी जा सकती है, जहाँ से न केवल तीर्थन का अस्तित्व बचाया जा सकता है, बल्कि स्थानीय लोग अपनी आजीविका का साधन भी जुटा सकते हैं।

इसी के फलस्वरूप आज तीर्थन घाटी पर 60 के करीब होम स्टे हैं और लोग इस घाटी में शान्ति और सुकून से कुछ दिन बिताने के लिए अक्सर आते हैं। दिले राम शबाब से हुई मुलाक़ात के दौरान उन्होंने हमसे जो बात की, वह उनके एक उच्च शिक्षा प्राप्त होने के साथ-साथ एक दूरदर्शी व्यक्तित्व को भी उजागर करता है। उनकी चिंता आज भी ये बनी हुई है कि तीर्थनघाटी पर विदेशी और बाहर के आदमी का कब्ज़ा न हो। यहाँ पर स्थानीय लोगों के माध्यम से ही पर्यटन का संवर्धन हो उन्होंने इस बात पर भी चिंता जताई कि तीर्थनघाटी पर विदेशी लोगों की घुसपैठ की आहट सुनाई दे रही है, लेकिन यह भी चेताया कि उनके होते हुए यह मंसूबे कामयाब नहीं हो सकते। तीर्थन घाटी में खराब नीयत से घुसने वाला व्यक्ति पहले दिले राम शबाब से टकराएगा उसके बाद तीर्थन घाटी में घुस सकेगा, उन्होंने स्पष्ट किया। पिछले वर्ष हिप रिप्लेसमेंट का ओपरेशन होने के बाद अब शबाब कहते हैं कि आई जी एम सी के काबिल डाक्टरों ने उन्हें सफल ओपरेशन के बाद ठीक तो कर लिया है लेकिन उन्हें थोड़ा चलने फिरने में अभी परेशानी हो रही है।

इस बुज़ुर्ग नेता और चिन्तक की सकारात्मक सोच और अपने क्षेत्र के प्रति समर्पण की भावना से जो प्रेरणा मिलती है वह तीर्थन घाटी में रची बसी शुद्धता को बचाए हुए है। हैरतअंगेज़ ये है कि शबाब ने तीर्थन खड्ड के दायरे में पलाहच से लेकर लारजी तक बहने वाली और इसके जलस्तर को बढ़ाने वाली सहयोगी नदियों जिभी, गाड़ागुशैणी, कलवारी खड्ड आदि नदियों पर लघु पन बिजली के लिए मंज़ूर हुए 9 प्रोजेक्टों को सरकार को अपना फैसला पलटने पर मजबूर कर दिया और सरकार को मंत्रिमंडल की बैठक बुलाकर इन 9 प्रोजेक्टों को रद्द करने का फैसला लेना पडा। दिले राम ने हिमाचल के राज्यपाल से लेकर मुख्यमंत्री और और ऊर्जा सचिव के दरवाज़े अनेक बार खटखटाए और सफलता मिलने तक चुप नहीं बैठे। दिले राम बताते है कि सरकार के समक्ष अपना पक्ष रखने के लिए 7 सुनवाइयों के बाद उनकी बात माननी पडी और तीर्थन घाटी का अस्तित्व बचाया जा सका। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने इस कदम में उनका भरपूर साथ दिया और वो तीर्थनघाटी को बचाने में दिले राम शबाब के साथ रहे और तभी तीर्थन को बचाया जा सका।

गौरतलब है कि दिले राम शबाब के प्रयासों की वजह से ही हिमाचल निर्माता एवं पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय यशवंत सिंह परमार के कार्यकाल के दौरान वर्ष 1976 में तीर्थन खड्ड पर किसी भी प्रकार के हाइडल प्रोजेक्ट लगाने पर प्रतिबंध पहले ही लग चुका था। क्योंकि सरकार ने अपने फैसले के अनुसार प्रोजेक्ट आबंटित कर दिए थे और बाद में जब प्रोजेक्ट रद्द कर दिए, जिसके फल्स्वरूप प्रभावित कंपनियों ने न्यायालय का सहारा लेना चाहा, तो दिले राम शबाब ने अपने सुपुत्र राजू भारती के माध्यम से वर्ष 2002 में इंटरवेंशन याचिका दायर की और 2006 में जीत का सेहरा तीर्थन घाटी के सर लगा।

एक प्रस्तावित प्रोजेक्ट संस्थापक के सी लुणावत ने जब तीर्थन घाटी में जबरन घुसना चाहा तो दिले राम शबाब की अध्यक्षता में तीर्थन घाटी के हज़ारों ग्रामीणों, प्रधानों, उपप्रधानों, देवताओं के कारदारों, सहायता समूहों, युवक मंडलों महिला मंडलों ने वापस जाओ के नारे लगाकर उन्हें वापस खदेड़ दिया। इस प्रकार आज तीर्थन घाटी अपने स्वस्थ पर्यावरण के कारण विश्व मानचित्र पर उभरी है और वो भी अपनी अस्मिता को खोए बगैर। दिले राम शबाब लाहौर से उच्च शिक्षा प्राप्त विद्वान भी हैं। बंजार में जे एन यूं से सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर डॉ वरयाम सिंह कहते हैं कि उन्होने दिले राम से बहुत कुछ सीखा है। अंग्रेज़ी भाषा पर दिले राम की पकड़ बहुत मज़बूत है।

वरयाम कहते हैं कि सन 1965 Science talent search scheme scholarship की परिक्षा के लिए उन्होंने study of different water विषय पर जब अपनी प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनानी थी, तो तीर्थन घाटी के एक पुल पर दिले राम से उनकी क्षणिक मुलाक़ात हुई थी और उन्होंने दिले राम से मदद माँगी। फलस्वरूप दिले राम ने वरयाम को स्वयं टाईप करके 22 पृष्ठों की प्रोजेक्ट रिपोर्ट थमा दी और वरयाम देश भर में 17 वां स्थान पाकर स्कोलरशिप हासिल करने में सफल हुए । दिले राम शबाब की लेखन में गहरी रूचि भी रही । ऐसा भी बताया जाता है कि मशहूर शायर शकील बदायूनी और दिले राम शबाब ने एक ही गुरू के अधीन शायरी और लेखन की इस्लाह ली। इसी रूचि के चलते इनकी एक पुस्तक ‘Kullu Himalayan Abode of the Divine’ भी प्रकाशित हुई है । 2 फरवरी 1922 को जन्में शबाब 96 वर्ष की उम्र में भी एक अन्य पुस्तक प्रकाशित करने की तैयारी में लगे हैं, जिसे विश्व विख्यात प्रकाशक ‘हे हाऊस’ प्रकाशित करने जा रहा है।

अपनी धर्मपत्नी 85 वर्षीय पुष्पा शबाब के साथ जीवन यापन कर रहे इस विद्वान चिन्तक और नेता ने अपने जीवन में जिस प्रकार की गति बनाई हुई है, उससे ऐसा प्रतीत होता है, मानो तीर्थन नदी ने इस नेता की रगों में अपना निर्मल प्रवाह भर दिया हो और देवदारों की ताज़ा हवा इनके फेफड़ों को तरोताजा रखे हुए हो । उम्र के शतक तक पहुँचने के लिए तैयार दिले राम शबाब की देख-रेख में यद्यपि उनके सुपुत्र और उनकी धर्मपत्नी कोई कसर नहीं छोड़ते, इसके बावजूद दिले राम अभी भी अपने लिए खुद खाना गर्म करते हैं। कभी कॉफ़ी पीनी हो या चाय, तो खुद बनाते हैं। दिन में यदि परिजनों को कोई काम हो तो अकेले घर पर रहते हैं। परन्तु एक सक्रिय और एक सर्जक रहे इस पूर्व विधायक को यदि कोई विशेष स्वास्थ्य सहायता मिलनी चाहिए।

मसलन कोई स्वास्थ्य कर्मी इनकी विशेष देख रेख के लिए तैनात हो तो क्या बुराई है। दिले राम शबाब किसी की मदद लेना यद्यपि पसंद नहीं करते, लेकिन उनके प्रदेश और अपने इलाके के प्रति महत्वपूर्ण योगदान के चलते यदि उन्हें विशेष देख रेख की सुविधा मिल जाए तो यह एक नेक काम ही होगा और उनके सृजनात्मक कार्य में आ रही बाधा को दूर करेगा। दिले राम शबाब पर बहुत सी बाते हैं, जो साझा की जा सकती हैं, लेकिन फेसबुक पर इससे लम्बी पोस्ट डालना शायद अधिक सार्थक न हो। कोई और मंच मिला तो बात होगी।

हिमाचल के लेखकों का एक दल उनसे मिलने उनके घर पर गया, जिसका श्रेय डॉ निरंजन देव शर्मा को जाता है। उनके साथ कुलराजीव पन्त, सुरेश सेन निशांत,अजेय, मुरारी शर्मा, आत्मा रंजन और ट्रिब्यून के मंडी स्थित संवाददादा दीपेन्द्र मांटा आदि सभी उनसे मिलने उनके घर पहुंचे तो वो बेहद खुशी हुई। अजेय लाहुल स्पीति में बन रहे प्रोजेक्टों को लेकर बेहद चिंतित दिख रहे थे, उन्होंने अपने क्षेत्र को बचाने के लिए शबाब से बहुत सी बाते जानीं। बहरहाल दुआ ये है कि तीर्थन घाटी में एक सजग पहरेदार और उम्मीद का दिया दिले राम शबाब के रूप में यूं ही जलता रहे..

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